कक्षा 10 » लखनवी अंदाज – यशपाल

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लखनवी अंदाज़
(पाठ का सार)

शब्दार्थ : मश़फ़स्सिल – केंद्रस्थ नगर के इर्द-गिर्द के स्थान।  सफ़ेदपोश – भद्र व्यक्ति। किफ़ायत – मितव्यता, समझदारी से उपयोग करना। आदाब अर्ज – अभिवादन का एक ढंग। गुमान – भ्रम। एहतियात – सावधानी। बुरक देना – छिड़क देना। स्फुरण – फड़कना, हिलना। प्लावित – पानी भर जाना। पनियाती – रसीली। मेदा – अमाशय। तसलीम – सम्मान में। सिर खम करना – सिर झुकाना। तहजीब – शिष्टता। नफ़ासत – स्वच्छता। नजाकत – कोमलता। नफ़ीस – बढ़िया। एब्स्ट्रैक्ट – सूक्ष्म, जिसका भौतिक अस्तित्व न हो, अमूर्त। सकील – आसानी से न पचने वाला।

 

लखनवी अंदाज़ यशपाल द्वारा लिखित एक व्यंग्यात्मक कहानी है। लेखक को पास में ही कहीं जाना था। लेखक ने भीड़ कम के बारे में सोचकर सेकंड क्लास का टिकट ले लिया। वह सोच रहा था कि आराम से खिड़की से प्राकृतिक दृश्य देखते हुए किसी नए कहानी के बारे में सोच सकेंगे। पैसेंजर ट्रेन खुलने को थी। लेखक दौड़कर एक डिब्बे में चढ़े परन्तु जैसा लेखक ने सोचा था, उन्हें डिब्बा खाली नही मिला। डिब्बे में पहले से ही लखनऊ की नबाबी नस्ल के एक सज्जन पालथी मारे बैठे थे। उनके सामने दो ताजे चिकने खीरे तौलिये पर रखे थे। लेखक का अचानक चढ़ जाना उस सज्जन को अच्छा नही लगा। उन्होंने लेखक से मिलने में कोई दिलचस्पी नही दिखाई। लेखक को लगा शायद नबाब ने सेकंड क्लास का टिकट इसलिए लिया है ताकि वे अकेले यात्रा कर सकें परन्तु अब उन्हें ये बिल्कुल अच्छा नही लग रहा था कि कोई सफेदपोश उन्हें मँझले दर्जे में सफर करता देखे। उन्होंने शायद खीरा भी अकेले सफर में वक़्त काटने के लिए ख़रीदा होगा परन्तु अब किसी सफेदपोश के सामने खीरा कैसे खायें। नबाब साहब खिड़की से बाहर देख रहे थे परन्तु लगातार कनखियों से लेखक की ओर देख रहे थे।

अचानक ही नबाब साहब ने लेखक को सम्बोधित करते हुए खीरे का लुत्फ़ उठाने को कहा परन्तु लेखक ने शुक्रिया करते हुए मना कर दिया। नबाब ने बहुत ढंग से खीरे को धोकर छिलेए काटे और उसमे जीराए नमक-मिर्च बुरककर तौलिये पर सजाते हुए पुनः लेखक से खाने को कहा किन्तु वे एक बार मना कर चुके थे इसलिए आत्मसम्मान बनाये रखने के लिए दूसरी बार पेट ख़राब होने का बहाना बनाया। लेखक ने मन ही मन सोचा कि मियाँ रईस बनते हैं लेकिन लोगों की नजर से बच सकने के ख्याल में अपनी असलियत पर उतर आयें हैं। नबाब साहब खीरे की एक फाँक को उठाकर होठों तक ले गए और उसको सूँघा। खीरे की स्वाद का आनंद में उनकी पलकें मूँद गयीं। मुंह में आये पानी का घूँट गले से उतर गया, तब नबाब साहब ने फाँक को खिड़की से बाहर छोड़ दिया। इसी प्रकार एक-एक करके फाँक को उठाकर सूँघते और फेंकते गए। सारे फाँको को फेकने के बाद उन्होंने तौलिये से हाथ और होठों को पोछा। फिर गर्व से लेखक की ओर देखा और इस नायब इस्तेमाल से थककर लेट गए। लेखक ने सोचा की खीरा इस्तेमाल करने से क्या पेट भर सकता है तभी नबाब साहब ने डकार ले ली और बोले खीरा होता है लजीज पर पेट पर बोझ डाल देता है। यह सुनकर लेखक ने सोचा की जब खीरे के गंध से पेट भर जाने की डकार आ जाती है तो बिना विचार, घटना और पात्रों के इच्छा मात्र से नई कहानी बन सकती है।

