कक्षा 6 » बाल रामकथा

अवधपुरी में राम

शब्दार्थ :- दर्शनीय – देखने के योग्य। आलीशान – सुंदर। सरोवर – तालाब। विपन्नता – गरीबी। समृद्ध – खुशहाल। विलक्षण – अद्भुत। मनोरम – मन को भाने वाला। सदाचारी – सत्य की राह पर चलने वाला। यशस्वी – जो चारों ओर प्रसिद्ध हो। सालता – दुखी करता। मंत्रोच्चार – मंत्रों का उच्चारण। पुत्रवती – पुत्र को जन्म देने वाली। प्रसन्न – खुश। सुदर्शन – देखने में सुंदर। अर्जित – इकट्ठा करना। कुशाग्र बुद्धि – तीव्र बुद्धि। पारंगत – निपुण, काम करने में कुशल। सर्वोपरि – सबसे ऊपर। ज्येष्ठ – सबसे बड़े। परिजन – परिवार के सदस्य। गहन – विस्तार से। मंत्रणा – विचार-विमर्श। तत्काल – तुरंत। अगवानी – रास्ता दिखाना। बाधा – रुकावट। अचकचा – दुविधा में होना। सम्पन्न – पूरा, समाप्त। मूर्छित – बेहोश। संज्ञा-शून्य – कुछ भी महसूस न कर पाना। अनिष्ट – बुरा। प्रतिक्रिया – जवाब देना। खंडित – समाप्त। आग्रह – निवेदन। सहर्ष – खुशी के साथ। स्वस्तिवचन – मंगलकामना के मंत्रों का गायन। बीहड़ – ऊबड़-खाबड़।

पाठ का सार

अयोध्या नगरी सरयू नदी के किनारे बसी थी। अयोध्या में केवल राजमहल ही भव्य नहीं था। उसकी एक-एक इमारत आलीशान थी। आम लोगों के घर भव्य थे। अयोध्या में सड़कें चौड़ी थीं। अयोध्या में सुंदर बाग-बगीचे थे। अयोध्या में पानी से लबालब भरे सरोवर थे। अयोध्या में खेतों में लहराती हरियाली देखने लायक थी। अयोध्या हर तरह से संपन्न नगरी थी। अयोध्या में सभी लोग सुखी समृद्ध थे। पूरा नगर विलक्षण, अद्भुत और मनोरम था। भव्यता जैसे उसका दूसरा नाम हो।

अयोध्या कौसल राज्य की राज्य की राजधानी थी। अयोध्या के राजा राजा दशरथ थे। राजा दशरथ महाराज अज के पुत्र, महाराज रघु के वंशज और रघुकुल के उत्तराधिकारी थे। राजा दशरथ कुशल योद्ध और न्यायप्रिय शासक थे। वे लोग मर्यादाओं का पालन करते थे। वे सदाचारी थे।

राजा दशरथ को इस बात का दुख था कि उनकी कोई संतान नहीं थी। दशरथ की तीन रानियाँ थी – कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी। संतान की कमी के कारण राजा दशरथ और रानियों को सूना-सूना लगता था।  अपने उत्तराधिकारी के विषय में दशरथ ने मुनि वशिष्ठ से बात की। मुनि वशिष्ठ ने दशरथ को संतान के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ करने की सलाह दी।

पुत्रेष्टि यज्ञ महान तपस्वी ट्टष्य शृंग की देखरेख में हुआ। पूरा नगर पुत्रेष्टि यज्ञ की तैयारी में लगा हुआ था। यज्ञशाला सरयू नदी के किनारे बनाई गई। यज्ञ में अनेक राजाओं को निमंत्रित किया गया। तमाम ट्टषि-मुनि पधारे। शंखध्वनि और मंत्रेच्चार के बीच एक-एक कर सबने आहुति डाली। अंतिम आहुति राजा दशरथ की थी।  अग्नि देवता ने राजा दशरथ को आशीर्वाद दिया?

