इस पाठ के टेस्ट के लिए क्लिक करें।
JOIN WHATSAPP CHANNEL | JOIN TELEGRAM CHANNEL |
स्ववृत लेखन और रोजगार संबंधी आवेदन पत्र
प्रश्न :- ‘स्ववृत्त’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर – स्ववृत्त एक विशेष प्रकार का लेखन है, जिसमें व्यक्ति विशेष के बारे में किसी विशेष प्रयोजन को ध्यान में रखकर सिलसिलेवार ढंग से सूचनाएँ संकलित की जाती हैं।
‘स्ववृत्त’ से अभिप्राय अपने विवरण से है। यह एक बना-बनाया प्रारूप होता है, जिसे विज्ञापन के प्रत्युत्तर में आवेदन पत्र के साथ भेजा जाता है। नौकरी के संदर्भ में स्ववृत्त की तुलना एक उम्मीदवार के दूत या प्रतिनिधि से की जाती है। अभिप्राय यह है कि स्ववृत्त का स्वरूप उसे प्रभावशाली बनाता है।
प्रश्न :- आवेदन पत्र के साथ ‘स्ववृत्त’ संलग्न करना क्यों आवश्यक है?
उत्तर :-
- एक अच्छा स्ववृत्त नियुक्तिकर्ता के मन में उम्मीदवार के प्रति अच्छी और सकारात्मक धाारणा उत्पन्न करता है।
- नौकरी में सफ़लता के लिए योग्यता और व्यक्ति के साथ-साथ स्ववृत्त निर्माण की कला में निपुणता भी आवश्यक है।
- स्ववृत्त में किसी विशेष प्रयोजन को धयान में रखकर सिलसिलेवार ढंग से सूचनाएँ संकलित की जाती है।
प्रश्न :- ‘स्ववृत्त’ में कितने पक्ष होते हैं?
उत्तर :- स्ववृत्त के दो पक्ष हैं। पहले पक्ष में वह व्यक्ति है जिसको केंद्र में रखकर सूचनाएँ संकलित की गई होती हैं। दूसरा पक्ष उस व्यक्ति या संस्था का है जिसके लिए या जिसके प्रयोजन को ध्यान में रखकर सूचनाएँ जुटाई जाती हैं। पहला पक्ष है उम्मीदवार और दूसरा पक्ष नियोक्ता।
प्रश्न :- ‘स्ववृत्त’ लिखते हुए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर :-
- स्ववृत्त में ईमानदारी होनी चाहिए। किसी भी प्रकार के झूठे दावे या अतिश्योक्ति से बचना चाहिए। गलत या बढ़ा-चढ़ा कर किए गए दावों से उन्हें धोखा देने की कोशिश खतरनाक बन सकती है। अगर साक्षात्कार के लिए बुला भी लिया गया तो उस दौरान कलई खुलने का पूरा अंदेशा रहता है।
- अपने व्यक्तित्व, ज्ञान और अनुभव के सबल पहलुओं पर जोर देना चाहिए।
- स्ववृत्त का आकार अति संक्षिप्त अथवा जरूरत से ज्यादा लंबा नहीं होना चाहिए।
- स्ववृत्त साफ़-सुथरे ढंग से टंकित या कम्प्यूटर-मुद्रित अथवा सुंदर-लेखन में होना चाहिए । स्ववृत्त में सूचनाओं को अनुशासित क्रम में लिखना चाहिए यथा : व्यक्ति -परिचय, शैक्षिक योग्यता, अनुभव, प्रशिक्षण, उपलब्धियाँ, कार्येत्तर गतिविधिायाँ इत्यादि।
- परिचय में नाम, जन्मतिथि, उम्र, पत्र-व्यवहार का पता, टेलीफ़ोन नंबर ई-मेल इत्यादि लिखे जाते हैं।
- शैक्षिक योग्यता में विद्यालय का नाम, बोर्ड या विश्वविद्यालय का नाम, परीक्षा का वर्ष, प्राप्तांक, प्रतिशत तथा श्रेणी का उल्लेख करना आवश्यक है।
- कार्येत्तर गतिविधियों का उल्लेख अन्य उम्मीदवारों से अलग पहचान दिलाने में समर्थ होता है।
- स्ववृत्त में विज्ञापन में वर्णित योग्यताओं और आवश्यकताओं को धयान में रखते हुए थोड़ा-बहुत परिवर्तन किया जा सकता है।
- किसी भी व्यक्ति से संबंधित सूचनाओं का तो कोई अंत ही नहीं है। लेकिन हर सूचना नियोक्ता के काम की नहीं हो सकती। इसीलिए स्ववृत्त में वही सूचनाएँ डाली जा सकती हैं जिनमें दूसरे पक्ष यानी नियोक्ता की दिलचस्पी हो।
