अभिव्यक्ति और माध्यम 11 » पत्रकारिता के विविध आयाम

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पत्रकारिता क्या है?

समाचार संगठनों में काम करने वाले पत्रकार देश-दुनिया में घटने वाली घटनाओं को समाचार के रूप में परिवर्तित करके हम तक पहुँचाते हैं। इसके लिए वे रोज सूचनाओं का संकलन करते हैं और उन्हें समाचार के प्रारूप में ढालकर प्रस्तुत करते हैं। इस पूरी प्रक्रिया को ही पत्रकारिता कहते हैं। पत्रकारिता का संबंध सूचनाओं को संकलित और संपादित कर आम पाठकों तक पहुँचाने से है। लेकिन हर सूचना समाचार नहीं है। पत्रकारिता एक तरह से ‘दैनिक इतिहास’ लेखन है।

पत्रकारिता में जिज्ञासा का महत्व

अपने आसपास की चीजों, घटनाओं और लोगों के बारे में ताजा जानकारी रखना मनुष्य का सहज स्वभाव है। उसमें जिज्ञासा का भाव बहुत प्रबल होता है। यही जिज्ञासा समाचार और व्यापक अर्थ में पत्रकारिता का मूल तत्त्व है। पत्रकारिता का विकास इसी सहज जिज्ञासा को शांत करने की कोशिश के रूप में हुआ। वह आज भी इसी मूल सिद्धांत के आधार पर काम करती है।

समाचार की कुछ परिभाषाएँ
  • प्रेरक और उत्तेजित कर देने वाली हर सूचना समाचार है।
  • समय पर दी जाने वाली हर सूचना समाचार का रूप धारण कर लेती है।
  • किसी घटना की रिपोर्ट ही समाचार है।
  • समाचार जल्दी में लिखा गया इतिहास है?
समाचार क्या है?

समाचार किसी भी ऐसी ताजा घटना, विचार या समस्या की रिपोर्ट है जिसमें अधिक से अधिक लोगों की रुचि हो और जिसका अधिक से अधिक लोगों पर प्रभाव पड़ रहा हो। हर सूचना समाचार नहीं है यानी हर सूचना समाचार माध्यमों में प्रकाशित या प्रसारित नहीं होती है।

समाचार के तत्व

नवीनता – घटना जितनी ताजा होगी, उसके समाचार बनने की संभावना उतनी ही बढ़ जाती है।  एक दैनिक समाचारपत्र के लिए आमतौर पर पिछले 24 घंटाें की घटनाएँ समाचार होती हैं। आमतौर पर एक दैनिक समाचारपत्र की अपनी एक डेडलाइन (समय-सीमा) होती है जब तक कि समाचारों को वह कवर कर पाता है।

निकटता – हर घटना का समाचारीय महत्त्व काफ़ी हद तक उसकी स्थानीयता से भी निर्धारित होता है।

प्रभाव – किसी घटना के प्रभाव से भी उसका समाचारीय महत्त्व निर्धारित होता है। किसी घटना की तीव्रता का अंदाजा इस बात से लगाया जाता है कि उससे कितने सारे लोग प्रभावित हो रहे हैं या कितने बड़े भू-भाग पर उसका असर हो रहा है। किसी घटना से जितने अधिक लोग प्रभावित होंगे, उसके समाचार बनने की संभावना उतनी ही बढ़ जाती है। ये प्रभाव तात्कालिक भी हो सकता है और दीर्घकालिक भी।

जनरुचि – किसी विचार, घटना और समस्या के समाचार बनने के लिए यह भी आवश्यक है कि लोगों की उसमें दिलचस्पी हो। हर समाचार संगठन का अपना एक लक्ष्य समूह (टार्गेट ऑडिएंस) होता है और वह समाचार संगठन अपने पाठकों या श्रोताओं की रुचियों को ध्यान में रखकर समाचारों का चयन करता है।

टकराव या संघर्ष – किसी घटना में टकराव या संघर्ष का पहलू होने पर उसके समाचार के रूप में चयन की संभावना बढ़ जाती है क्योंकि लोगों में टकराव या संघर्ष के बारे में जानने की स्वाभाविक दिलचस्पी होती है।

महत्त्वपूर्ण लोग – मशहूर और जाने-माने लोगों के बारे में जानने की आम पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं में स्वाभाविक इच्छा होती है।दरअसल, लोग यह जानना चाहते हैं कि मशहूर लोग उस मुकाम तक कैसे पहुँचे, उनका जीवन कैसा होता है और विभिन्न मुद्दों पर उनके क्या विचार हैं।

