कक्षा 10 » एक कहानी यह भी – मन्नू भंडारी

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एक कहानी यह भी
(पाठ का सार)

शब्दार्थ 

अहंवादी – घमंडी, अहंकारी। आक्रांत – कष्टग्रस्त, संकटग्रस्त। भग्नावशेष – खंडहर। वर्चस्व – दबदबा। विस्फारित – और अधिक फैलना (बढ़ाना)। महाभोज – मन्नू भंडारी का चर्चित उपन्यास। निहायत – बिल्कुल।  विवशता – मज़बूरी। आसन्न अतीत – थोड़ा पहले ही बिता भूतकाल। यशलिप्सा – सम्मान की चाह। अचेतन – बेहोश। शक्की – वहमी। बेपढ़ी – अनपढ़। ओहदा – पद। हाशिया – किनारा। यातना – कष्ट। लेखकीय – लेखन से सम्बंधित। गुंथी – पिरोई। भन्ना-भन्ना – बार बार क्रोधित होना। प्रवाह – गति। प्राप्य – प्राप्त। दायरा – सीमा। निषिद्ध – जिस पर रोक लगाई गई हो। वजूद – अस्तित्व। जमावड़े – बैठकें। शगल – शौक। अहमियत – महत्व। बाकायदा – विधिवत। दकियानूसी – पिछड़े। अंतर्विरोध – द्वंदव। रोब – दबदबा। भभकना – अत्यधिक क्रोधित होना। धुरी – अक्ष। छवि – सुंदरता। वर्चस्व – दबदबा चिर – सदा। प्रबल – बलवती। लू उतारना – गुस्सा करना। थू-थू – शर्मसार होना। मत मारी जाना – अक्ल काम ना करना। राजेंद्र – यहाँ हिदी के प्रमुख कथाकार एवं हंस पत्रिका के संपादक राजेंद्र यादव के बारे में कहा गया है। गुबार निकालना – मन की भड़ास निकालना। चपेट में आना – चंगुल में आना। आँख मूंदना – मृत्यु को प्राप्त होना। जड़ें जमाना – अपना प्रभाव जमाना। भट्टी में झोंकना – अस्तित्व मिटा देना। अंतरंग – आत्मिक। आह्वान – पुकार। महाभोज – मन्नू भंडारी का चर्चित उपन्यास है। दा साहब उसके प्रमुख पात्र हैं।

‘एक कहानी यह भी’ के संदर्भ में सबसे पहले तो हम यह जान लें कि मन्नू भंडारी ने पारिभाषिक अर्थ में कोई सिलसिलेवार आत्मकथा नहीं लिखी है। अपने आत्मकथ्य में उन्होंने उन व्यक्तियों और घटनाओं के बारे में लिखा है जो उनके लेखकीय जीवन से जुड़े हुए हैं। संकलित अंश में मन्नू जी के किशोर जीवन से जुड़ी घटनाओं के साथ उनके पिताजी और उनकी कॉलिज की प्राध्यापिका शीला अग्रवाल का व्यक्तित्व विशेष तौर पर उभरकर आया है, जिन्होंने आगे चलकर उनके लेखकीय व्यक्तित्व के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। लेखिका ने यहाँ बहुत ही खूबसूरती से साधारण लड़की के असाधारण बनने के प्रारंभिक पड़ावों को प्रकट किया है। सन् ’46-’47 की आजादी की आँधी ने मन्नू जी को भी अछूता नहीं छोड़ा। छोटे शहर की युवा होती लड़की ने आजादी की लड़ाई में जिस तरह भागीदारी की उसमें उसका उत्साह, ओज, संगठन-क्षमता और विरोध करने का तरीका देखते ही बनता है।

