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अभिव्यक्ति का अर्थ
मनुष्य अपने भावों, विचारों को प्रकट करने और सूचना पहुँचाने के लिए लिए जो क्रिया करता है उसे अभिव्यक्ति कहते हैं। मानव अभिव्यक्ति दो प्रकार से करता है-
(क) मौखिक (ख) अमौखिक
संचार क्या है?
‘संचार’ शब्द की उत्पत्ति ‘चर’ धातु से हुई है, जिसका अर्थ है-चलना या एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचना। संचार एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य भावनाओं, विचारों, सूचनाओं आदि को मौखिक, लिखित या दृश्य-श्रव्य माध्यम की द्वारा सफलतापूर्वक एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाया जाता है। मशहूर संचारशास्त्री विल्बर श्रैम के अनुसार संचार अनुभवों की साझेदारी है।
संचार में सूचना देने वाले (प्रेषक) और सूचना प्राप्त करने वाले की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है। संचार दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच सूचनाओं, विचारों और भावनाओं का आदान-प्रदान है। अगर दोनों में से कोई संचार के लिए अनिच्छुक है तो संचार-प्रक्रिया का आगे बढ़ना मुश्किल होता है। इस अर्थ में संचार अंतरक्रियात्मक (इंटरएक्टिव) प्रक्रिया है।
संचार का महत्व
संचार के बिना जीवन संभव नहीं है। मानव सभ्यता के विकास में संचार की सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। वास्तव में संचार जीवन की निशानी है। मनुष्य जब तक जीवित है, वह संचार करता रहता है। यहाँ तक कि एक बच्चा भी संचार के बिना नहीं रह सकता। वह रोकर या चिल्लाकर अपनी माँ का ध्यान अपनी ओर खींचता है। एक तरह से संचार खत्म होने का अर्थ है-मृत्यु। परिवार और समाज में एक व्यक्ति के रूप में हम अन्य लोगाें से संचार के जरिये ही संबंध स्थापित करते हैं और रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करते हैं। संचार ही हमें एक-दूसरे से जोड़ता है। 11 सितंबर 2001 को अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकवादी हमले को पूरी दुनिया ने अपनी आँखों के सामने घटते देखा। आप क्रिकेट मैच देखने स्टेडियम भले न जाएँ लेकिन आप घर बैठे उस मैच का सीधा प्रसारण (लाइव) देख सकते हैं। ये सब संचार से संभव है।
संचार के तत्व
स्रोत/संचारक/प्रेषक ⇒ संदेश ⇒ माध्यम ⇒ प्राप्तकर्ता ⇒ फीडबैक/उत्तर
स्रोत/संचारक/प्रेषक :- संचार प्रक्रिया की शुरफ़आत स्रोत या संचारक से होती है। जब स्रोत या संचारक एक उद्देश्य के साथ अपने किसी विचार, संदेश या भावना को किसी और तक पहुंँचाना चाहता है तो संचार-प्रक्रिया की शुरुआत होती है।
कूटीकृत या एनकोडिंग :- भाषा असल में, एक तरह का कूट चिह्न या कोड है। आप अपने संदेश को उस भाषा में कूटीकृत या एनकोडिंग करते हैं। यह संचार की प्रक्रिया का दूसरा चरण है। सफल संचार के लिए यह जरूरी है कि आपका मित्र भी उस भाषा यानी कोड से परिचित हो जिसमें आप अपना संदेश भेज रहे हैं।