उपयोगी जानकारियाँ – अनेक ऐसी सूचनाएँ भी समाचार मानी जाती हैं जिनका समाज के किसी विशेष तबके के लिए खास महत्त्व हो सकता है।

अनोखापन – जो कुछ स्वाभाविक नहीं है या किसी रूप में असाधारण है, वही समाचार है। भूत-प्रेत के किस्से-कहानी समाचार नहीं हो सकते। किसी इंसान को भगवान बनाने के मिथ गढ़ने से भी समाचार मीडिया को बचना चाहिए।

पाठक वर्ग – किसी समाचारीय घटना का महत्त्व इससे भी तय होता है कि किसी खास समाचार का ऑडिएंस कौन है और उसका आकार कितना बड़ा है।

नीतिगत ढाँचा – विभिन्न समाचार संगठनों की समाचारों के चयन और प्रस्तुति को लेकर एक नीति होती है। इस नीति को ‘संपादकीय नीति’ भी कहते हैं। संपादकीय नीति का निर्धारण संपादक या समाचार संगठन के मालिक करते हैं।

डेडलाइन किसे कहते हैं?

अखबार या पत्रिका में समाचारों या रिपोर्ट को प्रकाशन के लिए स्वीकार करने की एक निश्चित समय-सीमा होती है। जिसे डेडलाइन कहते हैं।

संपादन किसे कहते हैं?

समाचार संगठनों में समाचारों के संकलन का कार्य जहाँ रिपोर्टिंग की टीम करती है, वहीं उन्हें संपादित कर लोगों तक पहुँचाने की जिम्मेदारी संपादकीय टीम पर होती है। संपादन का अर्थ है किसी सामग्री से उसकी अशुद्धियों को दूर करके उसे पठनीय बनाना।

संपादन/पत्रकारिता के सिद्धांत, आदर्श या मूल्य
  1. तथ्यों की शुद्धता या तथ्यपरकता (एक्युरेसी) एक आदर्श रूप में मीडिया और पत्रकारिता यथार्थ या वास्तविकता का प्रतिबिब है। सूचनाएँ और तथ्य सबसे अहम हों और संपूर्ण घटना का प्रतिनिधित्व करते हों। तथ्य बिलकुल सटीक और सही होने चाहिए और उन्हें तोड़ा-मरोड़ा नहीं जाना चाहिए।
  2. वस्तुपरकता (ऑब्जेक्टीविटी) – वस्तुपरकता को भी तथ्यपरकता से आँकना आवश्यक है। तथ्यपरकता का संबंध जहाँ अधिकाधिक तथ्यों से है वहीं वस्तुपरकता का संबंध इस बात से है कि कोई व्यक्ति तथ्यों को कैसे देखता है? वस्तुपरकता का तकाजा यही है कि एक पत्रकार समाचार के लिए तथ्यों का संकलन और उसे प्रस्तुत करते हुए अपने आकलन को अपनी धारणाओं या विचारों से प्रभावित न होने दे। एक पत्रकार को जहाँ तक संभव हो, अपने लेखन में वस्तुपरकता का ध्यान जरूर रखना चाहिए।
  3. निष्पक्षता (फ़ेयरनेस) – एक पत्रकार के लिए निष्पक्ष होना भी बहुत जरूरी है। उसकी निष्पक्षता से ही उसके सामाचार संगठन की साख बनती है। लेकिन निष्पक्षता का अर्थ तटस्थता नहीं है। जब हम समाचारों में निष्पक्षता की बात करते हैं तो इसमें न्यायसंगत होने का तत्त्व अधिक अहम होता है।
  4. संतुलन (बैलेंस) – निष्पक्षता की अगली कड़ी संतुलन है। संतुलन का तकाजा यही है कि सभी संबद्ध पक्षों की बात समाचार में अपने-अपने समाचारीय वजन के अनुसार स्थान पाए।
  5. स्रोत – समाचार की साख को बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि इसमें शामिल की गई सूचना या जानकारी का कोई स्रोत हो और वह स्रोत इस तरह की सूचना या जानकारी देने का अधिकार रखता हो और समर्थ हो। कुछ जानकारियाँ बहुत सामान्य होती हैं जिनके स्रोतों का उल्लेख करना आवश्यक नहीं है। लेकिन जैसे ही कोई सूचना ‘सामान्य’ होने के दायरे से बाहर निकलकर ‘विशिष्ट’ होती है उसके स्रोत का उल्लेख आवश्यक हो जाता है।
पत्रकारिता के अन्य आयाम
  1. संपादकीय पृष्ठ को समाचारपत्र का सबसे महत्त्वपूर्ण पृष्ठ माना जाता है। इस पृष्ठ पर अखबार विभिन्न घटनाओं और समाचारों पर अपनी राय रखता है। इसे संपादकीय कहा जाता है।
  2. फोटो पत्रकारिता – जो बात हजार शब्दों में लिखकर नहीं कही जा सकती, वह एक तसवीर कह देती है। फोटो टिप्पणियों का असर व्यापक और सीधा होता है। 
  3. कार्टून कोना लगभग हर समाचारपत्र में होता है और उनके माध्यम से की गई सटीक टिप्पणियाँ पाठक को छूती हैं। 
  4. रेखांकन और कार्टोग्राफ समाचारों को न केवल रोचक बनाते हैं बल्कि उन पर टिप्पणी भी करते हैं।
पत्रकारिता के कुछ प्रमुख प्रकार

