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डायरी क्या है?
डायरी नितांत निजी स्तर पर घटित घटनाओं और तत्संबंधी बौद्धिक-भावनात्मक प्रतिक्रियाओं का लेखा-जोखा है। डायरी मोटे गत्ते की जिल्द वाली, जिसके पन्नों पर साल के 365 दिनों की तिथियाँ क्रम से सजी होती हैं और हर तिथि के साथ एक या आधे पृष्ठ की खाली जगह छोड़ी जाती है।
डायरी लेखन क्या है?
दिनभर आप जिन घटनाओं, गतिविधियों और विचारों से गुजरते रहे, उन्हें डायरी के पृष्ठों पर शब्दबद्ध करना ही डायरी-लेखन है। इन्हें हम किसी और के लिए नहीं, स्वयं अपने लिए शब्दबद्ध करते हैं। शुद्ध लेखन के स्तर पर देखें, तो वह अपना ही अंतरंग साक्षात्कार है अपने ही साथ स्थापित होनेवाला संवाद है-एक ऐसा साक्षात्कार और संवाद, जिसमें हम सभी तरह की वर्जनाओं से मुक्त होते हैं।
डायरी लेखन की विशेषताएँ बताइए।
- डायरी हमें भूलने से बचाती है।
- डायरी लेखन मूलतः अपने उपयोग एवं उपभोग के लिए होता है।
- जिन बातों को हम दुनिया में किसी और व्यक्ति के सामने नहीं कह सकते, उन्हें भी डायरी के पन्नों पर शब्दबद्ध करके खुद को सुना डालते हैं।
- डायरी लेखन में समकालीन इतिहास मौजूद रहता है।
- निबंध, कहानी या उपन्यास डायरी की शक्ल में लिखे जा सकते हैं, लेकिन वहाँ डायरी का केवल ‘रूप’ होगा।
हिंदी में बड़े रचनाकारों की डायरियाँ
लेखक | डायरी |
रामवृक्ष बेनीपुरी | पैरों में पंख बाँधकर |
राहलु साकृंत्यायन | रूस में पच्चीस मास |
सेठ गोविंददास | सुदूर दक्षिण पूर्व |
कर्नल सज्जन सिंह | लद्दाख यात्रा की डायरी |
डॉ0 रघुवंश | हरी घाटी |
गजानन माधव मुक्तिबोध | एक साहित्यिक की डायरी |
डायरी लेखन के लिए ध्यान में रखी जाने वाली खास बातें
- डायरी या तो किसी नोटबुक में या पुराने साल की डायरी में लिखी जानी चाहिए।
- पुराने साल की डायरी में पहले की पड़ी हुई तिथियों की जगह अपने हाथ से तिथि डालें।
- सभी तरह के बाहरी दबावों से मुक्त होना चाहिए।
- डायरी बिलकुल निजी वस्तु है और यह मान कर ही उसे लिखा जाना चाहिए कि वह किसी और के द्वारा पढ़ी नहीं जाएगी।
- यह कतई जरूरी नहीं कि डायरी परिष्कृत और मानक भाषा-शैली में लिखी जाए।
ऐनी फ्रैंक की डायरी
ऐनी फ्रैंक (1929-1945) जर्मनी में पैदा हुई एक यहूदी लड़की थी। यह डायरी ऐनी फ्रैंक ने 1942-44 के दरम्यान नाजी अत्याचार के बीच एम्स्टर्डम में छुप कर रहते हुए लिखी थी। जर्मनी में जब नाजियों की सत्ता कायम हुई और यहूदियों पर अत्याचार शुरू हुए, तो वह परिवार समेत एम्स्टर्डम चली गई। ऐसी स्थिति में जुलाई, 1942 में उसका परिवार एक दफ्ऱतर के गुप्त कमरे में छुप कर रहने लगा, जहाँ दो साल बिताने के बाद वे नाजियों की पकड़ में आ गए और उन्हें यातना-कैंप में पहुँचा दिया गया। यहाँ फरवरी या मार्च 1945 में ऐनी की मृत्यु हो गई। यही नहीं, उसके पिता को छोड़ कर परिवार का कोई प्राणी जीवित नहीं बचा। द्वितीय महायुद्ध समाप्त होने पर उसके पिता वापस एम्स्टर्डम पहुँचे। वहाँ उन्होंने ऐनी की डायरी की तलाश की और संयोग से सफल रहे। ये डायरी ऐनी को उसके तेरहवें जन्मदिन पर मिली थी और जून, 1942 से अगस्त, 1944 तक वह उसमें अपनी खास-खास बातें और नाजी आतंक के अनुभवों को लिखती रही थी। उन्होंने उसे प्रकाशित करवाने की दौड़-धूप शुरू की। 1947 में मूलतः डच में लिखी गई यह डायरी अंग्रेजी में ‘द डायरी ऑफ़ अ यंग गर्ल’ के नाम से प्रकाशित हुई। |
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