औपचारिक पत्र
प्रधानाचार्य, पदाधिकारियों, व्यापारियों, ग्राहकों, पुस्तक विक्रेता, सम्पादक आदि को लिखे गए पत्र औपचारिक पत्र कहलाते हैं।
औपचारिक पत्रों को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता हैं
(3) कार्यालयी-पत्र (Official Letter)(किसी सरकारी अधिकारी, विभाग को लिखे गए पत्र आदि) – विभिन्न कार्यालयों के लिए प्रयोग किए जाने अथवा लिखे जाने वाले पत्रों को ‘कार्यालयी-पत्र’ कहा जाता हैं। ये पत्र किसी देश की सरकार और अन्य देश की सरकार के बीच, सरकार और दूतावास, राज्य सरकार के कार्यालयों, संस्थानों आदि के बीच लिखे जाते हैं।
(4) व्यवसायिक-पत्र (Business Letter)(दुकानदार, प्रकाशक, व्यापारी, कंपनी आदि को लिखे गए पत्र आदि)- व्यवसाय में सामान खरीदने व बेचने अथवा रुपयों के लेन-देन के लिए जो पत्र लिखे जाते हैं, उन्हें ‘व्व्यवसायिक पत्र’ कहते हैं। आज व्यापारिक प्रतिद्वन्द्विता का दौर हैं। प्रत्येक व्यापारी यही कोशिश करता हैं कि वह शीर्ष पर विद्यमान हो। व्यापार में बढ़ोतरी बनी रहे, साख भी मजबूत हो, इन उद्देश्यों की पूर्ति हेतु जिन पत्रों को माध्यम बनाया जाता हैं, वे व्यापारिक पत्रों की श्रेणी में आते हैं। इन पत्रों की भाषा पूर्णतः औपचारिक होती हैं।
औपचारिक-पत्र लिखते समय ध्यान रखने योग्य बातें
(i)औपचारिक-पत्र नियमों में बंधे हुए होते हैं।
(ii)इस प्रकार के पत्रों में नपी-तुली भाषा का प्रयोग किया जाता है। इसमें अनावश्यक बातों (कुशलक्षेम आदि) का उल्लेख नहीं किया जाता।
(iii)पत्र का आरंभ व अंत प्रभावशाली होना चाहिए।
(iv)पत्र की भाषा-सरल, लेख-स्पष्ट व सुंदर होना चाहिए।
(v)यदि आप कक्षा अथवा परीक्षा भवन से पत्र लिख रहे हैं, तो कक्षा अथवा परीक्षा भवन (अपने पता के स्थान पर) तथा क० ख० ग० (अपने नाम के स्थान पर) लिखना चाहिए।
(vi)पत्र पृष्ठ के बाई ओर से हाशिए (Margin Line) के साथ मिलाकर लिखें।
(vii)पत्र को एक पृष्ठ में ही लिखने का प्रयास करना चाहिए ताकि तारतम्यता बनी रहे।
(viii)प्रधानाचार्य को पत्र लिखते समय प्रेषक के स्थान पर अपना नाम, कक्षा व दिनांक लिखना चाहिए।
औपचारिक-पत्र के अंग
(1) पत्र प्रापक का पदनाम तथा पता।
(2) विषय- जिसके बारे में पत्र लिखा जा रहा है, उसे केवल एक ही वाक्य में शब्द-संकेतों में लिखें।
(3) संबोधन- जिसे पत्र लिखा जा रहा है- महोदय, माननीय आदि।
(4) विषय-वस्तु-इसे दो अनुच्छेदों में लिखें :
पहला अनुच्छेद – अपनी समस्या के बारे में लिखें।
दूसरा अनुच्छेद – आप उनसे क्या अपेक्षा रखते हैं, उसे लिखें तथा धन्यवाद के साथ समाप्त करें।
(5) हस्ताक्षर व नाम- भवदीय/भवदीया के नीचे अपने हस्ताक्षर करें तथा उसके नीचे अपना नाम लिखें।
(6) प्रेषक का पता- शहर का मुहल्ला/इलाका, शहर, पिनकोड।
(7) दिनांक।
औपचारिक-पत्र का प्रारूप
प्रधानाचार्य को प्रार्थना-पत्र
प्रधानाचार्य,
विद्यालय का नाम व पता………….
