भारतीय काव्यशास्त्र » प्रमुख लेखक

भरतमुनि (दूसरी शती ई0पू0)

ग्रंथ नाट्यशास्त्र

रस विषयक मत-

  • विभावानुभाव संचरिसंयोगतरसनिष्पत्ति । (इन्होने आठ रस माने हैं)

काव्यलक्षण विषयक मत-

  • मृदुल __________ प्रेक्षकानाम्।

नाटक विषयक मत-

  • काव्येषु नाटकं रम्यमं।

गुण विषयक मत-

  • एतएव विपर्यस्ता गुणाः काव्येषु कीर्तिताः। (इन्होने दस गुणभेद स्वीकार किये)

दोष विषयक मत-

  • काव्य में गुण का अभाव दोष है।

भामह (6 से 7 ई0)

ग्रंथ काव्यालंकार

  • ये अलंकार सम्प्रदाय के प्रवर्तक माने जाते हैं।

काव्यलक्षण विषयक मत-

  • शब्दार्थौ साहितो काव्यम्।

काव्य प्रयोजन विषयक मत-

  • धर्मार्थकाममोक्षेषु वैज्ञलण्य कलासु च।

करोति कीर्ति प्रीति च साधु काव्यनिवेषनम्।

अलंकार विषयक मत-

  • न कांतामपि निर्भूषम विभाति वनिता मुखम्।
  • शब्द और अर्थ की वक्रोक्ति को अलंकार कहा।

रीति विषयक मत-

  • इन्होने रीति के दो भेद – गौड़ी और वैदर्भी माने।

दोष विषयक मत-

  • काव्य में औचित्य का अभाव ही दोष है।

दंडी (6 से 7 ई0)

ग्रंथ काव्यादर्श

काव्यलक्षण विषयक मत-

  • शरीरं तावदिष्टार्थ व्यवछिन्ना पदावली।

अलंकार विषयक मत-

  • काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकरान् प्रचक्षते।

रीति विषयक मत-

  • इन्होने रीति के दो भेद – गौड़ी और वैदर्भी माने।

दोष विषयक मत-

  • काव्य में रस की हानि करने वाला तत्व दोष है।

वामन (नौवीं सदी)

ग्रंथ काव्यालंकार (सूत्र वृति)

  • ये रीति सम्प्रदाय के प्रवर्तक माने जाते हैं।

काव्यलक्षण विषयक मत-

  • काव्यशब्दोइंय गुणालंकार संस्कृतयो शब्दार्थयोर्वर्तते।

काव्य हेतु विषयक मत-

  • कवित्वबीजम् प्रतिभानम्।

अलंकार विषयक मत-

  • सौंदर्यमलंकारः
  • अलंकरोति इति अलंकारः। 

रीति विषयक मत-

  • इन्होने रीति को काव्य की आत्मा कहा-रीतिरात्मा काव्यस्य।
  • विशिष्ट पद रचना रीतिः विशेषां गुणात्मा।
  • इन्होने रीति के तीन भेद – गौड़ी, वैदर्भी  और पांचाली माने।

गुण विषयक मत-

  • गुण के प्रतिष्ठाता आचार्य।
  • काव्यशोभायाः कर्तारो धर्मागुणाः।

दोष विषयक मत-

  • काव्य में गुणों का अभाव ही दोष है- गुण विपर्ययात्मनो दोषाः।

उद्भट (नौवीं सदी)

ग्रंथ काव्यालंकारसार संग्रह

आनंदवर्धन (नौवीं सदी)

ग्रंथ ध्वन्यालोक

  • ये ध्वनि सम्प्रदाय के प्रवर्तक माने जाते हैं।

काव्यलक्षण विषयक मत-

  • शब्दार्थशरीरं तावत्काव्यम्। काव्यस्यात्मा ध्वनिः।

काव्य हेतु विषयक मत-

  • अपूर्ववस्तु निर्माण क्षमा  प्रज्ञा ….।

धनंजय (दसवीं सदी)