संदेश :- इसके बाद संचार-प्रक्रिया में अगला चरण स्वयं संदेश का आता है। संचार-प्रक्रिया में संदेश का बहुत अधिक महत्त्व है। किसी भी संचारक का सबसे प्रमुख उद्देश्य अपने संदेश को उसी अर्थ के साथ प्राप्तकर्ता तक पहुँचाना है। इसलिए सफल संचार के लिए जरूरी है कि संचारक अपने संदेश को लेकर खुद पूरी तरह से स्पष्ट हो। संदेश जितना ही स्पष्ट और सीधा होगा, संदेश के प्राप्तकर्ता को उसे समझना उतना ही आसान होगा।
माध्यम (चैनल) :- संदेश को किसी माध्यम (चैनल) के जरिये प्राप्तकर्ता तक पहुँचाना होता है। जैसे हमारे बोले हुए शब्द ध्वनि तरंगों के जरिये प्राप्तकर्ता तक पहुँचते हैं, जबकि दृश्य संदेश प्रकाश तरंगों के जरिये। इसी तरह वायु तरंगों के जरिये भी संदेश पहुँचते हैं। जैसे खाने की खुशबू हम तक वायु तरंगों के जरिये पहुँचती है। स्पर्श या छूना भी एक तरह का माध्यम है। इसी तरह टेलीफ़ोन, समाचारपत्र, रेडियो, टेलीविजन, इंटरनेट और फिल्म आदि विभिन्न माध्यमों के जरिये भी संदेश प्राप्तकर्ता तक पहुँचाया जाता है।
प्राप्तकर्ता यानी रिसीवर – जिसके लिए संदेश भेजा जाता है उसे प्राप्तकर्ता यानी रिसीवर कहा जाता है।
कूटवाचन यानी डीकोडिंग :- प्राप्तकर्ता यानी रिसीवर प्राप्त संदेश का कूटवाचन यानी उसकी डीकोडिंग करता है। डीकोडिंग का अर्थ है प्राप्त संदेश में निहित अर्थ को समझने की कोशिश। यह एक तरह से एनकोडिंग की उलटी प्रक्रिया है। इसमें संदेश का प्राप्तकर्ता उन चिह्नों और संकेतों के अर्थ निकालता है।
फ़ीडबैक :- संचार-प्रक्रिया में प्राप्तकर्ता की भी अहम भूमिका होती है, क्योंकि वही संदेश का आखिरी लक्ष्य होता है। प्राप्तकर्ता कोई भी हो सकता है। वह कोई एक व्यक्ति हो सकता है, एक समूह हो सकता है, या कोई संस्था अथवा एक विशाल जनसमूह भी हो सकता है। प्राप्तकर्ता को जब संदेश मिलता है तो वह उसके मुताबिक अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। संचार-प्रक्रिया में प्राप्तकर्ता की इस प्रतिक्रिया को फ़ीडबैक कहते हैं। संचार प्रक्रिया की सफलता में फीडबैक की अहम भूमिका होती है। फ़ीडबैक से ही पता चलता है कि संचार प्रक्रिया में कही कोई बाधा तो नहीं आ रही है। इसके अलावा फ़ीडबैक से यह भी पता चलता है कि संचारक ने जिस अर्थ के साथ संदेश भेजा था वह उसी अर्थ में प्राप्तकर्ता को मिला है या नहीं।
संचार में बाधक तत्व/शोर
वास्तविक जीवन में संचार प्रक्रिया इतनी सुचारू रूप से नहीं चलती। उसमें कई बाधाएँ भी आती हैं। इन बाधाओं को शोर (नॉयज) कहते हैं। यह शोर किसी भी किस्म का हो सकता है। यह मानसिक से लेकर तकनीकी और भौतिक शोर तक हो सकता है। शोर के कारण संदेश अपने मूल रूप में प्राप्तकर्ता तक नहीं पहुँच पाता। सफल संचार के लिए संचार प्रक्रिया से शोर को हटाना या कम करना बहुत जरूरी है।
