कक्षा 10 » साना-साना हाथ जोड़ि—मधु कांकरिया

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साना-साना हाथ जोड़ि
(पाठ का सार)

शब्दार्थ : अतींद्रियता – इंद्रियो से परे। उजास – प्रकाश, उजाला। रकम-रकम – तरह-तरह के। रफ़्ता-रफ़्ता – धीरे-धीरे। शिद्दत – तीव्रता, प्रबलता, अधिकता। मुंडकी – सिर। अभिशप्त – शापित, अभियुक्त। तामसिकताएँ – तमोगुण से युक्त,  कुटिल। सरहदों – सीमा। वासनाएँ – बुरी इच्छाएँ। सयानी – समझदार, चतुर। जन्नत – स्वर्ग। चैरवेति-चैरवेति – चलते रहो-चलते रहो। वजूद – अस्तित्व। ठाठे – हाथ में पड़ने वाली गाँठे या निशान। वेस्ट एट रिपेईंग – कम लेना और ज्यादा देना। वर्बीला – बढ़े हुए पेट वाला। मद्धिम-मद्धिम – धीमे, हल्की। हलाहल – जहर, विष। संक्रमण – मिलन, संयोग। लेवल – तल, स्तर। सुर्खियों – चर्चा में आना। गुडुप – निगल लिया। राम रोछो – अच्छा है। टूरिस्ट स्पॉट – भ्रमण-स्थल।

मधु कांकरिया ने अपने इस यात्रा-वृतान्त में गैंगटॉक से लेकर हिमालय तक की यात्रा में प्राकृतिक दृश्य के वर्णन के साथ-साथ उन दृश्यों को भी छुआ है जिसमें कठिन परिस्थितियों में भी पुरुष और महिलाएँ जीवन संघर्ष में लगी रहती है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि लेखिका के हृदय में उनके प्रति करुणा है। उनके प्रति वे सहृदय है। उसका मन प्रकृति की मनोहारी छटा देखने से अधिक जोखिम भरे कार्यों को करती हुई महिलाओं की ओर देखने में लगता है।

लेखिका को गैंगटॉक शहर देखकर ऐसा लगता है कि आसमान की सुन्दरता नीचे बिखर गई है और सभी तारे नीचे बिखर कर टिमटिमा रहे हैं। बादशाहों का एक ऐसा शहर जिसका सुबहए शामए रात सब कुछ बहुत ही सुन्दर था। सुबह होते ही एक प्रार्थना उनके होठों को छूने लगी-साना-साना हाथ जोड़िए गर्दहु प्रार्थना। हाम्रो जीवन तिम्रो कौसेली। लेखिका को सुबह यूमथांग के लिए निकलना थाए किन्तु आँख खुलते ही बालकनी की ओर भागी थीए क्योंकि लोगों ने बताया था कि यदि मौसम साफ हो तो बालकनी से ही हिमालय की सबसे ऊँची चोटी दिखाई देती है। सबसे ऊँची चोटी कंचनजंघा। किन्तु पिछले वर्ष की तरह ही आज भी आसमान हल्के-हल्के बादलों में ढका था। कंचनजंघा तो नहीं दिखाई दी किन्तु तरह-तरह के रंग-बिरंगे इतने सारे फूल दिखाई दिए कि लगा कि फूलों के बाग में आ गई हूँ।

यूमथांग गैंगटॉक से 149 कि0मी0 दूर था। जिसके बारे में ड्राइवर जितेन नार्गे बता रहा था कि सारे रास्ते में हिमालय की गहनतम घाटियाँ और फूलों से लदी वादियाँ मिलेंगी और लेखिका उससे पूछने लगी थी-“क्या वहाँ बर्फ मिलेगी।

यूमथांग के रास्ते में एक कतार में सफेद रंग की 108 पताकाएँ लगी थी जो शान्ति और अहिंसा के प्रतीक थे। इन सभी पताकाओं के ऊपर मन्त्र लिखे थे। जिनके बारे में नार्गे ने बताया था कि यहाँ बुद्ध की बड़ी मान्यता है। जब भी किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु होती हैए तो उनकी आत्मा की शान्ति के लिए शहर से दूर किसी पवित्र स्थान पर ये 108 पताकाएँ फहरा दी जाती हैं। इन्हें उतारा नहीं जाता है। ये पताकाएँ अपने आप धीरे-धीरे नष्ट हो जाती हैं। कई बार नए कार्य की शुरुआत के लिए भी ऐसी पताकाएँ लगा दी जाती है परन्तु वे रंगीन होती हैं। नार्गे बोलते जा रहा था किन्तु लेखिका नार्गे की जीप में लगी दलाई लामा की तस्वीर की ओर देखे जा रही थी। लेखिका ऐसी दलाई लामा की तस्वीरें दुकानों पर भी टंगी देखी थीं।

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साना-साना हाथ जोड़ि 
(प्रश्न-उत्तर)

प्रश्न – झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका को किस तरह सम्मोहित कर रहा था?

