JOIN WHATSAPP CHANNEL JOIN TELEGRAM CHANNEL 0% Created by hindigyan कक्षा 10 HINDI MCQ PAPER 1 1 / 40 1. अपठित गद्यांशप्राय: देखा गया है कि जिस काम के प्रति व्यक्ति का रुझान अधिक होता है, उस कार्य को वह कष्ट सहन करते हुए भी पूरा करता है। जैसे ही किसी कार्य के प्रति मन की आसक्ति कम हो जाती है, वैसे ही उसे सम्पन्न करने के प्रयत्न भी शिथिल हो जाते हैं। हिमाच्छादित पर्वतों पर चढ़ाई करनेवाले पर्वतारोहियों के मन में अपने कर्म के प्रति आसक्ति रहती है। आसक्ति की यह भावना उन्हें निरन्तर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती रहती है। एक प्रसिद्ध कहानी है कि एक राजा ने कई बार अपने शत्रु से युद्ध किया और पराजित हुआ। पराजित होने पर वह एकान्त कक्ष में बैठ गया। वहाँ उसने एक मकड़ी को ऊपर चढ़ते देखा। मकड़ी कई बार ऊपर चढ़ी, किन्तु वह बार–बार गिरती रही। अन्तत: वह ऊपर चढ़ ही गई। इससे राजा को अपार प्रेरणा मिली। उसने पुनः शक्ति का संचय किया और अपने शत्रु को पराजित करके अपना राज्य वापस ले लिया। इस छोटी-सी कथा में यही सार निहित है कि मन के न हारने पर एक दिन सफलता मिल ही जाती है। प्रश्न यह उठता है कि मन को शक्तिसम्पन्न कैसे किया जाए? मन को शक्तिसम्पन्न बनाने के लिए सबसे पहले उसे अपने वश में रखना होगा। अर्थात् जिसने अपने मन को वश में कर लिया, उसने संसार को वश में कर लिया, किन्तु जो मनुष्य मन को न जीतकर स्वयं उसके वश में हो जाता है, उसने मानो सारे संसार की अधीनता स्वीकार कर ली। मन को शक्तिसम्पन्न बनाने के लिए हीनता की भावना को दूर करना भी आवश्यक है। जब व्यक्ति यह सोचता है कि मैं अशक्त हूँ, दीन–हीन हूँ, शक्ति और साधनों से रहित हूँ तो उसका मन कमजोर हो जाता है। इसीलिए इस हीनता की भावना से मुक्ति प्राप्त करने के लिए मन को शक्तिसम्पन्न बनाना आवश्यक है।प्रश्न - व्यक्ति किस काम को कष्ट सहते हुए भी पूरा करता है? A. जिस कार्य में अधिक रुझान होता है। B. जिस कार्य में कम रुझान होता है। C. जिस कार्य को बोझ मानता है। D. जिस कार्य को किसी अन्य का मानता है। 2 / 40 2. अपठित गद्यांशप्राय: देखा गया है कि जिस काम के प्रति व्यक्ति का रुझान अधिक होता है, उस कार्य को वह कष्ट सहन करते हुए भी पूरा करता है। जैसे ही किसी कार्य के प्रति मन की आसक्ति कम हो जाती है, वैसे ही उसे सम्पन्न करने के प्रयत्न भी शिथिल हो जाते हैं। हिमाच्छादित पर्वतों पर चढ़ाई करनेवाले पर्वतारोहियों के मन में अपने कर्म के प्रति आसक्ति रहती है। आसक्ति की यह भावना उन्हें निरन्तर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती रहती है। एक प्रसिद्ध कहानी है कि एक राजा ने कई बार अपने शत्रु से युद्ध किया और पराजित हुआ। पराजित होने पर वह एकान्त कक्ष में बैठ गया। वहाँ उसने एक मकड़ी को ऊपर चढ़ते देखा। मकड़ी कई बार ऊपर चढ़ी, किन्तु वह बार–बार गिरती रही। अन्तत: वह ऊपर चढ़ ही गई। इससे राजा को अपार प्रेरणा मिली। उसने पुनः शक्ति का संचय किया और अपने शत्रु को पराजित करके अपना राज्य वापस ले लिया। इस छोटी-सी कथा में यही सार निहित है कि मन के न हारने पर एक दिन सफलता मिल ही जाती है। प्रश्न यह उठता है कि मन को शक्तिसम्पन्न कैसे किया जाए? मन को शक्तिसम्पन्न बनाने के लिए