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नौबतखाने में इबादत (पाठ का सार)
शब्दार्थ :- ड्योढ़ी – दहलीज। नौबतखाना – प्रवेश द्वार के ऊपर मंगल ध्वनि बजाने का स्थान।रियाज – अभ्यास। माफ़र्त – द्वारा। शृंगी – सींग का बना वाद्ययंत्र। मुरछंग – एक प्रकार का लोक वाद्ययंत्र। नेमत – ईश्वर की देन, सुख, धन दौलत। सजदा – माथा टेकना। इबादत – उपासना। तासीर – गुण, प्रभाव, असर। श्रुति – शब्दध्वनि। ऊहापोह – उलझन, अनिश्चितता। तिलिस्म – जादू। गमक – खुशबू, सुगंध। अजादारी – मातम करना, दुख मनाना। बदस्तूर – कायदे से, तरीके से। नैसर्गिक – स्वाभाविक, प्राकृतिक। दाद – शाबासी। तालीम – शिक्षा। अदब – कायदा, साहित्य।अलहमदुलिल्लाह – तमाम तारीफ़ ईश्वर के लिए। जिजीविषा – जीने की इच्छा शिरकत – शामिल होना। सम – ताल का एक अंग, संगीत में वह स्थान जहाँ लय की समाप्ति और ताल का आरंभ होता है।। श्रुति – एक स्वर से दूसरे स्वर पर जाते समय का अत्यंत सूक्ष्म स्वरांश। वाद्ययंत्र – हमारे देश में वाद्य यंत्रें की मुख्य चार श्रेणियाँ मानी जाती हैं-तत-वितत – तार वाले वाद्य-वीणा, सितार, सारंगी, सरोद। सुषिर – फूँक कर बजाए जाने वाले वाद्य-बाँसुरी, शहनाई, नागस्वरम्, बीन। घनवाद्य – आघात से बजाए जाने वाले धातु वाद्य-झाँझ, मंजीरा, घुँघरू। अवनद्ध – चमड़े से मढ़े वाद्य-तबला, ढोलक, मृदंग आदि।
नौबतखाने में इबादत प्रसिद्ध शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ पर रोचक शैली में लिखा गया व्यक्ति-चित्र है। यतींद्र मिश्र ने बिस्मिल्ला खाँ का परिचय तो दिया ही है, साथ ही उनकी रुचियों, उनके अंतर्मन की बुनावट, संगीत की साधना और लगन को संवेदनशील भाषा में व्यक्त किया है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया गया है कि संगीत एक आराधना है। इसका विधि-विधान है। इसका शास्त्र है, इस शास्त्र से परिचय आवश्यक है, सिर्फ़ परिचय ही नहीं उसका अभ्यास जरूरी है और अभ्यास के लिए गुरु-शिष्य परंपरा जरूरी है, पूर्ण तन्मयता जरूरी है, धैर्य जरूरी है, मंथन जरूरी है। वह लगन और धैर्य बिस्मिल्ला खाँ में रहा है। तभी 80 वर्ष की उम्र में भी उनकी साधना चलती रही है। यतींद्र मिश्र संगीत की शास्त्रीय परंपरा के गहरे जानकार हैं, इस पाठ में इसकी कई अनुगूँजें हैं जो पाठ को बार-बार पढ़ने के लिए आमंत्रित करती हैं। भाषा सहज, प्रवाहमयी तथा प्रसंगों और संदर्भों से भरी हुई है।
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नौबतखाने में इबादत (प्रश्न-उत्तर)
प्रश्न :- शहनाई की दुनिया में डुमराँव को क्यों याद किया जाता है?