‘एक कहानी यह भी’ पाठ में लेखिका ने अपने जीवन के महत्वपूर्ण तथ्यों को उभारा है। लेखिका का जन्म मध्य प्रदेश के भानपुरा गाँव हुआ था परन्तु उनकी यादें अजमेर के ब्रह्मापुरी मोहल्ले के एक-दो मंजिला मकान में शुरू होती हैं। पहले लेखिका के पिता इंदौर में रहते थे, वहाँ संपन्न तथा प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। काँग्रेस से जुड़े होने के साथ वे समाज सेवा से भी जुड़े थे परन्तु किसी के द्वारा धोखा दिए जाने पर वे आर्थिक मुसीबत में फँस गए और अजमेर आ गए। अपने जमाने के अलग तरह के अंग्रेजी-हिंदी शब्दकोष को पूरा करने बाद भी जब उन्हें धन नही मिला तो सकरात्मकता घटती चली गयी। वे बेहद क्रोधी, जिद्दी और शक्की हो गए, जब तब वे अपना गुस्सा लेखिका के बिन पढ़ी माँ पर उतारने के साथ-साथ अपने बच्चों पर भी उतारने लगे।

पांच भाई-बहनों में लेखिका सबसे छोटी थीं। जब उसकी बड़ी बहन की शादी हुई तो लेखिका मात्र सात वर्ष की थी। कम उम्र में उनकी बड़ी बहन की शादी होने के कारण लेखिका के पास उनकी ज्यादा यादें नही थीं। लेखिका काली थीं तथा उनकी बड़ी बहन सुशीला के गोरी होने के कारण पिता हमेशा उनकी तुलना लेखिका से किया करते तथा उन्हें नीचा दिखाते। इस हीनता की भावना ने उनमें विशेष बनने की लगन उत्पन्न की परन्तु लेखकीय उपलब्धियाँ मिलने पर भी वह इससे उबार नही पाई। बड़ी बहन के विवाह तथा भाइयों के पढ़ने के लिए बाहर जाने पर पिता का ध्यान लेखिका पर केंद्रित हुआ। पिता ने उन्हें रसोई में समय ख़राब न कर देश दुनिया का हाल जानने के लिए प्रेरित किया। घर में जब कभी विभिन्न राजनितिक पार्टयों के जमावड़े होते और बहस होती तो लेखिका के पिता उन्हें उस बहस में  बैठाते जिससे उनके अंदर देशभक्ति की भावना जगी।

सन 1945 में सावित्री गर्ल्स कॉलेज के प्रथम वर्ष में हिंदी प्राध्यापिका शीला अग्रवाल ने लेखिका में न केवल हिंदी साहित्य के प्रति रूचि जगाई बल्कि साहित्य के सच को जीवन में उतारने के लिए प्रेरित भी किया। सन 1946-1947 के दिनों में लेखिका ने घर से बाहर निकलकर देशसेवा में सक्रीय भूमिका निभायी। हड़तालों, जुलूसों व भाषणों में भाग लेने से छात्राएँ भी प्रभावित होकर कॉलेजों का बहिष्कार करने लगीं। प्रिंसिपल ने कॉलेज से निकाल जाने से पहले पिता को बुलाकर शिकायत की तो वे क्रोधित होने के बजाय लेखिका के नेतृत्व शक्ति को देखकर गद्गद हो गए। एक बार जब पिता ने अजमेर के वयस्त चौराहे पर बेटी के भाषण की बात अपने पिछड़े मित्र से सुनी जिसने उन्हें मान-मर्यादा का लिहाज करने को कहा तो उनके पिता गुस्सा हो गए परन्तु रात को जब यही बात उनके एक और अभिन्न मित्र ने लेखिका की बड़ाई करते हुए कहा जिससे लेखिका के पिता ने गौरवान्वित महसूस किया।

सन 1947 के मई महीने में कॉलेज ने लेखिका समेत दो-तीन छात्राओं का प्रवेश थर्ड ईयर में हुड़दंग की कारण निषिद्ध कर दिया परन्तु लेखिका और उनके मित्रों ने बाहर भी इतना हुड़दंग मचाया की आखिर उन्हें प्रवेश लेना ही पड़ा। यह ख़ुशी लेखिका को उतना खुश न कर पायी जितना आजादी की ख़ुशी ने दी। उन्होंने इसे शताब्दी की सबसे बड़ी उपलब्धि बताया है।

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एक कहानी यह भी
(प्रश्न-उत्तर)

प्रश्न :- लेखिका के व्यक्तित्व पर किन-किन व्यक्तियों का किस रूप में प्रभाव पड़ा?

