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कक्षा 12 HINDI MCQ PAPERS 1

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1.

अपठित गद्यांश
अपने देश की सीमाओं की दुश्मन से रक्षा करने के लिए मनुष्य सदैव सजग रहा है। प्राचीन काल में युद्ध क्षेत्र सीमित होता था तथा युद्ध धनुष-बाण, तलवार, भाले आदि द्वारा होता था, परंतु आज युद्धक्षेत्र सीमाबद्ध नहीं है। युद्ध में अंधविश्वास से हटकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया जा रहा है। आज विज्ञान ने लड़ाई को एक नया मोड़ दिया है। अब हाथी, ऊँट, घोड़ों का स्थान रेल, मोटरगाड़ियों और हवाई जहाजों ने ले लिया है। धनुष-बाण आदि का स्थान बंदूक व तोप की गोलियों और रॉकेट, मिसाइल, परमाणु तथा प्रक्षेपास्त्रों ने ले लिया है और उनके अनुसार राष्ट्र की सीमाओं के प्रहरियों में अंतर आया है।

अब मानव प्रहरियों का स्थान बहुत हद तक यांत्रिक प्रहरियों ने ले लिया है जो मानव से कहीं अधिक सजग, त्रुटिहीन और क्षमतावान् हैं। आधुनिक प्रहरियों में रेडार, सौनार, लौरान, शौरान आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। यहाँ रेडार का वर्णन किया जाता है।

रेडार का उपयोग द्वितीय विश्वयुद्ध में प्रारंभ हुआ। ‘रेडार’ शब्द ‘रेडियो डिटेक्शन एंड रेंजिंग के प्रथम अक्षरों से बना है। इसका अर्थ यह भी है कि किसी भी रेडार से एक निश्चित क्षेत्र के अंदर ही वायुयान की स्थिति ज्ञात की जा सकती है। यदि जहाज उस ‘रेंज’ से बाहर है तो पता नहीं लगाया जा सकता। रेडार एक अति लाभदायक व महत्त्वपूर्ण प्रहरी है, जिसमें विद्युत चुंबकीय तरंगों की मदद से उड़ते हुए शत्रु के विमानों की सही स्थिति का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न - मनुष्य किसलिए सजग रहा है?

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अपठित गद्यांश 
अपने देश की सीमाओं की दुश्मन से रक्षा करने के लिए मनुष्य सदैव सजग रहा है। प्राचीन काल में युद्ध क्षेत्र सीमित होता था तथा युद्ध धनुष-बाण, तलवार, भाले आदि द्वारा होता था, परंतु आज युद्धक्षेत्र सीमाबद्ध नहीं है। युद्ध में अंधविश्वास से हटकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया जा रहा है। आज विज्ञान ने लड़ाई को एक नया मोड़ दिया है। अब हाथी, ऊँट, घोड़ों का स्थान रेल, मोटरगाड़ियों और हवाई जहाजों ने ले लिया है। धनुष-बाण आदि का स्थान बंदूक व तोप की गोलियों और रॉकेट, मिसाइल, परमाणु तथा प्रक्षेपास्त्रों ने ले लिया है और उनके अनुसार राष्ट्र की सीमाओं के प्रहरियों में अंतर आया है।

अब मानव प्रहरियों का स्थान बहुत हद तक यांत्रिक प्रहरियों ने ले लिया है जो मानव से कहीं अधिक सजग, त्रुटिहीन और क्षमतावान् हैं। आधुनिक प्रहरियों में रेडार, सौनार, लौरान, शौरान आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। यहाँ रेडार का वर्णन किया जाता है।

रेडार का उपयोग द्वितीय विश्वयुद्ध में प्रारंभ हुआ। ‘रेडार’ शब्द ‘रेडियो डिटेक्शन एंड रेंजिंग के प्रथम अक्षरों से बना है। इसका अर्थ यह भी है कि किसी भी रेडार से एक निश्चित क्षेत्र के अंदर ही वायुयान की स्थिति ज्ञात की जा सकती है। यदि जहाज उस ‘रेंज’ से बाहर है तो पता नहीं लगाया जा सकता। रेडार एक अति लाभदायक व महत्त्वपूर्ण प्रहरी है, जिसमें विद्युत चुंबकीय तरंगों की मदद से उड़ते हुए शत्रु के विमानों की सही स्थिति का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न - प्राचीन समय में किसके द्वारा युद्ध नहीं लड़ा जाता था?