विषय : (पत्र लिखने के कारण)।
माननीय महोदय,
पहला अनुच्छेद ………………….
दूसरा अनुच्छेद ………………….
आपका आज्ञाकारी शिष्य,
क० ख० ग०
कक्षा………………….
दिनांक ………………….
व्यवसायिक-पत्र
प्रेषक का पता………………….
दिनांक ………………….
पत्र प्रापक का पदनाम,
पता………………….
विषय : (पत्र लिखने का कारण)।
महोदय,
पहला अनुच्छेद ………………….
दूसरा अनुच्छेद ………………….
भवदीय,
अपना नाम
औपचारिक-पत्र की प्रशस्ति, अभिवादन व समाप्ति
प्रशस्ति – श्रीमान, श्रीयुत, मान्यवर, महोदय आदि।
अभिवादन – औपचारिक-पत्रों में अभिवादन नहीं लिखा जाता।
समाप्ति – आपका आज्ञाकारी शिष्य/आज्ञाकारिणी शिष्या, भवदीय/भवदीया, निवेदक/निवेदिका,
शुभचिंतक, प्रार्थी आदि।
औपचारिक-पत्र के प्रकार
(क) प्रार्थना-पत्र/आवेदन पत्र (Request Letter)
(अवकाश, सुधार, आवेदन के लिए लिखे गए पत्र आदि)।जिन पत्रों में निवेदन अथवा प्रार्थना की जाती है, वे ‘प्रार्थना-पत्र’ कहलाते हैं। ये अवकाश, शिकायत, सुधार, आवेदन के लिए लिखे जाते हैं।
किसी अधिकारी को लिखा जाने वाला पत्र ‘आवेदन-पत्र’ कहलाता हैं। आवेदन-पत्र में अपनी स्थिति से अधिकारी को अवगत कराते हुए अपेक्षित सहायता अथवा अनुकूल कार्यवाही हेतु प्रार्थना की जाती हैं। आवेदन-पत्र पूरी तरह से औपचारिक होता हैं, अतः इसे लिखते समय कुछ मुख्य बातों का ध्यान रखना चाहिए। जैसे- आवेदन-पत्र लिखते समय सबसे पहले ध्यान देने वाली जो बात हैं, वह यह हैं कि इसमें विनम्रता एवं अधिकारी के सम्मान का निर्वाह आवश्यक होता हैं। इसके अतिरिक्त इसकी शब्द-योजना एवं वाक्य-रचना सरल तथा बोधगम्य होनी चाहिए।
चूँकि एक अधिकारी के पास इतना समय नहीं होता कि वह आपके आवेदन-पत्र के सभी विवरण को पढ़ सके, अतः आपको पत्र के द्वारा जो कुछ कहना हो, उसे संक्षेप में कहें। साथ ही जो बात आप कह रहे हैं, वह विश्वसनीय और प्रमाण पुष्ट भी होनी चाहिए।
आवेदन-पत्र के मुख्य भाग
आवेदन-पत्र को व्यवस्थित रूप से लिखने के लिए इसे निम्नलिखित भागों में विभाजित किया गया हैं-
(1) प्रेषक का पता- आवेदन पत्र लिखते समय सबसे ऊपर बायीं ओर पत्र भेजने वाले का पता लिखा जाता हैं।
(2) तिथि/दिनांक- प्रेषक के पते ठीक नीचे बायीं ओर जिस दिन पत्र लिखा जा रहा हैं उस दिन की दिनांक लिखी जाती हैं।
(3) पत्र प्राप्त करने वाले का पता- दिनांक अंकित करने के पश्चात् ‘सेवा में’ लिखकर जिसे पत्र भेजा जा रहा हैं उस अधिकारी का पद, कार्यालय का नाम, विभाग तथा स्थान लिखा जाता हैं।
(4) विषय- पता लिखने के पश्चात् विषय लिखकर इसके अन्तर्गत पत्र के मूल विषय को संक्षिप्त में लिखा जाता हैं।
(5) सम्बोधन- विषय के बाद में महोदय, आदरणीय, मान्यवर, माननीय आदि सम्बोधन का प्रयोग किया जाता हैं।
(6) विषय-वस्तु- सम्बोधन के बाद ‘सविनय निवेदन यह हैं कि…… अथवा ‘सादर निवेदन हैं कि …..’ जैसे वाक्य से पत्र प्रारम्भ किया जाता। पत्र के इस मूल भाग में यदि कई बातों का उल्लेख किया जाता हैं, तो उसे अलग-अलग अनुच्छेद में लिखना चाहिए। मूल भाग अथवा विषय वस्तु का अन्त आभार सूचक वाक्य से किया जाता हैं; जैसे- ‘मैं सदा आपका आभारी रहूँगा’ आदि।