महारानी कौशल्या ने राम को जन्म दिया। चैत्र माह की नवमी के दिन। रानी सुमित्रा के दो पुत्र हुए – लक्ष्मण और शत्रुघ्न। रानी कैकेयी के पुत्र का नाम भरत रखा गया? राजा दशरथ के पुत्र उत्पन्न होने पर अयोध्या में हर ओर उत्सव जैसा दृश्य और खुशी छा गई। नगर में बधाइयाँ बजने लगीं। मंगलगीत गाए गए।  राजा दशरथ प्रसन्न थे। उनकी मनोकामना पूरी हुई। नगर में बड़ा समारोह आयोजित किया गया। धूमधाम से। आयोजन में दूर-दूर से लोग आए। राजा दशरथ ने सबको पूरा सम्मान दिया। उन्हें कपड़े, अनाज और धन देकर विदा किया।

चारों राजकुमार धीरे-धीरे बड़े हुए। वे बहुत सुंदर थे। साथ खेलने निकलते तो लोग उन्हें देखते रह जाते। आँखें उनसे हटती ही नहीं थीं। चारों भाइयों में आपस में बहुत प्रेम था। वे अपने बड़े भाई राम की आज्ञा मानते थे। खेलकूद में लक्ष्मण प्रायः राम के साथ रहते। भरत और शत्रुघ्न की एक अलग जोड़ी थी।

बड़े होने पर राजकुमारों को शिक्षा-दीक्षा के लिए भेजा गया। उन्होंने कुशल और अपनी विद्या में दक्ष गुरुजनों से ज्ञान अर्जित किया। शास्त्रों का अध्ययन किया। शस्त्र-विद्या सीखी। चारों राजकुमार कुशाग्र-बुद्धि थे। जल्द ही सब विद्याओं में पारंगत हो गए। राम इसमें सर्वोपरि थे। राम में अनेक गुण थे – शस्त्र-विद्या में पारंगत, कुशाग्र-बुद्धि, विवेकी, शालीनता,  न्यायप्रियता। राजा दशरथ को राम सबसे अधिक प्रिय था – ज्येष्ठ पुत्र होने के कारण तथा कुशाग्र-बुद्धि, विवेकी, शालीन, न्यायप्रियता आदि मानवीय गुणों के कारण।

एक समय राजा दशरथ के पुत्रों के विवाह की बात राजमहल में चल रही थी उस समय महर्षि विश्वामित्र वहाँ पधारे। महर्षि विश्वामित्र कभी स्वयं राजा थे। बहुत बड़े और बलशाली। बाद में अपना राजपाट छोड़ दिया। संन्यास ग्रहण कर लिया। जंगल चले गए। वहीं उन्होंने अपना आश्रम बनाया। महर्षि विश्वामित्र ने अपने आश्रम को सिद्धाश्रम नाम दिया।

महर्षि विश्वामित्र ने राजा दशरथ से कहा – “मैं सिद्धि के लिए एक यज्ञ कर रहा हूँ। अनुष्ठान लगभग पूरा हो गया है। लेकिन दो राक्षस उसमें बाधा डाल रहे हैं। मैं जानता हूँ कि उन राक्षसों को केवल एक ही व्यक्ति मार सकता है। वह राम हैं। आप अपने ज्येष्ठ पुत्र को मुझे दे दें ताकि यज्ञ पूरा हो।”

महर्षि विश्वामित्र के द्वारा राम के माँगे जाने पर दशरथ पर जैसे बिजली गिर पड़ी। वह अचकचा गए। उन्हें उम्मीद ही नहीं थी कि मुनिवर उनसे राम को माँग लेंगे। उनके ज्येष्ठ पुत्र। उनके सबसे प्रिय। दशरथ चिंता में पड़ गए। महाराज दशरथ दुःखी हो गए। पुत्र-वियोग की आशंका से काँप उठे। दरबार में सन्नाटा छा गया। दशरथ की दशा देखकर मंत्री चि्ांतित थे। पर चुप थे। इतने में दशरथ काँप कर बेहोश हो गए। होश आया तो डर ने उन्हें फिर जकड़ लिया। मूर्छित होकर दोबारा गिर पडे़। संज्ञा-शून्य पड़े रहे।

विश्वामित्र दशरथ की दुविधा समझ रहे थे। उन्होंने कहा, “मैं राम को केवल कुछ दिनों के लिए माँग रहा हूँ। यज्ञ दस दिन में संपन्न हो जाएगा।”