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संचार के प्रकार और उदाहरण
(क) अंतः वैयक्तिक संचार (इंट्रापर्सनल) – इस संचार-प्रक्रिया में संचारक और
प्राप्तकर्ता एक ही व्यक्ति होता है। यह संचार का सबसे बुनियादी रूप है। जैसे- स्वयं से बात करना, पूजा, इबादत व प्रार्थना करना ।
(ख) अंतरवैयक्तिक संचार (इंटरपर्सनल) – दो व्यक्तियों का परस्पर बात करना। इस संचार में फ़ीडबैक तत्काल प्राप्त होता है। अंतरवैयक्तिक संचार की मदद से ही हम आपसी संबंध विकसित करते हैं और अपनी रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करते हैं। संचार का यह रूप पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों की बुनियाद है। अपने व्यक्तिगत जीवन में सफलता के लिए हमारा अंतरवैयक्तिक संचार का कौशल उन्नत और प्रभावी होना चाहिए। इस कौशल की जरूरत हमें कदम-कदम पर पड़ती है। नौकरी और दाखिले के लिए होने वाले इंटरव्यू में आपके इसी कौशल की परख होती है।
(ग) समूह संचार – इसमें एक समूह आपस में विचार-विमर्श या चर्चा करता है। समूह संचार का उपयोग समाज और देश के सामने उपस्थित समस्याओं को बातचीत और बहस-मुबाहिसे के जरिये हल करने के लिए होता है। जैसे – कक्षा में वाद विवाद, संसद में चर्चा, गाँव की पंचायत आदि।
(घ) जनसंचार (मास कम्युनिकेशन) – जब हम व्यक्तियों के समूह के साथ प्रत्यक्ष संवाद की बजाय किसी तकनीकी या यांत्रिक माध्यम के जरिये समाज के एक विशाल वर्ग से संवाद कायम करने की कोशिश करते हैं तो इसे जनसंचार कहते हैं। इसमें एक संदेश को यांत्रिक माध्यम के जरिये बहुगुणित किया जाता है ताकि उसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाया जा सके। इसके लिए हमें किसी उपकरण या माध्यम की मदद लेनी पड़ती है-मसलन अखबार, रेडियो, टी-वी-, सिनेमा या इंटरनेट।
जनसंचार की विशेषताएँ
- जनसंचार में फ़ीडबैक तुरंत नहीं प्राप्त होता है।
- जनसंचार के श्रोताओं, पाठकों और दर्शकों का दायरा बहुत व्यापक होता है। साथ ही उनका गठन भी बहुत पंचमेल होता है।
- जनसंचार माध्यमों के जरिये प्रकाशित या प्रसारित संदेशों की प्रकृति सार्वजनिक होती है।
- जनसंचार में संचारक और प्राप्तकर्ता के बीच कोई सीधा संबंध नहीं होता है। प्राप्तकर्ता यानी पाठक, श्रोता और दर्शक संचारक को उसकी सार्वजनिक भूमिका के कारण पहचानता है।
- जनसंचार के लिए एक औपचारिक संगठन की भी जरूरत पड़ती है। औपचारिक संगठन के बिना जनसंचार माध्यमों को चलाना मुश्किल है।
- जनसंचार माध्यमों की एक और महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि उनमें ढेर सारे द्वारपाल (गेटकीपर) काम करते हैं।
जनसंचार माध्यम और द्वारपाल
