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बालगोबिन भगत (पाठ का सार)
बालगोबिन भगत मँझोले कद के गोरे-चिट्टे आदमी थे। साठ से ऊपर के ही होंगे। बाल पक गए थे। लंबी दाढ़ी या जटाजूट तो नहीं रखते थे, कितु हमेशा उनका चेहरा सफ़ेद बालों से ही जगमग किए रहता। कपड़े बिलकुल कम पहनते। कमर में एक लंगोटी-मात्र और सिर में कबीरपंथियों की-सी कनफटी टोपी।
वह सदैव खरी-खरी बातें कहते थे। वे झूठ नहीं बोलते थे। वे किसी की वस्तु को बिना पूछे प्रयोग नहीं करते थे। वे खामखाह किसी से झगड़ा नहीं करते थे। वे अत्यंत साधारण वेशभूषा में रहते थे। वे अपनी उपज को कबीरपंथी मठ पर चढ़ावा के रूप में दे देते थे। वहाँ से जो कुछ प्रसाद रूप में मिलता था उसी में परिवार का निर्वाह करते थे।
बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के लिए कुतूहल का कारण थी। इसके निम्न कारण थे – वे अत्यंत सादगी, सरलता और नि:स्वार्थ भाव से जीवन जीते थे। उनके पास जो कुछ था, उसी में काम चलाया करते थे। वे किसी की वस्तु को बिना पूछे उपयोग में न लाते थे। इस नियम का वे इतना बारीकी से पालन करते कि दूसरे के खेत में शौच के लिए भी न बैठते थे। इसके अलावा दाँत किटकिटा देने वाली सरदियों की भोर में खुले आसमान के नीचे पोखरे पर बैठकर गाना, उससे पहले दो कोस जाकर नदी स्नान करने जैसे कार्य लोगों के आश्चर्य का कारण थी।
आसाढ़ की रिमझिम में समूचा गाँव खेतों में उतर पड़ता है। कहीं हल चल रहे हैं कहीं रोपनी हो रही है। धान के पानी-भरे खेतों में बच्चे उछल रहे हैं। औरतें कलेवा लेकर मेंड़ पर बैठी हैं। ठंडी पुरवाई चल रही। ऐसे ही समय आपके कानों में एक स्वर-तरंग झंकार-सी कर उठी। यह क्या है-यह कौन है! यह पूछना न पड़ेगा।उनका कंठ एक-एक शब्द को संगीत के जीने पर चढ़ाकर कुछ को ऊपर, स्वर्ग की ओर भेज रहा है। बच्चे खेलते हुए झूम उठते हैं मेंड़ पर खड़ी औरतों के होंठ काँप उठते हैं, वे गुनगुनाने लगती हैं हलवाहों के पैर ताल से उठने लगते हैं रोपनी करनेवालों की अँगुलियाँ एक अजीब क्रम से चलने लगती हैं।
भगत ने अपने पुत्र की मृत्यु पर दूसरे लोगों की तरह शोक नहीं किया। वे मृत बेटे के सामने बैठकर मस्ती और तल्लीनता में कबीर के पद गाते रहे। वे मृत्यु को आत्मा-परमात्मा का मिलन मानकर इससे दुखी होने के बजाय खुश होने का समय मान रहे थे। वे अपनी पुत्रवधू को भी आनंदोत्सव मनाने के लिए कहते जा रहे थे।उन्होंने पुत्र को स्वयं मुखाग्नि न देकर अपनी पुत्रवधू से मुखाग्नि दिलवायी।उन्होंने विधवा पुनर्विवाह के समर्थन में कदम उठाते हुए उसके भाई को कहा कि इसको साथ ले जाकर दुबारा विवाह करवा देना। भगत की पुत्रवधू उन्हें इसलिए अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी क्योंकि भगत के इकलौते पुत्र की मृत्यु के बाद भगत अकेले पड़ गए थे। वह वृद्धावस्था में अकेले पड़े भगत को रोटियाँ बनाकर देना चाहती थी और उनकी सेवा करके अपना जीवन बिताना चाहती थी।
बालगोबिन भगत की मौत उन्हीं के अनुरूप हुई। वह हर वर्ष गंगा-स्नान करने जाते। अब बुढ़ापा आ गया था, कितु टेक वही जवानी वाली। इस बार लौटे तो तबीयत कुछ सुस्त थी। खाने-पीने के बाद भी तबीयत नहीं सुधरी, थोड़ा बुखार आने लगा। कितु नेम-व्रत तो छोड़नेवाले नहीं थे। वही दोनों जून गीत, स्नानध्यान, खेतीबारी देखना। दिन-दिन छीजने लगे। लोगों ने नहाने-धोने से मना किया, आराम करने को कहा। कितु, हँसकर टाल देते रहे। उस दिन भी संध्या में गीत गाए, कितु मालूम होता जैसे तागा टूट गया हो। भोर में लोगों ने गीत नहीं सुना, जाकर देखा तो बालगोबिन भगत नहीं रहे सिर्फ उनका पंजर पड़ा है।
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बालगोबिन भगत
(प्रश्न-उत्तर)
प्रश्न – खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे?
