प्रश्न – ‘कला एवं नीति अन्योन्याश्रित हैं।’ मैथ्यू आर्नल्ड के कला संबंधी विचारों के संदर्भ में इस मत की समीक्षा कीजिए।
उत्तर – पाश्चात्य काव्यशास्त्र के इतिहास में मैथ्यू आर्नल्ड (1882 – 1889) का अवतरण उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हुआ। उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ काव्य-रचना से हुआ, किंतु उनका झुकाव समीक्षा कार्य की ओर अधिक था। मैथ्यू आर्नल्ड, कार्लाइल, न्यूमैन तथा रस्किन अतिवाद की प्रतिक्रिया स्वरूप सामाजिक, नैतिक और आचारपरक मूल्यों में विश्वास रखने वाली समीक्षा धारा के प्रमुख समीक्षक माने जाते हैं। ये समीक्षक साहित्य और उसकी समस्याओं को जीवन और उसकी समस्याओं से अविच्छिन्न संबंध मानते हैं। मैथ्यू आर्नल्ड साहित्य को ‘जीवन की आलोचना’ की संज्ञा देते हैं।
मैथ्यू आर्नल्ड के कला और नैतिकता संबंधी विचार उनकी कविताओं के 1853 ई0 के संग्रह की भूमिका, 1880 में लिखे गए निबंध और राजनीतिक और सामाजिक समस्याओं पर लिखे गए निबंध-संग्रह ‘कल्चर एण्ड एनार्की’ में प्राप्त होते हैं। इन सब में उन्होंने समाज, समाज में व्यक्ति का स्थान तथा व्यक्ति की सामाजिक भूमिका पर प्रकाश डाला है। साथ ही उन्होंने समाज पर धर्म के प्रभाव की भी चर्चा की है। वे समाज को सुधारने में धर्म की सशक्त भूमिका की बार-बार चर्चा करते है, किंतु इसके साथ ही उन्होंने इस तथ्य की ओर भी संकेत किया है कि भविष्य में धर्म का स्थान कविता (साहित्य) को लेना होगा।
मैथ्यू आर्नल्ड की कला –
कला के संबंध में मैथ्यू आर्नल्ड के विचार न तो प्राचीन विद्धानों के समान उसे शिल्प मानने के पक्ष में हैं और न ही विशुद्ध अथवा अखण्ड अनुभूति। जहाँ कहीं भी उन्होंने ‘कला’ शब्द का प्रयोग किया है, उससे उनका तात्पर्य विशुद्ध साहित्य से है।
दूसरे, उन्होंने कला में सौन्दर्य को आवश्यक मानते हुए उसे एकमात्र तत्त्व नहीं माना। साहित्य को वे समाज से अभिन्न मानते हैं। स्वच्छन्छतावादी एवं कलावादी साहित्यकारों के साहित्य की भर्त्सना वे इसलिए करते हैं कि वे एक बिंब, एक दृश्य अथवा एक अनुभूति का तो चित्रण करते है, किंतु समग्र का नहीं।
मैथ्यू आर्नल्ड की नैतिकता
नैतिकता का सीधा संबंध मनुष्य और मानव समाज से है। मैथ्यू आर्नल्ड ने नैतिकता के इसी पक्ष पर बल दिया है। वे साहित्यकार से इस बात की अपेक्षा रखते हैं कि वह स्वयं में ऐसे सद्गुणों का विकास करे जिससे वह पूर्ण मनुष्य कहलाने का अधिकारी बने और इसके साथ ही अपने साहित्य के माध्यम से समाज की विकृतियों को दूर कर उसे पूर्णता की ओर अग्रसर करे।
विषय-चयन में नैतिक आधार –
मैथ्यू आर्नल्ड का मानना है कि काव्य के विषय शाश्वत मानवीय कार्य होना चाहिए। ये कार्य रमणीय होने चाहिए और कवि द्वारा उनकी अभिव्यक्ति भी रमणीय ढंग से की जानी चाहिए, तभी वे पाठक को आनन्द अथवा भावात्मक विश्रांति दे सकेंगे। उनके अनुसार, ‘‘सहस्रों वर्ष पूर्व का कोई एक महान् मानवीय कार्य आधुनिक युग के लघुत्तर मानवीय कार्य की अपेक्षा, अधिक आहलदायक हो सकता है।’’ (मैथ्यू आर्नल्ड: प्रीफेस टू पोयम्ज)
