व्याकरण » क्रिया

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जिन शब्दाें से किसी काम के करने व होने का बोध होता है वे क्रिया शब्द कहलाते हैं। जैसे – चलना, पढ़ना, लिखना आदि।

कर्म की दृष्टि से क्रिया के भेद

(1) अकर्मक क्रिया:-

जिस क्रिया के प्रयोग में कर्म की आवश्यता नहीं होती तथा क्रिया का प्रभाव सीधे कर्त्ता पर पड़ता है, अकर्मक क्रिया कहलाती हैै अकर्मक क्रिया के उदाहरण –

  • श्याम मैदान में दौड़ रहा है।
  • चिड़िया आकाश में उड़ती है।
  • पतंग आकाश में उड़ रही है।
  • पक्षी आकाश में उड़ रहे हैं।
  • कुली से सामान नहीं उठ रहा है।
  • सोहन इस समय गेट से निकल रहा है।
  • मोहन आगरा जा रहा है।
  • मोहन हॅंस रहा है।
  • श्याम इस समय सो रहा है।
  • रमेश बहुत होशियार है।
  • मैं बीमार हॅूं।
  • श्याम बड़ा होकर इंजीनियर बनेगा।
  • मेरा पड़ोसी बहुत चालाक निकला।
  • बच्चा उठ गया है।

अपूर्ण अकर्मक क्रिया के उदाहरण –

  • वह बहुत चतुर है।
  • वह तो बेईमान निकला।
  • वह नेता बनेगा।
  • मैं बीमार हूँ।

(2) सकर्मक क्रिया

सकर्मक क्रिया में कर्म की आवश्यकता पड़ती है। इसके उदाहरण हैं-

  • मोहन पेड़ देख रहा है।
  • राकेश रात को दूध बीता है।
  • कमल रमेश को डराता है।
  • कालू पतंग उड़ा रहा है।
  • कुली सामान उठा रहा है।
  • कुत्ते ने बकरी को काट लिया।
  • मीना ने कमला को अपनी नई किताब दे दी।

अकर्मक क्रिया का सकर्मक क्रिया में परिवर्तन

अकर्मक क्रिया सकर्मक क्रिया
श्याम आजकल आठवीं में पढ़ रहा है। श्याम किताब पढ़ रहा है।
बच्चे दिन भर खेलते रहे। बच्चे गेंद खेल रहे थे।
पानी में रस्सी ऐंठती है। नौकर रस्सी ऐंठ रहा है।
उसका सिर खुजलाता है। वह अपना सिर खुजलाता है।

   

रचना के आधार पर क्रिया के भेद

1- सामान्य क्रिया – वाक्य में मात्र एक क्रिया का प्रयोग हो तो उसे सामान्य क्रिया कहते हैं। जैसे-

  • बच्चे गए।
  • उन्होंने लिखा।
  • तुम चलो।
  • आप लिखें।
  • मोहन पढ़ा।
  • राधा गई।

2- संयुक्त क्रिया – दो या दो से अधिक धातुओं के मेल से बनी क्रियाएँ संयुक्त क्रियाएँ कहलाती हैं। जैसे –

  • वे चले गए।
  • बच्चे पढ़ने लगे।
  • वह पढ़ना चाहता है।
  • उसने पत्र पढ़ लिया है।
  • रमा स्कूल चली गई।
  • डाकू ने उसे मार डाला।

3- नामधातु क्रिया – मूल धातुओं से अलग, शब्दों के साथ प्रत्यय लगाकर बनने वाली क्रिया नामधातु क्रिया कहलाती है। नाम का अर्थ होता है – संज्ञा, सर्वनाम अथवा विशेषण। जब इनका प्रयोग धातु की तरह किया जाता है, तब यह नामधातु कहलाती है, जैसे हाथ संज्ञा है और इससे शब्द बना हथियाना।

  • लात से लतियाना
  • बात से बतियाना
  • चिकना से चिकनाना
  • झूठ से झुठलाना
  • रंग से रंगना
  • लज्जा से लजाना
  • अपना से अपनाना
  • साठ से सठियाना
  • गरम से गरमाना
  • खर्च से खर्चना
  • फटकार से फटकारना
  • दुःख से दुःखाना
  • शर्म से शर्माना
  • तोतला से तुतलाना

 

4- प्रेरणार्थक क्रिया – कर्ता स्वयं कार्य न करके किसी अन्य को करने की प्रेरणा देता है, उसे प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं। जैसे –

मँगवायी, लिखवाया, पिलवायी, चलवाया, निकलवाया

5- पूर्वकालिक क्रिया – मुख्य क्रिया से पूर्व सम्पन्न हो जाने क्रिया पूर्वकालिक क्रिया कहलाती है, तथा सदैव ‘कर’ के साथ प्रयोग में लाई जाती है। जैसे –

             वह टी0वी0 देखकर सो गया।

             मैं खाना खाकर चलूँगा।

             अच्छी तरह पढ़कर आना।

6- असमापिका क्रिया – ये क्रियाएँ वाक्य के अंत में प्रयुक्त न होकर संज्ञा, विशेषण व क्रिया विशेषण के रूप में प्रयुक्त होती है-

             बहता हुआ जल अच्छा लगता है।

             वह चलती हुई गाड़ी पर चढ़ गया ।

             मैं पढ़ाते-पढ़ाते थकता नहीं हॅूं।

             वह भागते हुए स्कूल पहुॅंचा।

7- तात्कालिक क्रिया – मुख्य क्रिया के तुरंत पहले हुई क्रिया तात्कालिक क्रिया कहलाती है। यह मूल क्रियापद में ‘ते ही’ लगाकर प्रयुक्त होती है। जैसे –

             पानी बरसते ही खेत लहलहा उठे।

             गोली लगते ही उसके प्राण निकल गये।

             वह मुझे देखते ही भाग गया।

8- अनुकरणात्मक क्रिया – अनुकरणात्मक धातुओं से बनी क्रियाएँ अनुकरणात्मक क्रियाएँ कहलाती हैं। जैसे –

             बड़-बड़ से बड़बड़ाना

             हिन-हिन से हिनहिनाना

             भिन्न-भिन्न से भिनभिनाना

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