(7) अभिवादन के साथ समाप्ति- पत्र के मूल-विषय को लिखने के पश्चात् धन्यवाद लिखकर पत्र को समाप्त किया जाता हैं।
(8) अभिनिवेदन- आवेदन-पत्र के अन्त में बायीं ओर भवदीय, प्रार्थी, आपका आज्ञाकारी जैसे शिष्टतासूचक शब्द लिखकर तथा अपना नाम आदि लिखकर पत्र की समाप्ति की जाती हैं।
आवेदन-पत्र के प्रकार
आवेदन-पत्रों में किसी विषय अथवा समस्या को लेकर प्रार्थना की गई होती हैं। यह प्रार्थना; अवकाश प्राप्त करने से लेकर, मोहल्ले आदि की सफाई को लेकर स्वास्थ्य अधिकारी, क्षेत्र डाक-व्यवस्था सुधारने के लिए डाकपाल तक से की जा सकती हैं। अतः प्रार्थना सम्बन्धी आवेदन-पत्र लिखते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि इसमें किसी भी प्रकार की असत्य बातों का उल्लेख न हों। आवेदन-पत्र कई प्रकार के हो सकते हैं, किन्तु जो पत्र-व्यवहार में लाए जाते हैं, वे मुख्यतः चार प्रकार के हैं-
(1) विद्यार्थियों के प्रार्थना सम्बन्धी आवेदन-पत्र- सामान्यतः स्कूल एवं कॉलेज के छात्र-छात्राओं द्वारा अपने अधिकारियों को लिखे जाने वाले पत्र इसी श्रेणी में आते हैं। छात्र-छात्राएँ अपने महाविद्यालय के प्राचार्य, विश्वविद्यालय के कुलपति, कुलसचिव, परीक्षा नियन्त्रक, शिक्षा सचिव, शिक्षा मन्त्री को पत्र के माध्यम से अपनी सामूहिक समस्याओं से अवगत कराते हैं।
इसी प्रकार छात्र-छात्राएँ विषय-परिवर्तन, समय-सारणी में परिवर्तन, चरित्र प्रमाण-पत्र, पहचान प्रमाण-पत्र प्राप्त करने, किसी प्रकार के दण्ड से मुक्ति के लिए, विकलांग होने पर लिपिक की व्यवस्था के लिए, मूल प्रमाण- पत्र खो जाने पर नए अथवा डुप्लीकेट प्रमाण-पत्र जारी करने के लिए सम्बन्धित अधिकारियों को आवेदन-पत्र लिखते हैं।
(2) कर्मचारियों के आवेदन-पत्र- आवेदन-पत्र से तात्पर्य ऐसे आवेदन-पत्रों से हैं जिन्हें एक कर्मचारी अपने अवकाश की स्वीकृति के लिए, स्थानान्तरण के लिए, किसी राशि का भुगतान करने के लिए, क्षमा-याचना के लिए, वेतन-वृद्धि के लिए, अनापत्ति प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिए अथवा आवास सुविधा के लिए सम्बन्धित अधिकारी को लिखता हैं।
(3) नौकरी के लिए आवेदन-पत्र- नौकरी सम्बन्धी आवेदन-पत्र किसी विज्ञापन के सन्दर्भ में या ऐसे संस्थान अथवा कार्यालय जिनका आवेदन-प्रारूप पूर्व निर्धारित नहीं होता, उनमें आवेदन के लिए लिखे जाते हैं। इस लैटर अथवा पत्र में यह बताते हुए, कि मुझे ज्ञात हुआ हैं कि आपके संस्थान में …… का पद रिक्त हैं, अथवा आपके द्वारा दिए हुए विज्ञापन के सन्दर्भ में मैं …..के पद हेतु आवेदन कर रहा हूँ। मेरी शैक्षिक योग्यता एवं कार्यानुभवों का विवरण इस पत्र के साथ संलग्न मेरे जीवन-वृत्त में उल्लिखित हैं।
