कक्षा 9 » साँवले सपनों की याद (जाबीर हुसैन)

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साँवले सपनों की याद
(पाठ का सार)

शब्दार्थ :-

गढ़ना – बनाना। हुजूम – जनसमूह, भीड़। वादी – घाटी। सोंधी – सुगंधित, मि‘ी पर पानी पड़ने से उठने वाली गंध। पलायन – दूसरी जगह चले जाना, भागना। नैसर्गिक – सहज, स्वाभाविक। हरारत – उष्णता या गर्मी। आबशार – निर्झर, झरना । मिथक – प्राचीन पुराकथाओं का तत्व, जो नवीन स्थितियों में नए अर्थ का वहन करता है। शोख – चंचल । शती – सौ वर्ष का समय।

‘साँवले सपनों की याद’ यह पाठ जून 1987 ई0 में प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी सालिम अली की मृत्यु के तुरंत बाद डायरी शैली में लिखा गया संस्मरण है। सालिम अली की मृत्यु से उत्पन्न दुख और अवसाद को लेखक ने साँवले सपनों की याद के रूप में व्यक्त किया है। सालिम अली का स्मरण करते हुए लेखक ने उनका व्यक्ति-चित्र प्रस्तुत किया है। यहाँ भाषा की रवानी और अभिव्यक्ति की शैली दिल को छूती है।

इस संस्मरण के लेखक जाबिर हुसैन जी हैं, उन्होंने इस संस्मरण में सालिम अली नाम के प्रसिद्ध बर्ड वाचर के बारे में बताया है। पक्षियों के बारे में जानने का शौक रखने वाले को ही बर्डवाचर कहते हैं। भारतीय पक्षियों के बारे में सालिम अली का ज्ञान अद्भुत था। सालिम अली प्रकृति में उसी तरह मिलकर रहते थे जैसे कोई पक्षी अपना आखिरी गीत गाकर अपने प्राण त्याग देता है। फिर अनेक तमाम कोशिशों के बाद भी वह जिंदा नहीं हो सकता है। ना ही उस मरे हुए को कोई दोबारा जिंदा करना पसंद करेगा।

सालिम अली का कहना यह था कि लोगों की सबसे बड़ी गलती है कि लोग पक्षी, जंगल, झरनों आदि को प्रकृति के नजरिए से ना देखकर आदमी की नजर से देखते हैं। लेखक जाबिर हुसैन आगे बताते हैं कि वृंदावन का नाम सुनकर श्री कृष्ण जी की याद खुद-ब-खुद आ जाती है। ठीक वैसे ही जैसे पक्षियों का नाम सुनते ही सलीम अली का नाम हमारे जुबान पर या दिमाग में अपने आप आ जाती है। आज भी अगर कोई वृंदावन जाए तो यमुना नदी का जल उन्हें वह पुराना इतिहास याद दिला देता है जब श्री कृष्ण ने यहां रासलीला की थी। दिल की धड़कन को तेज करने वाली बांसुरी जो कि उनकी सबसे प्रिय हैए बजाई थी।

लेखक जाबिर हुसैन आगे बताते हैं कि सालिम अली एक दुबले-पतले मरियल से व्यक्ति थें। अब उनके जीवन में 100 साल पूरे होने में कुछ समय ही बचा था। परंतु बहुत अधिक यात्राओं के कारण उनका शरीर थक चुका था और कैंसर जैसी बीमारी ने उन्हें मौत के मुंह में भेज दिया। परंतु सालिम अली अपनी अंतिम साँस तक विभिन्न पक्षियों की तलाश व उनकी देखरेख में लगे रहे। उनकी पत्नी तहमीना उनका बहुत ध्यान रखती थी और तहमीना उनकी सहपाठी भी रह चुकी थी। आगे लेखक यह बताते हैं कि सालिम अली के ‘बर्ड वाचर’ बनने के पीछे एक कहानी छुपी हुई है।

वह कहानी यह थी कि बचपन में सालिम अली के मामा ने उन्हें उपहार में एक ‘एयरगन’ दी थी। वह बहुत खुश थे लेकिन एक दिन रोज की तरह खेलते-खेलते उन्होंने अपनी छत पर बैठी गोरिया दिख गई। उनके मन में एक शैतानी सूझी और बिना कुछ सोचे समझे मज़े-मज़े में उन्होंने अपनी उस एयर गन से छत पर बैठी गोरैया पर निशाना साधा और वह निशाना चुका नहीं और गौरैया को जाकर लग गया। जिससे वह घायल होकर छत से गिर पड़ी। उसे घायल अवस्था में देख सलीम अली को बहुत पछतावा हुआ और उन्होंने स्वयं उसकी देखभाल करने का निर्णय लिया। उस नीले पंखों वाली गौरैया ने सलीम अली के जीवन को ही बदल दिया।