द्वारपाल वह व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह है जो जनसंचार माध्यमों से प्रकाशित या प्रसारित होने वाली सामग्री को नियंत्रित और निर्धारित करता है। किसी जनसंचार माध्यम में काम करने वाले द्वारपाल ही तय करते हैं कि वहाँ किस तरह की सामग्री प्रकाशित या प्रसारित की जाएगी। जैसे किसी समाचारपत्र में संपादक और उसके सहायक-समाचार संपादक, सहायक संपादक, उपसंपादक आदि यह तय करते हैं कि समाचारपत्र में क्या छपेगा, कितना छपेगा और किस तरह छपेगा। इसी तरह टी-वी- और रेडियो में भी द्वारपाल होते हैं जो उससे प्रसारित होने वाली सामग्री को निर्धारित करते हैं। जनसंचार माध्यमों में द्वारपाल की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। यह उनकी ही जिम्मेदारी है कि वे सार्वजनिक हित, पत्रकारिता के सिद्धांतों, मूल्यों और आचार संहिता के अनुसार सामग्री को संपादित करें और उसके बाद ही उनके प्रसारण या प्रकाशन की इजाजत दें।
जनसंचार के कार्य
- सूचना देना।
- शिक्षित करना।
- मनोरंजन करना।
- निगरानी करना।
- जनमत/ऐजंडा तय करना।
- विचार विमर्श के लिए मंच प्रदान करना।
भारत में जनसंचार माध्यमों का विकास
- देवर्षि नारद को भारत का पहला समाचार वाचक माना जाता है जो वीणा की मधुर झंकार के साथ धरती और देवलोक के बीच संवाद-सेतु थे।
- चंद्रगुप्त मौर्य, अशोक जैसे सम्राटों के शासन-काल में स्थायी महत्त्व के संदेशों के लिए शिलालेखों और सामयिक या तात्कालिक संदेशों के लिए कच्ची स्याही या रंगों से संदेश लिखकर प्रदर्शित करने की व्यवस्था और मजबूत हुई।
- प्रागैतिहासिक काल से ही भीमबेटका के गुफ़ाचित्र मिलते हैं।
- जनसंचार के आधुनिक माध्यमों के जो रूप आज हमारे यहाँ हैं, वे निश्चय ही हमें अंग्रेजों से मिले हैं। चाहे समाचारपत्र हों या रेडियो, टेलीविजन या इंटरनेट, सभी माध्यम पश्चिम से ही आए।
विभिन्न जनसंचार माध्यम
जनसंचार के प्रकार | प्राचीन जनसंचार माध्यम | आधुनिक जनसंचार माध्यम |
दृश्य/मुद्रित माध्यम | नृत्य, मूर्ति, चित्र, गुफा चित्र, शिलालेख, पाण्डुलिपि | पुस्तकें, पत्र, पत्रिकाएँ, पोस्टर, पैम्फलेट, इंटरनेट के द्वारा सूचना का मुद्रित रूप आदि। |
श्रव्य माध्यम | कथा, कहानी, गीत, वादन | रेडियो, इंटरनेट के द्वारा सूचना का श्रव्य रूप। |
दृश्य-श्रव्य माध्यम | नाटक, कटपुतली | टेलीविज़न, इंटरनेट के द्वारा सूचना का दृश्य-श्रव्य रूप। |
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(क) मुद्रित/प्रिंट माध्यम
मुद्रित माध्यम (मुख्य तथ्य)
- यह जनसंचार का सबसे प्राचीन माध्यम है। इसके अंतर्गत समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, पुस्तकें, पोस्टर, पैम्फलेट, इंटरनेट के द्वारा सूचना का मुद्रित रूप आदि शामिल हैं।
- मुद्रण की शुरुआत चीन में हुई।
- दुनिया में अखबारी पत्रकारिता को अस्तित्व में आए 400 साल हो गए हैं।
- जर्मनी के गुटेनबर्ग ने छापाखाना की खोज की।
- ईसाई मिशनरियों द्वारा धार्मिक पुस्तकें छापने के लिए 1556 ई0 में भारत में पहला छापाखाना गोवा में खोला गया।