सबसे पहले उसे अपने वश में रखना होगा। अर्थात् जिसने अपने मन को वश में कर लिया, उसने संसार को वश में कर लिया, किन्तु जो मनुष्य मन को न जीतकर स्वयं उसके वश में हो जाता है, उसने मानो सारे संसार की अधीनता स्वीकार कर ली। मन को शक्तिसम्पन्न बनाने के लिए हीनता की भावना को दूर करना भी आवश्यक है। जब व्यक्ति यह सोचता है कि मैं अशक्त हूँ, दीन–हीन हूँ, शक्ति और साधनों से रहित हूँ तो उसका मन कमजोर हो जाता है। इसीलिए इस हीनता की भावना से मुक्ति प्राप्त करने के लिए मन को शक्तिसम्पन्न बनाना आवश्यक है।प्रश्न - कार्य को पूरा करने के प्रयत्न कब शिथिल हो जाते हैं? A. जब कार्य के प्रति आसक्ति कम हो जाती है। B. जिस कार्य में अधिक रुझान होता है। C. जब कार्य के प्रति आसक्ति बढ़ जाती है। D. जब अकेला ही किसी कार्य को करना पड़ता है। 3 / 40 3. अपठित गद्यांशप्राय: देखा गया है कि जिस काम के प्रति व्यक्ति का रुझान अधिक होता है, उस कार्य को वह कष्ट सहन करते हुए भी पूरा करता है। जैसे ही किसी कार्य के प्रति मन की आसक्ति कम हो जाती है, वैसे ही उसे सम्पन्न करने के प्रयत्न भी शिथिल हो जाते हैं। हिमाच्छादित पर्वतों पर चढ़ाई करनेवाले पर्वतारोहियों के मन में अपने कर्म के प्रति आसक्ति रहती है। आसक्ति की यह भावना उन्हें निरन्तर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती रहती है। एक प्रसिद्ध कहानी है कि एक राजा ने कई बार अपने शत्रु से युद्ध किया और पराजित हुआ। पराजित होने पर वह एकान्त कक्ष में बैठ गया। वहाँ उसने एक मकड़ी को ऊपर चढ़ते देखा। मकड़ी कई बार ऊपर चढ़ी, किन्तु वह बार–बार गिरती रही। अन्तत: वह ऊपर चढ़ ही गई। इससे राजा को अपार प्रेरणा मिली। उसने पुनः शक्ति का संचय किया और अपने शत्रु को पराजित करके अपना राज्य वापस ले लिया। इस छोटी-सी कथा में यही सार निहित है कि मन के न हारने पर एक दिन सफलता मिल ही जाती है। प्रश्न यह उठता है कि मन को शक्तिसम्पन्न कैसे किया जाए? मन को शक्तिसम्पन्न बनाने के लिए सबसे पहले उसे अपने वश में रखना होगा। अर्थात् जिसने अपने मन को वश में कर लिया, उसने संसार को वश में कर लिया, किन्तु जो मनुष्य मन को न जीतकर स्वयं उसके वश में हो जाता है, उसने मानो सारे संसार की अधीनता स्वीकार कर ली। मन को शक्तिसम्पन्न बनाने के लिए हीनता की भावना को दूर करना भी आवश्यक है। जब व्यक्ति यह सोचता है कि मैं अशक्त हूँ, दीन–हीन हूँ, शक्ति और साधनों से रहित हूँ तो उसका मन कमजोर हो जाता है। इसीलिए इस हीनता की भावना से मुक्ति प्राप्त करने के लिए मन को शक्तिसम्पन्न बनाना आवश्यक है।प्रश्न - मन को शक्ति सम्पन्न करने के लिए सर्वप्रथम क्या करना होता है? A. मन को अपने वश में करना होता है। B. मन को मारना होता है। C. मन को अन्य के आधीन करना होता है। D. मन को मुक्त करना होता है। 