उत्तर –
- वह सदैव खरी-खरी बातें कहते थे।
- वे झूठ नहीं बोलते थे।
- वे किसी की वस्तु को बिना पूछे प्रयोग नहीं करते थे।
- वे खामखाह किसी से झगड़ा नहीं करते थे।
- वे अत्यंत साधारण वेशभूषा में रहते थे।
- वे अपनी उपज को कबीरपंथी मठ पर चढ़ावा के रूप में दे देते थे। वहाँ से जो कुछ प्रसाद रूप में मिलता था उसी में परिवार का निर्वाह करते थे।
प्रश्न – भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी?
उत्तर – भगत की पुत्रवधू उन्हें इसलिए अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी क्योंकि भगत के इकलौते पुत्र की मृत्यु के बाद भगत अकेले पड़ गए थे। वह वृद्धावस्था में अकेले पड़े भगत को रोटियाँ बनाकर देना चाहती थी और उनकी सेवा करके अपना जीवन बिताना चाहती थी।
प्रश्न – भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस तरह व्यक्त कीं?
उत्तर – भगत ने अपने पुत्र की मृत्यु पर दूसरे लोगों की तरह शोक नहीं किया। वे मृत बेटे के सामने बैठकर मस्ती और तल्लीनता में कबीर के पद गाते रहे। वे मृत्यु को आत्मा-परमात्मा का मिलन मानकर इससे दुखी होने के बजाय खुश होने का समय मान रहे थे। वे अपनी पुत्रवधू को भी आनंदोत्सव मनाने के लिए कहते जा रहे थे।
प्रश्न – भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूषा का अपने शब्दों में चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर – बालगोबिन भगत मँझोले कद के गोरे-चिट्टे आदमी थे। साठ से ऊपर के ही होंगे। बाल पक गए थे। लंबी दाढ़ी या जटाजूट तो नहीं रखते थे, कितु हमेशा उनका चेहरा सफ़ेद बालों से ही जगमग किए रहता। कपड़े बिलकुल कम पहनते। कमर में एक लंगोटी-मात्र और सिर में कबीरपंथियों की-सी कनफटी टोपी।
प्रश्न – बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण क्यों थी?
उत्तर – बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के लिए कुतूहल का कारण थी। इसके निम्न कारण थे –
- वे अत्यंत सादगी, सरलता और नि:स्वार्थ भाव से जीवन जीते थे।
- उनके पास जो कुछ था, उसी में काम चलाया करते थे।
- वे किसी की वस्तु को बिना पूछे उपयोग में न लाते थे।
- इस नियम का वे इतना बारीकी से पालन करते कि दूसरे के खेत में शौच के लिए भी न बैठते थे।
- इसके अलावा दाँत किटकिटा देने वाली सरदियों की भोर में खुले आसमान के नीचे पोखरे पर बैठकर गाना, उससे पहले दो कोस जाकर नदी स्नान करने जैसे कार्य लोगों के आश्चर्य का कारण थी।
प्रश्न – पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर –
बालगोबिन भगत मधुर कंठ से इस तरह गाते थे कि कबीर के सीधे-सादे पद भी उनके मुँह से निकलकर सजीव हो उठते थे। उनके गीत सुनकर बच्चे झूम उठते थे, स्त्रियों के होंठ गुनगुनाने लगते थे और काम करने वालों के कदम लय-ताल से उठने लगते थे। हलवाहों के पैर ताल से उठने लगते हैं रोपनी करनेवालों की अँगुलियाँ एक अजीब क्रम से चलने लगती हैं। इसके अलावा भादों की अर्धरात्रि में उनका गान सुनकर उसी तरह चौंक उठते थे, जैसे अँधेरी रात में बिजली चमकने से लोग चौंक कर सजग हो जाते हैं।
प्रश्न – कुछ मार्मिक प्रसंगों के आधार पर यह दिखाई देता है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। पाठ के आधार पर उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। यह पाठ के निम्नलिखित मार्मिक प्रसंगों से ज्ञात होता है-
- उन्होंने इकलौते पुत्र की मृत्यु पर न शोक मनाया और न उसके क्रिया-कर्म को ज्यादा तूल दिया।
- उन्होंने पुत्र को स्वयं मुखाग्नि न देकर अपनी पुत्रवधू से मुखाग्नि दिलवायी।
- उन्होंने विधवा पुनर्विवाह के समर्थन में कदम उठाते हुए उसके भाई को कहा कि इसको साथ ले जाकर दुबारा विवाह करवा देना।
- वे साधुओं के संबल लेने और गृहस्थों के भिक्षा माँगने का विरोध करते हुए तीस कोस दूर गंगा स्नान करने जाते और उपवास रखते हुए यह यात्रा पूरी करते थे।
प्रश्न – धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर लहरियाँ किस तरह चमत्कृत कर देती थीं? उस माहौल का शब्द-चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर – आसाढ़ की रिमझिम में समूचा गाँव खेतों में उतर पड़ता है। कहीं हल चल रहे हैं कहीं रोपनी हो रही है। धान के पानी-भरे खेतों में बच्चे उछल रहे हैं। औरतें कलेवा लेकर मेंड़ पर बैठी हैं। ठंडी पुरवाई चल रही। ऐसे ही समय आपके कानों में एक स्वर-तरंग झंकार-सी कर उठी। यह क्या है-यह कौन है! यह पूछना न पड़ेगा।उनका कंठ एक-एक शब्द को संगीत के जीने पर चढ़ाकर कुछ को ऊपर, स्वर्ग की ओर भेज रहा है। बच्चे खेलते हुए झूम उठते हैं मेंड़ पर खड़ी औरतों के होंठ काँप उठते हैं, वे गुनगुनाने लगती हैं हलवाहों के पैर ताल से उठने लगते हैं रोपनी करनेवालों की अँगुलियाँ एक अजीब क्रम से चलने लगती हैं।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न – पाठ के आधार पर बताएँ कि बालगोबिन भगत की कबीर पर श्रद्धा किन-किन रूपों में प्रकट हुई है?