- भारत में छपने वाला पहला समाचार पत्र बंगाल गज़ट था। यह कलकत्ता से 1780 ई0 में छपना शुरू हुआ था। इसके संपादक जेम्स आगुस्त हिकी थे।
- हिन्दी का पहला समाचार पत्र उदन्त मार्तंड था। यह कलकत्ता से 1826 ई0 में छपना शुरू हुआ था। इसके संपादक पंडित जुगल किशोर थे।
- गांधी जी को हम समकालीन भारत का सबसे बड़ा पत्रकार कह सकते हैं, क्योंकि आजादी दिलाने में उनके पत्रें ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- आजादी के पहले के प्रमुख पत्रकारों में गणेश शंकर विद्यार्थी, माखनलाल चतुर्वेदी, महावीर प्रसाद द्विवेदी, बाबूराव विष्णुराव पराड़कर, प्रताप नारायण मिश्र, शिवपूजन सहाय, रामवृक्ष बेनीपुरी और बालमुकुंद गुप्त हैं।
- उस समय के महत्त्वपूर्ण अखबारों और पत्रिकाओं में ‘केसरी’, ‘हिन्दुस्तान’, ‘सरस्वती’, ‘हंस’, ‘कर्मवीर’, ‘आज’, ‘प्रताप’, ‘प्रदीप’ और ‘विशाल भारत’ आदि प्रमुख हैं।
- आजादी से पहले पत्रकारिता का लक्ष्य स्वाधीनता की प्राप्ति था।
- आजादी के बाद शुरुआती दो दशकों तक पत्रकारिता राष्ट्र-निर्माण के प्रति प्रतिबद्ध दिखती थी। लेकिन उसके बाद उसका चरित्र व्यावसायिक और प्रोफ़ेशनल होने लगा।
- आजादी के बाद के प्रमुख हिदी अखबारों में ‘नवभारत टाइम्स’, ‘जनसत्ता’, ‘नई दुनिया’, ‘राजस्थान पत्रिका’, ‘अमर उजाला’, ‘दैनिक भास्कर’, ‘दैनिक जागरण’ और पत्रिकाओं में ‘धर्मयुग’, ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’, ‘दिनमान’, ‘रविवार’, ‘इंडिया टुडे’ और ‘आउटलुक’ का नाम लिया जा सकता है।
- आजादी के बाद के हिदी के प्रमुख पत्रकारों में सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’, रघुवीर सहाय, धर्मवीर भारती, मनोहर श्याम जोशी, राजेन्द्र माथुर, प्रभाष जोशी, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, सुरेन्द्र प्रताप सिंह का नाम लिया जा सकता है।
- वर्तमान में अधिकतर मुद्रण का कार्य कम्प्यूटर की सहायता से होता है।
मुद्रित माध्यम (विशेषताएँ)
- लिखा हुआ स्थायी होता है।
- लिखित सामग्री जैसे पुस्तक, पत्र आदि को लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
- एक बार समझ न आने पर पुनः पढ़ा जा सकता है।
- कठिन शब्दों के अर्थ समझने के लिए शब्दकोश का प्रयोग कर सकते हैं।
- ख़बर या सूचना को अपनी मर्जी से पहले या बाद में पढ़ा जा सकता है।
मुद्रित माध्यम (कमियाँ)
- तुरंत घटी घटनाओं की जानकारी देर से मिलती है, क्योंकि मुद्रित माध्यम दैनिक, साप्ताहिक या मासिक रूप से छपते हैं।
- निरक्षर लोगों के लिए अनुपयोगी है।
- किसी ख़बर के प्रकाशन के लिए निश्चित समय सीमा (डेडलाइन) होती है।
- ख़बर के प्रकाशन के लिए स्थान की भी सीमा होती है।
- किसी भी गलती को सुधारने के लिए अगले अंक की प्रतीक्षा करनी पड़ती है।
मुद्रित माध्यम (ध्यान रखने वाली बातें)