राम की माँग करने पर दशरथ ने स्वयं को सँभालते हुए महर्षि से विनती की, “महामुनि! मेरा राम तो अभी सोलह वर्ष का भी नहीं हुआ है। वह राक्षसों से कैसे लड़ेगा? राक्षस मायावी हैं। वह उनका छल-कपट कैसे समझेगा? उन्हें कैसे मारेगा? इससे अच्छा तो यही होगा कि आप मेरी सेना ले जाएँ। मैं स्वयं आपके साथ चलूँ। राक्षसों से युद्ध करूँ ।”

मुनि वशिष्ठ समझाने पर दशरथ ने राम को महर्षि विश्वामित्र के साथ भेज दिया। मुनि वशिष्ठ ने महर्षि विश्वामित्र के विषय में दशरथ को क्या समझाया कि “राजन, आपको अपना वचन पूरा करना चाहिए। रघुकुल की रीति यही है। प्राण देकर भी आपके पूर्वजों ने वचन निभाया है। आप राम की चि्ांता न करें। महर्षि के होते उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।” गुरु वशिष्ठ ने कहा, “महाराज, महर्षि विश्वामित्र सिद्ध पुरुष हैं। तपस्वी हैं। अनेक गुप्त विद्याओं के जानकार हैं। वह कुछ सोचकर ही यहाँ आए हैं। राम उनसे अनेक नयी विद्याएँ सीख सकेंगे। आप राम को महर्षि विश्वामित्र के साथ जाने दें। राम को उन्हें सौंप दें।”

राजा दशरथ के द्वारा राम के साथ लक्ष्मण को भेजे जाने का प्रस्ताव रखा गया। जब राम-लक्ष्मण को महर्षि विश्वामित्र के साथ वन में जाने की सूचना दी गई तो  राम और लक्ष्मण को तत्काल दरबार में बुलाया गया। महाराज दशरथ ने उन्हें अपने निर्णय की सूचना दी। दोनों भाइयों ने उसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। सिर झुकाकर। आदर सहित।

राम और लक्ष्मण को भेजे जाने की सूचना माता कौशल्या को दी गई। बताया गया कि महर्षि विश्वामित्र के साथ राम और लक्ष्मण वन जा रहे हैं। नितांत गंभीर माहौल में स्वस्तिवचन हुआ। शंखध्वनि हुई। नगाड़े बजे। महाराज दशरथ ने भावुक होकर दोनों पुत्रें का मस्तक चूमकर उन्हें महर्षि को सौंप दिया। दोनों राजकुमार बिना विलंब किए महर्षि के साथ चल पडे़। बीहड़ और भयानक जंगलों की ओर। विश्वामित्र आगे-आगे चल रहे थे। राम उनके पीछे थे। लक्ष्मण राम से दो कदम पीछे। अपने धनुष सँभाले हुए। पीठ पर तुणीर बाँधे। कमर में तलवारें लटकाए।

पाठ पर आधारित प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न :- अयोध्या नगरी किस नदी के किनारे बसी थी?

उत्तर :- सरयू नदी के किनारे।

प्रश्न :- अयोध्या नगरी की विशेषताएँ क्या-क्या थीं?

उत्तर :- अयोध्या नगरी की निम्नलिखित विशेषताएँ थीं –

  1. अयोध्या में केवल राजमहल ही भव्य नहीं था। उसकी एक-एक इमारत आलीशान थी। आम लोगों के घर भव्य थे।
  2. अयोध्या में सड़कें चौड़ी थीं।
  3. अयोध्या में सुंदर बाग-बगीचे थे।
  4. अयोध्या में पानी से लबालब भरे सरोवर थे।
  5. अयोध्या में खेतों में लहराती हरियाली देखने लायक थी।
  6. अयोध्या हर तरह से संपन्न नगरी थी। अयोध्या में सभी लोग सुखी समृद्ध थे।
  7. पूरा नगर विलक्षण, अद्भुत और मनोरम था। भव्यता जैसे उसका दूसरा नाम हो।

प्रश्न :- अयोध्या किस राज्य की राजधानी थी?

उत्तर :- कौसल राज्य की।

प्रश्न :- अयोध्या के राजा कौन थे?

