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 समास

समास और समस्तपद – समास शब्द संस्कृत के ‘अस्’ धातु में ‘सम्’ उपसर्ग जोड़कर बना है। ‘अस्’ धातु का अर्थ है – संक्षेप करना। जब संक्षेप के लिए दो या दो से अधिक शब्दों को मिलाकर नया सार्थक शब्द बनाया जाए तो उस मेल  को समास कहते है और उस मेल से बने नए शब्द को समस्तपद कहते हैं। समस्तपद में ‘कारक की विभक्ति’ या ‘अन्य पदों’ का लोप हो जाता है। समस्तपद में दो ही मुख्य पद ‘पूर्वपद’ और ‘उत्तरपद’ होते हैं.

समास विग्रह – जब समस्तपद के सभी पदों को अलग-अलग किया जाता है तो उस प्रक्रिया को समास-विग्रह कहते हैं। विग्रह करते समय ‘कारक की विभक्ति’ या ‘अन्य पदों’ का प्रयोग होता है।

अर्थ के आधार समास के छह भेद निम्नलिखित हैः-

1- अव्ययीभाव समास:- जब समास के समस्त-पद का पहला पद प्रधान हो तो अव्ययीभाव समास होता है।

उदाहरणः- साफ-साफ, प्रतिदिन, यथाशक्ति, दिनोंदिन, आमरण, आजन्म, आजीवन, यथामति, यथोचित, भरपेट, हाथोंहाथ, यथाक्रम, बेखटके, निःसन्देह, प्रतिपल, प्रत्यक्ष, यथासामर्थ्य, बेशक, प्रतिक्षण, अनुरूप, रातोंरात, कानोंकान, यथाअवसर, बेघर, निर्दोष, यथासमय, यथाविधि, गली-गली, शहर-शहर, गाँव-गाँव, प्रतिवर्ष, घर-घर, अनजाने, अनचीन्हा, अजन्मा।

समस्तपद समास विग्रह समास का नाम
यथोचित उचित के अनुसार अव्ययीभाव समास
यथामति मति के अनुसार अव्ययीभाव समास
यथाशक्ति शक्ति के अनुसार अव्ययीभाव समास
यथाक्रम क्रम के अनुसार अव्ययीभाव समास
यथाविधि विधि के अनुसार अव्ययीभाव समास
यथासमय समय के अनुसार अव्ययीभाव समास
यथासामर्थ्य सामर्थ्य के अनुसार अव्ययीभाव समास
यथाअवसर अवसर के अनुकूल अव्ययीभाव समास
प्रतिदिन प्रत्येक दिन अव्ययीभाव समास
प्रतिपल प्रत्येक पल अव्ययीभाव समास
प्रत्यक्ष अक्षि (आँख) के सामने अव्ययीभाव समास
प्रतिक्षण प्रत्येक क्षण अव्ययीभाव समास
प्रतिवर्ष प्रत्येक वर्ष अव्ययीभाव समास
आमरण मरने तक अव्ययीभाव समास
आजन्म जन्म से अव्ययीभाव समास
आजीवन जन्म भर अव्ययीभाव समास
बेशक बिना शक के अव्ययीभाव समास
बेखटके बिना खटके के अव्ययीभाव समास
बेघर बिना घर के अव्ययीभाव समास
निर्दोष बिना दोष के/दोष रहित अव्ययीभाव समास
निःसन्देह बिना संदेह के अव्ययीभाव समास
भरपेट पेट भर कर अव्ययीभाव समास
साफ-साफ बिल्कुल साफ अव्ययीभाव समास
गली-गली प्रत्येक गली/गली से गली अव्ययीभाव समास
शहर-शहर प्रत्येक शहर/शहर से शहर अव्ययीभाव समास
गाँव-गाँव प्रत्येक गाँव/गाँव से गाँव अव्ययीभाव समास
घर-घर प्रत्येक घर/घर से घर अव्ययीभाव समास
हाथोंहाथ हाथ ही हाथ में अव्ययीभाव समास
रातोंरात रात ही रात में अव्ययीभाव समास
कानोंकान कान ही कान में अव्ययीभाव समास
अनजाने बिना जाने अव्ययीभाव समास
अनचीन्हा बिना चीन्हे अव्ययीभाव समास
अजन्मा बिना जन्मे अव्ययीभाव समास
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2- तत्पुरुष समास:- जब समास के समस्त पद का दूसरा पद प्रधान हो व विग्रह करने पर विभक्ति प्रकट हो तब तत्पुरुष समास होता है।