4 / 40 4. अपठित गद्यांशप्राय: देखा गया है कि जिस काम के प्रति व्यक्ति का रुझान अधिक होता है, उस कार्य को वह कष्ट सहन करते हुए भी पूरा करता है। जैसे ही किसी कार्य के प्रति मन की आसक्ति कम हो जाती है, वैसे ही उसे सम्पन्न करने के प्रयत्न भी शिथिल हो जाते हैं। हिमाच्छादित पर्वतों पर चढ़ाई करनेवाले पर्वतारोहियों के मन में अपने कर्म के प्रति आसक्ति रहती है। आसक्ति की यह भावना उन्हें निरन्तर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती रहती है। एक प्रसिद्ध कहानी है कि एक राजा ने कई बार अपने शत्रु से युद्ध किया और पराजित हुआ। पराजित होने पर वह एकान्त कक्ष में बैठ गया। वहाँ उसने एक मकड़ी को ऊपर चढ़ते देखा। मकड़ी कई बार ऊपर चढ़ी, किन्तु वह बार–बार गिरती रही। अन्तत: वह ऊपर चढ़ ही गई। इससे राजा को अपार प्रेरणा मिली। उसने पुनः शक्ति का संचय किया और अपने शत्रु को पराजित करके अपना राज्य वापस ले लिया। इस छोटी-सी कथा में यही सार निहित है कि मन के न हारने पर एक दिन सफलता मिल ही जाती है। प्रश्न यह उठता है कि मन को शक्तिसम्पन्न कैसे किया जाए? मन को शक्तिसम्पन्न बनाने के लिए सबसे पहले उसे अपने वश में रखना होगा। अर्थात् जिसने अपने मन को वश में कर लिया, उसने संसार को वश में कर लिया, किन्तु जो मनुष्य मन को न जीतकर स्वयं उसके वश में हो जाता है, उसने मानो सारे संसार की अधीनता स्वीकार कर ली। मन को शक्तिसम्पन्न बनाने के लिए हीनता की भावना को दूर करना भी आवश्यक है। जब व्यक्ति यह सोचता है कि मैं अशक्त हूँ, दीन–हीन हूँ, शक्ति और साधनों से रहित हूँ तो उसका मन कमजोर हो जाता है। इसीलिए इस हीनता की भावना से मुक्ति प्राप्त करने के लिए मन को शक्तिसम्पन्न बनाना आवश्यक है।प्रश्न - आसक्ति का विलोम शब्द क्या होगा? A. मुक्ति B. भक्ति C. विरक्ति D. सक्ति 5 / 40 5. अपठित गद्यांशप्राय: देखा गया है कि जिस काम के प्रति व्यक्ति का रुझान अधिक होता है, उस कार्य को वह कष्ट सहन करते हुए भी पूरा करता है। जैसे ही किसी कार्य के प्रति मन की आसक्ति कम हो जाती है, वैसे ही उसे सम्पन्न करने के प्रयत्न भी शिथिल हो जाते हैं। हिमाच्छादित पर्वतों पर चढ़ाई करनेवाले पर्वतारोहियों के मन में अपने कर्म के प्रति आसक्ति रहती है। आसक्ति की यह भावना उन्हें निरन्तर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती रहती है। एक प्रसिद्ध कहानी है कि एक राजा ने कई बार अपने शत्रु से युद्ध किया और पराजित हुआ। पराजित होने पर वह एकान्त कक्ष में बैठ गया। वहाँ उसने एक मकड़ी को ऊपर चढ़ते देखा। मकड़ी कई बार ऊपर चढ़ी, किन्तु वह बार–बार गिरती रही। अन्तत: वह ऊपर चढ़ ही गई। इससे राजा को अपार प्रेरणा मिली। उसने पुनः शक्ति का संचय किया और अपने शत्रु को पराजित करके अपना राज्य वापस ले लिया। इस छोटी-सी कथा में यही सार निहित है कि मन के न हारने पर एक दिन सफलता मिल ही जाती है। प्रश्न यह उठता है कि मन को शक्तिसम्पन्न कैसे किया जाए? मन को शक्तिसम्पन्न बनाने के लिए सबसे पहले उसे अपने वश में रखना होगा। अर्थात् जिसने अपने मन को वश में कर लिया, उसने संसार को वश में कर लिया, किन्तु जो मनुष्य मन को न जीतकर स्वयं उसके वश में हो जाता है, उसने मानो सारे संसार की अधीनता स्वीकार कर ली। मन को शक्तिसम्पन्न बनाने के लिए हीनता की भावना को दूर करना भी आवश्यक है। जब व्यक्ति यह सोचता है कि मैं अशक्त हूँ, दीन–हीन हूँ, शक्ति और साधनों से रहित हूँ तो उसका मन कमजोर हो जाता है। इसीलिए इस हीनता की भावना से मुक्ति प्राप्त करने के लिए मन को शक्तिसम्पन्न बनाना आवश्यक है।