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घर में वापसी (व्याख्या)
पाठ्यपुस्तक में उनकी कविता घर में वापसी दी गई है। यह धूमिल की एक प्रमुख कविता है जिसमें गरीबी से संघर्षरतपरिवार की व्यथा-कथा है। मनुष्य संसार की भागमभाग भरे जीवन से राहत पाने के लिए स्नेह, ममत्व, अपनत्व और सुरक्षा भरे माहौल में घर बनाता है और उसमें रहता है। यहाँ विडंबना यह है कि तमाम रिश्ते-नातों, स्नेह और अपनत्व के बीच गरीबी की दीवार खड़ी है। गरीबी से लड़ते-लड़ते अब इतनी भी ताकत नहीं रही कि रिश्तों में ऊर्जा का संचार पैदा करने हेतु कोई चाबी बनाई जा सके और इस जटिल ताले को खोला जा सके। कविता में एक ऐसे घर की आकांक्षा है जहाँ गरीबी दीवार की तरह बाधक न हो। माँ-पिता, बेटी, पत्नी आदि का स्नेहिल वातावरण हो ताकि जीवन संघर्ष में घर का सुख प्राप्त हो सके।
मेरे घर में पाँच जोड़ी आँखें हैं
माँ की आँखें पड़ाव से पहले ही
तीर्थ-यात्रा की बस के
दो पंचर पहिए हैं।
पिता की आँखें –
लोहसाँय की ठंडी शलाखें हैं
बेटी की आँखें मंदिर मेंं दीवट पर
जलते घी के
दो दिए हैं।
पत्नी की आँखें आँखें नहीं
हाथ हैं, जो मुझे थामे हुए हैं
शब्दार्थ –
पड़ाव – फ़ेज, चरण। लोहसाँय – लोहे के औजार बनानेवाली भट्टी। शलाखें – लोहे की छड़ (सलाखें)। दीवट – दीया रखने के लिए बनाया गया स्थान।
संदर्भ –
प्रस्तुत काव्यांश हिन्दी की पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग-1 में संकलित कविता ‘घर में वापसी’ का एक अंश है। इस कविता के रचनाकार ‘धूमिल’ हैं।
प्रसंग –
प्रस्तुत काव्यांश में कवि गरीबी से जूझ से परिवार के सदस्यों का परिचय उनकी आँखों में उपस्थित भाव के अनुसार कराता है।
व्याख्या –
कवि कहता है कि उसके घर में पाँच जोड़ी आँखें हैं अर्थात पाँच सदस्य है। कवि द्वारा परिवार के सदस्यों को पाँच जोड़ी आँखों के रूप में संबोधित करने करने कारण यह है कि परिवार के सदस्यों के बीच संवादहीनता है और वे एक-दूसरे को देखते भर हैं। गरीबी के कष्टों को सहते हुए वे परस्पर बात नहीं कर पाते, लेकिन उनके मन की पीड़ा उनकी आँखों से व्यक्त हो जाती है। वे एक दूसरे के दुखों को देखते हुए भी उनके बारे में बात करने से बचते हैं। कवि वृद्धा माँ की आँखों के विषय में बताता है कि माँ की आँखें उस बस के दो पहियों के समान हैं जो तीर्थयात्रा पर पहुँचने से पहले ही पंचर हो जाते है। अर्थात जीवन रूपी यात्रा को पूरा करने से पहले ही माँ की आँखों की रोशनी जा चुकी है। माँ की आँखों को दो पंचर पहिये कहने का एक अर्थ यह भी है कि गरीबी और अभाव में जीवन जीते हुए माता के मन में सुखों को भोगने आशा और उम्मीद समाप्त हो चुकी है। वृद्ध पिता की आँखों के भावों का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि पिता की आँखें लोहसांय की ठंडी शलाखों के समान निस्तेज हो चुकी हैं अर्थात युवावस्था में पिता की आँखों में जो जोश और तेज हुआ करता था, वह गरीबी से लड़ते हुए ठंडा पड़ गया है। बेटी की आँखों में कवि को भोलापन, उत्साह, पवित्रता और उमंग दिखाई देती है। इसलिए कवि ने बेटी की आँखों को मंदिर में जलते हुए उस दीए की तरह कहा जो कवि को अपने संघर्षों में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है और कवि को आस्था व विश्वास की शक्ति देता है। पत्नी की आँखों के भाव कवि इस प्रकार कहता है कि उसे पत्नी की आँखों में धैर्य और सांत्वना दिखाई देती है। उसकी पत्नी प्रत्येक दुख-सुख में, विषम परिस्थिति में, संकट में कवि का साथ देती है और कवि के डगमगाते हुए साहस, आत्मविश्वास को अपनी सांत्वना का सहारा देती है।