उदाहरणः- रसोईघर, तुलसीकृत, रेखांकित, शरणागत, रोगग्रस्त, राहखर्च, धनहीन, जन्मान्ध, सत्याग्रह, उद्योगपति, वनवास, गंगातट, आपबीती, गृहप्रवेश, सेनापति, गिरहकट, मरणासन्न, हस्तलिखित, रोगपीड़ित, गुणयुक्त, विद्यालय, मालगोदाम, गुरुदक्षिणा, भयभीत, रोगमुक्त, आशातीत, गंगाजल, घुड़दौड़, भारतवासी, दीनानाथ, युद्धवीर, ध्यानमग्न, सिरदर्द, फुलवाड़ी, फुलझड़ी, गिरहकट।

समस्तपद समास विग्रह समास का नाम
रसोईघर रसोई के लिए घर तत्पुरुष समास
तुलसीकृत तुलसी द्वारा कृत तत्पुरुष समास
रेखांकित रेखा द्वारा अंकित तत्पुरुष समास
शरणागत शरण में आया हुआ तत्पुरुष समास
रोगग्रस्त रोग से ग्रस्त तत्पुरुष समास
राहखर्च राह के लिए खर्च तत्पुरुष समास
धनहीन धन से रहित तत्पुरुष समास
जन्मान्ध जन्म से अंधा तत्पुरुष समास
सत्याग्रह सत्य के लिए आग्रह तत्पुरुष समास
उद्योगपति उद्योग का पति (स्वामी) तत्पुरुष समास
वनवास वन में वास तत्पुरुष समास
गंगातट गंगा का तट तत्पुरुष समास
आपबीती आप (स्वयं) पर बीती तत्पुरुष समास
गृहप्रवेश गृह (घर) में प्रवेश तत्पुरुष समास
सेनापति सेना का पति तत्पुरुष समास
गिरहकट गिरह (गाँठ) को काटने वाला तत्पुरुष समास
मरणासन्न मरने के निकट तत्पुरुष समास
हस्तलिखित हाथ द्वारा लिखित तत्पुरुष समास
रोगपीड़ित रोग से पीड़ित तत्पुरुष समास
गुणयुक्त गुण से युक्त तत्पुरुष समास
विद्यालय विद्या का आलय (घर) तत्पुरुष समास
मालगोदाम माल के लिए गोदाम तत्पुरुष समास
गुरुदक्षिणा गुरु की दक्षिणा तत्पुरुष समास
भयभीत भय से भीत (डरा हुआ) तत्पुरुष समास
रोगमुक्त रोग से मुक्त तत्पुरुष समास
आशातीत आशा से परे तत्पुरुष समास
गंगाजल गंगा का जल तत्पुरुष समास
घुड़दौड़ घोड़ों की दौड़ तत्पुरुष समास
भारतवासी भारत का वासी तत्पुरुष समास
दीनानाथ दीनों का नाथ तत्पुरुष समास
युद्धवीर युद्ध में वीर तत्पुरुष समास
ध्यानमग्न ध्यान में मगन तत्पुरुष समास
सिरदर्द सिर का दर्द तत्पुरुष समास
फुलबाड़ी फूलों की बाड़ी (वाटिका) तत्पुरुष समास
फुलझड़ी फूलों की झड़ी तत्पुरुष समास

3- कर्मधारय समासः- जब समस्त पद के दोनों पदों में विशेषण-विशेष्य या उपमान-उपमेय का संबंध हो तब कर्मधारय समास होता है।

उदाहरणः- नीलकमल, कालीमिर्च, नीलाम्बर, महाराज, प्रधानाचार्य, नीलगाय, दुर्जन, चंद्रमुख, कमलनयन, विद्याधन, चरणकमल, पुरुषोत्तम, सज्जन, भलामानस।