- स्ववृत्त में आलंकारिक भाषा की गुंजाइश नहीं है। इसीलिए इसकी शैली-सरल, सीधी, सटीक और साफ़ होनी चाहिए ताकि पढ़ने वाले को सारी बातें एक ही नजर में स्पष्ट हो जाएँ और अर्थ निकालने के लिए दिमाग पर जोर न डालना पड़े।
- यह ध्यान रखना चाहिए कि स्ववृत्त न तो जरूरत से अधिक लंबा हो न ही ज़्यादा छोटा। अगर बहुत संक्षिप्त हुआ तो इसमें अनेक जरूरी चीजें आने से रह जाएँगी। दूसरी ओर यदि बहुत लंबा हुआ तो पढ़ने वाला अनेक पहलुओं को नजरअंदाज कर सकता है।
- बात-स्ववृत्त साफ़-सुथरे ढगं से टंकित या कंप्यटूर-मुद्रित होना चाहिए। व्याकरण संबंधी भूलों को भी दूर कर लेना चाहिए। ये बातें छोटी लग सकती हैं मगर उम्मीदवार के प्रति विपरीत धारणा उत्पन्न करती हैं। नियोक्ता को ऐसा लग सकता है कि उम्मीदवार या तो लापरवाह है या फिर उसकी शिक्षा-दीक्षा ढंग से नहीं हुई है।
प्रश्न – स्ववृत्त निर्माण में निपुणता क्यों आवश्यक है?
उत्तर – एक स्ववृत्त की तुलना हम उम्मीदवार के दूत या प्रतिनिधि से कर सकते हैं। जिस प्रकार एक अच्छा दूत या प्रतिनिधि अपने स्वामी का एक सुंदर और आकर्षक चित्र प्रस्तुत करता है, उसी प्रकार एक अच्छा स्ववृत्त नियुक्तिकर्ता के मन में उम्मीदवार के प्रति अच्छी और सकारात्मक धारणा उत्पन्न करता है। एक अच्छा स्ववृत्त किसी चुंबक की तरह होता है जो नियुक्तिकर्ता को आकर्षित कर लेता है। नौकरी में सफलता के लिए योग्यता और व्यक्ति के साथ-साथ स्ववृत्त निर्माण की कला में निपुणता भी आवश्यक है।
प्रश्न – नियुक्ति में आवेदन पत्र की क्या भूमिका हैं?
उत्तर – आवेदन-पत्र हर विज्ञापन के लिए विशेषतौर पर लिखे जाते हैं। ये उम्मीदवार के भाषा-ज्ञान औरअभिव्यक्ति की क्षमता की तो जानकारी देते ही हैं, साथ ही यह भी दर्शाते हैं कि उम्मीदवार पद और संस्थान को लेकर गंभीर है या नहीं। नियोक्ता को योग्य उम्मीदवार की तलाश तो होती ही है, वह यह अपेक्षा रखता है कि चयन के बाद वह नौकरी में कम से कम कुछ वर्षों तक अवश्य टिके। आवेदन-पत्र से बहुत कुछ इन बातों का भी आभास नियोक्ता को मिल जाता है। इसका उद्देश्य अलग होता है-पद के लिए अपनी योग्यता और गंभीरता के प्रति नियोक्ता का विश्वास जगाना। उद्देश्य की भिन्नता की वजह से इसकी विषय-वस्तु अन्य आवेदन-पत्रों से भिन्न होती है।
प्रश्न :- आवेदन-पत्रों की विषय-वस्तु के मुख्यतः कितने हिस्से होते हैं?
उत्तर :- आवेदन-पत्रों की विषय-वस्तु के मुख्यतः चार हिस्से होते हैं। पहला हिस्सा भूमिका का होता है, जिसमें उम्मीदवार विज्ञापन और विज्ञापित पद का हवाला देते हुए अपनी उम्मीदवारी की इच्छा प्रकट करता है। दूसरे खंड में उम्मीदवार यह बतलाता है कि वह विज्ञापन में वर्णित योग्यताओं और आवश्यकताओं को पूरा करने में किस प्रकार सक्षम है। तीसरे खंड में उम्मीदवार पद और संस्थान के प्रति अपनी गंभीरता और अभिरुचि को अभिव्यक्त करता है। चौथा खंड उपसंहार यानी आवेदन-पत्र की विषय-वस्तु के औपचारिक समापन के लिए होता है।
इस पाठ के टेस्ट के लिए क्लिक करें।
JOIN WHATSAPP CHANNEL | JOIN TELEGRAM CHANNEL |