कक्षा 12 » बिस्कोहर की माटी (विश्वनाथ त्रिपाठी)

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"बिस्कोहर की माटी"
(पाठ का सार)

शब्दार्थ

भसीण – कमलनाल, कमल का तना। कुमुद – जलपुष्प, कुइयाँ, कोकाबेली ।सिघाड़ा – जलफल, काँटेदार फल जो पानी में होता है। बतिया – फल का अविकसित रूप । प्रयोजन – उद्देश्य । कथरी – बिछौना । साप़्ाफ़-सफ्रप़्ाफ़ाक – साप़्ाफ़ और स्वच्छ । इप़्ाफ़रात – अधिकता। भीटों – टीले, ढूह। बरहा – खेतों की सिचाई के लिए बनाई गई नाली। सुबुकना – धीमे स्वर में रोना। आँख आना – गरमियों के मौसम में आँख का रोग होना। थिरकना – नाचना। अगाध – भरपूर।आर्द्र – नमी

प्रतिपाद्य

प्रस्तुत पाठ बिस्कोहर की माटी विश्वनाथ त्रिपाठी की आत्मकथा नंगातलाई का गाँव का एक अंश है। आत्मकथात्मक शैली में लिखा गया यह पाठ अपनी अभिव्यंजना में अत्यंत रोचक और पठनीय है। लेखक ने उम्र के कई पड़ाव पार करने के बाद अपने जीवन में माँ, गाँव और आसपास के प्राकृतिक परिवेश का वर्णन करते हुए ग्रामीण जीवन शैली, लोक कथाओं, लोक मान्यताओं को पाठक तक पहुँचाने की कोशिश की है। गाँव, शहर की तरह सुविधायुक्त नहीं होते, बल्कि प्रकृति पर अधिक निर्भर रहते हैं। इस निर्भरता का दूसरा पक्ष प्राकृतिक सौंदर्य भी है जिसे लेखक ने बड़े मनोयोग से जिया और प्रस्तुत किया है। एक तरप़्ाफ़ प्राकृतिक संपदा के रूप में अकाल के वक्त खाई जाने वाली कमल ककड़ी का वर्णन है तो दूसरी ओर प्राकृतिक विपदा बाढ़ से बदहाल गाँव की तकलीप़्ाफ़ों का जिक्र है। कमल, कोइयाँ, हरसिगार के साथ-साथ तोरी, लौकी, भिडी, भटकटैया, इमली, कदंब आदि के फूलों का वर्णन कर लेखक ने ग्रामीण प्राकृतिक सुषमा और संपदा
को दिखाया है तो डोड़हा, मजगिदवा, धामिन, गोंहुअन, घोर कड़ाइच आदि साँपों, बिच्छुओं आदि के वर्णन द्वारा भयमिश्रित वातावरण का भी निर्माण किया है। ग्रामीण जीवन में शहरी दवाइयों की जगह प्रकृति से प्राप्त फूल, पत्तियों के प्रयोग भी आम हैं जिसे लेखक ने रेखांकित किया है। पूरी कथा के केंद्र में है बिस्कोहर जो लेखक का गाँव है और एक पात्र ‘बिसनाथ’ जो लेखक स्वयं (विश्वनाथ) है। गरमी, वर्षा और शरद ऋतु में गाँव में होने वाली दिक्कतों का भी लेखक के मन पर प्रभाव पड़ा है जिसका उल्लेख इस रचना में भी दिखाई पड़ता है। दस वर्ष की उम्र में करीब दस वर्ष बड़ी स्त्री को देखकर मन में उठे-बसे भावों, संवेगों के अमिट प्रभाव व उसकी मार्मिक प्रस्तुति के बीच संवादों की यथावत् आंचलिक प्रस्तुति अनुभव की सत्यता और नैसर्गिकता की द्योतक है। पूरी रचना में लेखक ने अपने देखे-भोगे
यथार्थ को प्राकृतिक सौंदर्य के साथ प्रस्तुत किया है। लेखक की शैली अपने आप में अनूठी और बिलकुल नयी है।