- सरल, सहज और मानक भाषा का प्रयोग करना चाहिए।
- व्याकरण का ध्यान रखना चाहिए।
- वर्तनी (Spellings) का ध्यान रखना चाहिए।
- खबर या सूचना के अनुसार शैली अपनानी चाहिए।
- समय सीमा और आवंटित स्थान का ध्यान रखना चाहिए।
- अशुद्धियों को ठीक करना चाहिए।
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(ख) रेडियो
रेडियो(मुख्य तथ्य)
- रेडियो जनसंचार का श्रव्य (ध्वनि) माध्यम है। रेडियो जनसंचार का रेखीय माध्यम है। अर्थात इसमें अधिकतर एकतरफा संचार होता है।
- सन् 1895 में जब इटली के इलैक्ट्रिकल इंजीनियर जी0 मार्कोनी ने वायरलेस के जरिये ध्वनियों और संकेतों को एक जगह से दूसरी जगह भेजने में कामयाबी हासिल की, तब रेडियो जैसा माध्यम अस्तित्व में आया।
- शुरुआती रेडियो स्टेशन अमेरिकी शहर पिट्सबर्ग, न्यूयॉर्क और शिकागो में खुले।
- भारत में सन् 1921 में बंबई में टाइम्स ऑफ इंडिया ने डाक तार विभाग के सहयोग से संगीत कार्यक्रम का प्रसारण किया।
- भारत में सन 1936 ई0 में विधिवत रूप से आल इंडिया रेडियो की स्थापना हुई।
- आजादी के समय तक देश में कुल नौ रेडियो स्टेशन खुल चुके थे-लखनऊ, दिल्ली, बंबई (मुंबई), कलकत्ता (कोलकाता), मद्रास (चैन्नई), तिरुचिरापल्ली, ढाका, लाहौर और पेशावर। जाहिर है इनमें से तीन रेडियो स्टेशन विभाजन के साथ पाकिस्तान के हिस्से में चले गए।
- आज आकाशवाणी देश की 24 भाषाओं और 146 बोलियों में कार्यक्रम प्रस्तुत करती है। देश की 96 प्रतिशत आबादी तक इसकी पहुँच है।
- भारत में सन 1993 ई0 एफ0एम0 (फ्रिक्वेंसी मॉड्युलेशन) की शुरुआत हुई।
- 1997 में आकाशवाणी और दूरदर्शन को केंद्र सरकार के सीधे नियंत्रण से निकालकर प्रसार भारती नाम के स्वायत्तशासी निकाय को सौंप दिया गया।
रेडियो की विशेषताएँ
- यह जनसंचार का सस्ता माध्यम है।
- यह सर्वसुलभ है। जहाँ मनोरंजन के अन्य साधन नहीं हैं, वहाँ भी रेडियो आसानी से उपलब्ध हो जाता है। जैसे दूर दराज के गाँव, पहाड़ी क्षेत्र आदि।
- निरक्षर और साक्षर दोनों ही रेडियो सुन सकते हैं।
- रेडियो से ज्ञानवर्धन के साथ-साथ मनोरंजन भी होता है।
रेडियो की कमियाँ
- खबर और कार्यक्रमों का निश्चित समय होता है, इसलिए उनकी प्रतीक्षा करनी पड़ती है।
- ख़बर या कार्यक्रम पुनः सुनने के लिए पीछे नहीं जा सकते।
- रेडियो पर लंबे कार्यक्रम उबाऊ हो जाते हैं। जिससे श्रोताओं को बाँधकर रखना मुश्किल हो जाता है।
- समाचार सुनते हुए यदि कोई कठिन शब्द आ जाए तो समझने में कठिनाई हो सकती है।
रेडियो (ध्यान रखने वाली बातें)
- रेडियो के माध्यम से संचार करते हुए ध्वनि, शब्द और स्वर की प्रमुखता रहती है।
- सरल भाषा का प्रयोग करना चाहिए।
- वाक्य छोटे और तारतम्यता से युक्त हों।
- जटिल शब्दों और मुहावरों के प्रयोग से बचना चाहिए।
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(ग) टेलीविज़न
