व्याकरण » व्याकरण परिचय

व्याकरण भाषा को शुद्ध और मानक रूप प्रदान करता है। इसके अंतर्गत भाषा के नियमों का अध्ययन किया जाता है। व्याकरण भाषा के नियम नहीं बनाता बल्कि व्याकरण भाषा के नियम सुनिश्चित करता है। व्याकरण के विभिन्न नियमों के स्थिर होने से भाषा में एक प्रकार की मानकता आती है, जो भाषा को परिनिष्ठित बनाने में सहायक होती है। इससे भाषा के स्वीकार्य और अस्वीकार्य रूपों में भेद करना सरल हो जाता है। किसी भी भाषा-समाज के अधिकांश लोग या शिष्ट वर्ग भाषा के जिस रूप का प्रयोग करते हैं व्याकरण मूलतः समाज द्वारा सिद्ध प्रयोग का ही अनुसरण करता है। समय के साथ-साथ भाषा में परिवर्तन होता जाता है और वैयाकरण भी उन परिवर्तनों को ध्यान में रखकर व्याकरण में यथोचित परिवर्तन करता चला जाता है। भाषि व्यवस्था के आधार पर व्याकरण के चार स्तर हैं – वर्ण व्यवस्था, शब्द व्यवस्था, पद व्यवस्था, वाक्य व्यवस्था।

व्याकरण का महत्त्व
  1. व्याकरण भाषा की शुद्धता का साधन है साध्य नहीं।
  2. व्याकरण भाषा का अंगरक्षक तथा अनुशासक है।
  3. व्याकरण वास्तव में ‘शब्दानुशासन’ ही है।
  4. व्याकरण भाषा के स्वरूप की सार्थक व्यवस्था करता है।
  5. व्याकरण भाषा का शरीर विज्ञान है तथा व्यावहारिक विश्लेषण करता है।
  6. गद्य साहित्य का आधार व्याकरण है।
  7. भाषा की पूर्णता के लिए-पढ़ना, लिखना, बोलना तथा सुनना चारों कौशलों की शुद्धता व्याकरण के नियमों से आती हैं।
  8. भाषा की मितव्ययिता भी व्याकरण से होती है।
  9. वाक्य की संरचना शुद्धता उस भाषा के व्याकरण से आती है।
  10. व्याकरण से नवीन भाषा को सीखने में सरलता एवं सुगमता होती है।

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