उत्तर :- लेखिका के व्यक्तित्व पर निम्नलिखित व्यक्तियों का प्रभाव पड़ा –

  • पिता का प्रभाव : पिता का नकारात्मक एवं सकारात्मक दोनों रूपों में प्रभाव पड़ा। वे लेखिका की तुलना उसकी बहन सुशीला से करते थे जिससे लेखिका के मन में हीन भावना भर गई। इसके साथ-साथ उन्होंने लेखिका को तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों से अवगत कराया तथा देश के प्रति जागरूक करते हुए सक्रिय भागीदारी निभाने के योग्य बनाया।
  • प्राध्यापिका शीला अग्रवाल का प्रभाव :  शीला अग्रवाल ने लेखिका की साहित्यिक समझ का दायरा बढ़ाया और अच्छी पुस्तकों को चुनकर पढ़ने में मदद की। इसके अलावा उन्होंने लेखिका में वह साहस एवं आत्मविश्वास भर दिया जिससे उसकी रगों में बहता खून लावे में बदल गया।

प्रश्न :- इस आत्मकथ्य में लेखिका के पिता ने रसोई को ‘भटियारखाना’ कहकर क्यों संबोधित किया है?

उत्तर :- लेखिका के पिता का मानना था कि रसोई में काम करने से लड़कियाँ चूल्हे-चौके तक सीमित रह जाती हैं। उनकी प्रतिभा उसी चूल्हे में जलकर नष्ट हो जाती है और वे आगे नहीं बढ़ पाती। इसलिए लेखिका के पिता ने रसोई को ‘भटियारखाना’ कहकर संबोधित किया है।

प्रश्न :- वह कौन-सी घटना थी जिसके बारे में सुनने पर लेखिका को न अपनी आँखों पर विश्वास हो पाया और न अपने कानों पर?

उत्तर :- लेखिका द्वारा राजनीतिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर भाग लेने कारण कॉलेज की प्रिंसिपल ने उसके पिता के पास पत्र भेजा जिसमें अनुशासनात्मक कार्यवाही करने की बात लिखी थी। यह पढ़कर पिता जी गुस्से में आ गए। जब कॉलेज की प्रिंसिपल ने बताया कि मन्नू के एक इशारे पर लड़कियाँ बाहर आ जाती हैं और नारे लगाती हुई प्रदर्शन करने लगती हैं तो पिता जी ने कहा कि यह तो देश की माँग है। वे गदगद होकर जब यह बात लेखिका की माँ को बता रहे थे तो इस बात पर लेखिका को विश्वास नहीं हो पाया।

प्रश्न :- लेखिका की अपने पिता से वैचारिक टकराहट को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर :- लेखिका के पिता लेखिका को विशिष्ट बनाना चाहते थे। लेकिन घर की चारदीवारी में। वे नहीं चाहते थे कि लेखिका सड़कों पर लड़कों के साथ नारे लगाए, जुलूस निकालकर हड़ताल करे। दूसरी ओर लेखिका को अपनी घर की चारदीवारी तक सीमित आज़ादी पसंद नहीं थी। यही दोनों के बीच टकराव का कारण था।

प्रश्न :- इस आत्मकथ्य के आधार पर स्वाधीनता आंदोलन के परिदृश्य का चित्रण करते हुए उसमें मन्नू जी की भूमिका को रेखांकित कीजिए।

उत्तर :-  स्वाधीनता आंदोलन के समय देशप्रेम एवं देशभक्ति की भावना अपने चरम पर थी। स्वतन्त्रता पाने के लिए जगह-जगह हड़तालें, प्रदर्शन, जुलूस, प्रभात फेरियाँ निकाली जा रही थीं। इस आंदोलन के प्रभाव से मन्नू भी अछूती नहीं थी। वह सड़क के चौराहे पर हाथ उठा-उठाकर भाषण देतीं, हड़तालें करवाती तथा अंग्रेजों के विरुद्ध विरोध प्रकट करने के लिए दुकानें बंद करवाती। इस तरह लेखिका इस आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभा रही थी।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न :- लेखिका ने बचपन में अपने भाइयों के साथ गिल्ली डंडा तथा पतंग उड़ाने जैसे खेल भी खेले कितु लड़की होने के कारण उनका दायरा घर की चारदीवारी तक सीमित था। क्या आज भी लड़कियों के लिए स्थितियाँ ऐसी ही हैं या बदल गई हैं, अपने परिवेश के आधार पर लिखिए।