उत्तर – लेखिका ने आसमान देखा कि सारे तारे बिखरकर नीचे टिमटिमा रहे थे। दूर—ढलान लेती तराई पर सितारों के गुच्छे रोशनियों की एक झालर-सी बना रहे थे।  रात में जगमगाता गैंगटॉक शहर लेखिका देख रही थी – इतिहास और वर्तमान के संधि-स्थल पर खड़ा मेहनतकश बादशाहों का वह एक ऐसा शहर था जिसका सबकुछ सुंदर था-सुबह, शाम, रात।  वह रहस्यमयी सितारों भरी रात लेखिका में  सम्मोहन जगा रही थी, कुछ इस कदर कि उन जादू भरे क्षणों में लेखिका अपनी चेतना तक भूल चुकी थी।

प्रश्न – गंतोक को ‘मेहनतकश बादशाहों का शहर’ क्यों कहा गया?

उत्तर – गंतोक शहर एक ऐसा शहर है जिसे वहाँ के रहने वाले मेहनतकश लोगों ने मिलकर इतना मनोरम बना दिया है वहाँ की सुबह, शाम, रात सब कुछ सुन्दर लगता है। दूसरी ओर चाय बागान के धनी लोगों का भी गन्तोक शहर को सुंदर बनाने में सहयोग रहा हैं। इसलिए भी गन्तोक शहर को मेहनतकश बादशाहों का शहर कहा जाता है।

प्रश्न – कभी श्वेत तो कभी रंगीन पताकाओं का फहराना किन अलग-अलग अवसरों की ओर संकेत करता है?

उत्तर – रंगीन पताकाओं का फहराना निम्न अलग-अलग अवसरों की ओर संकेत करता

  • श्वेत पताकाएँ किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु पर फहराई जाती हैं। किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु हो जाए तो उसकी आत्मा की शांति के लिए नगर से बाहर किसी वीरान स्थान पर मंत्र लिखी एक सौ आठ पताकाएँ फहराई जाती हैं। जिन्हें उतारा नहीं जाता। वे धीरे-धीरे अपने-आप नष्ट हो जाती हैं।
  • किसी शुभ कार्य को आरंभ करने पर रंगीन पताकाएँ फहराई जाती हैं।

प्रश्न – जितेन नार्गे ने लेखिका को सिक्किम की प्रकृति, वहाँ की भौगोलिक स्थिति एवं जनजीवन के बारे में क्या महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ दीं, लिखिए।

उत्तर – जितेन नार्गे ने लेखिका को निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ दीं-

  • सिक्किम भारत से लगता हुआ एक स्वतंत्र राज्य था।
  • सिक्किम एक ऐतिहासिक शहर था। यहां के लोग बहुत ही भोले और मेहनती है।
  • सिक्किम में गंतोक से लेकर यूमथांग तक तरह-तरह के फूल हैं।
  • ज्यादा विकास ना होने के कारण यहां के लोग बहुत गरीब हैं।
  • महिलाओं को भी बच्चों को अपनी पीठ में बांधकर सड़क बनाने और पत्थर तोड़ने का कार्य आदि करना पड़ता है।
  • यहाँ के लोग जीवन से हतोत्साहित नहीं है तथा खुशी-खुशी जीवन-यापन करते हैं ।
  • यहाँ के लोग सच्चे देशभक्त हैं।

प्रश्न -लोंग स्टॉक में घूमते हुए चक्र को देखकर लेखिका को पूरे भारत की आत्मा एक-सी क्यों दिखाई दी?

उत्तर – लोंग स्टॉक में घूमते हुए चक्र के बारे मेन पूछा तो उसे पता चला कि यह धर्म-चक्र है। इसे घुमाने पर सारे पाप धुल जाते हैं। यह जानकर लेखिका सोचती भारत में लोग आज भी मानसिक संकीर्णता तथा अंधविश्वासों से मुक्त नहीं हुए हैं। उसे लगा कि पूरे भारत की आत्मा एक-सी है। सारी वैज्ञानिक प्रगति के बावजूद भारत के लोगों की अंध-विश्वास और पाप-पुण्य की अवधारणाएँ एक-सी हैं।

प्रश्न – जितेन नार्गे की गाइड की भूमिका के बारे में विचार करते हुए लिखिए कि एक कुशल गाइड में क्या गुण होते हैं?

