औचित्य-सिद्धांत के प्रवर्तक क्षेमेन्द्र को माना जाता है। इन्होंने अपने ग्रंथ में ‘औचित्यविचारचर्चा’ में औचित्य को काव्य की आत्मा कहा है – ‘औचित्यं रससिद्धस्य स्थिरं काव्यस्य जीवितम्।’ क्षेमेन्द्र के अनुसार – उचितस्य भावः औचित्यम्’ उचित के भाव को औचित्य कहते हैं। दूसरे शब्दों में काव्य में प्रत्येक काव्य-तत्व का उचित रूप से प्रयोग औचित्य कहलाता है।
2020-02-21