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जॉर्ज पंचम की नाक (पाठ का सार)
शब्दार्थ : बेसाख्ता – स्वाभाविक रूप से। नाजनीनों – कोमल स्त्रियॉं। लाटों – मूर्तियों। खैरख्वाहों – भला चाहने वाले। मशवरे – उपाय, राय। दारोमदार – कार्यभार, जिम्मा। अचकचाया – चौंक उठा।
जॉर्ज पंचम की नाक पाठ एक व्यंग्य है। जिसके माध्यम से कथाकार कमलेश्वर जी ने ऐसे लोगों पर कटाक्ष किया है जो अंग्रेजों की गुलामी से आजाद होने के बाद भी अपनी गुलाम मानसिकता से आजादी नही पा सके हैं। वे लोग आज भी अंग्रेजों को अपने आप से बेहतर व श्रेष्ठ मानते हैं और उनको प्रसन्न करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। लेकिन कमलेश्वर मानते हैं कि अपने देश के महान स्वतंत्रता सेनानियों की नाक, यहां तक कि शहीद बच्चों की नाकें भी जॉर्ज पंचम की नाक से अधिक सम्मानीय व लंबी है अर्थात अपने देश के महान स्वतंत्रता सेनानियों की इज्जत, उनका सम्मान जॉर्ज पंचम की इज्जत से कहीं ज्यादा है क्योंकि उन्होंने इस भारत को आजाद कराने के लिए अनेक कुर्बानियां दी थी।
हमारे समाज में नाक इज्जत, आत्मसम्मान का प्रतीक मानी जाती है। इतना ही नहीं नाक से जुड़े अनेक मुहावरे भी हिदी में प्रचलित हैं जिनमें ‘नाक कटना’ और ‘नाक काटना’ प्रमुख हैं। कमलेश्वर ने जॉर्ज पंचम की नाक कहानी में इन्हीं मुहावरों के अर्थ का विस्तार करते हुए इसका व्यंग्यात्मक उपयोग किया है । सारा व्यंग्य ‘नाक’ शब्द पर केंद्रित करते हुए लेखक ने अंग्रेजी हुकूमत से आजादी मिलने के बाद भी सत्ता से जुड़े विभिन्न प्रकार के लोगों की औपनिवेशक दौर की मानसिकता और विदेशी आकर्षण पर गहरी चोट की है। अपने कथ्य में सफल यह कहानी पत्रकारिता की सार्थकता को तो रेखाकित करती ही है साथ ही व्यावसायिक पत्रकारिता के विरुद्ध भी खड़ी दिखाई देती है। कथाकार के साथ-साथ कमलेश्वर का सफल पत्रकार का रूप भी यहाँ देखा जा सकता है।
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जॉर्ज पंचम की नाक
(प्रश्न-उत्तर)
प्रश्न – सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता या बदहवासी दिखाई देती है वह उनकी किस मानसिकता को दर्शाती है।
उत्तर – जॉर्ज पंचम की नाक पाठ एक व्यंग्य है। जिसके माध्यम से कथाकार कमलेश्वर जी ने ऐसे लोगों पर कटाक्ष किया है जो अंग्रेजों की गुलामी से आजाद होने के बाद भी अपनी गुलाम मानसिकता से आजादी नही पा सके हैं। वे लोग आज भी अंग्रेजों को अपने आप से बेहतर व श्रेष्ठ मानते हैं और उनको प्रसन्न करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।
प्रश्न – रानी एलिजाबेथ के दरजी की परेशानी का क्या कारण था? उसकी परेशानी को आप किस तरह तर्कसंगत ठहराएँगे?
उत्तर – दरज़ी रानी एलिज़ाबेथ के दौरे से परिचित था। रानी पाकिस्तान, भारत और नेपाल का दौरा करेंगी। दरज़ी परेशान था कि रानी कौन-कौन से देश में कैसी ड्रेस पहनेंगी। इस बात की उसे कोई जानकारी नहीं थी।
उसकी चिंता सही थी क्योंकि प्रशंसा की कामना हर व्यक्ति को होती है। उसका सोचना था कि रानी की वेषभूषा जितनी अच्छी होगी, उतनी ही दरजी की ख्याति होगी।
प्रश्न – ‘और देखते ही देखते नयी दिल्ली का काया पलट होने लगा’ – नयी दिल्ली के काया पलट के लिए क्या-क्या प्रयत्न किए गए होंगे?