प्रश्न - प्रस्तुत गद्यांश का शीर्षक क्या हो सकता है? A. व्यक्ति की हार B. मन की हार और जीत C. राजा और मकड़ी D. व्यक्ति की जीत 6 / 40 6. अपठित पद्यांशबाधाएँ आती हैं आएँघिरें प्रलय की घोर घटाएँ,पावों के नीचे अंगारे,सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,निज हाथों में हँसते-हँसते,आग लगाकर जलना होगा।क़दम मिलाकर चलना होगा।हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,अगर असंख्यक बलिदानों में,उद्यानों में, वीरानों में,अपमानों में, सम्मानों में,उन्नत मस्तक, उभरा सीना,पीड़ाओं में पलना होगा।क़दम मिलाकर चलना होगा।प्रश्न - कवि क्या मिलाकर चलने को कह रहा है? A. सिर B. हाथ C. कमर D. कदम 7 / 40 7. अपठित पद्यांशबाधाएँ आती हैं आएँघिरें प्रलय की घोर घटाएँ,पावों के नीचे अंगारे,सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,निज हाथों में हँसते-हँसते,आग लगाकर जलना होगा।क़दम मिलाकर चलना होगा।हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,अगर असंख्यक बलिदानों में,उद्यानों में, वीरानों में,अपमानों में, सम्मानों में,उन्नत मस्तक, उभरा सीना,पीड़ाओं में पलना होगा।क़दम मिलाकर चलना होगा।प्रश्न - 'पीड़ाओं में पलना होगा' से कवि का क्या अभिप्राय है? A. अपने कष्ट दूसरों को देने होंगे। B. कष्टों का पलना (झूला) लगाना होगा। C. दुश्मन से बदला लेना होगा। D. आगे बढ़ने के लिए कष्ट सहने होंगे। 8 / 40 8. अपठित पद्यांशबाधाएँ आती हैं आएँघिरें प्रलय की घोर घटाएँ,पावों के नीचे अंगारे,सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,निज हाथों में हँसते-हँसते,आग लगाकर जलना होगा।क़दम मिलाकर चलना होगा।हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,अगर असंख्यक बलिदानों में,उद्यानों में, वीरानों में,अपमानों में, सम्मानों में,उन्नत मस्तक, उभरा सीना,पीड़ाओं में पलना होगा।क़दम मिलाकर चलना होगा।प्रश्न - प्रथम पद में कवि का क्या संदेश देना चाहता है? A. घोर विपत्ति आने आगे से हट जाना। B. घोर विपत्ति आने पर भी आगे बढ़ना C. घोर विपत्ति आने पर रुक जाना। D. जीवन में लगातार कष्ट सहते रहना। 9 / 40 9. अपठित पद्यांशबाधाएँ आती हैं आएँघिरें प्रलय की घोर घटाएँ,पावों के नीचे अंगारे,सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,निज हाथों में हँसते-हँसते,आग लगाकर जलना होगा।क़दम मिलाकर चलना होगा।हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,अगर असंख्यक बलिदानों में,उद्यानों में, वीरानों में,अपमानों में, सम्मानों में,उन्नत मस्तक, उभरा सीना,पीड़ाओं में पलना होगा।क़दम मिलाकर चलना होगा।प्रश्न - कविता में किस रस का प्रयोग है? A. हास्य रस B. रौद्र रस C. वीर रस D. शृंगार रस 10 / 40 10. अपठित पद्यांशबाधाएँ आती हैं आएँघिरें प्रलय की घोर घटाएँ,पावों के नीचे अंगारे,सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,निज हाथों में हँसते-हँसते,आग लगाकर जलना होगा।क़दम मिलाकर चलना होगा।हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,अगर असंख्यक बलिदानों में,उद्यानों में, वीरानों में,अपमानों में, सम्मानों में,उन्नत मस्तक, उभरा सीना,पीड़ाओं में पलना होगा।क़दम मिलाकर चलना होगा।प्रश्न - 'घिरें प्रलय की घोर घटाएँ' में कौन-सा अलंकार है? A. रूपक अलंकार B. यमक अलंकार C. अनुप्रास अलंकार D. उपमा अलंकार 11 / 40 11. 