हिंदी शब्द की व्युत्पत्ति – हिंदी शब्द की व्युत्पत्ति ‘सिंधु’ शब्द से मानी जाती है। ‘सिंधु’ शब्द प्राचीन भारत के पश्चिमोत्तर प्रान्त की एक विशाल नदी और उसके आसपास के क्षेत्र का वाचक है। ईरानियों ने सिंधु शब्द का उच्चारण ‘हिंदु’ रूप में किया। उनके लिए ‘हिंदु’ शब्द भारत का उस क्षेत्र का वाचक था जिससे वे परिचित थे। ‘हिंदु’ से ‘हिंदी’ शब्द की विकास यात्र के चरण क्रमशः इस प्रकार थे- हिंदु हिंद हिंदीक हिंदी। हिंदी शब्द पहले क्षेत्र का वाचक था, कालान्तर में यह भाषा का वाचक हो गया।
हिंदी भाषा परंपरा – जिस रूप में आज हिंदी भाषा बोली व समझी जाती है वह खड़ी बोली का ही साहित्यिक रूप है जिसका विकास मुख्यतः 19वीं शताब्दी में हुआ। 13वीं-14वीं शताब्दी के प्रारंभ में अमीर खुसरो ने पहली बार खड़ी बोली हिंदी में कविता (पहेलियाँ, मुकरियाँ) रचीं।
उत्तर भारत की खड़ी बोली को मुसलमान दक्षिण में ले गए जहाँ दक्खनी हिंदी के रूप में इसका विकास हुआ। अरबी-फारसी में लिखी इस भाषा को दक्कनी उर्दू नाम मिला। मध्यकाल तक खड़ी बोली मुख्यतः बोलचाल की भाषा के रूप में ही व्यापक रूप से प्रयुक्त होती रही, साहित्यिक भाषा के रूप में नहीं। उस युग में ब्रजभाषा और अवधी काव्य की भाषाएँ थीं। ब्रजभाषा को सूरदास ने, अवधी को तुलसीदास ने और मैथिली को विद्यापति ने चरमोत्कर्ष पर पहुँचाया। राज दरबार में फारसी राजकाज की भाषा थी, अतः खड़ी बोली इन क्षेत्रें में उपेक्षित सी रही लेकिन समस्त उत्तर भारत में जनसंपर्क की यही एकमात्र भाषा थी। जन सम्पर्क की भाषा के रूप में पहले से ही प्रचलित खड़ी बोली का चयन ज्ञान-विज्ञान के गद्य के लिए सहज था।
मुद्रण का आविष्कार, अंग्रेजी गद्य साहित्य का भारत में प्रसार, राजनीतिक चेतना का उदय, पत्र-पत्रिकाओं का प्रसार, लोकतंत्र की ओर सामूहिक रुझान, सामान्य जन तक संदेश पहुँचाने का आग्रह, शिक्षा का प्रसार आदि कई ऐसे अन्य कारण रहे जिन्होंने मिलकर खड़ी बोली से विकसित हिंदी को न केवल उत्तर भारत की बहुप्रयुक्त भाषा के रूप में बल्कि समस्त देश की जनसंपर्क की भाषा के रूप में प्रतिष्ठित किया। हिंदी गद्य को निखारने तथा इसे परिनिष्ठित रूप देने में भारतेंदु हरिश्चंद्र, महावीर प्रसाद द्विवेदी, प्रेमचंद आदि अनेक विद्वानों का अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रहा।
परीक्षा उपयोगी महत्वपूर्ण बिन्दु
- आधुनिक काल में हिन्दी भाषा व देवनागरी लिपि के मानकीकरण का सर्वप्रथम प्रयास बालगंगाधर तिलक ने 1904 में अपने पत्र केसरी में किया।
- महात्मा गाँधी ने कहा -“स्वदेश अभियान को स्थिर रखने के लिए हिन्दी आवश्यक है।”
- पुरुषोत्तम दास टंडन और महात्मा गाँधी के मध्य हिन्दी-हिंदुस्तानी विवाद हुआ।
- पुरुषोत्तम दास टंडन को हिन्दी के प्रति सेवाओं के लिए 1961 ई0 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
- डा0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने पुरुषोत्तम दास टंडन के बारे में कहा – “वह स्वतन्त्रता संग्राम के निर्भय सैनानी और हमारी संस्कृति के मूलभूत मूल्यों में विश्वास करते रहे हैं।”
- सेठ गोविंददास ने हिन्दी के समर्थन में कहा – “जो देश में एक संस्कृति चाहते हैं, वे भला दो लिपियों (नागरी और फ़ारसी) में लिखी जाने वाली भाषा (हिंदुस्तानी) का समर्थन कैसे करेंगे?”
- आर्य समाज ने हिन्दी को आर्य भाषा कहा। आर्य समाज की स्थापना स्वामी दयानन्द सरस्वती ने 1875 ई0 में बंबई में की।
- एलेन औस्ट्रिविन ने 1884 ई0 में अखिल भारतीय कांग्रेस की स्थापना की।
- ए0ओ0 ह्यूम ने 1885 ई0 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (इंडियन नेशनल कांग्रेस) की स्थापना की। इसके पहले अध्यक्ष सुरेन्द्रनाथ बनर्जी थे।
- 1893 ई0 में नागरी प्रचारणी सभा की स्थापना काशी में हुई।
- नागरी प्रचारणी सभा के प्रयासों से 1900 ई0 में अदालतों में देवनागरी प्रयोग में आई।
- नागरी प्रचारणी सभा ने हिन्दी शब्द सागर, हिन्दी वैज्ञानिक शब्दावली, संक्षिप्त शब्द सागर कोश बनाए।
- लाला लाजपत राय ने 1909 ई0 में हिन्दू महासभा की स्थापना पंजाब में की। लाला लाजपत राय ने पंजाब केसरी, अभ्युदय, मर्यादा, सनातन धर्म पत्र-पत्रिकाएँ निकाले।
- 1910 ई0 में पुरुषोत्तम दास टंडन ने प्रयाग में हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना की। हिन्दी साहित्य सम्मेलन को 1963 ई0 में राष्ट्रीय महत्व की संस्था घोषित किया गया।
- हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा प्रकाशित पत्र-पत्रिकाएँ थी-
- राष्ट्रभाषा (पाक्षिक)
- माध्यम (मासिक)
- सम्मेलन पत्रिका (त्रैमासिक)
- प0 मदन मोहन मालवीय ने 1917 ई0 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रत्येक छात्र के लिए हिन्दी अनिवार्य कर दी गई।
- दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा की स्थापना 1927 ई0 में मद्रास में हुई। पहले यह हिन्दी साहित्य सम्मेलन की संस्था थी।
- 1938 ई0 में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति की स्थापना वर्धा (महाराष्ट्र) में हुई।पहले यह हिन्दी साहित्य सम्मेलन की संस्था थी। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के पत्र-पत्रिकाएँ हैं- राष्ट्रभाषा, राष्ट्रभारती । राष्ट्रभाषा प्रचार समिति (वर्धा) राष्ट्रभाषा प्रचार सम्मेलन आयोजित करती है।