हिन्दी साहित्य का इतिहास » भक्तिकाल

मध्यकालीन भक्ति आंदोलन

  1. भक्ति आंदोलन हिंदी काव्य की भाषा ब्रज है जो ब्रजभूमि के बाहर भी काव्यभाषा के रूप में स्वीकृत हुई।
  2. इसीलिए भिखारीदास ने बाद में कहा – ‘ब्रजभाषा हेतु ब्रजभास ही न अनुमानौ।’
  3. बंगाल- असम से ब्रजभाषा प्रभावित बंगला-असमियां को ‘ब्रजबुली’ कहा गया।
  4. भक्तिकाल की दूसरी भाषा अवधी है।
  5. गेय पद और दोहा-चौपाई में निबद्ध कडवक उसके प्रधान रूप है।
  6. गेयपदों की शुरूआत हिंदी में सिद्धों से होती है।
  7. कडवक की परंपरा भी सरहपा से मिलने लगती है, किंतु सरहपा ने कोई प्रबंध काव्य नहीं लिखा।
  8. सरहपा ने कहा- ‘देह जैसा तीर्थ न मैंने सुना, न देखा।’
  9. अवधी में प्रबंधकाव्यों की परंपरा मिलती है –
    1. दंगवे पुराण – भीमकवि
    2. एकादशी कथा – सूरज
    3. जैमिनी पुराण – पुरूषोत्तम
    4. सत्यवती कथा ईश्वरदास
    5. पद्मावत जायसी
    6. रामचरितमानस तुलसी
  10. दोहे की परंपरा अपभ्रंश में मिलती है। सरहपा का दोहाकोश प्रसिद्ध है। दोहा नाम से आदिकाल में ‘ढोला मारू रा दूहा’ जैसा प्रबंधकाव्य भी मिलता है। कबीर ने साखी तथा तुलसी ने दोहावली दोहा छंद में लिखी। दोेहे का एक रूप ही सोरठा है
  11. सवैया, कवित हिंदी के अपने जातीय छंद है जो भक्तिकाल में मिलते हैं।
  12. आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कहा – ‘भक्ति धर्म का रसात्मक रूप है।’

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