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3. अपठित गद्यांश
अपने देश की सीमाओं की दुश्मन से रक्षा करने के लिए मनुष्य सदैव सजग रहा है। प्राचीन काल में युद्ध क्षेत्र सीमित होता था तथा युद्ध धनुष-बाण, तलवार, भाले आदि द्वारा होता था, परंतु आज युद्धक्षेत्र सीमाबद्ध नहीं है। युद्ध में अंधविश्वास से हटकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया जा रहा है। आज विज्ञान ने लड़ाई को एक नया मोड़ दिया है। अब हाथी, ऊँट, घोड़ों का स्थान रेल, मोटरगाड़ियों और हवाई जहाजों ने ले लिया है। धनुष-बाण आदि का स्थान बंदूक व तोप की गोलियों और रॉकेट, मिसाइल, परमाणु तथा प्रक्षेपास्त्रों ने ले लिया है और उनके अनुसार राष्ट्र की सीमाओं के प्रहरियों में अंतर आया है।

अब मानव प्रहरियों का स्थान बहुत हद तक यांत्रिक प्रहरियों ने ले लिया है जो मानव से कहीं अधिक सजग, त्रुटिहीन और क्षमतावान् हैं। आधुनिक प्रहरियों में रेडार, सौनार, लौरान, शौरान आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। यहाँ रेडार का वर्णन किया जाता है।

रेडार का उपयोग द्वितीय विश्वयुद्ध में प्रारंभ हुआ। ‘रेडार’ शब्द ‘रेडियो डिटेक्शन एंड रेंजिंग के प्रथम अक्षरों से बना है। इसका अर्थ यह भी है कि किसी भी रेडार से एक निश्चित क्षेत्र के अंदर ही वायुयान की स्थिति ज्ञात की जा सकती है। यदि जहाज उस ‘रेंज’ से बाहर है तो पता नहीं लगाया जा सकता। रेडार एक अति लाभदायक व महत्त्वपूर्ण प्रहरी है, जिसमें विद्युत चुंबकीय तरंगों की मदद से उड़ते हुए शत्रु के विमानों की सही स्थिति का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न -  रेडार का प्रयोग किस समय से शुरू हुआ?

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4. अपठित गद्यांश
अपने देश की सीमाओं की दुश्मन से रक्षा करने के लिए मनुष्य सदैव सजग रहा है। प्राचीन काल में युद्ध क्षेत्र सीमित होता था तथा युद्ध धनुष-बाण, तलवार, भाले आदि द्वारा होता था, परंतु आज युद्धक्षेत्र सीमाबद्ध नहीं है। युद्ध में अंधविश्वास से हटकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया जा रहा है। आज विज्ञान ने लड़ाई को एक नया मोड़ दिया है। अब हाथी, ऊँट, घोड़ों का स्थान रेल, मोटरगाड़ियों और हवाई जहाजों ने ले लिया है। धनुष-बाण आदि का स्थान बंदूक व तोप की गोलियों और रॉकेट, मिसाइल, परमाणु तथा प्रक्षेपास्त्रों ने ले लिया है और उनके अनुसार राष्ट्र की सीमाओं के प्रहरियों में अंतर आया है।

अब मानव प्रहरियों का स्थान बहुत हद तक यांत्रिक प्रहरियों ने ले लिया है जो मानव से कहीं अधिक सजग, त्रुटिहीन और क्षमतावान् हैं। आधुनिक प्रहरियों में रेडार, सौनार, लौरान, शौरान आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। यहाँ रेडार का वर्णन किया जाता है।

रेडार का उपयोग द्वितीय विश्वयुद्ध में प्रारंभ हुआ। ‘रेडार’ शब्द ‘रेडियो डिटेक्शन एंड रेंजिंग के प्रथम अक्षरों से बना है। इसका अर्थ यह भी है कि किसी भी रेडार से एक निश्चित क्षेत्र के अंदर ही वायुयान की स्थिति ज्ञात की जा सकती है। यदि जहाज उस ‘रेंज’ से बाहर है तो पता नहीं लगाया जा सकता। रेडार एक अति लाभदायक व महत्त्वपूर्ण प्रहरी है, जिसमें विद्युत चुंबकीय तरंगों की मदद से उड़ते हुए शत्रु के विमानों की सही स्थिति का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न - विज्ञान ने क्या कार्य किया है?

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5. अपठित गद्यांश 
अपने देश की सीमाओं की दुश्मन से रक्षा करने के लिए मनुष्य सदैव सजग रहा है। प्राचीन काल में युद्ध क्षेत्र सीमित होता था तथा युद्ध धनुष-बाण, तलवार, भाले आदि द्वारा होता था, परंतु आज युद्धक्षेत्र सीमाबद्ध नहीं है। युद्ध में अंधविश्वास से हटकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया जा रहा है। आज विज्ञान ने लड़ाई को एक नया मोड़ दिया है। अब हाथी, ऊँट, घोड़ों का स्थान रेल, मोटरगाड़ियों और हवाई जहाजों ने ले लिया है। धनुष-बाण आदि का स्थान बंदूक व तोप की गोलियों और रॉकेट, मिसाइल, परमाणु तथा प्रक्षेपास्त्रों ने ले लिया है और उनके अनुसार राष्ट्र की सीमाओं के प्रहरियों में अंतर आया है।

