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गूँगे (पाठ का सार)
वज्र बहरा – जिसे बिलकुल सुनाई न देता हो
अस्फुट – अस्पष्ट
ध्वनियों का वमन – आवाज निकालने की कोशिश में ध्वनियों को जैसे-तैसे उगल देना
विक्षुब्ध – अशांत
कांकल – गले के भीतर की घाँटी
पल्लेदारी – पीठ पर अनाज या सामान इत्यादि ढोने का का कार्य
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गूँगे
(प्रश्न-उत्तर)
प्रश्न – चमेली को गूँगे ने अपने बारे में क्या-क्या बताया और कैसे?
उत्तर – चमेली को गूंँगे ने अपने बारे में बताया कि उसके बाप की मौत होने के बाद उसकी मांँ उसे छोड़कर भाग गई थी। गूंँगे का पालन-पोषण उसके बुआ-फूफा ने किया था। उसके बुआ-फूफा गूँगे को बहुत मारते थे। वे चाहते थे कि गूंँगा पल्लेदारी करें। गूंँगे ने बताया कि बचपन में गला साफ करने के प्रयास में किसी ने उसका काकल काट दिया था। उसने कई जगह नौकरी करी, लेकिन कभी भीख नहीं मांगी। हमेशा मेहनत की खायी। इन सभी बातों को उसने इशारों के द्वारा चमेली को बताया।
प्रश्न – गूँगे की कर्कश काँय-काँय और अस्फुट ध्वनियों को सुनकर चमेली ने पहली बार क्या अनुभव किया?
उत्तर – गूंँगे की कर्कश काँय-काँय और अस्फुट ध्वनियों को सुनकर चमेली ने पहली बार अनुभव किया कि अगर मनुष्य के गले की काकल थोड़ी-सी भी ठीक ना हो तो उसकी दशा कैसे दीन हीन हो जाती है। वह अपने मन को भावों को प्रकट करना चाहता है। लेकिन उसकी विवशता उसे रोक देती है।
प्रश्न – गूँगे ने अपने स्वाभिमानी होने का परिचय किस प्रकार दिया?
उत्तर – गूँगे ने इशारों में बताया कि उसने हमेशा मेहनत की रोटी खायी है। उसने सीने पर हाथ मारकर बताया कि वह हाथ फैलाकर भीख नहीं माँगता। उसने पेट बजाकर बताया कि वह पेट के लिए मेहनत की रोटी कमाता है। किसी के रहम पर जीवन नहीं जीता।
प्रश्न – ‘मनुष्य की करुणा की भावना उसके भीतर गूँगेपन की प्रतिच्छाया है।’ कहानी के इस कथन को वर्तमान सामाजिक परिवेश के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – वर्तमान सामाजिक परिवेश में जब कोई घटना घटती है और हम उस परिस्थिति के प्रति अपनी अभिव्यक्ति नहीं दे पाते तो हम करुणा का भाव प्रकट करते हैं। इसलिए लेखक का कथन उपयुक्त है कि मनुष्य में करुणा की भावना उसके भीतर गूँगेपन की प्रतिच्छाया है।
प्रश्न – ‘नाली का कीड़ा! ‘एक छत उठाकर सिर पर रख दी’ फिर भी मन नहीं भरा।’ – चमेली का यह कथन किस संदर्भ में कहा गया है और इसके माध्यम से उसके किन मनोभावों का पता चलता है?
उत्तर – ‘नाली का कीड़ा! ‘एक छत उठाकर सिर पर रख दी’ फिर भी मन नहीं भरा।’ – चमेली का यह कथन गूँगे द्वारा घर से चले जाने के संदर्भ में कहा गया है। चमेली ने गूँगे को अपने घर में रहने का स्थान दिया था। गूँगा घर छोड़कर भाग जाता है। जिससे चमेली को गुस्सा आ जाता है। इस कथन के माध्यम से चमेली के हृद्य में उत्पन्न रोष का पता चलता है।
प्रश्न – यदि बसंता गूँगा होता तो आपकी दृष्टि में चमेली का व्यवहार उसके प्रति कैसा होता?
उत्तर – यदि बसंता गूँगा होता तो चमेली का व्यवहार उसके प्रति भिन्न होता। गूँगा उसका सगा नहीं था। वह उसके प्रति सहानुभूति रखती थी, लेकिन गँूगे के प्रति चमेली में ममत्व नहीं था। कई बार उसे दुत्कारा भी जाता है। बसंता गूँगा की पिटाई कर देता है, जिससे आहत होकर गूँगा घर छोड़कर चला जाता है। सगा बेटा होने के कारण चमेली बसंता को कुछ नहीं कहती बल्कि गूँगे से ही उपेक्षापूर्ण व्यवहार करती है।
प्रश्न – ‘उसकी आँखों में पानी भरा था। जैसे उनमें एक शिकायत थी, पक्षपात के प्रति तिरस्कार था।’ क्यों?