'जब वह लौटा, तब मैं घर में था' - यह रचना के आधार पर कौन-सा वाक्य है? A. संयुक्त B. मिश्र C. इनमें से कोई नहीं D. सरल 12 / 40 12. 'छात्रों ने बसते उठाए और अपने घर चले गए।' - यह रचना के आधार पर कौन-सा वाक्य है? A. इनमें से कोई नहीं B. संयुक्त C. मिश्र D. सरल 13 / 40 13. 'यदि वह पढ़ता तो अवश्य पास होता।' - यह रचना के आधार पर कौन-सा वाक्य है? A. सरल B. इनमें से कोई नहीं C. संयुक्त D. मिश्र 14 / 40 14. 'महात्मा गांधी ने कहा था कि अहिंसा परम धर्म है।' - यह रचना के आधार पर कौन-सा वाक्य है? A. इनमें से कोई नहीं B. सरल C. मिश्र D. संयुक्त 15 / 40 15. निम्नलिखित वाक्य में वाच्य का प्रकार बताइए-'उसके द्वारा पंजाब नहीं जाया जाएगा।' A. भाववाच्य B. इनमें से कोई नहीं C. कर्मवाच्य D. कर्तृवाच्य 16 / 40 16. 'रानी देर तक नहीं सोती है।' - का भाववाच्य में बदलें। A. रानी द्वारा देर होने पर सोया जाता है। B. रानी देर तक नहीं सोती है। C. रानी द्वारा देर तक नहीं सोया जाता है। D. रानी द्वारा देर से नहीं सोया जाता है। 17 / 40 17. 'कोमल हँसती नहीं है।' - को भाववाच्य में बदलें। A. कोमल द्वारा हँसा जाता है। B. कोमल हँस नहीं सकती। C. कोमल द्वारा हँसा नहीं जाता है। D. कोमल द्वारा हँसा नहीं जाएगा। 18 / 40 18. 'दादी पानी पी रही है।' - को कर्मवाच्य में बदलें। A. दादी से पानी नहीं पीया जा रहा है। B. दादी से पानी पीया जा रहा है। C. दादी ने पानी पी लिया है। D. पानी दादी पी रही है। 19 / 40 19. 'जल्दी करो वे सब आते होंगे।' - रेखांकित पद का उचित पद परिचय है- A. पुरुषवाचक सर्वनाम, अन्यपुरुष, बहुवचन, पुल्लिंग, कर्ता कारक B. अनिश्चयवाचक सर्वनाम, अन्य पुरुष, एकवचन, कर्ताकारक C. अनिश्चयवाचक सर्वनाम, अन्य पुरुष, बहुवचन, कर्ताकारक D. निश्चयवाचक सर्वनाम, अन्य पुरुष, एकवचन, कर्मकारक 20 / 40 20. 'हम बाग में गए, परंतु वहाँ कोई सेब नहीं मिला।' - रेखांकित का सही पद परिचय है। A. व्यक्तिवाचक संज्ञा, पुल्लिंग, एकवचन, कर्मकारक B. जातिवाचक संज्ञा, पुल्लिंग, एकवचन, अधिकरण कारक C. इनमें से कोई नहीं D. भाववाचक, पुल्लिंग, एकवचन, करणकारक 21 / 40 21. 'गांधी जी ने कहा कि सदा सत्य बोलो।' - वाक्य में रेखांकित पद का व्याकरणिक परिचय होगा। A. क्रिया विशेषण B. समानाधिकरण समुच्चयबोधक C. निपात D. व्याधिकरण समुच्चयबोधक 22 / 40 22. मीरा अच्छा गाना गाती है। - - रेखांकित का सही पद परिचय है। A. जातिवाचक संज्ञा, पुल्लिंग, एकवचन, कर्म कारक B. भाववाचक संजा, स्त्रीलिंग, एकवचन, कर्ता कारक C. व्यक्तिवाचक संज्ञा स्त्रीलिंग, बहुवचन, कर्ता कारक D. व्यक्तिवाचक संज्ञा स्त्रीलिंग, एकवचन, कर्ता कारक 23 / 40 23. ''पड़ी थी बिजली-सी विकराल, लपेटे थे घन जैसे बाल।कौन छेड़े ये काले साँप, अवनिपति उठे अचानक काँप।''इन पंक्तियों में रस है? A. हास्य रस B. वीर रस C. शांत रस D. अद्भुत रस 24 / 40 24. ''बुरे समय को देख कर गंजे तू क्यों रोय।किसी भी हालत में तेरा बाल न बाँका होय''इन पंक्तियों में रस है? A. शांत रस B. वीर रस C. हास्य रस D. अद्भुत रस 25 / 40 25. ''बुंदेले हर बोलो के मुख हमने सुनी कहानी थी।खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।।''