अब मानव प्रहरियों का स्थान बहुत हद तक यांत्रिक प्रहरियों ने ले लिया है जो मानव से कहीं अधिक सजग, त्रुटिहीन और क्षमतावान् हैं। आधुनिक प्रहरियों में रेडार, सौनार, लौरान, शौरान आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। यहाँ रेडार का वर्णन किया जाता है।

रेडार का उपयोग द्वितीय विश्वयुद्ध में प्रारंभ हुआ। ‘रेडार’ शब्द ‘रेडियो डिटेक्शन एंड रेंजिंग के प्रथम अक्षरों से बना है। इसका अर्थ यह भी है कि किसी भी रेडार से एक निश्चित क्षेत्र के अंदर ही वायुयान की स्थिति ज्ञात की जा सकती है। यदि जहाज उस ‘रेंज’ से बाहर है तो पता नहीं लगाया जा सकता। रेडार एक अति लाभदायक व महत्त्वपूर्ण प्रहरी है, जिसमें विद्युत चुंबकीय तरंगों की मदद से उड़ते हुए शत्रु के विमानों की सही स्थिति का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न - युद्ध में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने से क्या हुआ?

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6. अपठित गद्यांश 
अपने देश की सीमाओं की दुश्मन से रक्षा करने के लिए मनुष्य सदैव सजग रहा है। प्राचीन काल में युद्ध क्षेत्र सीमित होता था तथा युद्ध धनुष-बाण, तलवार, भाले आदि द्वारा होता था, परंतु आज युद्धक्षेत्र सीमाबद्ध नहीं है। युद्ध में अंधविश्वास से हटकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया जा रहा है। आज विज्ञान ने लड़ाई को एक नया मोड़ दिया है। अब हाथी, ऊँट, घोड़ों का स्थान रेल, मोटरगाड़ियों और हवाई जहाजों ने ले लिया है। धनुष-बाण आदि का स्थान बंदूक व तोप की गोलियों और रॉकेट, मिसाइल, परमाणु तथा प्रक्षेपास्त्रों ने ले लिया है और उनके अनुसार राष्ट्र की सीमाओं के प्रहरियों में अंतर आया है।

अब मानव प्रहरियों का स्थान बहुत हद तक यांत्रिक प्रहरियों ने ले लिया है जो मानव से कहीं अधिक सजग, त्रुटिहीन और क्षमतावान् हैं। आधुनिक प्रहरियों में रेडार, सौनार, लौरान, शौरान आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। यहाँ रेडार का वर्णन किया जाता है।

रेडार का उपयोग द्वितीय विश्वयुद्ध में प्रारंभ हुआ। ‘रेडार’ शब्द ‘रेडियो डिटेक्शन एंड रेंजिंग के प्रथम अक्षरों से बना है। इसका अर्थ यह भी है कि किसी भी रेडार से एक निश्चित क्षेत्र के अंदर ही वायुयान की स्थिति ज्ञात की जा सकती है। यदि जहाज उस ‘रेंज’ से बाहर है तो पता नहीं लगाया जा सकता। रेडार एक अति लाभदायक व महत्त्वपूर्ण प्रहरी है, जिसमें विद्युत चुंबकीय तरंगों की मदद से उड़ते हुए शत्रु के विमानों की सही स्थिति का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न -  रेडार का विस्तारित रूप है-

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7. अपठित गद्यांश 
अपने देश की सीमाओं की दुश्मन से रक्षा करने के लिए मनुष्य सदैव सजग रहा है। प्राचीन काल में युद्ध क्षेत्र सीमित होता था तथा युद्ध धनुष-बाण, तलवार, भाले आदि द्वारा होता था, परंतु आज युद्धक्षेत्र सीमाबद्ध नहीं है। युद्ध में अंधविश्वास से हटकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया जा रहा है। आज विज्ञान ने लड़ाई को एक नया मोड़ दिया है। अब हाथी, ऊँट, घोड़ों का स्थान रेल, मोटरगाड़ियों और हवाई जहाजों ने ले लिया है। धनुष-बाण आदि का स्थान बंदूक व तोप की गोलियों और रॉकेट, मिसाइल, परमाणु तथा प्रक्षेपास्त्रों ने ले लिया है और उनके अनुसार राष्ट्र की सीमाओं के प्रहरियों में अंतर आया है।