उत्तर – कुशल गाइड में निम्नलिखित गुण होते हैं –

  1. उसमें वाक्पटुता और विनम्र स्वभाव होता है।
  2. उसे अपने क्षेत्र की अच्छी भौगोलिक जानकारी होती है।
  3. उसे उस क्षेत्र की सांस्कृतिक जनश्रुतियाँ और दंतकथाएँ आदि भी मालूम होती हैं।
  4. वह साहसी होता है और उसके भीतर स्वयं निर्णय लेने का साहस होता है।
  5. उसमें अपने भ्रमणकर्ताओ के सभी सवालों के जवाब देने की क्षमता होती है।

प्रश्न -इस यात्रा-वृत्तांत में लेखिका ने हिमालय के जिन-जिन रूपों का चित्र खींचा है, उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – इस यात्रा-वृतांत में लेखिका “मधु कांकरिया” ने हिमालय पर्वत के पल-पल बदलते रूप को देखा है। हिमालय कहीं चटक हरे रंग का मोटा कालीन ओढ़े हुए तो कहीं हल्का पीलापन लिए हुए प्रतीत होता है। चारों तरफ हिमालय की गहनतम वादियाँ और फूलों से लदी घाटियाँ थी। जैसे-जैसे और ऊंचाई पर चढ़ते जाएँ हिमालय विशाल से विशालतर होता चला जाता है। कभी बादलों की मोटी चादर के रूप में सब कुछ बादलमय दिखाई देता है। चारों तरफ दूध की धार की भांति जलश्रोत दिखाई देते, तो वहीं नीचे चाँदी की तरह चमकती तिस्ता नदी।

प्रश्न – प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका को कैसी अनुभूति होती है?

उत्तर – लेखिका प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर रोमांचित हो उठती है। उसे प्रकृति अत्यंत रहस्यमई और मोहक लगती है। प्रकृति के विभिन्न रहस्य को देखकर लेखिका के मन की सारी तामसिकताएँ और दुष्ट वासनाएँ खत्म हो गई।

प्रश्न -प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को कौन-कौन से दृश्य झकझोर गए?

उत्तर – प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को निम्न दृश्य झकझोर गए –

वहाँ पर कुछ पहाड़ी औरतें पीठ पर बच्चों को बांधे अपने कोमल हाथों से कठोर पत्थरों को तोड़ रही थी। लेखिका यह सोच कर दुखी थी कि नदी, फूलों, वादियों और झरनों के ऐसे स्वर्गिक सौंदर्य के बीच भूख, मौत, दैन्य और जिंदा रहने की बीच जंग जारी है।

प्रश्न – सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव करवाने में किन-किन लोगों का योगदान होता है, उल्लेख करें।

उत्तर – सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव करवाने में निम्न लोगों का योगदान होता है

  1. कुशल गाइड – जो अपनी जानकारी व अनुभव से सैलानियों को प्रकृति व स्थान के दर्शन कराता है।
  2. स्थानीय निवासी व जन जीवन – उनके द्वारा ही इस छटा के सौंदर्य को बल मिलता है क्योंकि यदि ये ना हों तो वो स्थान नीरस व बेजान लगने लगते हैं।
  3. मित्रों व सहयात्रियों का साथ – इनका साथ पाकर यात्रा और भी रोमांचकारी व आनन्दमयी बन जाती है।

प्रश्न – ‘कितना कम लेकर ये समाज को कितना अधिक वापस लौटा देती हैं।’ इस कथन के आधार पर स्पष्ट करें कि आम जनता की देश की आर्थिक प्रगति में क्या भूमिका है?