उत्तर :- राजा दशरथ।

प्रश्न :- राजा दशरथ की विशेषताएँ बताइए।

उत्तर :- राजा दशरथ महाराज अज के पुत्र, महाराज रघु के वंशज और रघुकुल के उत्तराधिकारी थे। उनके चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएँ थीं-

  1. राजा दशरथ कुशल योद्धा और न्यायप्रिय शासक थे।
  2. वे लोग मर्यादाओं का पालन करते थे। वे सदाचारी थे।

प्रश्न :- राजा दशरथ को किस बात का दुख था?

उत्तर :- उनकी कोई संतान नहीं होने का।

प्रश्न :- राजा दशरथ की कितनी रानियाँ थीं?

उत्तर :- तीन।

प्रश्न :- राजा दशरथ की रानियों के नाम क्या-क्या थे?

उत्तर :- कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी।

प्रश्न – राजा दशरथ और रानियों को सूना-सूना क्यों लगता था?

उत्तर :- संतान की कमी के कारण।

प्रश्न :- अपने उत्तराधिकारी के विषय में दशरथ ने किससे बात की?

उत्तर :- मुनि वशिष्ठ से।

प्रश्न :-  मुनि वशिष्ठ ने दशरथ को संतान के लिए क्या करने की सलाह दी?

उत्तर :- पुत्रेष्टि यज्ञ।

प्रश्न :- पुत्रेष्टि यज्ञ किसकी देखरेख में हुआ?

उत्तर :- पुत्रेष्टि यज्ञ महान तपस्वी ट्टष्य शृंग की देखरेख में हुआ।

प्रश्न :- पुत्रेष्टि यज्ञ किस प्रकार हुआ?

उत्तर :- पूरा नगर पुत्रेष्टि यज्ञ की तैयारी में लगा हुआ था। यज्ञशाला सरयू नदी के किनारे बनाई गई। यज्ञ में अनेक राजाओं को निमंत्रित किया गया। तमाम ट्टषि-मुनि पधारे। शंखध्वनि और मंत्रेच्चार के बीच एक-एक कर सबने आहुति डाली। अंतिम आहुति राजा दशरथ की थी।

प्रश्न :- पुत्रेष्टि यज्ञ की यज्ञशाला कहाँ बनाई गई?

उत्तर :- सरयू नदी के किनारे।

प्रश्न :- किस देवता ने राजा दशरथ को आशीर्वाद दिया?

उत्तर :- अग्नि देवता ने।

प्रश्न :- महारानी कौशल्या ने किसको को जन्म दिया?

उत्तर :- महारानी कौशल्या ने राम को जन्म दिया। चैत्र माह की नवमी के दिन।

प्रश्न :- रानी सुमित्रा के कितने पुत्र हुए?

उत्तर :- दो।

प्रश्न :- रानी सुमित्रा के पुत्रों के नाम क्या थे?

उत्तर :- लक्ष्मण और शत्रुघ्न।

प्रश्न :- रानी कैकेयी के पुत्र का नाम क्या रखा गया?

उत्तर :- भरत।

प्रश्न :- राम की माँ का नाम क्या था?

उत्तर :- कौशल्या।

प्रश्न :- लक्ष्मण की माँ का नाम क्या था?

उत्तर :- सुमित्रा।

प्रश्न :- शत्रुघ्न की माँ का नाम क्या था?

उत्तर :- सुमित्रा।

प्रश्न :- भरत की माँ का नाम क्या था?

उत्तर :- कैकेयी।

प्रश्न :- दशरथ की किस रानी से दो पुत्र प्राप्त हुए?

उत्तर :- सुमित्रा।

प्रश्न :- राजा दशरथ के पुत्र उत्पन्न होने पर अयोध्या में कैसा वातावरण था?

उत्तर :- राजमहल में हर ओर उत्सव जैसा दृश्य और खुशी छा गई। नगर में बधाइयाँ बजने लगीं। मंगलगीत गाए गए।  राजा दशरथ प्रसन्न थे। उनकी मनोकामना पूरी हुई। नगर में बड़ा समारोह आयोजित किया गया। धूमधाम से। आयोजन में दूर-दूर से लोग आए। राजा दशरथ ने सबको पूरा सम्मान दिया। उन्हें कपड़े, अनाज और धन देकर विदा किया।

प्रश्न :- चारों भाइयों का बचपन किस प्रकार बीता?