उत्तर :- आज के समय में परिस्थितियाँ पूरी तरह बदल गई हैं। आज शहरी क्षेत्रों में लड़के-लड़कियों में भेद नहीं किया जाता है। वे पढ़ने-लिखने, खेलने-कूदने में लड़कों से पीछे नहीं हैं। जो खेल कभी लड़कियों के लिए निषिद्ध थे आज उनमें वे बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं। शहरों के साथ-साथ गाँवों में भी लड़कियों के प्रति जागरूकता बढ़ी है।

प्रश्न :- मनुष्य के जीवन में आस-पड़ोस का बहुत महत्त्व होता है। परंतु महानगरों में रहने वाले लोग प्रायः ‘पड़ोस कल्चर’ से वंचित रह जाते हैं। इस बारे में अपने विचार लिखिए।

उत्तर :- फ़्लैट कल्चर की संस्कृति के कारण लोग अपने फ्लैट तक ही सिमटकर रह गए हैं। वे पास-पड़ोस से कोई मतलब नहीं रखते हैं। लोग आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं। उन्हें एक-दूसरे के सुख-दुख से कोई लेना-देना नहीं है।

प्रश्न :- लेखिका द्वारा पढ़े गए उपन्यासों की सूची बनाइए और उन उपन्यासों को अपने पुस्तकालय में खोजिए।

उत्तर :-

  • शेखर एक जीवनी
  • सुनीता
  • नदी के द्वीप
  • चित्रलेखा
  • त्याग-पत्र

प्रश्न :- आप भी अपने दैनिक अनुभवों को डायरी में लिखिए।

उत्तर :- छात्र स्वयं करें।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न :- इस आत्मकथ्य में मुहावरों का प्रयोग करके लेखिका ने रचना को रोचक बनाया है। रेखांकित मुहावरों को ध्यान में रखकर कुछ और वाक्य बनाएँ-

(क) इस बीच पिता जी के एक निहायत दकियानूसी मित्र ने घर आकर अच्छी तरह पिता जी की लू उतारी।

उत्तर :- लू उतारी – देर से पहुँचने पर शिक्षक ने अच्छी तरह से छात्र की लू उतारी।

(ख) वे तो आग लगाकर चले गए और पिता जी सारे दिन भभकते रहे।

उत्तर :- आग लगाना – कुछ लोगों दूसरों के घरों में आग लगा कर मजे से सोते हैं।

(ग) बस अब यही रह गया है कि लोग घर आकर थू-थू करके चले जाएँ।

उत्तर :- थू-थू करना – प्रेम विवाह करने पर लोग थू-थू करने लगते हैं।

(घ) पत्र पढ़ते ही पिता जी आग-बबूला।

उत्तर :- आगबबूला  – परीक्षा में फेल होने पर पिताजी आग-बबूला हो गए।

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न :- इस आत्मकथ्य से हमें यह जानकारी मिलती है कि कैसे लेखिका का परिचय साहित्य की अच्छी पुस्तकों से हुआ। आप इस जानकारी का लाभ उठाते हुए अच्छी साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने का सिलसिला शुरू कर सकते हैं। कौन जानता है कि आप में से ही कोई अच्छा पाठक बनने के साथ-साथ अच्छा रचनाकार भी बन जाए।

उत्तर :- छात्र स्वयं करें।

प्रश्न :- लेखिका के बचपन के खेलों में लँगड़ी टाँग, पकड़म-पकड़ाई और काली-टीलो आदि शामिल थे। क्या आप भी यह खेल खेलते हैं। आपके परिवेश में इन खेलों के लिए कौन-से शब्द प्रचलन में हैं। इनके अतिरिक्त आप जो खेल खेलते हैं उन पर चर्चा कीजिए।

उत्तर :- छात्र स्वयं करें।

प्रश्न :- स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं की भी सक्रिय भागीदारी रही है। उनके बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए और उनमें से किसी एक पर प्रोजेक्ट तैयार कीजिए।

उत्तर :- छात्र स्वयं करें।

टेस्ट/क्विज

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