(4) जन-साधारण के आवेदन-पत्र- जन-साधारण को सामन्य जीवन में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता हैं। इन समस्याओं का सम्बन्ध पृथक्-पृथक् विभागों या कार्यालयों से हो सकता हैं। ऐसी समस्याओं के निवारण अथवा निराकरण के लिए सम्बन्धित अधिकारी को आवेदन-पत्र के माध्यम से प्रार्थना की जाती हैं। ऐसे पत्रों का सम्बन्ध व्यक्तिगत समस्या से भी हो सकता हैं एवं सार्वजनिक समस्या से भी। अतः हम कह सकते हैं कि ऐसे आवेदन-पत्रों की विषय-सीमा व्यापक होती हैं। बिजली, फोन, पानी, डाक-तार, स्वास्थ्य, बीमा आदि अनेक विषय ऐसे पत्रों का आधार हो सकते हैं।
विद्यार्थियों के प्रार्थना सम्बन्धी आवेदन-पत्र
विद्यार्थियों के प्रार्थना सम्बन्धी आवेदन-पत्र मुख्य रूप से अवकाश प्राप्त करने से लेकर, समय-सारणी में परिवर्तन, विषय-परिवर्तन, चरित्र प्रमाण-पत्र, दण्ड से मुक्ति आदि के लिए लिखे जाते हैं। प्रार्थना-पत्र लिखते समय विद्यार्थी को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि इसमें किसी प्रकार की असत्य बातों का उल्लेख न हो। यदि ऐसा हो जाता हैं, तो सम्बन्धित अधिकारी का आप पर से विश्वास तो उठता ही हैं, भविष्य में आप को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता हैं।
प्रार्थना-पत्र का प्रारूप
अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को पत्र लिखिए, जिसमें बीमारी के कारण अवकाश लेने के लिए प्रार्थना की गई हो।
243, प्रताप नगर, ………………………….(पत्र भेजने वाले का पता)
दिल्ली।
दिनांक 25 मई, 20XX………………………….(दिनांक)
सेवा में,
श्रीमान प्रधानाचार्य जी,
सर्वोदय विद्यालय,
सी.सी.कालोनी,
दिल्ली।………………………………… (पत्र प्राप्त करने वाले का पता)
विषय बीमारी के कारण छुट्टी के लिए प्रार्थना-पत्र।……………… (विषय)
महोदय,…………………………. (सम्बोधन)
सविनय निवेदन यह हैं कि मैं आपके विद्यालय की कक्षा दसवीं ‘ब’ का छात्र हूँ। मुझे कल रात से बहुत तेज ज्वर हैं। डॉक्टर ने मुझे दो दिन आराम करने की सलाह दी हैं। इस कारण मैं आज विद्यालय में उपस्थित नहीं हो सकता। कृपया, मुझे दो दिन (25 मई से 26 मई 20XX) का अवकाश प्रदान करने की कृपा करें।……………(विषय वस्तु)
धन्यवाद। ………………………….(अभिवादन की समाप्ति)
आपका आज्ञाकारी शिष्य
नरेश कुमार
कक्षा-दसवीं ‘ब’
अनुक्रमांक-15…………………………. (अभिनिवेदन)
(ख) सम्पादकीय पत्र (Editorial Letter)
(शिकायत, समस्या, सुझाव, अपील और निवेदन के लिए लिखे गए पत्र आदि) – सम्पादक के नाम लिखे जाने वाले पत्र को संपादकीय पत्र कहा जाता हैं। इस प्रकार के पत्र सम्पादक को सम्बोधित होते हैं, जबकि मुख्य विषय-वस्तु ‘जन सामान्य’ को लक्षित कर लिखी जाती हैं।
सम्पादक के नाम पत्र वे पत्र हैं, जो पाठकों द्वारा समाचार-पत्रों अथवा पत्रिकाओं के सम्पादकों को सम्बोधित करके लिखे जाते हैं। समाचार-पत्रों में ‘सम्पादक के नाम पत्र’ का एक विशेष कॉलम होता है। इस कॉलम के माध्यम से एक व्यक्ति अपनी बात को समस्त पाठकों, अधिकारियों और सरकार तक प्रेषित करता है। इस कॉलम को विभिन्न समाचार-पत्र/पत्रिकाओं द्वारा ‘पाती पाठकों की; ‘रीडर्स मेल’, ‘जनवाणी’, ‘लोकमत’, ‘पाठकों की दुनिया’, ‘पाठकों की राय’, ‘पाठक संवाद’, एवं ‘चौपाल’ सरीखे अलग-अलग नाम दिए गए हैं।