विशेष –
- प्रतीकात्मक और लाक्षणिक खड़ी बोली हिंदी।
- नवीन उपमानों का प्रयोग।
- मुक्त छंद का प्रयोग।
- ‘पंचर पहिए’ और ‘पड़ाव से पहले’ में अनुप्रास अलंकार।
- माधुर्य गुण का प्रयोग।
- करूण रस है।
वैसे हम स्वजन हैं, करीब हैं
बीच की दीवार के दोनों ओर
क्योंकि हम पेशेवर गरीब हैं।
रिश्ते हैं लेकिन खुलते नहीं हैं
और हम अपने खून में इतना भी लोहा
नहीं पाते,
कि हम उससे एक ताली बनवाते
और भाषा के भुन्ना-सी ताले को खोलते,
रिश्तों को सोचते हुए
आपस में प्यार से बोलते,
कहते कि ये पिता हैं,
यह प्यारी माँ है, यह मेरी बेटी है
पत्नी को थोड़ा अलग
करते – तू मेरी
हमसफर है,
हम थोड़ा जोखिम उठाते
दीवार पर हाथ रखते और कहते
यह मेरा घर है।
शब्दार्थ –
स्वजन – आत्मीय लोग, एक ही परिवार के लोग। भुन्ना-सी – जटिल। जोख़िम – ख़तरा।
संदर्भ – प्रस्तुत काव्यांश हिन्दी की पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग-1 में संकलित कविता ‘घर में वापसी’ का एक अंश है। इस कविता के रचनाकार ‘धूमिल’ हैं।
प्रसंग – इस काव्यांश में कवि परिवार के सदस्यों के निकट होने के बावजूद उनकी आपसी संवादहीनता की विवशता को बताता है।
व्याख्या – कवि कहता है कि समाज की दृष्टि से घर के सभी लोग एक ही परिवार के सदस्य हैं, उनके बीच खून का रिश्ता है, वे एक-दूसरे के करीब हैं किन्तु वास्तविकता इससे बहुत अलग है। वास्तव में वे गरीबी के कारण रिश्तों की निकटता को महसूस नहीं कर पाते। निर्धनता की दीवार उनके रिश्तों के बीच खड़ी है और वे एक छत के नीचे रह कर भी एक-दूसरे से अपने मन की बात नहीं कह पाते। गरीबी के कारण परिवार के लोगों के मन में उदासीनता छा गई है। निर्धनता ने उनके बीच पीड़ा की दरार डाल दी है। वे चाहकर भी एक-दूसरे के प्रति दायित्वों का निर्वाह नहीं कर पाते। पारिवारिक सम्बन्धों में बिखराव आ गया है। वे एक दूसरे के दुख के बारे में जान पाने और आपसी दूरी को समाप्त करने का साहस भी नहीं जुटा पाते। कवि कहता है कि गरीबी के थपेड़ों ने उनको मानसिक रूप से इतना कमजोर कर दिया है कि वे गरीबी से उपजी इस संवादहीनता की दीवार को गिरा पाते और अपनेपन के अहसास को अपने स्वर में भरकर परस्पर प्यार से बाते करते और कहते कि ये मेरे पिता हैं, ये मेरी प्यारी माँ है और यह मेरी पुत्री है। पत्नी से विशेष प्रेम प्रकट करते हुए कहते कि तू मेरी जीवनसाथी है। कवि उम्मीद करता है कि काश! घर के सदस्य कम-से-कम इतना साहस जुटा पाते कि संबंधों में आई जड़ता की दीवार को गिरकर अपने परिवार को प्रेम के एक सूत्र में बाँध पाने के लिए बातचीत का रास्ता अपना पाते।
विशेष –
- प्रतीकात्मक और लाक्षणिक खड़ी बोली हिंदी।
- नवीन उपमानों का प्रयोग।
- उर्दू के शब्दों का प्रयोग।
- मुक्त छंद का प्रयोग।
- ‘भाषा के भुन्ना सी’ में उपमा अलंकार।
- माधुर्य गुण का प्रयोग।
- करूण रस है।
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घर में वापसी (प्रश्न-उत्तर)
प्रश्न – घर एक परिवार है, परिवार में पाँच सदस्य हैं, कितु कवि पाँच सदस्य नहीं उन्हें पाँच जोड़ी
आँखें मानता है। क्यों?
