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पदबन्ध

कई पदों के योग से बनो वाक्यांश को, जो एक ही बद का काम करता है, पदबंध कहते हैं। यानी जब कई पद मिल कर एक व्याकरणिक इकाई का कार्य करें तो पदों का वह समूह पदबंध कहलाता है। जैसे –

  1. परिश्रम करने वाला छात्र सफल हुआ।
  2. यह लड़की अत्यंत सुशील और परिश्रमी है।
  3. नदी बहती चली जा रही है
  4. नदी कल-कल करती हुई बह रही थी।

 

पदबंध चार प्रकार के होते हैं –

(क) संज्ञा पदबंध:- पदबंध का अंतिम अथवा शीर्ष शब्द यदि संज्ञा हो और अन्य सभी पद उसी पर आश्रित हों तो वह संज्ञा पदबंध कहलाता है। यह संज्ञा पदबंध कर्ता, कर्म, पूरक आदि के स्थान पर प्रयुक्त होता है, जैसे –

  1. स्वागत के लिए आए छात्र यहाँ खड़े हैं।
  2. महापराक्रमी दशरथनंदन राम ने रावण को मार दिया।
  3. अयोध्या के राजा दशरथ के चार पुत्र थे।
  4. आसमान में उड़ता गुब्बारा फट गया।

 

2- विशेषण पदबंध:- विशेषण पदबंध के शीर्ष में अथवा अंतिम शब्द विशेषण होता है। अन्य पद उस विशेषण पर आश्रित होते हैं। इसमें प्रमुख रूप से विशेषण होता है। यह पदबंध प्रायः संज्ञा पदों के अंगरूप में कार्य करता है और इसका स्वतंत्र प्रयोग बहुत कम मिलता है। जैसे-

  1. तेज चलने वाली गाड़ियाँ प्रायः देर से पहुँचती हैें।
  2. उस घर के कोने में बैठा हुआ आदमी जासूस है।
  3. उसका घोड़ा अत्यंत सुंदर, फुरतीला और आज्ञाकारी है।
  4. बरगद और पीपल की घनी छाँव से हमें बहुत सुख मिला।

 

3- क्रिया पदबंध :- क्रिया पदबंध में मुख्य क्रिया पहले आती है। उसके बाद अन्य क्रियाएँ मिलकर एक समग्र इकाई बनाती हैं। जैसे-

  1. वर्षा में लगाया पौधा बढ़ता ही चला जा रहा है
  2. वह सीढ़ियों पर चढ़ रहा है।
  3. सुरेश नदी में डूब गया।
  4. अब दरवाजा खोला जा सकता है।

 

4- क्रियाविशेषण पदबंध:- यह पदबंध मूलतः क्रिया का विशेषण रूप होने के कारण प्रायः क्रिया से पहले आता है। इसमें क्रियाविशेषण प्रायः शीर्ष स्थान पर होता है अन्य पद उस पर आश्रित होते हैं, जैसे –

  1. वह चोरी छिपे, दबे पाँव आ रहा है।
  2. उसने साँप को पीट-पीटकर मारा।
  3. सीता गीता से अधिक चतुर है।
  4. बच्चा रोते-रोते चुप हो गया।