टेलीविज़न (मुख्य तथ्य)
- टेलीविज़न जनसंचार का दृश्य-श्रव्य तथा रेखीय माध्यम है।
- इसमें ध्वनि तथा शब्दों की अपेक्षा दृश्यों/तस्वीरों को अधिक महत्व दिया जाता है।
- इसमें कम-से-कम शब्दों में ज्यादा से ज्यादा ख़बर दिखाने की शैली का प्रयोग किया जाता है।
- 1927 में बेल टेलीफ़ोन लेबोरैट्रीज ने न्यूयॉर्क और वाशिंगटन के बीच प्रायोगिक टेलीविजन कार्यक्रम का प्रसारण किया।
- 1936 तक बीबीसी ने भी अपनी टेलीविजन सेवा शुरू कर दी थी।
- भारत में टेलीविजन की शुरुआत यूनेस्को की एक शैक्षिक परियोजना के तहत 15 सितंबर, 1959 को हुई थी। इसका मकसद टेलीविजन के जरिये शिक्षा और सामुदायिक विकास को प्रोत्साहित करना था। इसके तहत दिल्ली के आसपास के गाँवों में 2 टी0वी0 सेट लगाए गए जिन्हें 200 लोगों ने देखा। यह हफ्ते में दो बार एक-एक घंटे के लिए दिखाया जाता था।
- 15 अगस्त 1965 ई0 से भारत में विधिवत टेलिविजन सेवा का आरंभ हुआ।
- टेलिविजन सेवा पहले आकाशवाणी का ही हिस्सा थी। 1 अप्रैल 1976 ई0 से इसे आकाशवाणी से अलग कर दिया गया और दूरदर्शन नाम दिया गया। 1984 में इसकी रजत जयंती मनाई गई।
- प्रोफ़ेसर पी0सी0 जोशी की अध्यक्षता में दूरदर्शन के कार्यक्रमों की गुणवत्ता में सुधार के लिए एक गठित समिति के मुताबिक जनसंचार माध्यम के बतौर भारत में दूरदर्शन के निम्नलिखित उद्देश्य होने चाहिए- सामाजिक परिवर्तन, राष्ट्रीय एकता, वैज्ञानिक चेतना का विकास, परिवार कल्याण को प्रोत्साहन, कृषि विकास, पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक विकास, खेल संस्कृति का विकास, सांस्कृतिक धरोहर को प्रोत्साहन
टेलीविज़न की विशेषताएँ
- यह ज्ञानवर्धन के साथ-साथ मनोरंजन का भी साधन है।
- कहीं की भी घटना को घर बैठे लाइव देखा जा सकता है।
- यह साक्षर और निरक्षर दोनों के लिए उपयोगी है।
- इसमें सुनने के साथ देखने का भी आनंद लिया जा सकता है।
टेलीविज़न की कमियाँ
- खबर और कार्यक्रमों का निश्चित समय होता है, इसलिए उनकी प्रतीक्षा करनी पड़ती है।
- ख़बर या कार्यक्रम पुनः सुनने के लिए पीछे नहीं जा सकते।
- कई बार इसके द्वारा सैक्स और हिंसा को प्रोत्साहन मिलता है। जिसका बच्चों पर गलत असर पड़ता है।
टेलीविज़न (ध्यान रखने वाली बातें)
- टेलीविज़न के माध्यम से संचार करते हुए तस्वीर, शब्द और स्वर की प्रमुखता रहती है। इनमें तारतम्यता होनी चाहिए।
- सरल भाषा का प्रयोग करना चाहिए।
- वाक्य छोटे और तारतम्यता से युक्त हों।
- जटिल शब्दों और मुहावरों के प्रयोग से बचना चाहिए।
- हिंसा और सैक्स का प्रचार करने वाले कार्यक्रमों और खबरों से बचना चाहिए।
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सिनेमा
सिनेमा (प्रमुख तथ्य)
- सिनेमा के आविष्कार का श्रेय थॉमस अल्वा एडिसन को जाता है और यह 1883 में मिनेटिस्कोप की खोज के साथ जुड़ा हुआ है।
