हिन्दी भाषा » हिन्दी के विविध रूप

(1) हिन्दी विभिन्न बोलियों के रूप में

जिन स्थानीय बोलियों का प्रयोग साधारण अपने समूह या घरों में करती है, उसे बोली (dialect) कहते है। किसी भी देश में बोलियों की संख्या अनेक होती है। ये घास-पात की तरह अपने-आप जन्म लेती है और किसी क्षेत्र-विशेष में बोली जाती है। हिन्दी की प्रमुख बोलियाँ हैं –

बिहारी हिंदी  से विकसित बोलियाँ – मगही, मैथिली, भोजपुरी

पूर्वी हिंदी से विकसित बोलियाँ – अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी

पश्चिमी हिंदी से विकसित बोलियाँ – ब्रज, खड़ी बोली, हरियाणवी, बुंदेली, कन्नौजी

राजस्थानी हिंदी से विकसित बोलियाँ – मेवाड़ी, मेवाती, मारवाड़ी, हाड़ौती

पहाड़ी हिंदी से विकसित बोलियाँ – मंडियाली (हिमाचल), गढ़वाली, कुमाऊनी

(2) हिन्दी मानक भाषा के रूप में

मानक भाषा व्याकरण से नियन्त्रित होती है। इसका प्रयोग शिक्षा, शासन और साहित्य में होता है। बोली को जब व्याकरण से परिष्कृत किया जाता है, तब वह परिनिष्ठित भाषा बन जाती है।मानक भाषा-विद्वानों व शिक्षाविदों द्वारा भाषा में एकरूपता लाने के लिए भाषा के जिस रूप को मान्यता दी जाती है, वह मानक भाषा कहलाती है। भाषा में एक ही वर्ण या शब्द के एक से अधिक रूप प्रचलित हो सकते हैं। ऐसे में उनके किसी एक रूप को विद्वानों द्वारा मान्यता दे दी जाती है; जैसे-

गयी – गई (मानक रूप)
ठण्ड – ठंड (मानक रूप)
अन्त – अंत (मानक रूप)
रव – ख (मानक रूप)
शुद्ध – शुदध (मानक रूप)

(3) हिन्दी मातृभाषा के रूप में

मातृभाषा यानी जिस भाषा मे माँ सपने देखती है या विचार करती है वही भाषा उस बच्चे की मातृभाषा होगी। इसलिए इसे मातृभाषा कहते है, पितृभाषा नहीं। मातृभाषा, किसी भी व्यक्ति की सामाजिक एवं भाषाई पहचान होती है। जन्म लेने के बाद मानव जो प्रथम भाषा सीखता है उसे उसकी मातृभाषा कहते हैं। मातृभाषा सीखने, समझने एवं ज्ञान की प्राप्ति में सरल होती है।

(4) हिन्दी संपर्क भाषा के रूप में

उस भाषा को सम्पर्क भाषा कहते हैं जो किसी क्षेत्र में सामान्य रूप से किसी भी दो ऐसे व्यक्तियों के बीच प्रयोग हो जिनकी मातृभाषाएँ अलग हैं। इसे कई भाषाओं में ‘लिंगुआ फ़्रैंका’ कहते हैं। इसे सेतु-भाषा, व्यापार भाषा, सामान्य भाषा या वाहन-भाषा भी कहते हैं। मानव इतिहास में सम्पर्क भाषाएँ उभरती रही हैं।

(5) हिन्दी राष्ट्रभाषा के रूप में

जब कोई भाषा किसी राष्ट्र के अधिकांश प्रदेशों के बहुमत द्वारा बोली व समझी जाती है, तो वह राष्ट्रभाषा बन जाती है। दूसरे शब्दों में, वह भाषा जो देश के अधिकतर निवासियों द्वारा प्रयोग में लाई जाती है, राष्ट्रभाषा कहलाती है। सभी देशों की अपनी-अपनी राष्ट्रभाषा होती है; जैसे- अमरीका-अंग्रेजी, चीन-चीनी, जापान-जापानी, रूस-रूसी आदि। भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी है। यह लगभग 70-75 प्रतिशत लोगों द्वारा प्रयोग में लाई जाती है।

(6) हिन्दी राजभाषा के रूप में

राजभाषा- वह भाषा जो देश के कार्यालयों व राज-काज में प्रयोग की जाती है, राजभाषा कहलाती है। जब भाषा व्यापक शक्ति ग्रहण कर लेती है, तब आगे चलकर राजनीतिक और सामाजिक शक्ति के आधार पर राजभाषा या राष्टभाषा का स्थान पा लेती है। ऐसी भाषा सभी सीमाओं को लाँघकर अधिक व्यापक और विस्तृत क्षेत्र में विचार-विनिमय का साधन बनकर सारे देश की भावात्मक एकता में सहायक होती है। भारत में पन्द्रह विकसित भाषाएँ है, पर हमारे देश के राष्ट्रीय नेताओं ने हिन्दी भाषा को  राजभाषा का गौरव प्रदान किया है।  भारत की राजभाषा अंग्रेजी तथा हिंदी दोनों हैं।

 

भाषा और बोली में अंतर
भाषा बोली
भाषा का प्रसार क्षेत्र विस्तृत होता है। बोली का प्रसार क्षेत्रीय होता है।
भाषा का समृद्ध व्याकरण होता है। बोली का व्याकरण नहीं होता है।
भाषा का प्रयोग व्याकरणिक नियमों के अनुसार होता है। बोली के प्रयोग के लिए व्याकरणिक नियमों की आवश्यकता नहीं होती।
भाषा में अपेक्षाकृत स्थिरता होती है। बोलियाँ अपेक्षाकृत परिवर्तनशील होती हैं।
भाषा में साहित्य प्रचुर मात्रा में होता है। बोली  में साहित्य बहुत कम या नहीं मिलता।
भाषा का प्रयोग राजकार्य में किया जा सकता है। बोली का प्रयोग राजकार्य में नहीं किया जाता है।
भाषा की लिपि होती हैं। बोली की लिपि किसी भाषा से जुड़ी होती है।
भाषा का मानक रूप होता है। बोली का मानक रूप नहीं होता।

 

राजभाषा और राष्ट्रभाषा में अंतर
राजभाषा राष्ट्रभाषा
राजभाषा मुख्यतः सरकारी व्यवस्था और प्रयास पर निर्भर करती है। राजभाषा मुख्यतः सरकारी व्यवस्था और प्रयास पर निर्भर करती है।
यह आम जनता के प्रयोग द्वरा स्वतः विकसित नहीं होती। यह आम जनता के प्रयोग द्वरा स्वतः विकसित  होती है।
सरकारी कर्मचारी या कार्यालयों द्वारा इसका प्रयोग किया जाता है। आम जनता सामान्य कामकाज के लिए इसका प्रयोग करती है।
इसमें शासकीय कार्यों से संबन्धित विशेष शब्दों का प्रयोग होता है। इसमें बोलचाल के सामान्य शब्दों का प्रयोग होता है।
यह अपेक्षाकृत विशिष्ट होती है। यह अपेक्षाकृत सरल होती है।
इसका सरकारी कामकाज की दृष्टि से विशेष महत्व होता है। इसका सामाजिक-सांस्कृतिक दृष्टि से विशेष महत्व होता है।
इसका क्षेत्र सीमित होता है। इसका क्षेत्र विस्तृत होता है।
इसमें पारिभाषिक शब्दावली की अधिकता होती है। इसमें अधिकतर शब्दावली स्वतः स्पष्ट होती है।

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