समस्तपद समास विग्रह समास का नाम
मृगनयन मृग के समान नयन कर्मधारय समास
नीलकमल नीला है जो कमल कर्मधारय समास
कालीमिर्च काली है जो मिर्च कर्मधारय समास
नीलाम्बर नीला है जो अंबर (आकाश) कर्मधारय समास
महाराज महान है जो राजा कर्मधारय समास
प्रधानाचार्य प्रधान है जो आचार्य कर्मधारय समास
नीलगाय नीली है जो गाय कर्मधारय समास
दुर्जन बुरा है जो जन (व्यक्ति) कर्मधारय समास
देहलता देह रूप लता कर्मधारय समास
चंद्रमुख चाँद जैसा मुख कर्मधारय समास
कमलनयन कमल के समान नयन कर्मधारय समास
विद्याधन विद्या रूपी धन कर्मधारय समास
चरणकमल कमल रूपी चरण कर्मधारय समास
कनकलता कनक की-सी लता कर्मधारय समास
पुरुषोत्तम पुरुष है जो उत्तम कर्मधारय समास
सज्जन सच्चा है जो जन (व्यक्ति) कर्मधारय समास
भलामानस भला है जो मानस (व्यक्ति) कर्मधारय समास
प्राणप्रिय प्राणों के समान प्रिय कर्मधारय समास
लालमणि लाल है जो मणि कर्मधारय समास
परमानंद परम है जो आनंद कर्मधारय समास
कापुरुष कायर है जो पुरुष कर्मधारय समास
नीलगगन नीला है जो गगन कर्मधारय समास
अधपका आधा है जो पका कर्मधारय समास
महावीर महान है जो वीर कर्मधारय समास
आदिप्रवर्तक प्रथम प्रवर्तक कर्मधारय समास
पुरुषरत्न रत्न है जो पुरुष कर्मधारय समास
विरहसागर विरह रूपी सागर कर्मधारय समास
पर्णकुटी पर्ण (पत्तों) से बनी कुटी कर्मधारय समास
चलसम्पत्ति गतिशील संपत्ति कर्मधारय समास
भवजल  भव (संसार) रूपी जल कर्मधारय समास
कीर्तिलता कीर्ति रूपी लता कर्मधारय समास
भक्तिसुधा भक्ति रूपी सुधा कर्मधारय समास
मुखारविंद अरविंद के समान मुख कर्मधारय समास
पुत्ररत्न रत्न के समान पुत्र कर्मधारय समास
कृष्णसर्प कृष्ण (काला) है जो सर्प कर्मधारय समास

4- द्विगु समास:- जब समस्त पद का पहला पद संख्या वाचक हो तो द्विगु समास होता है।

उदाहरणः- त्रिलोेक, पंचवटी, चौराहा, त्रिभुवन, अठन्नी, चवन्नी, पंचतंत्र, चतुर्भुज, चौमासा, चौपाई, नवरत्न, त्रिफल, सतसई।

समस्तपद समास विग्रह समास का नाम
त्रिलोेक तीन लोकों का समाहार द्विगु समास
पंचवटी पाँच वटों (वृक्षों) का समूह द्विगु समास
चौराहा चार राहों का समूह द्विगु समास
त्रिभुवन तीन भुवनों का समाहार द्विगु समास
अठन्नी आठ आनों का समूह द्विगु समास
चवन्नी चार आनों का समूह द्विगु समास
पंचतंत्र पाँच तंत्रों का समाहार द्विगु समास
चतुर्भुज चार भुजाओं का समाहार द्विगु समास
चौमासा चार मासों का समाहार द्विगु समास
चौपाई चार पायों का समाहार द्विगु समास
नवरत्न नौ रतनों का समाहार द्विगु समास
सतसई सात सौ दोहों का समाहार द्विगु समास
दशक दस सालों का समूह द्विगु समास
शताब्दी सौ वर्षों का समूह द्विगु समास
सप्ताह सात दिनों का समूह द्विगु समास
महीना तीस दिनों का समूह द्विगु समास
सप्ततन्त्र सात तंत्रों का समाहार द्विगु समास
दोपहर दो पहरों का समाहार द्विगु समास
तिरंगा तीन रंगों का समूह द्विगु समास
पचरंगा पाँच रंगों का समूह द्विगु समास
चतुर्थकोण चार कोणों का समूह द्विगु समास
तिपाई तीन पायों (पैरों) का समूह द्विगु समास
चतुर्मुख चार मुखों का समाहार द्विगु समास
चतुर्भुवन चार भुवनों का समाहार द्विगु समास
तिराहा तीन राहों का समाहार द्विगु समास
तिमाही तीन माहों (महीनों) का समाहार द्विगु समास
त्रिधातु तीन धातुओं का समाहार द्विगु समास
अष्टधातु आठ धातुओं का समाहार द्विगु समास
चतुर्थवेणी चार वेणियों का समाहार द्विगु समास
दुसुती दो सुतों का समूह द्विगु समास
अठकोना आठ कोनों का समाहार द्विगु समास
नवरात्र नौ रात्रियों का समूह द्विगु समास
पंचसिंधु पाँच सिंधुओं का समूह द्विगु समास
पंचतत्व पाँच तत्वों का समूह द्विगु समास
चतुर्वर्ण चार वर्णों का समाहार द्विगु समास
छ्माही छह महीनों का समाहार द्विगु समास
त्रिकोण तीन कोणों का समूह द्विगु समास
त्रिफला तीन फलों का समूह द्विगु समास

5- द्वन्द्व समास:- जब समस्त पद के दोनों पद प्रधान हों व विग्रह करने पर या, और, तथा, अथवा, का प्रयोग हो तब द्वन्द्व समास होता है।

उदाहरणः- राजा-रंक, माता-पिता, गुण-दोष, छोटा-बड़ा, दाल-रोटी, दाल-भात, पाप-पुण्य, देश-विदेश, राधेश्याम, भला-बुरा, सुख-दुख, यश-अपयश, लाभ-हानि, अपना-पराया।