उत्तर – जब बसंता ने गूँगे को थप्पड़ मार दिया था तो गूँगा उस पर प्रतिवाद नहीं करता। वह चाहता तो उसे मार सकता था लेकिन वह ऐसा नहीं करता। गूँगा चमेली से शिकायत करता है। चमेली मोहवश बसंता को कुछ नहीं कहती। इस कारण गूँगे के मन को ठेस पहुँचती है। वह खूब रोता है। बाद में चमेली गूँगे के लिए खाना लाती है तो गूँगे की आँखों में पानी भर आता है। जिससे पता लगता है कि उसकी आँखों में शिकायत का भाव था, पक्षपात के प्रति तिरस्कार था।
प्रश्न – ‘गूँगा दया या सहानुभूति नहीं, अधिकार चाहता था’- सिद्ध कीजिए।
उत्तर – गूँगा स्वाभिमानी है। वह अपनी बुआ के घर पीटे जाने और उपेक्षित होने के कारण वहाँ से भाग जाता है। वह चमेली को संकेतों के माध्यम से बताता है कि वह मेहनत की खाता है। उसे लगता है कि जो रोटी उसे दी जा रही है वह उसकी मेहनत का परिणाम है। वह भीख माँगकर नहीं नहीं खाता। बसंता के द्वारा पीटे जाने पर वह उसकी माँ चमेली से शिकायत करता है और उसका हाथ पकड़कर संकेत करता है कि वह बसंता को दंडित करे। वह सड़क पर उससे झगड़ा करने वालों के साथ संघर्ष करता है। इस प्रकार पता चलता है कि गूँगा दया या सहानुभूति नहीं, अधिकार चाहता था।
प्रश्न – ‘गूँगे’ कहानी पढ़कर आपके मन में कौन से भाव उत्पन्न होते हैं और क्यों?
उत्तर – ‘गूँगे’ कहानी को पढ़कर भाव उत्पन्न होता है कि समाज में विकलांग लोगों को भी सामान्य मानव की तरह जीवन यापन करने का अधिकार है। हमें उनके साथ संवेदनशील ढंग से व्यवहार करना चाहिए। वे भी सामान्य मनुष्य की भाँति आनंद और पीड़ा का अनुभव करते हैं। उन्हें केवल दया और सहानुभूति नहीं, अपितु अधिकार मिलना चाहिए। उनके स्वाभिमान की रक्षा करना हमारी प्रमुख जिम्मेदारी बनती है।
प्रश्न – ‘गूँगे’ में ममता है, अनुभूति है और है मनुष्यता’ – कहानी के आधार पर इस वाक्य की विवेचना कीजिए।
उत्तर – गूँगा सुन नहीं सकता तथा बोल नहीं सकता। वह सामान्य रूप से संवेदनशील है। बचपन में उसके पिता की मृत्यु हो गई, माँ छोड़कर भाग गई, बुआ-फूफा के द्वारा प्रताड़ित किया गया। लेकिन उसके मन में ममता का भाव है। जब चमेली उसे चिमटे से पीटती है और ममतावश रो देती है तो गूँगा भी रो पड़ता है। वह दया का भाव रखता है और उसे सुख-दुःख की अनुभूति होती है। वह चोरी नहीं करता, मेहनत करके खाता है और किसी को हानि नहीं पहुँचाता। इससे पता लगता है कि उसमें मनुष्यता भी है।
प्रश्न – कहानी का शीर्षक ‘गूँगे’ है, जबकि कहानी में एक ही गूँगा पात्र है। इसके माध्यम से लेखक ने समाज की किस प्रवृत्ति की ओर संकेत किया है?
उत्तर – कहानी में चित्रित गूँगा एक प्रतीकात्मक चरित्र है। इस प्रतीक के माध्यम से लेखक यह व्यक्त करना चाहता है कि हमारा समाज ऐसे गूँगे-बहरे लोगों से भरा पड़ा है जो सुनने और बोलने की क्षमता रखते हुए भी गूँगे-बहरे ही हैं। उसकी संवेदनहीनता के कारण ही लेखक उन्हें गूँगे-बहरे ही मानता है। कहानी में देखा जाए तो गूँगे के बुआ-फूफा, चमेली, चमेली का बेटा तथा रास्ते में गूँगे के साथ झगड़ा करने वाले लड़के आदि अपनी संवेदनहीनता के कारण समाज की इस गूँगी-बहरी प्रवृति की ओर संकेत करते हैं।
क्विज/टेस्ट
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