अब मानव प्रहरियों का स्थान बहुत हद तक यांत्रिक प्रहरियों ने ले लिया है जो मानव से कहीं अधिक सजग, त्रुटिहीन और क्षमतावान् हैं। आधुनिक प्रहरियों में रेडार, सौनार, लौरान, शौरान आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। यहाँ रेडार का वर्णन किया जाता है।

रेडार का उपयोग द्वितीय विश्वयुद्ध में प्रारंभ हुआ। ‘रेडार’ शब्द ‘रेडियो डिटेक्शन एंड रेंजिंग के प्रथम अक्षरों से बना है। इसका अर्थ यह भी है कि किसी भी रेडार से एक निश्चित क्षेत्र के अंदर ही वायुयान की स्थिति ज्ञात की जा सकती है। यदि जहाज उस ‘रेंज’ से बाहर है तो पता नहीं लगाया जा सकता। रेडार एक अति लाभदायक व महत्त्वपूर्ण प्रहरी है, जिसमें विद्युत चुंबकीय तरंगों की मदद से उड़ते हुए शत्रु के विमानों की सही स्थिति का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न -  रेडार का क्या कार्य है?

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8. अपठित गद्यांश 
अपने देश की सीमाओं की दुश्मन से रक्षा करने के लिए मनुष्य सदैव सजग रहा है। प्राचीन काल में युद्ध क्षेत्र सीमित होता था तथा युद्ध धनुष-बाण, तलवार, भाले आदि द्वारा होता था, परंतु आज युद्धक्षेत्र सीमाबद्ध नहीं है। युद्ध में अंधविश्वास से हटकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया जा रहा है। आज विज्ञान ने लड़ाई को एक नया मोड़ दिया है। अब हाथी, ऊँट, घोड़ों का स्थान रेल, मोटरगाड़ियों और हवाई जहाजों ने ले लिया है। धनुष-बाण आदि का स्थान बंदूक व तोप की गोलियों और रॉकेट, मिसाइल, परमाणु तथा प्रक्षेपास्त्रों ने ले लिया है और उनके अनुसार राष्ट्र की सीमाओं के प्रहरियों में अंतर आया है।

अब मानव प्रहरियों का स्थान बहुत हद तक यांत्रिक प्रहरियों ने ले लिया है जो मानव से कहीं अधिक सजग, त्रुटिहीन और क्षमतावान् हैं। आधुनिक प्रहरियों में रेडार, सौनार, लौरान, शौरान आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। यहाँ रेडार का वर्णन किया जाता है।

रेडार का उपयोग द्वितीय विश्वयुद्ध में प्रारंभ हुआ। ‘रेडार’ शब्द ‘रेडियो डिटेक्शन एंड रेंजिंग के प्रथम अक्षरों से बना है। इसका अर्थ यह भी है कि किसी भी रेडार से एक निश्चित क्षेत्र के अंदर ही वायुयान की स्थिति ज्ञात की जा सकती है। यदि जहाज उस ‘रेंज’ से बाहर है तो पता नहीं लगाया जा सकता। रेडार एक अति लाभदायक व महत्त्वपूर्ण प्रहरी है, जिसमें विद्युत चुंबकीय तरंगों की मदद से उड़ते हुए शत्रु के विमानों की सही स्थिति का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न -  रेडार में कैसी तरंगों की मदद से उड़ते हुए शत्रु के विमानों की सही स्थिति का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है?

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9. अपठित गद्यांश 
अपने देश की सीमाओं की दुश्मन से रक्षा करने के लिए मनुष्य सदैव सजग रहा है। प्राचीन काल में युद्ध क्षेत्र सीमित होता था तथा युद्ध धनुष-बाण, तलवार, भाले आदि द्वारा होता था, परंतु आज युद्धक्षेत्र सीमाबद्ध नहीं है। युद्ध में अंधविश्वास से हटकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया जा रहा है। आज विज्ञान ने लड़ाई को एक नया मोड़ दिया है। अब हाथी, ऊँट, घोड़ों का स्थान रेल, मोटरगाड़ियों और हवाई जहाजों ने ले लिया है। धनुष-बाण आदि का स्थान बंदूक व तोप की गोलियों और रॉकेट, मिसाइल, परमाणु तथा प्रक्षेपास्त्रों ने ले लिया है और उनके अनुसार राष्ट्र की सीमाओं के प्रहरियों में अंतर आया है।

अब मानव प्रहरियों का स्थान बहुत हद तक यांत्रिक प्रहरियों ने ले लिया है जो मानव से कहीं अधिक सजग, त्रुटिहीन और क्षमतावान् हैं। आधुनिक प्रहरियों में रेडार, सौनार, लौरान, शौरान आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। यहाँ रेडार का वर्णन किया जाता है।