- 1894 में फ्रांस में पहली फ़िल्म बनी ‘द अराइवल ऑफ़ ट्रेन’।
- भारत में पहली मूक फ़िल्म बनाने का श्रेय दादा साहेब फ़ाल्के को जाता है। यह फ़िल्म थी – 1913 में बनी-‘राजा हरिश्चंद्र’।
- 1931 में पहली बोलती फ़िल्म बनी-‘आलम आरा’।
- मौजूदा समय में भारत हर साल लगभग 800 फिल्मों का निर्माण करता हैऔर दुनिया का सबसे बड़ा फ़िल्म निर्माता देश बन गया है।
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(घ) इंटरनेट
इंटरनेट के मुख्य तथ्य
- इंटरनेट जनसंचार का सबसे आधुनिक और वृहत माध्यम है। यह एक अंतरक्रियात्मक माध्यम है।
- इसके द्वारा टीवी, रेडियो, पुस्तक, पत्र-पत्रिका, प्रिंट मीडिया आदि तक पहुँच आसान हो गई है।
- इंटरनेट से माध्यम से पलक झपकते ही बड़े से बड़ा संदेश पूरी दुनिया के लोगों तक भेजा जा सकता है।
- इंटरनेट की भाषा – एचटीएमएल (HTML – HYPER TEXT MARKUP LANGUAGE)
- इंटरनेट पत्रकारिता – इंटरनेट के द्वारा खबरों का प्रकाशन ही इंटरनेट पत्रकारिता कहलाता है। इसे ऑनलाइन पत्रकारिता, साइबर पत्रकारिता, वेब पत्रकारिता भी कहा जाता है।
- विश्व में इंटरनेट पत्रकारिता का तीसरा दौर चल रहा है।
- भारत में इंटरनेट पत्रकारिता का प्रथम दौर 1993 ई0 से तथा दूसरा दौर 2003 ई0 से माना जाता है। भारत में इस समय इंटरनेट पत्रकारिता का दूसरा दौर ही चल रहा है।
- भारत में वेब पत्रकारिता करने वाली साइट – रीडिफ़ डॉटकॉम, इंडिया इन्फोलाइन, सीफी आदि।
- विशुद्ध वेब पत्रकारिता करने वाली साइट – तहलका डॉटकॉम।
- हिन्दी में नेट पत्रकारिता की शुरुआत वेब दुनिया से हुई। यह इंदौर से संचालित होती है।
- कुछ हिन्दी समाचार पत्र जिनके वेब संस्करण भी है।
- हिंदुस्तान
- नवभारत टाइम्स
- अमर उजाला
- दैनिक जागरण
- राष्ट्रीय सहारा
- प्रभात खबर
- नई दुनिया
- प्रभासाक्षी ऐसा अखबार है जो प्रिंट रूप में न होकर केवल इंटरनेट पर है।
- वर्तमान समय में पत्रकारिता की सर्वश्रेष्ठ साइट बी0बी0सी0 है।
- हिन्दी की वेब पत्रिकाएँ –
- अनुभूति
- अभिव्यक्ति
- हंस
- वागर्थ
- कथा क्रम
इंटरनेट के गुण
- कम समय में अधिक से अधिक लोगों तक पहुँच बना सकते हैं।
- इंटरनेट के द्वारा प्रिंट, श्रव्य और दृश्य-श्रव्य सभी माध्यमों की पूर्ति हो जाती है।
- तुरंत घटी घटनाओं की जानकारी मिल जाती है।
- एक ही स्थान पर बटन दबाते है सूचनाओं का विशाल भंडार मिल जाता है।
- बहुत-सी सरकारी सेवाएँ लोगों को घर बैठे ही उपलब्ध हो जाती हैं।
इंटरनेट के दोष
- इंटरनेट पर समय बिताने में लोग इतने व्यस्त होते जा रहे हैं कि उनका परस्पर संवाद कम हो गया है।
- निरक्षर लोगों के लिए महत्वहीन है।
- इंटरनेट के द्वारा अश्लीलता का प्रचार होने से समाज पर बुरा असर हो रहा है।
- कई बार इंटरनेट धोखा देने का औज़ार बन जाता है।
- अफवाह फैलाने का सबसे आसान माध्यम।
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