उत्तर :- चारों राजकुमार धीरे-धीरे बड़े हुए। वे बहुत सुंदर थे। साथ खेलने निकलते तो लोग उन्हें देखते रह जाते। आँखें उनसे हटती ही नहीं थीं। चारों भाइयों में आपस में बहुत प्रेम था। वे अपने बड़े भाई राम की आज्ञा मानते थे। खेलकूद में लक्ष्मण प्रायः राम के साथ रहते। भरत और शत्रुघ्न की एक अलग जोड़ी थी।

प्रश्न :- चारों राजकुमारों की शिक्षा-दीक्षा किस प्रकार हुई?

उत्तर :- बड़े होने पर राजकुमारों को शिक्षा-दीक्षा के लिए भेजा गया। उन्होंने कुशल और अपनी विद्या में दक्ष गुरुजनों से ज्ञान अर्जित किया। शास्त्रों का अध्ययन किया। शस्त्र-विद्या सीखी। चारों राजकुमार कुशाग्र-बुद्धि थे। जल्द ही सब विद्याओं में पारंगत हो गए। राम इसमें सर्वोपरि थे।

प्रश्न :- शस्त्र-विद्या और कुशग्रता में कौन सर्वाधिक पारंगत था?

उत्तर :- राम।

प्रश्न :- राम में कौन-कौन से गुण थे?

उत्तर :- राम में निम्नलिखित गुण थे-

  1. शस्त्र-विद्या में पारंगत।
  2. कुशाग्र-बुद्धि।
  3. विवेकी।
  4. शालीनता।
  5. न्यायप्रियता।

प्रश्न :- राजा दशरथ को कौन-सा पुत्र सबसे अधिक प्रिय था?

उत्तर :- राम।

प्रश्न :- दशरथ को राम सबसे अधिक प्रिय क्यों थे?

उत्तर :-

  1. ज्येष्ठ पुत्र होने के कारण।
  2. कुशाग्र-बुद्धि, विवेकी, शालीन, न्यायप्रियता आदि मानवीय गुणों के कारण।

प्रश्न :- जिस समय राजा दशरथ के पुत्रों के विवाह की बात राजमहल में चल रही थी उस समय कौन-से ऋष्टि वहाँ पधारे?

उत्तर :- महर्षि विश्वामित्र।

प्रश्न :- महर्षि विश्वामित्र कौन थे?

उत्तर :- महर्षि विश्वामित्र कभी स्वयं राजा थे। बहुत बड़े और बलशाली। बाद में अपना राजपाट छोड़ दिया। संन्यास ग्रहण कर लिया। जंगल चले गए। वहीं उन्होंने अपना आश्रम बनाया।

प्रश्न :- महर्षि विश्वामित्र ने अपने आश्रम को क्या नाम दिया?

उत्तर :- सिद्धाश्रम।

प्रश्न :- महर्षि विश्वामित्र ने राजा दशरथ से क्या कहा?

उत्तर :- मैं सिद्धि के लिए एक यज्ञ कर रहा हूँ। अनुष्ठान लगभग पूरा हो गया है। लेकिन दो राक्षस उसमें बाधा डाल रहे हैं। मैं जानता हूँ कि उन राक्षसों को केवल एक ही व्यक्ति मार सकता है। वह राम हैं। आप अपने ज्येष्ठ पुत्र को मुझे दे दें ताकि यज्ञ पूरा हो।

प्रश्न :- महर्षि विश्वामित्र के द्वारा राम को माँगे जाने पर दशरथ की कैसी स्थिति हो गई थी?

उत्तर :- दशरथ पर जैसे बिजली गिर पड़ी। वह अचकचा गए। उन्हें उम्मीद ही नहीं थी कि मुनिवर उनसे राम को माँग लेंगे। उनके ज्येष्ठ पुत्र। उनके सबसे प्रिय। दशरथ चिंता में पड़ गए। महाराज दशरथ दुःखी हो गए। पुत्र-वियोग की आशंका से काँप उठे। दरबार में सन्नाटा छा गया। दशरथ की दशा देखकर मंत्री चि्ांतित थे। पर चुप थे। इतने में दशरथ काँप कर बेहोश हो गए। होश आया तो डर ने उन्हें फिर जकड़ लिया। मूर्छित होकर दोबारा गिर पडे़। संज्ञा-शून्य पड़े रहे।

प्रश्न :- महर्षि विश्वामित्र ने दशरथ की चिंता का समाधान किस प्रकार किया?