रेडार का उपयोग द्वितीय विश्वयुद्ध में प्रारंभ हुआ। ‘रेडार’ शब्द ‘रेडियो डिटेक्शन एंड रेंजिंग के प्रथम अक्षरों से बना है। इसका अर्थ यह भी है कि किसी भी रेडार से एक निश्चित क्षेत्र के अंदर ही वायुयान की स्थिति ज्ञात की जा सकती है। यदि जहाज उस ‘रेंज’ से बाहर है तो पता नहीं लगाया जा सकता। रेडार एक अति लाभदायक व महत्त्वपूर्ण प्रहरी है, जिसमें विद्युत चुंबकीय तरंगों की मदद से उड़ते हुए शत्रु के विमानों की सही स्थिति का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न - पद्यांश में आए शब्द 'परंतु', 'भी' व्याकरणिक दृष्टि से कैसे शब्द हैं?

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10. अपठित गद्यांश 
अपने देश की सीमाओं की दुश्मन से रक्षा करने के लिए मनुष्य सदैव सजग रहा है। प्राचीन काल में युद्ध क्षेत्र सीमित होता था तथा युद्ध धनुष-बाण, तलवार, भाले आदि द्वारा होता था, परंतु आज युद्धक्षेत्र सीमाबद्ध नहीं है। युद्ध में अंधविश्वास से हटकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया जा रहा है। आज विज्ञान ने लड़ाई को एक नया मोड़ दिया है। अब हाथी, ऊँट, घोड़ों का स्थान रेल, मोटरगाड़ियों और हवाई जहाजों ने ले लिया है। धनुष-बाण आदि का स्थान बंदूक व तोप की गोलियों और रॉकेट, मिसाइल, परमाणु तथा प्रक्षेपास्त्रों ने ले लिया है और उनके अनुसार राष्ट्र की सीमाओं के प्रहरियों में अंतर आया है।

अब मानव प्रहरियों का स्थान बहुत हद तक यांत्रिक प्रहरियों ने ले लिया है जो मानव से कहीं अधिक सजग, त्रुटिहीन और क्षमतावान् हैं। आधुनिक प्रहरियों में रेडार, सौनार, लौरान, शौरान आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। यहाँ रेडार का वर्णन किया जाता है।

रेडार का उपयोग द्वितीय विश्वयुद्ध में प्रारंभ हुआ। ‘रेडार’ शब्द ‘रेडियो डिटेक्शन एंड रेंजिंग के प्रथम अक्षरों से बना है। इसका अर्थ यह भी है कि किसी भी रेडार से एक निश्चित क्षेत्र के अंदर ही वायुयान की स्थिति ज्ञात की जा सकती है। यदि जहाज उस ‘रेंज’ से बाहर है तो पता नहीं लगाया जा सकता। रेडार एक अति लाभदायक व महत्त्वपूर्ण प्रहरी है, जिसमें विद्युत चुंबकीय तरंगों की मदद से उड़ते हुए शत्रु के विमानों की सही स्थिति का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न -  पद्यांश का उचित शीर्षक क्या हो सकता है?

11 / 40

11. अपठित पद्यांश

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
आज सिन्धु ने विष उगला है
लहरों का यौवन मचला है
आज हृदय में और सिन्धु में
साथ उठा है ज्वार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
लहरों के स्वर में कुछ बोलो
इस अंधड में साहस तोलो
कभी-कभी मिलता जीवन में
तूफानों का प्यार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार

प्रश्न - कवि किसे तूफानों की ओर पतवार घुमाने के लिए कहता है?

12 / 40

12. अपठित पद्यांश

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
आज सिन्धु ने विष उगला है
लहरों का यौवन मचला है
आज हृदय में और सिन्धु में
साथ उठा है ज्वार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
लहरों के स्वर में कुछ बोलो
इस अंधड में साहस तोलो
कभी-कभी मिलता जीवन में
तूफानों का प्यार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार

प्रश्न - तूफानों की ओर पतवार घुमाने का क्या आशय है?

13 / 40

13. अपठित पद्यांश

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
आज सिन्धु ने विष उगला है
लहरों का यौवन मचला है
आज हृदय में और सिन्धु में
साथ उठा है ज्वार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
लहरों के स्वर में कुछ बोलो
इस अंधड में साहस तोलो
कभी-कभी मिलता जीवन में
तूफानों का प्यार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार

प्रश्न - कवि के अनुसार ज्वार कहाँ-कहाँ उठा है?

14 / 40

14. अपठित पद्यांश

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
आज सिन्धु ने विष उगला है
लहरों का यौवन मचला है
आज हृदय में और सिन्धु में
साथ उठा है ज्वार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
लहरों के स्वर में कुछ बोलो
इस अंधड में साहस तोलो
कभी-कभी मिलता जीवन में
तूफानों का प्यार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार

प्रश्न - कवि को कभी-कभी जीवन में क्या मिलता है?

