भारतीय काव्यशास्त्र » काव्य के भेद

काव्य के भेद
स्वरूप के अनुसार शैली के अनुसार
श्रव्यकाव्य दृश्यकाव्य पद्य काव्य गद्य काव्य चंपू काव्य
प्रबन्ध काव्य मुक्तक काव्य नाटक चलचित्र
महाकाव्य खण्डकाव्य

(क) स्वरूप के अनुसार काव्य के भेद

स्वरूप के आधार पर काव्य के दो भेद हैं – (1) श्रव्यकाव्य एवं (2) दृश्यकाव्य।

(1) श्रव्य काव्य

जिस काव्य का रसास्वादन दूसरे से सुनकर या स्वयं पढ़ कर किया जाता है उसे श्रव्य काव्य कहते हैं। जैसे रामायण और महाभारत।

श्रव्य काव्य के भी दो भेद होते हैं – (i) प्रबन्ध काव्य तथा (ii) मुक्तक काव्य।

(i) प्रबंध काव्य

इसमें कोई प्रमुख कथा काव्य के आदि से अंत तक क्रमबद्ध रूप में चलती है। कथा का क्रम बीच में कहीं नहीं टूटता और गौण कथाएँ बीच-बीच में सहायक बन कर आती हैं। जैसे रामचरित मानस।

प्रबंध काव्य के दो भेद होते हैं – महाकाव्य एवं खण्डकाव्य।

महाकाव्य

इसमें किसी ऐतिहासिक या पौराणिक महापुरुष की संपूर्ण जीवन कथा का आद्योपांत वर्णन होता है। महाकाव्य में ये बातें होना आवश्यक हैं-

  • महाकाव्य का नायक कोई पौराणिक या ऐतिहासिक हो और उसका धीरोदात्त होना आवश्यक है।
  • जीवन की संपूर्ण कथा का सविस्तार वर्णन होना चाहिए।
  • श्रृंगार, वीर और शांत रस में से किसी एक की प्रधानता होनी चाहिए। यथास्थान अन्य रसों का भी प्रयोग होना चाहिए।
  • उसमें सुबह शाम दिन रात नदी नाले वन पर्वत समुद्र आदि प्राकृतिक दृश्यों का स्वाभाविक चित्रण होना चाहिए।
  • आठ या आठ से अधिक सर्ग होने चाहिए, प्रत्येक सर्ग के अंत में छंद परिवर्तन होना चाहिए तथा सर्ग के अंत में अगले अंक की सूचना होनी चाहिए।

खंडकाव्य

इसमें किसी की संपूर्ण जीवनकथा का वर्णन न होकर केवल जीवन के किसी एक ही भाग का वर्णन होता है। खंड काव्य में ये बातें होना आवश्यक हैं-

  • कथावस्तु काल्पनिक हो।
  • उसमें सात या सात से कम सर्ग हों।
  • उसमें जीवन के जिस भाग का वर्णन किया गया हो वह अपने लक्ष्य में पूर्ण हो।
  • प्राकृतिक दृश्य आदि का चित्रण देश काल के अनुसार और संक्षिप्त हो।
(ii) मुक्तक

इसमें केवल एक ही पद या छंद स्वतंत्र रूप से किसी भाव या रस अथवा कथा को प्रकट करने में समर्थ होता है। गीत कवित्त दोहा आदि मुक्तक होते हैं।

(2) दृश्य काव्य

जिस काव्य की आनंदानुभूति अभिनय को देखकर एवं पात्रों से कथोपकथन को सुन कर होती है उसे दृश्य काव्य कहते हैं। जैसे नाटक में या चलचित्र में।

(ख) शैली के अनुसार काव्य के भेद

1- पद्य काव्य – इसमें किसी कथा का वर्णन काव्य में किया जाता है, जैसे गीतांजलि।

2- गद्य काव्य – इसमें किसी कथा का वर्णन गद्य में किया जाता है, जैसे जयशंकर की कामायनी। गद्य में काव्य रचना करने के लिए कवि को छंद शास्त्र के नियमों से स्वच्छंदता प्राप्त होती है।

3- चंपू काव्य – इसमें गद्य और पद्य दोनों का समावेश होता है। मैथिलीशरण गुप्त की ‘यशोधरा’ चंपू काव्य है।