उत्तर –
- वह सदैव खरी-खरी बातें कहते थे।
- वे झूठ नहीं बोलते थे।
- वे किसी की वस्तु को बिना पूछे प्रयोग नहीं करते थे।
- वे खामखाह किसी से झगड़ा नहीं करते थे।
- वे अत्यंत साधारण वेशभूषा में रहते थे।
- वे अपनी उपज को कबीरपंथी मठ पर चढ़ावा के रूप में दे देते थे। वहाँ से जो कुछ प्रसाद रूप में मिलता था उसी में परिवार का निर्वाह करते थे।
प्रश्न – आपकी दृष्टि में भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के क्या कारण रहे होंगे?
उत्तर –
छात्र स्वयं करें।
प्रश्न – गाँव का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश आषाढ़ चढ़ते ही उल्लास से क्यों भर जाता है?
उत्तर –
भारत कृषि प्रधान देश है। यहाँ की अधिकतर जनसंख्या जीवन निर्वाह हेतु कृषि पर आश्रित है। भारतीय कृषि मानसून पर आधारित है। मानसून की शुरुआत वर्षा के पहले महीने आषाढ़ से शुरू होती है। आषाढ़ आते ही गाँववासी बादलों की राह देखते हैं। बादलों के बरसते ही वे अपने कृषि कार्यों की शुरूआत कर देते हैं। खेतों की जुताई-बुबाई, धान की रोपाई जैसे कार्य शुरू कर दिए जाते हैं। इसी महीने में गरमी की तपन से राहत मिलती है। यह महीना ग्रामीण बच्चों के लिए बड़ा ही आनंददायी होता है। इस समय गाँव के सामाजिक सांस्कृतिक परिवेश का उल्लास देखते ही बनता है।
प्रश्न – ऊपर की तसवीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे। – क्या ‘साधु’ की पहचान पहनावे के आधार पर की जानी चाहिए? आप किन आधारों पर यह सुनिश्चित करेंगे कि अमुक व्यक्ति ‘साधु’ है?
उत्तर –
साधु की पहचान उसके पहनावे के आधार पर न करके उसके विचार और व्यवहार पर करना चाहिए। आडंबरहीन जीवन, सद्व्यवहार, सत्यवादिता, परोपकार की भावना पहनावे की सादगी एवं विचारों की उच्चता देखकर किसी भी व्यक्ति को साधु की श्रेणी में रखा जा सकता है।
प्रश्न – मोह और प्रेम में अंतर होता है। भगत के जीवन की किस घटना के आधार पर इस कथन का सच सिद्ध करेंगे?
उत्तर –
मोह और प्रेम में अंतर होता है, इसे निम्न उदाहरणों के आधार पर सत्य सिद्ध किया जा सकता है
- लोग अपने प्रियजनों की मृत्यु पर रोते-धोते हैं यह उनका मोह है। परंतु भगत अपने बेटे से प्रेम करते हैं। वे जीते जी उसे प्रेम का अधिक हकदार मानते रहे और उसकी मृत्यु पर आत्मा-परमात्मा का मिलन माना।
- भगत अपने बुढ़ापे में अकेला होने पर भी बहू को उसके भाई के साथ भेज देते हैं। अपने बुढ़ापे से मोह नहीं दिखाते हैं, परंतु बहू से प्रेम करते हुए उसके भाई से उसका पुनर्विवाह करने का आदेश देते हैं।
भाषा-अध्ययन
प्रश्न – इस पाठ में आए कोई दस क्रियाविशेषण छाँटकर लिखिए और उनके भेद भी बताइए।
उत्तर –
टेस्ट/क्विज
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Objective