उत्तर :- शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं। शहनाई बजाने के लिए रीड का प्रयोग होता है। रीड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है। रीड, नरकट (एक प्रकार की घास) से बनाई जाती है जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है। इतनी ही महत्ता है इस समय डुमराँव की जिसके कारण शहनाई जैसा वाद्य बजता है। फिर अमीरुद्दीन जो हम सबके प्रिय हैं, अपने उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ साहब हैं। उनका जन्म-स्थान भी डुमराँव ही है। इनके परदादा उस्ताद सलार हुसैन खाँ डुमराँव निवासी थे।
प्रश्न :- बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा गया है?
उत्तर :- मंगलध्वनि के नायक बिस्मिल्ला खाँ साहब अस्सी बरस से सुर माँग रहे हैं। सच्चे सुर की नेमत। अस्सी बरस की पाँचों वक्त वाली नमाज इसी सुर को पाने की प्रार्थना में खर्च हो जाती है। लाखों सजदे, इसी एक सच्चे सुर की इबादत में खुदा के आगे झुकते हैं। वे नमाज के बाद सजदे में गिड़गिड़ाते हैं-‘मेरे मालिक एक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ।’
प्रश्न :- सुषिर-वाद्यों से क्या अभिप्राय है? शहनाई को ‘सुषिर वाद्यों में शाह’ की उपाधि क्यों दी गई होगी?
उत्तर :- फूँक कर बजाय जाने वाले वाद्य यंत्रों को ‘सुषिर-वाद्य’ कहा जाता है। वैदिक इतिहास में शहनाई का कोई उल्लेख नहीं मिलता। इसे संगीत शास्त्रंतर्गत ‘सुषिर-वाद्यों’ में गिना जाता है। अरब देश में फूँककर बजाए जाने वाले वाद्य जिसमें नाड़ी (नरकट या रीड) होती है, को ‘नय’ बोलते हैं। शहनाई को ‘शाहेनय’ अर्थात् ‘सुषिर वाद्यों में शाह’ की उपाधि दी गई है। सोलहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में तानसेन के द्वारा रची बंदिश, जो संगीत राग कल्पद्रुम से प्राप्त होती है, में शहनाई, मुरली, वंशी, शृंगी एवं मुरछंग आदि का वर्णन आया है।
प्रश्न :-आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) ‘फटा सुर न बख्शें। लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल सी जाएगी।’
आशय :- बिस्मिल्ला खां ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि उनकी लूंगी भले ही फट जाए परंतु शहनाई का स्वर कभी न फटे, वह सदैव पूर्ण एवं सच्चा बना रहे। लुंगी का क्या है वह आज फटी है तो कभी न कभी दोबारा सील जाएगी। सुर फटने के बाद उसमें सुधार नहीं किया जा सकता।
(ख) ‘मेरे मालिक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ।’
उत्तर :- बिस्मिल्ला खाँ जब भी नमाज पढ़ते थे तो खुदा से सच्चे सुर की प्रार्थना करते थे। वे चाहते थे कि उनके सुर के प्रभाव से भाव-विभोर होकर प्रत्येक आँख से सच्चे मोतियों के समान चमकते हुए आँसू बहने लगे।
प्रश्न :- काशी में हो रहे कौन-से परिवर्तन बिस्मिल्ला खाँ को व्यथित करते थे?