सम्पादक के नाम पत्र के अन्तर्गत निम्न पत्रों को शामिल किया जाता है- समस्या सम्बन्धी पत्र, शिकायत सम्बन्धी पत्र, अपील और निवेदन सम्बन्धी पत्र, समीक्षा/सुझाव सम्बन्धी पत्र सम्मिलित हैं, जो इस पाठ के अन्तर्गत बताए गए हैं।
सम्पादक के नाम पत्र लिखते समय ध्यान देने योग्य बातें
(1) सबसे पहले सादे कागज पर बायीं ओर जिसके द्वारा पत्र लिखा जा रहा है उसका पता व दिनांक लिखी जाती है तत्पश्चात बायीं ओर ‘सेवा में’ लिखने के बाद प्रेषिती (पत्र भेजने के लिए) के लिए सम्पादक, समाचार-पत्र का नाम, शहर का नाम लिखा जाता है।
(2) विषय लिखने के बाद सम्बोधन के लिए ‘महोदय’ का प्रयोग किया जाता है।
(3) तत्पश्चात यह लिखते हुए कि ‘मैं आपके लोकप्रिय दैनिक समाचार पत्र में …… शीर्षक के तहत अपने विचार प्रस्तुत कर रहा हूँ। इस प्रकार शुरुआत करके विषय-वस्तु का वर्णन किया जाता है।
(4) अन्त में आशा करता हूँ आप इसे प्रकाशित कर मुझे अनुगृहीत करेंगे। ‘यह लिखने के बाद बाई ओर ‘धन्यवाद’ लिखने हुए, उसके नीचे भवदीय आदि लिखकर अपना नाम लिख दिया जाता है।
(ग) लेन-देन सम्बन्धी पत्र
व्यापार लेन-देन पर टिका होता है। यह लेन-देन रुपये-पैसों से भी सम्बन्धित हो सकता है, एवं एजेन्सी लेने-देने से भी। व्यापार को आगे बढ़ाने के लिए यह जरूरी है कि लेन-देन में पूरी पारदर्शिता हो। ऐसे पत्र लिखते समय पूरी सावधानी बरतनी चाहिए। सौदे की सभी शर्तो का उल्लेख पत्र में होना चाहिए। यदि रुपयों के भुगतान से सम्बन्धित बातें लिखनी हों, तब बकाया रुपयों का माह, बिल संख्या, सन्दर्भ संख्या आदि का उल्लेख अवश्य किया जाना चाहिए।
(घ) शिकायत सम्बन्धी पत्र
व्यापार में शिकायतें शुरू हुई नहीं कि समस्याएँ अपने आप सामने आने लगती हैं। शिकायतों से सम्बन्धित पत्रों के सम्बन्ध में हम पूर्व में अध्ययन कर ही चुके हैं। दरअसल, समस्या सम्बन्धी व्यापारिक पत्र शिकायती पत्रों का ही एक रूप है। ऐसे पत्र भविष्य के लिए व्यावसायिक सम्बन्धों को तोड़ने, किसी बात को अस्वीकार करने, क्षतिपूर्ति से मुख मोड़ने आदि विषयों पर लिखे जा सकते हैं।
(ङ) पूछताछ सम्बन्धी पत्र
पूछताछ सम्बन्धी पत्रों से तात्पर्य ऐसे पत्रों से है, जिनके माध्यम से किसी माल के गुण, उपयोगिता एवं व्यापारिक शर्तो आदि की जानकारी जुटाई जाती है।
पूछताछ सम्बन्धी पत्र उन वस्तुओं के नियमित खरीदार व्यापारी भी लिखते हैं, जिन वस्तुओं के मूल्य से उतार-चढ़ाव होता रहता है। इन पत्रों के तहत निर्माता द्वारा व्यापारी को माँगी गई सभी सूचनाएँ पूर्ण विवरण सहित देनी चाहिए; जैसे- वस्तु की गुणवत्ता, मात्रा, आकार इत्यादि।
(च) ऑर्डर सम्बन्धी पत्र