उन्हें पक्षियों से बहुत प्यार होने लगा और वें बर्डवाचर बन गए। आगे लेखक जाबिर हुसैन यह भी बताते हैं कि इस घटना का वर्णन सालिम अली ने अपनी आत्मकथा ‘फॉल ऑफ ए स्पैरो’ में भी किया है। अनुभवी सालिम अली ने तत्कालीन प्रधानमंत्री “चौधरी चरण सिंह” के केरल की साइलेंट वैली को रेगिस्तान की भयानक हवा जो की धूल भरी थी उस से बचाने का निवेदन किया। सलीम अली के द्वारा बताए गए इन प्राकृतिक खतरों के बारे में जानकर चौधरी साहब अत्यधिक भावुक हो उठे।

अंत में लेखक जाबिर हुसैन दर्शाते हैं कि सालिम अली पक्षियों को खोजने के विभिन्न तरीके अपनाते रहते। उनका प्रकृति अनुभव विशाल सागर के समान था। वे प्राकृतिक सौंदर्य से युक्त जीवन का प्रतिबिंब थे। लेकिन अब सालिम अली नहीं रहे तथा उनको जानने वाले सभी पक्षी प्रेमी और अन्य लोग यही सोच रहे थे कि सालिम अली अपनी अंतिम यात्रा पर नहीं बल्कि पक्षियों की खोज में जा रहे हैं और जल्द ही लौट भी आएंगे। वे सभी लोग तो आब भी यही चाहते हैं कि सालिम अली उन सबके बीच वापस आ जाएं।

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साँवले सपनों की याद
(प्रश्न-उत्तर)

प्रश्न – किस घटना ने सालिम अली के जीवन की दिशा को बदल दिया और उन्हें पक्षी प्रेमी बना दिया?

उत्तर – बचपन में सालिम अली के मामा ने उन्हें उपहार में एक ‘एयरगन’ दी थी। वह बहुत खुश थे लेकिन एक दिन रोज की तरह खेलते-खेलते उन्होंने अपनी छत पर बैठी गोरिया दिख गई। उनके मन में एक शैतानी सूझी और बिना कुछ सोचे समझे मज़े-मज़े में उन्होंने अपनी उस एयर गन से छत पर बैठी गोरैया पर निशाना साधा।  गोरैया घायल होकर छत से गिर पड़ी। उसे घायल अवस्था में देख सलीम अली को बहुत पछतावा हुआ और उन्होंने स्वयं उसकी देखभाल करने का निर्णय लिया। उस नीले पंखों वाली गौरैया ने सलीम अली के जीवन को ही बदल दिया।

प्रश्न – सालिम अली ने पूर्व प्रधानमंत्री के सामने पर्यावरण से संबंधित किन संभावित खतरों का चित्र खींचा होगा कि जिससे उनकी आँखें नम हो गई थीं?

उत्तर – अनुभवी सालिम अली ने तत्कालीन प्रधानमंत्री “चौधरी चरण सिंह” के केरल की साइलेंट वैली को रेगिस्तान की भयानक हवा जो की धूल भरी थी उस से बचाने का निवेदन किया। सलीम अली के द्वारा बताए गए इन प्राकृतिक खतरों के बारे में जानकर चौधरी साहब अत्यधिक भावुक हो उठे।

प्रश्न – लॉरेंस की पत्नी फ्रीडा ने ऐसा क्यों कहा होगा कि ‘मेरी छत पर बैठने वाली गोरैया लॉरेंस के बारे में ढेर सारी बातें जानती है?’

उत्तर – लॉरेंस की पत्नी फ्रीडा जानती थी कि लॉरेंस को गौरैया से बहुत प्रेम था। वे अपना काफी समय गौरैया के साथ बिताते थे। गौरैया भी उनके साथ अंतरंग साथी जैसा व्यवहार करती थी। उनके इसी पक्षी-प्रेम को उद्घाटित करने के लिए उन्होंने यह वाक्य कहा।

प्रश्न – आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) वो लॉरेंस की तरह, नैसर्गिक जिंदगी का प्रतिरूप बन गए थे।

उत्तर – लॉरेंस बनावटी जीवन से दूर प्राकृतिक जीवन जीने में विश्वास रखते थे। वे प्रकृति से प्रेम करते थे और प्रकृति की रक्षा के लिए चिंतित रहते थे। इसी प्रकार सालिम अली भी प्रकृति की सुरक्षा और देखभाल के लिए प्रयास करते हुए सीधा एवं सरल जीवन जीते थे।

(ख) कोई अपने जिस्म की हरारत और दिल की धड़कन देकर भी उसे लौटाना चाहे तो वह पक्षी अपने सपनों के गीत दोबारा कैसे गा सकेगा!