15 / 40

15. अपठित पद्यांश

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
आज सिन्धु ने विष उगला है
लहरों का यौवन मचला है
आज हृदय में और सिन्धु में
साथ उठा है ज्वार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
लहरों के स्वर में कुछ बोलो
इस अंधड में साहस तोलो
कभी-कभी मिलता जीवन में
तूफानों का प्यार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार

प्रश्न - अंतिम पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?

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16. अपठित पद्यांश

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
आज सिन्धु ने विष उगला है
लहरों का यौवन मचला है
आज हृदय में और सिन्धु में
साथ उठा है ज्वार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
लहरों के स्वर में कुछ बोलो
इस अंधड में साहस तोलो
कभी-कभी मिलता जीवन में
तूफानों का प्यार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार

प्रश्न - 'इस अंधड में साहस तोलो' से कवि का क्या अभिप्राय है?

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17. अपठित पद्यांश

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
आज सिन्धु ने विष उगला है
लहरों का यौवन मचला है
आज हृदय में और सिन्धु में
साथ उठा है ज्वार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
लहरों के स्वर में कुछ बोलो
इस अंधड में साहस तोलो
कभी-कभी मिलता जीवन में
तूफानों का प्यार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार

प्रश्न - निम्न में से कौन-सा शब्द 'विष' का पर्यायवाची नहीं है?

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18. अपठित पद्यांश

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
आज सिन्धु ने विष उगला है
लहरों का यौवन मचला है
आज हृदय में और सिन्धु में
साथ उठा है ज्वार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
लहरों के स्वर में कुछ बोलो
इस अंधड में साहस तोलो
कभी-कभी मिलता जीवन में
तूफानों का प्यार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार

प्रश्न - इस पद्यांश में कवि किसका परिचय नहीं देना चाहता?

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19. निम्न में से कौन-सा कविता का मुख्य घटक या तत्व नहीं है?

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20. बाह्य संवेदनाएँ किस स्तर पर बिंब के रूप में बदल जाती हैं।

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21. 'कागद कारे' किस समाचार पत्र का स्तम्भ लेखन रहा है?

"अपना मालवा : खाऊ उजाडू सभ्यता से ..." पाठ के आधार पर बताइए।

22 / 40

22.

एंकर विजुअल किसे कहते हैं?

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23.

समाचार लेखन के किस भाग में क्या, कौन, कब, कहाँ के अनुसार खबर के बारे में बताया जाता है।

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24. पठित काव्यांश

जब हम सत्य को पुकारते हैं
तो वह हमसे परे हटता जाता है
जैसे गुहारते हुए युधिष्ठिर के सामने से
भागे थे विदुर और भी घने जंगलों में
सत्य शायद जानना चाहता है
कि उसके पीछे हम कितनी दूर तक भटक सकते हैं

प्रश्न - कविता में युधिष्ठिर किसे पुकार रहे हैं?

25 / 40

25. पठित काव्यांश

जब हम सत्य को पुकारते हैं
तो वह हमसे परे हटता जाता है
जैसे गुहारते हुए युधिष्ठिर के सामने से
भागे थे विदुर और भी घने जंगलों में
सत्य शायद जानना चाहता है
कि उसके पीछे हम कितनी दूर तक भटक सकते हैं

प्रश्न - कविता में युधिष्ठिर के पुकारने पर विदुर कहाँ भागे चले जाते हैं?

26 / 40

26. पठित काव्यांश

जब हम सत्य को पुकारते हैं
तो वह हमसे परे हटता जाता है
जैसे गुहारते हुए युधिष्ठिर के सामने से
भागे थे विदुर और भी घने जंगलों में
सत्य शायद जानना चाहता है
कि उसके पीछे हम कितनी दूर तक भटक सकते हैं

प्रश्न - इस काव्यांश के कवि का नाम क्या है?

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27. पठित काव्यांश

जब हम सत्य को पुकारते हैं
तो वह हमसे परे हटता जाता है
जैसे गुहारते हुए युधिष्ठिर के सामने से
भागे थे विदुर और भी घने जंगलों में
सत्य शायद जानना चाहता है
कि उसके पीछे हम कितनी दूर तक भटक सकते हैं

प्रश्न - इस काव्यांश किस कविता का अंश है?

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28. पठित काव्यांश

जब हम सत्य को पुकारते हैं
तो वह हमसे परे हटता जाता है
जैसे गुहारते हुए युधिष्ठिर के सामने से
भागे थे विदुर और भी घने जंगलों में
सत्य शायद जानना चाहता है
कि उसके पीछे हम कितनी दूर तक भटक सकते हैं

प्रश्न - इस काव्यांश के अनुसार सत्य क्या जानना चाहता है?