व्यापार में ऑर्डर सम्बन्धी पत्र, वे पत्र होते हैं; जिनके द्वारा माल के ऑर्डर लिए अथवा दिए जाते हैं। किसी भी माल का ऑर्डर देते समय पत्र में उसकी किस्म, मात्रा, साइज, डिजाइन, पैकिंग, माल भेजने का तरीका, तिथि आदि का उल्लेख किया जाना चाहिए। यदि माल नाजुक अथवा कीमती है, तब इस सम्बन्ध में पत्र में माल का बीमा आदि करवाने हेतु निर्देश दिए जाने चाहिए। इसके अलावा यदि किसी फर्म को पहला ऑर्डर भेजा जा रहा है, तब भुगतान के ढंग का उल्लेख किया जाना आवश्यक है। यदि ऑर्डर में उधार माल भेजने की माँग की गई है, तब व्यापार सन्दर्भों का उल्लेख होना जरूरी है। कई बार माल का आर्डर कैन्सिल करना पड़ सकता है। ऐसे समय में खेद प्रकट करते हुए, भविष्य में इस प्रकार की सावधानी बरतने सम्बन्धी पत्र अवश्य भेजा जाना चाहिए।
(छ) व्यापारिक पत्र
व्यापारिक पत्र वैयक्तिक पत्रों की तुलना में काफी भिन्न होते हैं। व्यापारिक पत्रों की भाषा औपचारिक होती है। इनमें द्विअर्थी एवं संदिग्ध बातों का स्थान नहीं होता। ये पत्र किसी भी व्यापारिक संस्थान के लिए आवश्यक होते हैं। व्यापारिक पत्र किन्हीं दो व्यापारियों के बीच व्यापारिक कार्य हेतु लिखे जाते हैं।
एक व्यवसायी तभी सफल हो सकता है, जब वह दूसरे व्यवसायी के साथ मधुर सम्बन्ध बनाए। सम्बन्धों को मधुर बनाए रखने एवं व्यापार को कुशलतापूर्वक बढ़ाने के लिए पत्रों को लिखने की आवश्यकता होती है।
व्यापारिक पत्र माल का मूल्य पूछने सम्बन्धी जानकारी लेने, बिल का भुगतान करने, बिल की शिकायत करने, साख बनाने, समस्या बताने, सन्दर्भ लेने आदि के विषय में लिखे जाते हैं।
व्यापारिक पत्रों की उपयोगिता
व्यापारिक पत्र एक व्यवसायी के दृष्टिकोण से बहुत उपयोगी होते हैं। इन पत्रों से समय की बचत तो होती ही है, धन भी कम खर्च होता है। ये पत्र व्यापार का प्रचार एवं विज्ञापन का कार्य भी करते हैं।
व्यवसायिक पत्राचार के द्वारा व्यापार के सभी कार्यों के आधार पर भेजे गए पत्रों का रिकॉर्ड तैयार कर दिया जाता है। व्यापार की बातों को यदि व्यापारी कुछ समय के बाद भूलने लगता है, तब यही व्यावसायिक पत्रों के मूल्यवान रिकॉर्ड उनकी सहायता करते हैं।
इस प्रकार व्यापारिक पत्र व्यापारिक साख को बढ़ाने के साथ-साथ विवाद और भ्रम की स्थिति में इसके सहज निवारण में भी काम आते हैं।
व्यापारिक पत्रों की विशेषताएँ
व्यापारिक पत्र की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-
(1)स्पष्टता- व्यापारिक पत्र जिस विषय में लिखा गया हो, वह पूर्णतः स्पष्ट होना चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि बातों को ज्यादा घुमा-फिराकर न कहा गया हो।
(2)सरलता- व्यापारिक पत्रों की भाषा अत्यन्त सरल होनी चाहिए ताकि उसे पढ़ने वाला आसानी से मूल विषय को समझ सके। ऐसे पत्रों में मुहावरों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
(3)संक्षिप्तता- एक व्यापारी के पास समय का अभाव होता हैं। वह मुख्य बात को जानने का इच्छुक होता है। अतः व्यापारिक पत्रों में संक्षिप्तता होनी चाहिए।
(4)सम्पूर्णता- व्यापारिक पत्र में सम्पूर्णता का अत्यधिक महत्त्व होता है। पत्र में आधी-अधूरी बातें नहीं होनी चाहिए। यदि पत्र में कोई सूचना दी जा रही है, तो वह सभी तथ्यों, आँकड़ों आदि से युक्त होनी चाहिए।