खोजपरक पत्रकारिता

खोजपरक पत्रकारिता से आशय ऐसी पत्रकारिता से है जिसमें गहराई से छान-बीन करके ऐसे तथ्यों और सूचनाओं को सामने लाने की कोशिश की जाती है जिन्हें दबाने या छुपाने का प्रयास किया जा रहा हो। आमतौर पर खोजी पत्रकारिता सार्वजनिक महत्त्व के मामलों में भ्रष्टाचार, अनियमितताओं और गड़बड़ियों को सामने लाने की कोशिश करती है। 

विशेषीकृत पत्रकारिता

पत्रकारिता में विषय के हिसाब से विशेषता के सात प्रमुख क्षेत्र हैं। इनमें संसदीय पत्रकारिता, न्यायालय पत्रकारिता, आर्थिक पत्रकारिता, खेल पत्रकारिता, विज्ञान और विकास पत्रकारिता, अपराध पत्रकारिता तथा फ़ैशन और फिल्म पत्रकारिता शामिल हैं। इन क्षेत्रें के समाचार और उनकी व्याख्या उन विषयों में विशेषता हासिल किए बिना देना कठिन होता है।

वॉचडॉग पत्रकारिता

लोकतंत्र में पत्रकारिता का मुख्य उत्तरदायित्व सरकार के कामकाज पर निगाह रखना है और कहीं भी कोई गड़बड़ी हो तो उसका पर्दाफाश करना है। इसे परंपरागत रूप से वॉचडॉग पत्रकारिता कहा जाता है। 

एडवोकेसी पत्रकारिता

किसी विचारधारा या उद्देश्य या मुद्दे के पक्ष में जनमत बनाने के लिए लगातार और जोर-शोर से अभियान चलाने की पत्रकारिता को पक्षधर या एडवोकेसी पत्रकारिता कहा जाता है।

वैकल्पिक पत्रकारिता

जो मीडिया स्थापित व्यवस्था के विकल्प को सामने लाने और उसके अनुकूल सोच को अभिव्यक्त करता है उसे वैकल्पिक पत्रकारिता कहा जाता है।

समाचार माध्यमों में मौजूदा रुझान

सनसनीखेज या पीत-पत्रकारिता – सनसनी और डर फैलाने के लिए प्रयोग की जाने वाली पत्रकारिता पीत पत्रकारिता कही जाती है।

पेज-थ्री पत्रकारिता – विख्यात और प्रसिद्ध व्यक्तियों के निजी जीवन में झाँक कर जो पत्रकारिता की जाती है उसे पेज़-थ्री पत्रकारिता कहा जाता है।

पत्रकार की बैसाखियाँ

संदेह करना पत्रकार का गुण है। उसे चीजों की तह तक जाने की आदत डालनी चाहिए। पत्रकार की बैसाखियाँ संकट या दुविधा के समय उसके काम आती हैं।

  1. सच्चाई – विश्वसनीयता इसी पर टिकी होती है। लिखने से पहले तथ्यों की पूरी जाँच-परख और उसकी पुष्टि करना अनिवार्य है।
  2. संतुलन – सचाई की कसौटी पर कसे जाने के बावजूद यह अनिवार्य है कि तथ्यों, बयानों और आँकड़ों के इस्तेमाल में संतुलन रखा जाए।
  3. निष्पक्षता – किसी पत्रकार के लिए ‘पक्षपात’ अपशब्द की तरह है। इसलिए जरूरी है कि पत्रकार समाचार में निजी राय न व्यक्त करे।
  4. स्पष्टता – इसके लिए अनिवार्य है कि समाचार में वाक्य छोटे और सीधे रहें तथा उनमें कोई उलझाव न हो।

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