उत्तर – नयी दिल्ली के काया पलट के लिए निम्नलिखित प्रयत्न किए गए होंगे –
- गंदगी के ढेरों को हटाया गया होगा।
- सड़कों सरकारी इमारतों और पर्यटन-स्थलों को रंगा-पोता और सजाया-सँवारा गया होगा।
- इमारतों और पर्यटन-स्थलों पर बिजली का प्रकाश किया गया होगा।
- बंद पड़े फव्वारे चलाए गए होंगे।
- भीड़भाड़ वाली जगहों पर ट्रैफिक पुलिस का विशेष प्रबंध किया गया होगा।
प्रश्न – आज की पत्रकारिता में चर्चित हस्तियों के पहनावे और खान-पान संबंधी आदतों आदि के वर्णन का दौर चल पड़ा है-
(क) इस प्रकार की पत्रकारिता के बारे में आपके क्या विचार हैं?
उत्तर –
(क) आज की पत्रकारिता में चर्चित हस्तियों के पहनावे, खान-पान संबंधी आदतों का वर्णन करने का दौर चल पड़ा है। मेरे विचार में इस प्रकार की पत्रकारिता के लिए इस तरह की बातों को इकट्ठा करना और बार-बार दोहराकर महत्त्वपूर्ण बना देना पत्रकारिता का प्रशंसनीय कार्य नहीं है। पत्रकारिता में ऐसे व्यक्तियों के चरित्र को भी महत्त्व दे दिया जाता है जो अपने चरित्र पर तो कभी खरे उतरते नहीं हैं पर चर्चा में बने रहने के कारण असहज कार्य करते हैं जो पत्रों में छा जाते हैं।
(ख) इस तरह की पत्रकारिता आम जनता विशेषकर युवा पीढ़ी पर क्या प्रभाव डालती है?
उत्तर – इस तरह की पत्रकारिता आम जनता विशेषकर युवा पीढ़ी पर बुरा प्रभाव डालती हैं। उन चर्चित व्यक्तियों की नकल करने का प्रयास, उन्हीं की संस्कृति में जीने की बढ़ती हुई इच्छाएँ युवा पीढ़ी के मन में बलवती रूप धारण कर लेती हैं। युवा पीढ़ी अपने लक्ष्य को भूल व्यर्थ की सजावट में समय और धन खर्च करने लगती है और कई बार गलत रास्तों पर भटक जाती है।
प्रश्न – जॉर्ज पंचम की लाट की नाक को पुनः लगाने के लिए मूर्तिकार ने क्या-क्या यत्न किए?
उत्तर – जॉर्ज पंचम की लाट की नाक को पुनः लगाने के लिए मूर्तिकार ने निम्नलिखित यत्न किए –
- उसने सबसे पहले उस पत्थर को खोजने का प्रयत्न किया जिससे वह मूर्ति बनी थी।
- इसके लिए पहले उसने सरकारी फाइलें ढूँढवाईं।
- फिर भारत के सभी पहाड़ों और पत्थर की खानों का दौरा किया।
- फिर भारत के सभी महापुरुषों की मूर्तियों का निरीक्षण करने के लिए पूरे देश का दौरा किया।
- अंत में जीवित व्यक्ति की नाक काटकर जॉर्ज पंचम की मूर्ति पर लगा दी।
प्रश्न – प्रस्तुत कहानी में जगह-जगह कुछ ऐसे कथन आए हैं जो मौजूदा व्यवस्था पर करारी चोट करते हैं। उदाहरण के लिए ‘फाइलें सब कुछ हजम कर चुकी हैं।’ ‘सब हुक्कामों ने एक दूसरे की तरफ़ ताका।’ पाठ में आए ऐसे अन्य कथन छाँटकर लिखिए।
उत्तर –
- शंख इंग्लैंड में बज रहा थाए गूंज हिंदुस्तान में आ रही थी।
- दिल्ली में सब था, सिर्फ जॉर्ज पंचम की लाट पर नाक नहीं थी।
- गश्त लगती रही और लाट की नाक चली गई।
- देश के खैरख्वाहों की मीटिंग बुलाई गई।