(5)त्रुटिहीनता- व्यापारिक पत्र चूँकि दो व्यवसायियों के मध्य संवाद का माध्यम होते हैं, अतः इनमें किसी भी प्रकार की त्रुटि नहीं होनी चाहिए। यदि ऐसा होता है, तो इससे संगठन/व्यक्ति की साख में कमी आ सकती है। यह बात सदैव स्मरण रखें कि छोटी-सी त्रुटि से व्यापार में भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
(6)नम्रता- व्यापारिक पत्र की शैली नम्रतापूर्ण होनी चाहिए। नम्रता से कटुता दूर होती है और मित्र भाव उत्पन्न होता है। सदैव दूसरों की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए और शिष्ट भाषा के प्रयोग द्वारा रूठे हुए लोगों को मनाने का प्रयास करना चाहिए, यही व्यावसायिक सफलता की कुंजी है।
(7)क्रमबद्धता- व्यापारिक पत्र लिखते समय क्रमबद्धता का ध्यान रखना अत्यन्त आवश्यक है। पत्र में प्राथमिकता के आधार पर विभिन्न वाक्यों का क्रम रखा जाना चाहिए। जो बात महत्त्वपूर्ण हो, उसे पहले लिखना चाहिए। वाक्य इस प्रकार क्रमबद्ध रूप से लिखे जाएँ कि पत्र प्राप्तकर्ता पत्र पढ़ते ही उसके मूल भाव को समझ जाए और तत्सम्बन्धी निर्णय हेतु विचार कर सके।
व्यापारिक पत्र के भाग
व्यापारिक पत्र को क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित रूप से लिखने के लिए इसके कलेवर को वैयक्तिक पत्रों की भाँति कई भागों में बाँटा गया है।
व्यापारिक पत्र के मुख्य भाग अग्रलिखित हैं-
(1)शीर्षक- शीर्षक में पत्र लेखक/संस्था का नाम, डाक का पता, टेलीफोन नं., ई-मेल का पता आदि होता है। शीर्षक पृष्ठ के ऊपरी भाग में बायीं ओर छपा रहता है।
(2)पत्रांक/पत्र संख्या एवं दिनांक- व्यापारिक पत्रों में पत्रांक एवं दिनांक का अत्यधिक महत्त्व होता है। पत्र-व्यवहार में पिछले सन्दर्भ देने और वैधानिक आवश्यकता के समय पत्रांक एवं दिनांक का उल्लेख किया जाता है। पत्रांक और दिनांक पत्र के बायीं ओर शीर्षक के नीचे लिखनी चाहिए।
(3)सन्दर्भ संख्या- व्यापारिक पत्र में यदि सम्भव हो, तो सन्दर्भ संख्या का उल्लेख अवश्य करना चाहिए। सन्दर्भ संख्या द्वारा संस्था को पुराने पत्रों से विषय के सम्बन्ध में सम्पूर्ण ब्यौरा उपलब्ध हो जाता है।
(6)अन्दर लिखा जाने वाला पता- जिस व्यक्ति या संस्था को पत्र लिखा जा रहा है, उसका नाम व पता पत्र में बायीं ओर दिनांक के नीचे और अभिवादन के ऊपर लिखना चाहिए।
(7)विषय- विषय की जानकारी एक पंक्ति में ‘महोदय’ से पूर्व दी जाती है।
(8)सम्बोधन- व्यापारिक पत्र में सम्बोधन के लिए सामान्यतः ‘महोदय/महोदया’ लिखते हैं। सम्बोधन पत्र के बायीं ओर लिखते हैं।
(9)पत्र का मुख्य भाग- यह व्यापारिक पत्र का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भाग होता है। पत्र द्वारा दी जाने वाली सूचना इसी भाग में लिखी जाती है। पत्र का यह भाग सामान्यतः तीन भागों में विभाजित होता है-
(1) प्रथम भाग- जिसमें विषय का परिचय होता है अथवा प्रेषिती (Addressee) द्वारा अब तक भेजे गए पत्रों का सन्दर्भ दिया जाता है। पत्र का यह भाग या अनुच्छेद छोटा होता है।