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लखनवी अंदाज़
(प्रश्न-उत्तर)

प्रश्न :- लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं?

उत्तर – जब लेखक अपनी सीट पर बैठा तो नवाब साहब उनसे नजरें मिलाने से बच रहे थे। नवाब साहब खिड़की के बाहर देख रहे थे। इन हाव भावों से पता चलता है कि नवाब साहब लेखक से बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं थे।

प्रश्न :- नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, नमक-मिर्च बुरका, अंततः सूँघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा? उनका ऐसा करना उनके कैसे स्वभाव को इंगित करता है?

उत्तर – नवाब साहब खीरे को गरीबों का फल मानते होंगे और इसलिए किसी के सामने खीरे को खाने से बचना चाहते होंगे। नवाब साहब को झूठी शान दिखाने की आदत रही होगी। वह यह भी दिखाना चाहते होंगे कि साफ-सफाई के मामले में उनका कोई सानी नहीं है। इसलिए उन्होंने खीरे को बड़े यत्न से काटा, नमक-मिर्च बुरका और फिर खिड़की से बाहर फेंक दिया।

प्रश्न :- बिना विचार, घटना और पात्रें के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है। यशपाल के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं?

उत्तर – लेखक ने अंत मेन कहा कि बिना विचार, घटना और पात्रें के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है। मैं लेखक के इस विचार से सहमत नहीं हूँ क्योंकि कहानी के लिए विचार, घटना और पात्र उतने ही जरूरी हैं, जितना की पेट भरने के लिए भोजन। लेकिन एक हद तक लेखक के इस मत से सहमत हुआ जा सकता है कि जब केवल सूँघकर और देखकर पेट की तृप्ति हो सकती है तो फिर बिना विचार, घटना और पात्र के कहानी क्यों नहीं लिखी जा सकती है।

प्रश्न :-आप इस निबंध को और क्या नाम देना चाहेंगे?

उत्तर – दिखावटी रईस।

(छात्र अपनी समझ से ओर भी नाम दे सकते हैं)

भाषा-अध्ययन

प्रश्न :- निम्नलिखित वाक्यों में से क्रियापद छाँटकर क्रिया-भेद भी लिखिए-
(क) एक सफ़ेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे।

क्रियापद :- बैठे थे (अकर्मक क्रिया)

(ख) नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया।

क्रियापद :- नहीं दिखाया (सकर्मक क्रिया)

(ग) ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है।

क्रियापद :- आदत है (सकर्मक क्रिया)

(घ) अकेले सफ़र का वक्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे।

क्रियापद :- खरीदे होंगे (सकर्मक क्रिया)

(घ) दोनों खीरों के सिर काटे और उन्हें गोदकर झाग निकाला।

क्रियापद :- निकाला (सकर्मक क्रिया)

(च) नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फाँकों की ओर देखा।

क्रियापद :- देखा (सकर्मक क्रिया)

(छ) नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए।

क्रियापद :- लेट गए (अकर्मक क्रिया)

(ज) जेब से चाकू निकाला।

क्रियापद :- निकाला (सकर्मक क्रिया)

 

टेस्ट/क्विज

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