- पुरातत्व विभाग की फाइलों के पेट चीरे गए पर कुछ पता नहीं चला।
प्रश्न – नाक मान-सम्मान व प्रतिष्ठा का द्योतक है। यह बात पूरी व्यंग्य रचना में किस तरह उभरकर आई है? लिखिए।
उत्तर – हमारे समाज में नाक इज्जत, आत्मसम्मान का प्रतीक मानी जाती है। इतना ही नहीं नाक से जुड़े अनेक मुहावरे भी हिदी में प्रचलित हैं जिनमें ‘नाक कटना’ और ‘नाक काटना’ प्रमुख हैं। कमलेश्वर ने जॉर्ज पंचम की नाक कहानी में इन्हीं मुहावरों के अर्थ का विस्तार करते हुए इसका व्यंग्यात्मक उपयोग किया है । सारा व्यंग्य ‘नाक’ शब्द पर केंद्रित करते हुए लेखक ने अंग्रेजी हुकूमत से आजादी मिलने के बाद भी सत्ता से जुड़े विभिन्न प्रकार के लोगों की औपनिवेशक दौर की मानसिकता और विदेशी आकर्षण पर गहरी चोट की है।
प्रश्न – जॉर्ज पंचम की लाट पर किसी भी भारतीय नेता, यहाँ तक कि भारतीय बच्चे की नाक फिट न होने की बात से लेखक किस ओर संकेत करना चाहता है।
उत्तर – जॉर्ज पंचम की लाट पर किसी भी भारतीय नेता, यहाँ तक कि भारतीय बच्चे की नाक फिट न होने की बात से लेखक किस ओर संकेत करना चाहता है कि अपने देश के महान स्वतंत्रता सेनानियों की नाक, यहां तक कि शहीद बच्चों की नाकें भी जॉर्ज पंचम की नाक से अधिक सम्मानीय व लंबी है अर्थात अपने देश के महान स्वतंत्रता सेनानियों की इज्जत, उनका सम्मान जॉर्ज पंचम की इज्जत से कहीं ज्यादा है क्योंकि उन्होंने इस भारत को आजाद कराने के लिए अनेक कुर्बानियां दी थी।
प्रश्न – अखबारों ने जिंदा नाक लगने की खबर को किस तरह से प्रस्तुत किया?
उत्तर – अखबारों ने जॉर्ज पंचम की नाक की जगह जिंदा नाक लगाने की खबर को बड़ी कुशलता से छिपा लिया। उन्होंने बस इतना ही छापा-“नाक का मसला हल हो गया है। राजपथ पर इंडिया गेट के पास वाली जॉर्ज पंचम की लाट के नाक लग रही है।”
प्रश्न – ‘नयी दिल्ली में सब था—-सिर्फ नाक नहीं थी।’ इस कथन के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?
उत्तर – ‘नई दिल्ली में सब था —- सिर्फ नाक नहीं थी’ – इस कथन के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है कि भारत के स्वतंत्र होने पर वह सर्वथा संपन्न हो चुका थाए कहीं भी विपन्नता नहीं थी। अभाव था तो केवल आत्मसम्मान और स्वाभिमान का। अंग्रेजों से आजाद होने पर भी देश के नेता और सरकारी-तंत्र गुलाम मानसिकता से मुक्त नहीं हो सके थे। अंग्रेज का नाम आते ही हीनता का भाव उनके मन में उत्पन्न होता था कि ये हमारे शासक रहे हैं।
प्रश्न – जॉर्ज पंचम की नाक लगने वाली खबर के दिन अखबार चुप क्यों थे?
उत्तर – ब्रिटिश सरकार को दिखाने के लिए किसी जीवित व्यक्ति की नाक जॉर्ज पंचम की लाट पर लगाना किसी को पसंद नहीं आया। इसके विरोध में सभी अखबार चुप रहें।
टेस्ट/क्विज
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