इन पंक्तियों में रस है? A. करुण रस B. वीर रस C. शांत रस D. अद्भुत रस 26 / 40 26. ''जब मै था तब हरि नाहिं अब हरि है मै नाहिंसब अँधियारा मिट गया जब दीपक देख्या माहिं''इन पंक्तियों में रस है? A. अद्भुत रस B. करुण रस C. शांत रस D. वात्सल्य रस 27 / 40 27. पठित गद्यांशबालगोबिन भगत साधु थे-साधु की सब परिभाषाओं में खरे उतरनेवाले। कबीर को ‘साहब’ मानते थे, उन्हीं के गीतों को गाते, उन्हीं के आदेशों पर चलते। कभी झूठ नहीं बोलते, खरा व्यवहार रखते। किसी से भी दो-टूक बात करने में संकोच नहीं करते, न किसी से खामखाह झगड़ा मोल लेते। किसी की चीज नहीं छूते, न बिना पूछे व्यवहार में लाते। इस नियम को कभी-कभी इतनी बारीकी तक ले जाते कि लोगों को कुतूहल होता!-कभी वह दूसरे के खेत में शौच के लिए भी नहीं बैठते! वह गृहस्थ थे लेकिन उनकी सब चीज ‘साहब’ की थी। जो कुछ खेत में पैदा होता, सिर पर लादकर पहले उसे साहब के दरबार में ले जाते-जो उनके घर से चार कोस दूर पर था-एक कबीरपंथी मठ से मतलब! वह दरबार में ‘भेंट’ रूप रख लिया जाकर ‘प्रसाद’ रूप में जो उन्हें मिलता, उसे घर लाते और उसी से गुजर चलाते!प्रश्न - प्रस्तुत गद्यांश के लेखक कौन हैं? A. हरिशंकर परसाई। B. स्वयंप्रकाश। C. प्रेमचंद। D. रामवृक्ष बेनीपुरी। 28 / 40 28. पठित गद्यांशबालगोबिन भगत साधु थे-साधु की सब परिभाषाओं में खरे उतरनेवाले। कबीर को ‘साहब’ मानते थे, उन्हीं के गीतों को गाते, उन्हीं के आदेशों पर चलते। कभी झूठ नहीं बोलते, खरा व्यवहार रखते। किसी से भी दो-टूक बात करने में संकोच नहीं करते, न किसी से खामखाह झगड़ा मोल लेते। किसी की चीज नहीं छूते, न बिना पूछे व्यवहार में लाते। इस नियम को कभी-कभी इतनी बारीकी तक ले जाते कि लोगों को कुतूहल होता!-कभी वह दूसरे के खेत में शौच के लिए भी नहीं बैठते! वह गृहस्थ थे लेकिन उनकी सब चीज ‘साहब’ की थी। जो कुछ खेत में पैदा होता, सिर पर लादकर पहले उसे साहब के दरबार में ले जाते-जो उनके घर से चार कोस दूर पर था-एक कबीरपंथी मठ से मतलब! वह दरबार में ‘भेंट’ रूप रख लिया जाकर ‘प्रसाद’ रूप में जो उन्हें मिलता, उसे घर लाते और उसी से गुजर चलाते!प्रश्न - बालगोबिन सबसे पहले फसल को कहाँ ले जाते? A. पंचायत में। B. गाँव के मंदिर में C. कबीरपंथी मठ D. अपने घर पर। 29 / 40 29. पठित गद्यांशबालगोबिन भगत साधु थे-साधु की सब परिभाषाओं में खरे उतरनेवाले। कबीर को ‘साहब’ मानते थे, उन्हीं के गीतों को गाते, उन्हीं के आदेशों पर चलते। कभी झूठ नहीं बोलते, खरा व्यवहार रखते। किसी से भी दो-टूक बात करने में संकोच नहीं करते, न किसी से खामखाह झगड़ा मोल लेते। किसी की चीज नहीं छूते, न बिना पूछे व्यवहार में लाते। इस नियम को कभी-कभी इतनी बारीकी तक ले जाते कि लोगों को कुतूहल होता!-कभी वह दूसरे के खेत में शौच के लिए भी नहीं बैठते! वह गृहस्थ थे लेकिन उनकी सब चीज ‘साहब’ की थी। जो कुछ खेत में पैदा होता, सिर पर लादकर पहले उसे साहब के दरबार में ले जाते-जो उनके घर से चार कोस दूर पर था-एक कबीरपंथी मठ से मतलब! वह दरबार में ‘भेंट’ रूप रख लिया जाकर ‘प्रसाद’ रूप में जो उन्हें मिलता, उसे घर लाते और उसी से गुजर चलाते!प्रश्न - दो टूक बात करना - मुहावरे का अर्थ है? A. रोटी की बात करना। B. सीधी बात कहना। C. चुपचाप बात करना। D. घुमा फिरा कर कहना। 