(2) द्वितीय भाग- जिसमें तथ्यों एवं सूचनाओं का विवरण होता है। यह कई छोटे-छोटे अनुच्छेदों में भी बँटा हो सकता है। ,/p>
(3) तृतीय भाग- जिसमें आगामी कार्य-व्यापार पर बल दिया जाता है। यह मुख्य भाग का अन्तिम भाग होता है।
समाप्ति हेतु अन्तिम आदरसूचक शब्द व्यापारिक पत्रों में शिष्टाचारपूर्ण अन्त, पत्र के नीचे बायीं ओर हस्ताक्षर के ऊपर सामान्यतः ‘भवदीय’ लिखकर किया जाता है।
पत्र लेखक के हस्ताक्षर पत्र के अन्त में सबसे नीचे ‘भवदीय’ आदि के बाद अपने हस्ताक्षर करने चाहिए। यदि व्यापारिक पत्र किसी संस्था/संगठन द्वारा लिखा गया है, तो संस्था का कोई भागीदार भी संस्था की ओर से हस्ताक्षर कर सकता है।
(ज) प्रेस-विज्ञप्ति सम्बन्धी
सरकार समय-समय पर सरकारी आदेश, प्रस्ताव अथवा निर्णय समाचार-पत्रों में प्रकाशित करने के लिए भेजती है। इसे ही प्रेस-विज्ञप्ति कहा जाता है।
प्रेस-विज्ञप्ति आमतौर पर सरकारी केन्द्रीय कार्यालय से प्रसारित होती है और इसकी शब्दावली एवं शैली निश्चित होती है। समाचार-पत्र का सम्पादक ‘प्रेस-विज्ञप्ति’ में किसी प्रकार की काट-छाँट नहीं कर सकता। प्रेस-विज्ञप्ति में कभी-कभी यह भी लिखा जाता है कि इसे किस तिथि तक प्रकाशित करना है। समय से पूर्व इसका प्रकाशन नहीं किया जाता।
प्रेस-विज्ञप्ति का अपना एक शीर्षक होता है, इसमें सम्बोधन नहीं लिखा जाता। इसके अन्त में नीचे बायीं ओर हस्ताक्षर तथा पदनाम लिखा जाता है। उल्लेखनीय है कि प्रेस-विज्ञप्ति को सीधे समाचार-पत्र कार्यालय में न भेजकर सूचना अधिकारी के पास भेजा जाता है।
(झ) सन्दर्भ सम्बन्धी पत्र
सन्दर्भ सम्बन्धी पत्र ऐसे पत्र होते हैं, जिनके माध्यम से किसी फर्म अथवा व्यापारी की प्रामाणिक जानकारी माँगी जाती है। चूँकि, उधारी व्यापार का एक मुख्य पहलू होता है, अतः एक व्यापारी के लिए किसी भी फर्म को माल उधार देने से पूर्व उसकी आर्थिक मजबूती, बाजार में प्रतिष्ठा आदि की जाँच-पड़ताल करना जरूरी होता है।
सन्दर्भ पत्रों के द्वारा ऐसी ही फर्मों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। उल्लेखनीय है कि कई बार विक्रेता को जब तक नए ग्राहक से सन्दर्भ प्राप्त नहीं हो जाता, वह ग्राहक को माल की आपूर्ति नहीं करता।
किसी व्यक्ति अथवा संस्था के लिए सन्दर्भ सूचना देने वाले को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सूचना चाहे फर्म के पक्ष में हो अथवा विपक्ष में; उसे यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि सूचना चाहे फर्म के पक्ष में हो अथवा विपक्ष में; उसे यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि वह इस सम्बन्ध में किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं होगा और उसकी सूचना गोपनीय रखी जाएगी।
सन्दर्भ सम्बन्धी पत्रों में प्रतिकूल दृष्टिकोण प्रस्तुत करते समय फर्म के नाम का उल्लेख करने के स्थान पर यह लिखा जाना चाहिए कि, ‘आपने जिस फर्म के बारे में सूचना माँगी है’ अथवा ‘आपने जिस फर्म का उल्लेख किया है’ आदि। पत्र में अपने दृष्टिकोण को तटस्थता के साथ प्रयोग करना चाहिए।