उत्तर – हमारे देश की आम जनता जितना परिश्रम करती है, उसे उसका आधा भी प्राप्त नहीं होता।

यदि ये आम जनता ना हो तो देश की आर्थिक प्रगति में बाधा आ जाएगी। इन्हीं के परिश्रम के कारण देश की आर्थिक प्रगति बढ़ती है। उदाहरण के तौर पर यदि ये लोग पर्वतों पर या मुश्किल स्थानों पर कार्य ना करें तो मार्ग बनना आसान न होगा।

प्रश्न – ‘आज की पीढ़ी द्वारा प्रकृति के साथ किस तरह का खिलवाड़ किया जा रहा है। इसे रोकने में आपकी क्या भूमिका होनी चाहिए।

उत्तर –

आज की पीढ़ी के द्वारा प्रकृति को निम्न प्रकार से प्रदूषित कर रही है –

  • हमारे कारखानों से निकलने वाले जल में खतरनाक कैमिकल व रसायन होते हैं जिसे नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है।
  • साथ में घरों से निकला दूषित जल भी नदियों में ही जाता है। जिसके अब नदियों का जल पीने लायक नहीं रहा है।
  • वनों की अन्धांधुध कटाई से मृदा का कटाव होने लगा है जो बाढ़ को आमंत्रित कर रहा है।
  • अधिक पेड़ों की कटाई ने वातावरण में कार्बनडाइ आक्साइड की अधिकता बढ़ा दी है जिससे वायु प्रदुषित होती जा रही है।

इसे रोकने के लिए हमें निम्न उपाय करने चाहिए-

  • जल को प्रदूषित होने से बचाना चाहिए।
  • अधिक से अधिक पेड़ों को लगाना चाहिए।
  • लोगों की जागरूकता हेतु कार्यक्रमों का आयोजन होना चाहिए।

प्रश्न – प्रदूषण के कारण स्नोफॉल में कमी का जिक्र किया गया है? प्रदूषण के और कौन-कौन से दुष्परिणाम सामने आए हैं, लिखें।

उत्तर – स्नोफॉल में कमी में कमी के अतिरिक्त प्रदूषण के निम्नलिखित दुष्परिणाम सामने आए हैं –

  1. वायुमण्डल में कार्बनडाइआक्साइड की अधिकता बढ़ गई है।
  2. साँस की अनेकों बीमारियाँ उत्पन्न होने लगी है।
  3. मौसम चक्र बिगड़ रहा है।
  4. लोग विभिन्न बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं।
  5. ध्वनि प्रदूषण से कान सम्बन्धी रोग हो रहे हैं।

प्रश्न – ‘कटाओ’ पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है। इस कथन के पक्ष में अपनी राय व्यक्त कीजिए?

उत्तर – अधिक दुकानें खुलने से सैलानियों का अधिक आगमन होगा और वहाँ की सुन्दरता पर भार पड़ जाएगा। वहाँ पर वाहनों के अधिक प्रयोग से वायु में प्रदूषण बढ़ जाएगा। सैलानियों द्वारा इस्तेमाल किए गए प्लास्टिक थैली, गिलास आदि चीज़ों से प्राकृतिक सौंदर्य घट जाएगा। इसलिए वहाँ दुकान का न होना उसके लिए किसी वरदान से कम नहीं है।

प्रश्न – प्रकृति ने जल संचय की व्यवस्था किस प्रकार की है?

उत्तर – सर्दियों के समय में प्रकृति पहाड़ों पर बर्फ बरसा देती है। गर्मी के आगमन पर उसी बर्फ को पिघला कर नदियों को जल से भर देती है। जिससे गर्मी से व्याकुल लोगों को गर्मियों में जल की कमी नही होती। इस प्रकार प्रकृति ने जल संचय की व्यवस्था की है।

प्रश्न – देश की सीमा पर बैठे फ़ौजी किस तरह की कठिनाइयों से जूझते हैं? उनके प्रति हमारा क्या उत्तरदायित्व होना चाहिए?

उत्तर –  

फोजियों की कठिनाइयाँ –

  1. वे माइनस तापमान वाली जगहों पर रहते हैं।
  2. वे शरीर को तपा देने वाली गर्मियों में भी रेगिस्तान में रहते हुए हाँफ-हॉंफ कर अनेक विषमताओं से जूझते हुए कठिनाइयों का सामना करते हैं।
  3. वह हम सब के लिए अपने घर परिवार व बच्चों को छोड़, अपनी जान तक कुर्बान करते हैं।
  4. वह त्योहारों की खुशी से बढ़कर, अपने जंग जीतने की खुशी को सेलिब्रेट करते हैं।

फोजियों के प्रति हमारा उत्तरदायित्व-

  • हमें उनके परिवार वालों के प्रति सदैव सम्माननीय व्यवहार करना चाहिए।
  • हमें फोजियों के बलिदान की मुक्त हृदय से प्रसंशा करनी चाहिए।


टेस्ट/क्विज

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