उत्तर :- अब संगतियों के लिए गायकों के मन में कोई आदर नहीं रहा। अब घंटों रियाज को कौन पूछता है? कहाँ वह कजली, चैती और अदब का जमाना? सचमुच हैरान करती है काशी-पक्का महाल से जैसे मलाई बरफ़ गया, संगीत, साहित्य और अदब की बहुत सारी परंपराएँ लुप्त हो गईं। एक सच्चे सुर साधक और सामाजिक की भाँति बिस्मिल्ला खाँ साहब को इन सबकी कमी खलती है।
प्रश्न :- पाठ में आए किन प्रसंगों के आधार पर आप कह सकते हैं कि-
(क) बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे।
उत्तर :- अपने मजहब के प्रति अत्यधिक समर्पित उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की काशी विश्वनाथ जी के प्रति भी अपार श्रद्धा थी। वे अल्लाह की इबादत भैरवी में करते थे। नाम अल्लाह का है राग तो भैरव है। वे इन दोनों को एक मानकर ही साधते थे। इन प्रसंगों के आधार पर कह सकते हैं कि बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे।
(ख) वे वास्तविक अर्थों में एक सच्चे इनसान थे।
उत्तर :- निम्नलिखित आधार पर कह सकते हैं कि बिस्मिल्ला खाँ सच्चे इंसान थे –
- बिस्मिल्ला खाँ पहनने ओढ़ने का दिखावा नहीं करते थे।
- उन्होंने अपने हुनर को हमेशा भगवान की देन माना।
- आवश्यकता के अनुसार ही शहनाई बजाने की फीस उतनी ही लेते थे।
- उन्हें काशी से बहुत लगाव था। वे कहते थे यहाँ हमारी कई पुश्तों ने शहनाई बजाई है। जैसी निष्ठा उनकी शहनाई वादन के प्रति थी वैसी ही काशी के प्रति भी।
- भारतरत्न जैसा महान पुरस्कार मिलना साबित करता है कि वे सच्चे इनसान थे।
प्रश्न :- बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से जुड़ी उन घटनाओं और व्यक्तियों का उल्लेख करें जिन्होंने उनकी संगीत साधना को समृद्ध किया?
उत्तर :- बिस्मिल्ला खाँ को नौबतखाने रियाज के लिए बालाजी मंदिर तक जाना पड़ता था। यह रास्ता रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहाँ से होकर जाता है। इस रास्ते न जाने कितने तरह के बोल-बनाव कभी ठुमरी, कभी टप्पे, कभी दादरा के मार्फत ड्योढ़ी तक पहुँचते रहते हैं। रसूलन और बतूलन जब गाती हैं तब अमीरुद्दीन को खुशी मिलती है। अपने ढेरों साक्षात्कारों में बिस्मिल्ला खाँ साहब ने स्वीकार किया है कि उन्हें अपने जीवन के आरंभिक दिनों में संगीत के प्रति आसक्ति इन्हीं गायिका बहिनों को सुनकर मिली है।
अमीरुद्दीन जब चार साल का रहा होगा तब छुपकर नाना को शहनाई बजाते हुए सुनता था। जब मामू अलीबख्श खाँ शहनाई बजाते हुए सम पर आएँ, तब धड़ से एक पत्थर जमीन पर मारता था।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न :- बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताओं ने आपको प्रभावित किया?
उत्तर :- बिस्मिल्ला खां के व्यक्तित्व की अनेक विशेषताएं हैं जिन्होंने हमें प्रभावित किया है :-
- अपने लक्ष्य के प्रति समर्पण की भावना।
- अपने जीवन में संगीत को ही सबसे बड़ा बनाना।
- भारतरत्न जैसे पुरस्कारों से पुरस्कृत होने के बाद भी किसी तरह की कोई बाहरी दिखावा न करना।
- हिंदू मुस्लिम संप्रदाय में एकता बनाए रखने की भावना।
प्रश्न :- मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ के जुड़ाव को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :- बिस्मिल्ला खाँ और शहनाई के साथ जिस एक मुस्लिम पर्व का नाम जुड़ा हुआ है, वह मुहर्रम है। मुहर्रम का महीना वह होता है जिसमें शिया मुसलमान हजरत इमाम हुसैन एवं उनके कुछ वंशजों के प्रति अजादारी (शोक मनाना) मनाते हैं। पूरे दस दिनों का शोक। वे बताते हैं कि उनके खानदान का कोई व्यक्ति मुहर्रम के दिनों में न तो शहनाई बजाता है, न ही किसी संगीत के कार्यक्रम में शिरकत ही करता है। आठवीं तारीख उनके लिए खास महत्त्व की है। इस दिन खाँ साहब खड़े होकर शहनाई बजाते हैं व दालमंडी में फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल रोते हुए, नौहा बजाते जाते हैं। इस दिन कोई राग नहीं बजता। राग-रागिनियों की अदायगी का निषेध है इस दिन। उनकी आँखें इमाम हुसैन और उनके परिवार के लोगों की शहादत में नम रहती हैं। अजादारी होती है। हजारों आँखें नम। हजार बरस की परंपरा पुनर्जीवित। मुहर्रम संपन्न होता है। एक बड़े कलाकार का सहज मानवीय रूप ऐसे अवसर पर आसानी से दिख जाता है।