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29. पठित गद्यांश

संवाद सुनाते समय बड़ी बहुरिया सिसकने लगी। हरगोबिन की आँखें भी भर आईं।--- बड़ी हवेली की लक्ष्मी को पहली बार इस तरह सिसकते देखा है हरगोबिन ने। वह बोला, 'बड़ी बहुरिया, दिल को कड़ा कीजिए'।

'और कितना कड़ा करूँ दिल?--- माँ से कहना, मैं भाई-भाभियों की नौकरी करके पेट पालूँगी। बच्चाें की जूठन खाकर एक कोने में पड़ी रहूँगी, लेकिन यहाँ अब नहीं--- अब नहीं रह सकूँगी। ---कहना, यदि माँ मुझे यहाँ से नहीं ले जाएगी तो मैं किसी दिन गले में घड़ा बाँधकर पोखरे में डूब मरुँगी।--- बथुआ-साग खाकर कब तक जीऊँ? किसलिए--- किसके लिए?'

हरगोबिन का रोम-रोम कलपने लगा। देवर-देवरानियाँ भी कितने बेदर्द हैं। ठीक अगहनी धान के समय बाल-बच्चों को लेकर शहर से आएँगे। दस-पंद्रह दिनों में कर्ज-उधार की ढेरी लगाकर, वापस जाते समय दो-दो मन के हिसाब से चावल-चूड़ा ले जाएँगे। फिर आम के मौसम में आकर हाजिर। कच्चा-पक्का आम तोड़कर बोरियों में बंद करके चले जाएँगे। फिर उलटकर कभी नहीं देखते---राक्षस हैं सब!

प्रश्न - संवाद सुनाते समय बड़ी बहुरिया क्यों सिसकने लगी?

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30. पठित गद्यांश

संवाद सुनाते समय बड़ी बहुरिया सिसकने लगी। हरगोबिन की आँखें भी भर आईं।--- बड़ी हवेली की लक्ष्मी को पहली बार इस तरह सिसकते देखा है हरगोबिन ने। वह बोला, 'बड़ी बहुरिया, दिल को कड़ा कीजिए'।

'और कितना कड़ा करूँ दिल?--- माँ से कहना, मैं भाई-भाभियों की नौकरी करके पेट पालूँगी। बच्चाें की जूठन खाकर एक कोने में पड़ी रहूँगी, लेकिन यहाँ अब नहीं--- अब नहीं रह सकूँगी। ---कहना, यदि माँ मुझे यहाँ से नहीं ले जाएगी तो मैं किसी दिन गले में घड़ा बाँधकर पोखरे में डूब मरुँगी।--- बथुआ-साग खाकर कब तक जीऊँ? किसलिए--- किसके लिए?'

हरगोबिन का रोम-रोम कलपने लगा। देवर-देवरानियाँ भी कितने बेदर्द हैं। ठीक अगहनी धान के समय बाल-बच्चों को लेकर शहर से आएँगे। दस-पंद्रह दिनों में कर्ज-उधार की ढेरी लगाकर, वापस जाते समय दो-दो मन के हिसाब से चावल-चूड़ा ले जाएँगे। फिर आम के मौसम में आकर हाजिर। कच्चा-पक्का आम तोड़कर बोरियों में बंद करके चले जाएँगे। फिर उलटकर कभी नहीं देखते---राक्षस हैं सब!

प्रश्न - 'आँखें भर आना' मुहावरे का अर्थ है-

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31. पठित गद्यांश

संवाद सुनाते समय बड़ी बहुरिया सिसकने लगी। हरगोबिन की आँखें भी भर आईं।--- बड़ी हवेली की लक्ष्मी को पहली बार इस तरह सिसकते देखा है हरगोबिन ने। वह बोला, 'बड़ी बहुरिया, दिल को कड़ा कीजिए'।

'और कितना कड़ा करूँ दिल?--- माँ से कहना, मैं भाई-भाभियों की नौकरी करके पेट पालूँगी। बच्चाें की जूठन खाकर एक कोने में पड़ी रहूँगी, लेकिन यहाँ अब नहीं--- अब नहीं रह सकूँगी। ---कहना, यदि माँ मुझे यहाँ से नहीं ले जाएगी तो मैं किसी दिन गले में घड़ा बाँधकर पोखरे में डूब मरुँगी।--- बथुआ-साग खाकर कब तक जीऊँ? किसलिए--- किसके लिए?'

हरगोबिन का रोम-रोम कलपने लगा। देवर-देवरानियाँ भी कितने बेदर्द हैं। ठीक अगहनी धान के समय बाल-बच्चों को लेकर शहर से आएँगे। दस-पंद्रह दिनों में कर्ज-उधार की ढेरी लगाकर, वापस जाते समय दो-दो मन के हिसाब से चावल-चूड़ा ले जाएँगे। फिर आम के मौसम में आकर हाजिर। कच्चा-पक्का आम तोड़कर बोरियों में बंद करके चले जाएँगे। फिर उलटकर कभी नहीं देखते---राक्षस हैं सब!