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“बिस्कोहर की माटी”

(प्रश्न-उत्तर)

प्रश्न –  कोइयाँ किसे कहते हैं? उसकी विशेषताएँ बताइए।

उत्तर – कोइयाँ वही जलपुष्प है जिसे कुमुद कहते हैं। इसे कोका-बेली भी कहते हैं। शरद में जहाँ भी गड्ढा और उसमें पानी होता है, कोइयाँ फूल उठती हैं। रेलवे-लाइन के दोनों ओर प्रायः गड्ढों में पानी भरा रहता है। शरद की चाँदनी में सरोवरों में चाँदनी का प्रतिबिंब और खिली हुई कोइयाँ की पत्तियाँ एक हो जाती हैं। इसकी गंध को जो पसंद करता है वही जानता है कि वह क्या है।

प्रश्न – ‘बच्चे का माँ का दूध पीना सिर्फ दूध पीना नहीं, माँ से बच्चे के सारे संबंधों का जीवन-चरित होता है’-टिप्पणी कीजिए।

उत्तर – दूध पिलाना केवल एक शारीरिक क्रिया नहीं बल्कि माँ और बच्चे के बीच के सारे आत्मीय सम्बन्धों का आधार है । बच्चा दूध पाने के लिए सुबुकता है । रोता है। माँ को मारता है। माँ भी कभी-कभी बच्चे को मारती है। बच्चा चिपटा रहता है। माँ चिपटाए रहती है। बच्चा माँ के पेट का स्पर्श ए गंध भोगता है। पेट में अपनी जगह जैसे ढूंढ़ता है ।

प्रश्न – बिसनाथ पर क्या अत्याचार हो गया?

उत्तर – बालक बिसनाथ अभी छोटा ही था और स्तनपान करता था, जब उसके छोटे भाई का जन्म हुआ तो छोटे भाई को दूध पिलाने के लिए बड़े अर्थात बिसनाथ का स्तनपान छूट गया। मां के दूध पर छोटे भाई का कब्जा हो गया। बिसनाथ को गाय का बेस्वाद दूध दिया गया। कसेरन दाई के द्वारा बालक बिसनाथ का पालन पोषण किया जाने लगा। बालक बिसनाथ को यह सब अपने ऊपर अत्याचार सा लगा।

प्रश्न – गरमी और लू से बचने के उपायों का विवरण दीजिए। क्या आप भी उन उपायों से परिचित हैं?

उत्तर – लेखक बिसनाथ दोपहर में घर से बाहर जब भी जाते तो मां लू से बचने के लिए धोती या कमीज से गांठ लगाकर प्याज बांध देती। ऐसी मान्यता है कि गरमी में प्याज खाने व साथ रखने से लू नहीं लगती। गांव में लू से बचने की दवा थी कच्चे आम का पन्ना भूनकर गुड या चीनी में उसका शरबत पीना, देह में लेपना, नहाना। कच्चे आम को भूनकर या उबालकर उससे सिर धोते थे। गांव में रहने वाले लोग तो इस उपाय से परिचित हैं लेकिन शहरी जीवन आधुनिक मशीनी उपकरणों से ही परिचित है।

प्रश्न – लेखक बिसनाथ ने किन आधारों पर अपनी माँ की तुलना बत्तख से की है?

उत्तर – लेखक बिसनाथ ने निम्नलिखित आधारों पर अपनी मां की तुलना बत्तख से की है –

बतख भी मातृत्व का सुख पाने के लिए अंडे देती है, उन्हें सेती है और उनकी सावधानीपूर्वक रक्षा करती है। लेखक बिसनाथ ने अपनी मां को बच्चों को प्यार करते, दूध पिलाते और हर सुख – दु:ख में उनकी सहायता करते देखा था। मातृत्व का सुख दोनों समान रूप से भोंकते हैं। इस आधार पर विश्वनाथ में दोनों की समानता की है।