उत्तर – लेखक ने यह वाक्य सालिम अली की मृत्यु पर कहा है। मृत्यु ऐसा सत्य है जिसके प्रभाव स्वरूप मनुष्य सांसारिकता से दूर होकर चिर निद्रा और विश्राम प्राप्त कर लेता है। उसका हँसना-गाना, चलना-फिरना सब बंद हो जाता है। मौत की गोद में विश्राम कर रहे सालिम अली की भी यही स्थिति थी। अब उन्हें किसी तरह से पहले जैसी अवस्था में नहीं लाया जा सकता था।

(ग) सालिम अली प्रकृति की दुनिया में एक टापू बनने की बजाए अथाह सागर बनकर उभरे थे।

उत्तर – टापू एक छोटा-सा भू-भाग होता है जबकि सागर अत्यंत विस्तृत होता है। सालिम अली भी प्रकृति और पक्षियों के बारे में थोड़ी-सी जानकारी से संतुष्ट होने वाले नहीं थे। वे इनके बारे में असीमित ज्ञान प्राप्त करके अथाह सागर-सा बन जाना चाहते थे।

प्रश्न – इस पाठ के आधार पर लेखक की भाषा-शैली की चार विशेषताएँ बताइए।

उत्तर – इस पाठ के आधार पर लेखक की भाषा-शैली की चार विशेषताएँ निम्न हैं-

  • मिश्रित शब्दावली का प्रयोग।
  • जटिल वाक्यों का प्रयोग।
  • अलंकारों का प्रयोग।
  • भावानुरूप भाषा।

प्रश्न -इस पाठ में लेखक ने सालिम अली के व्यक्तित्व का जो चित्र खींचा है उसे अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – सालिम अली प्रसिद्ध पक्षी-विज्ञानी होने के साथ-साथ प्रकृति-प्रेमी भी थे। बचपन में उनकी एअरगन से घायल होकर नीले कंठवाली गौरैया ने उन्हें पक्षी-प्रेमी बना दिया। वे दूर-दराज घूम-घूमकर पक्षियों के बारे में जानकारी एकत्र करते रहे और उनकी सुरक्षा के लिए चिंतित रहे। वे केरल की साइलेंट वैली को रेगिस्तानी हवा के झोकों से बचाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह से भी मिले। वे प्रकृति की दुनिया के अथाह सागर बन गए थे।

प्रश्न – ‘साँवले सपनों की याद’ शीर्षक की सार्थकता पर टिप्पणी कीजिए।

उत्तर – ‘साँवले सपने’ मनमोहक इच्छाओं के प्रतीक हैं। इस पाठ में ऐसे सपने प्रसिद्ध पक्षी-प्रेमी सालिम अली से संबंधित हैं। सालिम अली पक्षियों की सुरक्षा और खोज के सपनों में खोए रहे। ये सपने हर किसी को नहीं आते। हर कोई पक्षी-प्रेम में इतना नहीं डूब सकता। इसलिए आज जब सालिम अली नहीं रहे तो लेखक को उन साँवले सपनों की याद आती है जो सालिम अली की आँखों में बसते थे। यह शीर्षक सार्थक तो है किंतु गहरा रहस्यात्मक है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न – प्रस्तुत पाठ सालिम अली की पर्यावरण के प्रति चिंता को भी व्यक्त करता है। पर्यावरण को बचाने के लिए आप कैसे योगदान दे सकते हैं?

उत्तर –

  • पेड़-पौधों को कटने से बचाने के लिए लोगों में जागरूकता पैदा करें। लोगों को पेड़-पौधों की महत्ता बताएँ।
  • जल स्रोतों को न दूषित करें और न लोगों को दूषित करने दें। फैक्ट्रियों से निकले अपशिष्ट पदार्थों एवं विषैले जल को जलस्रोतों में न मिलने दें।
  • प्लास्टिक से बनी वस्तुओं का प्रयोग कम से कम करें।
  • इधर-उधर कूड़ा-करकट न फेंकें तथा ऐसा करने से दूसरों को भी मना करें।
  • सूखी पत्तियों और कूड़े को जलाने से बचें तथा दूसरों को भी इस बारे में जागरूक करें।


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