प्रश्न :- बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे, तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर :- अस्सी वर्ष की आयु में भी वे सच्चे सुर के लिए खुदा से प्रार्थना करते रहे। वे शहनाई बजाने का घंटों रियाज़ करते रहते थे। उन्हें कुलसुम नामक हलवाईन की कचौड़ियाँ संगीतमय लगती थी। जब कचौड़ी घी में डाली जाती थी, उस समय छन्न से उठने वाली आवाज में भी उन्हें सारे आरोह अवरोह दिख जाते थे। इससे ज्ञात होता है कि बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे
भाषा-अध्ययन
प्रश्न :-निम्नलिखित मिश्र वाक्यों के उपवाक्य छाँटकर भेद भी लिखिए-
(क) यह जरूर है कि शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं।
संज्ञा उपवाक्य – कि शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं।
(ख) रीड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है।
विशेषण उपवाक्य – जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है।
(ग) रीड नरकट से बनाई जाती है जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है।
विशेषण उपवाक्य – जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है।
(घ) उनको यकीन है, कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा।
संज्ञा उपवाक्य – कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा।
(घ) हिरन अपनी ही महक से परेशान पूरे जंगल में उस वरदान को खोजता है जिसकी गमक उसी में समाई है।
विशेषण उपवाक्य – जिसकी गमक उसी में समाई है।
(च) खाँ साहब की सबसे बड़ी देन हमें यही है कि पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा।
संज्ञा उपवाक्य – कि पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा।
प्रश्न :- निम्नलिखित वाक्यों को मिश्रित वाक्यों में बदलिए-
(क) इसी बालसुलभ हँसी में कई यादें बंद हैं।
मिश्रित वाक्य – यही वह बालसुलभ हँसी है जिसमें कई यादें बंद हैं।
(ख) काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है।
मिश्रित वाक्य – काशी वह स्थान है जहाँ संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है।
(ग) धत्! पगली ई भारतरत्न हमको शहनईया पे मिला है, लुंगिया पे नाहीं।
मिश्रित वाक्य –धत्! पगली ई भारतरत्न हमको लुंगिया पे नाहीं, बल्कि शहनईया पे मिला है।
(घ) काशी का नायाब हीरा हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।
मिश्रित वाक्य – यह काशी का वह नायाब हीरा है जो हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।
पाठेतर सक्रियता
प्रश्न :- कल्पना कीजिए कि आपके विद्यालय में किसी प्रसिद्ध संगीतकार के शहनाई वादन का कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम की सूचना देते हुए बुलेटिन बोर्ड के लिए नोटिस बनाइए।
उत्तर :- छात्र स्वयं करें।
प्रश्न :- आप अपने मनपसंद संगीतकार के बारे में एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर :- छात्र स्वयं करें।
प्रश्न :- हमारे साहित्य, कला, संगीत और नृत्य को समृद्ध करने में काशी (आज के वाराणसी) के योगदान पर चर्चा कीजिए।
उत्तर :- छात्र स्वयं करें।
प्रश्न :- काशी का नाम आते ही हमारी आँखों के सामने काशी की बहुत-सी चीजें उभरने लगती हैं, वे कौन-कौन सी हैं?
उत्तर :- छात्र स्वयं करें।
टेस्ट/क्विज
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