समस्तपद समास विग्रह समास का नाम
राजा-रंक राजा और रंक द्वंद्व समास
माता-पिता माता और पिता द्वंद्व समास
गुण-दोष गुण और दोष द्वंद्व समास
छोटा-बड़ा छोटा और बड़ा द्वंद्व समास
दाल-रोटी दाल और रोटी द्वंद्व समास
दाल-भात दाल और भात द्वंद्व समास
पाप-पुण्य पाप और पुण्य द्वंद्व समास
देश-विदेश देश और विदेश द्वंद्व समास
राधेश्याम राधा और श्याम द्वंद्व समास
भला-बुरा भला और बुरा द्वंद्व समास
सुख-दुख सुख और दुख द्वंद्व समास
यश-अपयश यश और अपयश द्वंद्व समास
लाभ-हानि लाभ और हानि द्वंद्व समास
अपना-पराया अपना और पराया द्वंद्व समास
दिन-रात दिन और रात द्वंद्व समास
काला-गोरा काला और गोरा द्वंद्व समास
सम्मान-अपमान सम्मान और अपमान द्वंद्व समास
सही-गलत सही और गलत द्वंद्व समास
अन्न-जल अन्न और जल द्वंद्व समास
राधा-कृष्ण राधा और कृष्ण द्वंद्व समास
सीता-राम सीता और राम द्वंद्व समास
ऊँच-नीच ऊँच और नीच द्वंद्व समास
रुपया-पैसा रुपया और पैसा द्वंद्व समास
एड़ी-चोटी एड़ी और चोटी द्वंद्व समास
राजा-प्रजा राजा और प्रजा द्वंद्व समास
नर-नारी नर और नारी द्वंद्व समास
जन्म-मरण जन्म और मरण द्वंद्व समास
लेन-देन लेन और देन द्वंद्व समास
भाई-बहन भाई और बहन द्वंद्व समास
तिल-चावल तिल और चावल द्वंद्व समास
भूल-चूक भूल और चूक द्वंद्व समास
गौरी-शंकर गौरी और शंकर द्वंद्व समास
मार-पीट मार और पीट द्वंद्व समास
दूध-दही दूध और दही द्वंद्व समास
नून-तेल नून और तेल द्वंद्व समास
ठंडा-गर्म ठंडा और गर्म द्वंद्व समास

6- बहुब्रीहि समास:- जब समस्त पद का कोई भी पद प्रधान न हो बल्कि समस्त पद से अन्य कोई अर्थ निकले तब बहुब्रीहि समास होता है।

उदाहरणः- मोदकप्रिय (गणेश), दशानन (रावण), वाचस्पति (बृहस्पति), चक्रधर (विष्णु), पीताम्बर (कृष्ण), चतुर्मुख (ब्रह्मा), चंद्रशेखर (शिव), नीलकण्ठ (शिव), अंशुमाली (सूर्य), लम्बोदर (गणेश), महावीर (हनुमान), सहस्रबाहु (हैदृयराज), मृगेन्द्र (सिंह), गिरिधर (कृष्ण), रत्नगर्भा (पृथ्वी)

समस्तपद समास विग्रह समास का नाम
मोदकप्रिय मोदक हैं प्रिय जिसको अर्थात गणेश बहुव्रीहि समास
दशानन दस है आनन (मुख) जिसके अर्थात रावण बहुव्रीहि समास
वाचस्पति वाक् का है जो पति अर्थात बृहस्पति बहुव्रीहि समास
चक्रधर चक्र करा है जिसने धारण अर्थात विष्णु बहुव्रीहि समास
पीताम्बर पीला है जिसका वस्त्र अर्थात कृष्ण बहुव्रीहि समास
चतुर्मुख चार हैं जिसके मुख अर्थात ब्रह्मा बहुव्रीहि समास
चंद्रशेखर चाँद है जिसके सिर पर अर्थात शिव बहुव्रीहि समास
नीलकण्ठ नीला है जिसका कंठ अर्थात शिव बहुव्रीहि समास
अंशुमाली अंशु (पृथ्वी) का है जो माली अर्थात सूर्य बहुव्रीहि समास
लम्बोदर लंबा है उदर (पेट) जिसका अर्थात गणेश बहुव्रीहि समास
महावीर महान है जो वीर अर्थात हनुमान बहुव्रीहि समास
सहस्रबाहु हजार हैं भुजाएँ जिसकी अर्थात हैदृयराज बहुव्रीहि समास
मृगेन्द्र मृगों का है जो राजा अर्थात शेर बहुव्रीहि समास
गिरिधर गिरि (पहाड़) को किया है जिसने धारण अर्थात कृष्ण बहुव्रीहि समास
रत्नगर्भा रत्न हैं जिसके गर्भ में अर्थात पृथ्वी बहुव्रीहि समास