मैथ्यू आर्नल्ड का मत है कि ‘‘सब कुछ विषय पर निर्भर करता है, उपयुक्त कार्य का चयन कर लो, उसकी स्थितियों में निहित मूल भावना से तदात्म्य कर लो – यदि यह हो गया तो फिर सब कुछ अपने आप हो जाएगा।’’
उत्कृष्ट कार्य के अंतर्गत उन्होंने इन कार्यों की गणना की है – ‘‘जो मानव के सहज संस्कारों की सबसे अधिक आंदोलित करें- उन मूलवर्ती भावनाओं को आंदोलित करे जिनका मानस में स्थायी वास होता है और जो काल निरपेक्ष होती है।’’
कामदी की अपेक्षा त्रसदी महत्वपूर्ण
उनके अनुसार कामदी के विषय समसामयिक छोटी-छोटी बातें हो सकती हैं, पर त्रसदी अधिक अर्थपूर्ण और गंभीर कलाकृति होती है। उनके अनुसार त्रसदी का उद्देश्य भी आनन्द प्रदान करना है, अतः उसमें जिस विषय का चयन किया जाए, उसके निर्वाह में बहुत सावधानी बरती जाए।’’
‘‘त्रसदी में यदि वेदना की परिणति किसी क्रिया में नहीं होगी, यदि उसमें पात्रें के मानसिक कष्ट की अवस्था को दूर तक खींचा जाएगा, यदि उसमें ऐसी घटना, आशा या संघर्ष का विधान न होगा जिससे वेदना का प्रतिकार हो, तो उस वर्णन में विरसता होगी। अतः त्रसदी में पात्रें को निरन्तर कष्ट सहते हुए दिखाने के स्थान पर उनके प्रतिकार में संलग्न दिखाया जाना चाहिए।
काव्य और नीति में गहरा संबंध
उनका कहना है ‘‘कविता वस्तुतः जीवन की आलोचना है।’’
‘नैतिक’ शब्द को उन्होंने अत्यंत व्यापक अर्थ में लिया है। उनके लिए ‘कैसे रहना चाहिए’ इस प्रश्न के भीतर जो कुछ समाविष्ट हो सके वह सब नैतिक है। कविता में नैतिक सिद्धांतों को प्रस्तुत करने का अर्थ यह नहीं कि कवि नीति तत्व युक्त उपदेशात्मक कृत्तियों की रचना करे, अपितु यह है कि वह जीवन के लिए उपयोगी विचारों का उदात्त और व्यापक प्रस्तुतीकरण करे।
मैथ्यू आर्नल्ड के काव्य-विषय के चयन संबंधी विचारों से कला और नैतिकता विषयक उनकी मान्यताओं का पर्याप्त स्पष्टीकरण हो जाता है। वस्तुतः वे
(1) काव्य को शुद्ध मनोरंजन मात्र न मान कर उसे जीवनोपयोगी और आनन्द का उत्स मानते हैं।
(2) काव्य के द्वारा समाज को प्राचीन काव्यों के उदात्त विषयों से परिचित कराना चाहते हैं।
(3) काव्य में कार्य (घटना-व्यापार) को अत्यंत महत्वपूर्ण मानते हैं और उसके द्वारा पाठकों को किसी निर्णय तक पहुँचाना चाहते हैं।
कुछ आलोचक यह मानते हैं कि पुरातन विषयों पर अत्यधिक बल देकर मैथ्यू आर्नल्ड ने वर्तमान समाज और उसकी समस्याओं की उपेक्षा की है, किंतु वस्तुस्थिति यह है कि अपने युग को नैतिक ”ास का युग मानने के कारण ही उन्होंने ऐसा किया है। अन्यथा काव्य-विषयों की चर्चा में उनका दूसरा कथन कि ‘‘कार्य का आधुनिकता और प्राचीनता से कोई संबंध नहीं और उसमें कार्य की तिथि या काल का कोई महत्व नहीं, काव्य-विषयों के प्रति उनके दृष्टिकोण को पूरी तरह स्पष्ट कर देता है। बार-बार मनुष्य की पूर्णता की चर्चा की साहित्य द्वारा इस उद्देश्य की पूर्ति की ओर संकेत से उनका मंतव्य पर्याप्त स्पष्ट हो जाता है।