ग्रंथ दशरूपक

कुंतक (10वीं – 11वीं सदी)

ग्रंथ वक्रोक्तिजीवितम्

  • ये वक्रोक्ति सम्प्रदाय के प्रवर्तक माने जाते हैं।
  • वक्रोक्ति को काव्य की आत्मा माना- ‘वक्रोक्ति काव्य जीवितम्।’

अलंकार विषयक मत-

  • अलंकार को काव्य की आत्मा माना। 

रीति विषयक मत-

  • इन्होने रीति को मार्ग कहा, जिसका आधार देश नहीं, कवि स्वभाव है।
  • इन्होने रीति के तीन भेद – सुकुमार, विचित्र और माध्यम  माने।

महिमभट्ट (11वीं सदी)

ग्रंथ व्यक्तिविवेक

मम्मट (11वीं सदी)

ग्रंथ काव्यप्रकाश

  • ये रीति सम्प्रदाय के प्रवर्तक माने जाते हैं।

काव्यलक्षण विषयक मत-

  • तद्दोषौ शब्दार्थों सगुणावनवंकृती पुनः कवापि।

काव्य हेतु विषयक मत-

  • शक्तिर्निपुणता लोकशास्त्रकाव्याद्यवेक्षणात्।
  • काव्यज्ञशिक्षयाभ्यास इति हेतुस्तदुद्भवे॥

काव्य प्रयोजन विषयक मत-

  • काव्यं यशसेsर्थकृते व्यवहारविदे शिवेतरक्षतये।
  • सद्यः परनिर्वृतये कांता सम्मित तयोपदेशयुजे।

दोष विषयक मत-

  • मम्मट ने तीन दोष माने – शब्ददोष, अर्थदोष, रसदोष।

जयदेव (13वीं सदी)

ग्रंथ चंद्रालोक

विश्वनाथ (14वीं सदी)

ग्रंथ साहित्यदर्पण

काव्यलक्षण विषयक मत-

  • वाक्यं रसात्मकं काव्यम्।

रस विषयक मत-

  • स्त्वोद्रेकादखंड ……………… मास्वाद्यते रसः॥

अलंकार विषयक मत-

  • शब्दार्थयोरस्थिरा ये धर्माः शोभातिशायिनः। 

रीति विषयक मत-

  • इन्होने रीति को रस का उपकार करने वाली माना। 

दोष विषयक मत-

  • काव्य में रस की हानि करने वाला दोष है।

जगन्नाथ (14वीं सदी)

ग्रंथ रसगंगाधर

काव्यलक्षण विषयक मत-

  • रमणीयार्थप्रतिपादकः शब्दः काव्यम्।

भानुमिश्र

ग्रंथ रसतंगिणी (रस विषयक), रसमंजरी (नायक-नायिका भेद)

अप्पयदीक्षित

ग्रंथ वृत्तिवार्तिक (शब्द शक्ति), कुवलयानन्द (अलंकार), चित्रमीमांसा (अलंकार)

रामचन्द्र गुणचन्द

ग्रंथ नाट्यदर्पण (नाट्यविधान)

शिंगभूपाल

ग्रंथ रसार्णवसुधाकर (नाट्यविधान)

भट्टवामन झलकीकर

ग्रंथ – बालबोधिनी टीका

क्षेमेन्द्र

ग्रंथ औचित्यविचार चर्चा

औचित्य  विषयक मत-

  • औचित्यं रससिद्धस्य स्थिरं काव्यस्य जीवितम्।

राजशेखर

ग्रंथ काव्यमीमांसा

भोजराज

ग्रंथ सरस्वतीकंठाभरण

हेमचन्द्र

ग्रंथ काव्यनुशासन

काव्यलक्षण विषयक मत

  • अदोषौ सगुणौ सालंकारौ च शब्दार्थो काव्यम्।

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