30 / 40 30. पठित गद्यांशबालगोबिन भगत साधु थे-साधु की सब परिभाषाओं में खरे उतरनेवाले। कबीर को ‘साहब’ मानते थे, उन्हीं के गीतों को गाते, उन्हीं के आदेशों पर चलते। कभी झूठ नहीं बोलते, खरा व्यवहार रखते। किसी से भी दो-टूक बात करने में संकोच नहीं करते, न किसी से खामखाह झगड़ा मोल लेते। किसी की चीज नहीं छूते, न बिना पूछे व्यवहार में लाते। इस नियम को कभी-कभी इतनी बारीकी तक ले जाते कि लोगों को कुतूहल होता!-कभी वह दूसरे के खेत में शौच के लिए भी नहीं बैठते! वह गृहस्थ थे लेकिन उनकी सब चीज ‘साहब’ की थी। जो कुछ खेत में पैदा होता, सिर पर लादकर पहले उसे साहब के दरबार में ले जाते-जो उनके घर से चार कोस दूर पर था-एक कबीरपंथी मठ से मतलब! वह दरबार में ‘भेंट’ रूप रख लिया जाकर ‘प्रसाद’ रूप में जो उन्हें मिलता, उसे घर लाते और उसी से गुजर चलाते!प्रश्न - निम्न में से कौन-सी विशेषता बालगोबिन भगत के व्यक्तित्व में नहीं थी? A. किसी की चीज को न छूना। B. लोगों से बेकार में झगड़ा करना। C. कबीर के आदेशों पर चलना। D. दूसरे के खेत में शौच न जाना। 31 / 40 31. पठित गद्यांशबालगोबिन भगत साधु थे-साधु की सब परिभाषाओं में खरे उतरनेवाले। कबीर को ‘साहब’ मानते थे, उन्हीं के गीतों को गाते, उन्हीं के आदेशों पर चलते। कभी झूठ नहीं बोलते, खरा व्यवहार रखते। किसी से भी दो-टूक बात करने में संकोच नहीं करते, न किसी से खामखाह झगड़ा मोल लेते। किसी की चीज नहीं छूते, न बिना पूछे व्यवहार में लाते। इस नियम को कभी-कभी इतनी बारीकी तक ले जाते कि लोगों को कुतूहल होता!-कभी वह दूसरे के खेत में शौच के लिए भी नहीं बैठते! वह गृहस्थ थे लेकिन उनकी सब चीज ‘साहब’ की थी। जो कुछ खेत में पैदा होता, सिर पर लादकर पहले उसे साहब के दरबार में ले जाते-जो उनके घर से चार कोस दूर पर था-एक कबीरपंथी मठ से मतलब! वह दरबार में ‘भेंट’ रूप रख लिया जाकर ‘प्रसाद’ रूप में जो उन्हें मिलता, उसे घर लाते और उसी से गुजर चलाते!प्रश्न - बालगोबिन भगत किसे साहब मानते थे? A. रविदास को B. तुलसीदास को C. सूरदास को D. कबीर को 32 / 40 32. 'नेताजी का चश्मा' कहानी किस ओर संकेत करती है? A. देशद्रोह की ओर B. पलायन की ओर C. प्रदूषण को ओर D. देशप्रेम की ओर 33 / 40 33. चश्मे वाला किस प्रकार अपने चश्मे बेचता था? A. फेरी लगाकर B. दुकान लगाकर C. इनमें से कोई नहीं D. रेहड़ी लगाकर 34 / 40 34. पठित पद्यांश-कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु।भानुबंस राकेस कलंकू।कालकवलु होइहि छन माहीं।तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा।लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा।अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी।नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू।बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।बार अनेक भाँति बहु बरनी।।जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।गारी देत न पावहु सोभा।।प्रश्न - इस छंद में ------------ रस है? A. करुण रस B. भयानक रस C. रौद्र रस D. शृंगार रस 35 / 40 35. पठित पद्यांश-कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु।भानुबंस राकेस कलंकू।कालकवलु होइहि छन माहीं।तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा।लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा।अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी।नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू।बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।बार अनेक भाँति बहु बरनी।।जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।गारी देत न पावहु सोभा।।प्रश्न - इस छंद की भाषा कौन-सी है? A. अवधी B. भोजपुरी C. खड़ी बोली हिन्दी D. ब्रज 36 / 40 36. पठित पद्यांश-कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु।भानुबंस राकेस कलंकू।कालकवलु होइहि छन माहीं।तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा।लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा।अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी।नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू।बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।बार अनेक भाँति बहु बरनी।।जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।गारी देत न पावहु सोभा।।प्रश्न - 'सूर समर करनी करहि कहि न जनावहि आपु' पंक्ति में कौन-सा अलंकार है? A. अनुप्रास अलंकार B. यमक अलंकार C. उत्प्रेक्षा अलंकार D. रूपक अलंकार 37 / 40 37. पठित पद्यांशकौसिक सुनहु मंद येहु बालकु।भानुबंस राकेस कलंकू।कालकवलु होइहि छन माहीं।तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा।लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा।अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी।नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू।बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।बार अनेक भाँति बहु बरनी।।जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।गारी देत न पावहु सोभा।।प्रश्न - 'भानुबंस राकेस कलंकू' पंक्ति में परशुराम किसे सूर्यवंश का कलंक बता रहे हैं? A. भरत को B. शत्रुघन को C. राम को D. लक्ष्मण को 38 / 40 38. पठित पद्यांशकौसिक सुनहु मंद येहु बालकु।भानुबंस राकेस कलंकू।कालकवलु होइहि छन माहीं।तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा।लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा।अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी।नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू।बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।बार अनेक भाँति बहु बरनी।।जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।गारी देत न पावहु सोभा।।प्रश्न - लक्ष्मण के अनुसार कौन अपनी वीरता का बखान करते हुए नहीं थकता? A. परशुराम B. राम C. विश्वामित्र D. जनक 39 / 40 39. गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है? A. उद्धव भाग्यवान न होकर भाग्यहीन हैं। B. उद्धव भगवान कृष्ण के साथ रहकर उनके प्रेम से अछूते हैं। C. ये दोनों 40 / 40 40. गोपियों ने किसे कड़वी ककड़ी के समान कहा है? A. योग को B. पारिवारिक संबंधो को C. प्रेम को D. मित्रता को Your score is LinkedIn Facebook Twitter VKontakte 0% Restart quiz PLEASE RATE THIS PAPER Send feedback JOIN WHATSAPP CHANNEL JOIN TELEGRAM CHANNEL 2023-08-26