प्रश्न - बड़ी बहुरिया मायके संदेश क्यों भेजना चाहती है?

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32. पठित गद्यांश

संवाद सुनाते समय बड़ी बहुरिया सिसकने लगी। हरगोबिन की आँखें भी भर आईं।--- बड़ी हवेली की लक्ष्मी को पहली बार इस तरह सिसकते देखा है हरगोबिन ने। वह बोला, 'बड़ी बहुरिया, दिल को कड़ा कीजिए'।

'और कितना कड़ा करूँ दिल?--- माँ से कहना, मैं भाई-भाभियों की नौकरी करके पेट पालूँगी। बच्चाें की जूठन खाकर एक कोने में पड़ी रहूँगी, लेकिन यहाँ अब नहीं--- अब नहीं रह सकूँगी। ---कहना, यदि माँ मुझे यहाँ से नहीं ले जाएगी तो मैं किसी दिन गले में घड़ा बाँधकर पोखरे में डूब मरुँगी।--- बथुआ-साग खाकर कब तक जीऊँ? किसलिए--- किसके लिए?'

हरगोबिन का रोम-रोम कलपने लगा। देवर-देवरानियाँ भी कितने बेदर्द हैं। ठीक अगहनी धान के समय बाल-बच्चों को लेकर शहर से आएँगे। दस-पंद्रह दिनों में कर्ज-उधार की ढेरी लगाकर, वापस जाते समय दो-दो मन के हिसाब से चावल-चूड़ा ले जाएँगे। फिर आम के मौसम में आकर हाजिर। कच्चा-पक्का आम तोड़कर बोरियों में बंद करके चले जाएँगे। फिर उलटकर कभी नहीं देखते---राक्षस हैं सब!

प्रश्न - हरगोबिन बड़ी बहुरिया के देवर-देवरानियों को क्या मानता है?

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33. पठित गद्यांश

संवाद सुनाते समय बड़ी बहुरिया सिसकने लगी। हरगोबिन की आँखें भी भर आईं।--- बड़ी हवेली की लक्ष्मी को पहली बार इस तरह सिसकते देखा है हरगोबिन ने। वह बोला, 'बड़ी बहुरिया, दिल को कड़ा कीजिए'।

'और कितना कड़ा करूँ दिल?--- माँ से कहना, मैं भाई-भाभियों की नौकरी करके पेट पालूँगी। बच्चाें की जूठन खाकर एक कोने में पड़ी रहूँगी, लेकिन यहाँ अब नहीं--- अब नहीं रह सकूँगी। ---कहना, यदि माँ मुझे यहाँ से नहीं ले जाएगी तो मैं किसी दिन गले में घड़ा बाँधकर पोखरे में डूब मरुँगी।--- बथुआ-साग खाकर कब तक जीऊँ? किसलिए--- किसके लिए?'

हरगोबिन का रोम-रोम कलपने लगा। देवर-देवरानियाँ भी कितने बेदर्द हैं। ठीक अगहनी धान के समय बाल-बच्चों को लेकर शहर से आएँगे। दस-पंद्रह दिनों में कर्ज-उधार की ढेरी लगाकर, वापस जाते समय दो-दो मन के हिसाब से चावल-चूड़ा ले जाएँगे। फिर आम के मौसम में आकर हाजिर। कच्चा-पक्का आम तोड़कर बोरियों में बंद करके चले जाएँगे। फिर उलटकर कभी नहीं देखते---राक्षस हैं सब!

प्रश्न - इस गद्यांश के लेखक कौन हैं?

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34.

बालक रामचन्द्र की साहित्य में रुचि बढ़ती गयी क्योंकि

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35.

ढेले चुन लो निबंध का मूल प्रतिपाद्य है -

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36. "सुमिरिनी के मनके" पाठ के आधार पर बताएँ -

लेखक के अनुसार जिन धर्मों ने अपने जड़ रीति-रिवाजों को बदला वे सभी धर्म -

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37.

बालक के द्वारा इनाम में लड्डू माँगे जाने पर क्या हुआ?

  1. लेखक प्रसन्न हुआ।
  2. बालक के पिता को निराशा हुई।
  3. अध्यापक निराश हो गए।

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38. 'सूरदास की झोपड़ी' कहानी प्रेमचंद के किस उपन्यास का अंश है?

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39. तिरलोक सिंह क्यों आश्चर्यचकित रह गया?

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40. महीप अपने विषय में बात पूछे जाने पर क्यों टाल देता है?

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