उत्तर :- विश्वामित्र दशरथ की दुविधा समझ रहे थे। उन्होंने कहा, “मैं राम को केवल कुछ दिनों के लिए माँग रहा हूँ। यज्ञ दस दिन में संपन्न हो जाएगा।”

प्रश्न :- महर्षि विश्वामित्र ने कितने दिन में यज्ञ सम्पन्न होने का आश्वासन दिया?

उत्तर :- दस दिन।

प्रश्न :- राम की माँग करने पर दशरथ ने महर्षि विश्वामित्र को क्या कहा?

उत्तर :- स्वयं को सँभालते हुए उन्होंने महर्षि से विनती की, “महामुनि! मेरा राम तो अभी सोलह वर्ष का भी नहीं हुआ है। वह राक्षसों से कैसे लड़ेगा? राक्षस मायावी हैं। वह उनका छल-कपट कैसे समझेगा? उन्हें कैसे मारेगा? इससे अच्छा तो यही होगा कि आप मेरी सेना ले जाएँ। मैं स्वयं आपके साथ चलूँ। राक्षसों से युद्ध करूँ ।”

प्रश्न :- किसके समझाने पर दशरथ ने राम को महर्षि विश्वामित्र के साथ भेज दिया?

उत्तर :- मुनि वशिष्ठ।

प्रश्न :- मुनि वशिष्ठ ने महर्षि विश्वामित्र के विषय में दशरथ को क्या समझाया?

उत्तर :-

  1. “राजन, आपको अपना वचन पूरा करना चाहिए। रघुकुल की रीति यही है। प्राण देकर भी आपके पूर्वजों ने वचन निभाया है। आप राम की चिंता न करें। महर्षि के होते उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।”
  2. गुरु वशिष्ठ ने कहा, “महाराज, महर्षि विश्वामित्र सिद्ध पुरुष हैं। तपस्वी हैं। अनेक गुप्त विद्याओं के जानकार हैं। वह कुछ सोचकर ही यहाँ आए हैं। राम उनसे अनेक नयी विद्याएँ सीख सकेंगे। आप राम को महर्षि विश्वामित्र के साथ जाने दें। राम को उन्हें सौंप दें।”

प्रश्न :- राजा दशरथ के द्वारा राम के साथ किसे भेजे जाने का प्रस्ताव रखा गया?

उत्तर :- लक्ष्मण को।

प्रश्न :- जब राम-लक्ष्मण को महर्षि विश्वामित्र के साथ वन में जाने की सूचना दी गई तो उन्होने क्या किया?

उत्तर :- राम और लक्ष्मण को तत्काल दरबार में बुलाया गया। महाराज दशरथ ने उन्हें अपने निर्णय की सूचना दी। दोनों भाइयों ने उसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। सिर झुकाकर। आदर सहित।

प्रश्न :- राम-लक्ष्मण को किस प्रकार महर्षि विश्वामित्र के साथ वन में भेजा गया?

उत्तर :- राम और लक्ष्मण को भेजे जाने की सूचना माता कौशल्या को दी गई। बताया गया कि महर्षि विश्वामित्र के साथ राम और लक्ष्मण वन जा रहे हैं। नितांत गंभीर माहौल में स्वस्तिवचन हुआ। शंखध्वनि हुई। नगाड़े बजे। महाराज दशरथ ने भावुक होकर दोनों पुत्रें का मस्तक चूमकर उन्हें महर्षि को सौंप दिया।

प्रश्न :- राम और लक्ष्मण किस प्रकार महर्षि विश्वामित्र के साथ वन को गए?

उत्तर :- दोनों राजकुमार बिना विलंब किए महर्षि के साथ चल पडे़। बीहड़ और भयानक जंगलों की ओर। विश्वामित्र आगे-आगे चल रहे थे। राम उनके पीछे थे। लक्ष्मण राम से दो कदम पीछे। अपने धनुष सँभाले हुए। पीठ पर तुणीर बाँधे। कमर में तलवारें लटकाए।

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