प्रश्न – बिस्कोहर में हुई बरसात का जो वर्णन बिसनाथ ने किया है उसे अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – बिस्कोहर में वर्षा एकाएक नहीं आती, पहले बादल घिरते गड़गड़ाहट होती पूरा आकाश बादलों से ऐसे गिर जाता कि दिन में रात हो जाती। वर्षा दूर से आती हुई ऐसी दिखाई पड़ती है जैसे घोड़ों की कतार दूर से दौड़ी चली आ रही हो। वर्षा की टपकती बूंदों में संगीत सुनाई देता। गांव में ऐसी भी धारणा है कि पहले वर्षा में नहाने से दाद – खाज, फोड़ा – फुंसी ठीक हो जाते हैं। बरसात के बाद बिस्कोहर की धरती, सिवान, अकाश, दिशाएं, तालाब, बूढ़ी राप्ती नदी निखर उठते थे।

प्रश्न – ‘फूल केवल गंध ही नहीं देते दवा भी करते हैं’, कैसे?

उत्तर – बिसनाथ ने गांव में अनेक फूल देखें, सुंघे और कानों में खोंसे थे । गाँव में लोगों का विश्वास था कि फूल केवल सुगन्ध ही नहीं देते बल्कि रोगों के इलाज में भी सहायक हैं । भरमंडा का फूल पीली तितली जैसा होता था जिसे आँख दुखनी आने पर माँ आँखों पर लगाकर इलाज करती थी । नीम के फूल और पत्ते चेचक के रोगी के सिरहाने रखने से लाभ होता है । यह माना जाता था । बेर की जंगली गंध से बरे और तितैये का डंक गिर जाता है और वह काट नहीं पाता यह भी माना जाता था इस प्रकार फूल , दवा का काम भी करते थे।

प्रश्न – ‘प्रकृति सजीव नारी बन गई’-इस कथन के संदर्भ में लेखक की प्रकृति, नारी और सौंदर्य संबंधी मान्यताएँ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – लेखक ने बताया है कि जाड़े की धूप और चैत की चाँदनी में ज्यादा फ़र्क नहीं होता | बरसात की भीगी चाँदनी चमकती तो नहीं लेकिन मधुर एवं शोभा के भार से दबी ज्यादा होती है । वैसे ही बिस्कोहर की वह औरत ! पहले उसे बढ़नी में एक रिश्तेदार के यहाँ देखा । बिसनाथ की उम्र उससे कोई दस बरस कम हो , विश्वनाथ दस से ज्यादा के नहीं थे । देखा तो लगा चाँदनी रात में , बरसात की चाँदनी रात में जूही की खुशबू आ रही है । संतोषी भइया के घर के आँगन में भी जूही लगी थी । उसकी खुशबू प्राणों में बसी रहती थी। यों भी चाँदनी में सफ़ेद फूल ऐसे लगते हैं मानो पेड़ों , लताओं पर चाँदनी ही फूल के रूप में दिखाई पड़ रही हो । चाँदनी भी प्रकृति , फूल भी प्रकृति और खुशबू भी प्रकृति । वह औरत इसीलिए बिसनाथ को औरत के रूप में नहीं , जूही की लता लगी , चाँदनी के रूप में प्रतीत हुई , जिससे फूलों की खुशबू आ रही थी । प्रकृति सजीव नारी बन गई थी और बिसनाथ उसमें आकाश , चाँदनी , सुगंधि सब देख रहे थे।

प्रश्न – ऐसी कौन सी स्मृति है जिसके साथ लेखक को मृत्यु का बोध अजीब तौर से जुड़ा मिलता है?

उत्तर – लेखक कहते हैं कि उस ठुमरी को सुनते समय उस स्त्री की याद हो जाती है, जिसे अपनी मृत्यु की गोद में गए पति की याद आती है। उसे बस प्रियतम से मिलने का इतंज़ार है। उसका प्रियतम हर रूप में उसके साथ है। इसी स्मृति को याद करके लेखक को मृत्यु का बोध अजीब तौर से जुड़ा मिलता है।

 

टेस्ट/क्विज

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