उत्तर – कवि कहता है कि उसके घर में पाँच जोड़ी आँखें हैं अर्थात पाँच सदस्य है। कवि द्वारा परिवार के सदस्यों को पाँच जोड़ी आँखों के रूप में संबोधित करने करने कारण यह है कि परिवार के सदस्यों के बीच संवादहीनता है और वे एक-दूसरे को देखते भर हैं। गरीबी के कष्टों को सहते हुए वे परस्पर बात नहीं कर पाते, लेकिन उनके मन की पीड़ा उनकी आँखों से व्यक्त हो जाती है। वे एक दूसरे के दुखों को देखते हुए भी उनके बारे में बात करने से बचते हैं।
प्रश्न -‘पत्नी की आँखें आँखें नहीं हाथ हैं, जो मुझे थामे हुए हैं’ से कवि का क्या अभिप्राय है?
उत्तर – पत्नी की आँखों के भाव कवि इस प्रकार कहता है कि उसे पत्नी की आँखों में धैर्य और सांत्वना दिखाई देती है। उसकी पत्नी प्रत्येक दुख-सुख में, विषम परिस्थिति में, संकट में कवि का साथ देती है और कवि के डगमगाते हुए साहस, आत्मविश्वास को अपनी सांत्वना का सहारा देती है।
प्रश्न – ‘वैसे हम स्वजन हैं, करीब हैं—-क्योंकि हम पेशेवर गरीब हैं’ से कवि का क्या आशय है?
अगर अमीर होते तो क्या स्वजन और करीब नहीं होते?
उत्तर – कवि कहता है कि समाज की दृष्टि से घर के सभी लोग एक ही परिवार के सदस्य हैं, उनके बीच खून का रिश्ता है, वे एक-दूसरे के करीब हैं किन्तु वास्तविकता इससे बहुत अलग है। वास्तव में वे गरीबी के कारण रिश्तों की निकटता को महसूस नहीं कर पाते। निर्धनता की दीवार उनके रिश्तों के बीच खड़ी है और वे एक छत के नीचे रह कर भी एक-दूसरे से अपने मन की बात नहीं कह पाते। गरीबी के कारण परिवार के लोगों के मन में उदासीनता छा गई है। निर्धनता ने उनके बीच पीड़ा की दरार डाल दी है। वे चाहकर भी एक-दूसरे के प्रति दायित्वों का निर्वाह नहीं कर पाते।
प्रश्न – ‘रिश्ते हैं लेकिन खुलते नहीं’ – कवि के सामने ऐसी कौन सी विवशता है जिससे आपसी
रिश्ते भी नहीं खुलते हैं?
उत्तर – निर्धनता ने उनके बीच पीड़ा की दरार डाल दी है। वे चाहकर भी एक-दूसरे के प्रति दायित्वों का निर्वाह नहीं कर पाते। पारिवारिक सम्बन्धों में बिखराव आ गया है। वे एक दूसरे के दुख के बारे में जान पाने और आपसी दूरी को समाप्त करने का साहस भी नहीं जुटा पाते।
प्रश्न – निम्नलिखित का काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए –
(क) माँ की आँखें पड़ाव से पहले ही तीर्थ-यात्रा की बस के दो पंचर पहिए हैं।
उत्तर –
भाव सौंदर्य – कवि वृद्धा माँ की आँखों के विषय में बताता है कि माँ की आँखें उस बस के दो पहियों के समान हैं जो तीर्थयात्रा पर पहुँचने से पहले ही पंचर हो जाते है। अर्थात जीवन रूपी यात्रा को पूरा करने से पहले ही माँ की आँखों की रोशनी जा चुकी है। माँ की आँखों को दो पंचर पहिये कहने का एक अर्थ यह भी है कि गरीबी और अभाव में जीवन जीते हुए माता के मन में सुखों को भोगने आशा और उम्मीद समाप्त हो चुकी है।
शिल्प सौंदर्य –
- प्रतीकात्मक और लाक्षणिक खड़ी बोली हिंदी।
- नवीन उपमानों का प्रयोग।
- मुक्त छंद का प्रयोग।
- माधुर्य गुण का प्रयोग।
- करूण रस है।
(ख) पिता की आँखें लोहसाँय की ठंडी शलाखें हैं।
उत्तर –
भाव सौन्दर्य – वृद्ध पिता की आँखों के भावों का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि पिता की आँखें लोहसांय की ठंडी शलाखों के समान निस्तेज हो चुकी हैं अर्थात युवावस्था में पिता की आँखों में जो जोश और तेज हुआ करता था, वह गरीबी से लड़ते हुए ठंडा पड़ गया है।
शिल्प सौंदर्य
- प्रतीकात्मक और लाक्षणिक खड़ी बोली हिंदी।
- नवीन उपमानों का प्रयोग।
- मुक्त छंद का प्रयोग।
- माधुर्य गुण का प्रयोग।
- करूण रस है।
क्विज/टेस्ट
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