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हस्तक्षेप
(व्याख्या)
कोई छींकता तक नहीं
इस डर से
कि मगध की शांति
भंग न हो जाए,
मगध को बनाए रखना है, तो,
मगध में शांति
रहनी ही चाहिए
मगध है, तो शांति है
शब्दार्थ :- भंग – समाप्त।
संदर्भ :- व्याख्येय पद्यांश अंतरा भाग 1 में संकलित कवि ‘श्रीकांत वर्मा’ द्वारा रचित कविता ‘हस्तक्षेप’ से उद्धृत है।
प्रसंग :- इस पद्यांश में सत्ता की क्रूरता और उसके कारण पैदा होनेवाले प्रतिरोध को दिखाया गया है। इन पंक्तियों में कवि ने ‘छींक’ शब्द का प्रयोग व्यवस्था पर व्यंग्य के रूप में किया है।
व्याख्या :- ‘छींकना’ किसी भी व्यक्ति द्वारा किया जाने वाली नितांत वैयक्तिक क्रिया है। लेकिन मगध के लोग वो भी नहीं कर सकते। उन्हें डर है कहीं उनके छींकने की आवाज से कहीं मगध की शांति भंग न हो जाए। तात्पर्य है कि मगध की शासन व्यवस्था लोगों पर अन्याय करती है। लोगों में इतनी व्याकुलता है, जिसे देखकर लगता है कि मगध की शांति के लिए अब आवाज उठानी ही चाहिए। लोगों पर दबाव बनाया जा रहा है कि इसका विद्रोह किया गया तो मगध का अस्तित्व नष्ट हो जाएगा। कहने का तात्पर्य यह है कि यदि कोई व्यक्ति मगध के शासन के खिलाफ आवाज़ उठाता है, तो उस पर दबाव डाल दिया जाता है। मगध की सत्ता शांति के नाम पर लोगों की विद्रोही आवाज को दबा देना चाहती है।
विशेष :-
कोई चीखता तक नहीं
इस डर से
कि मगध की व्यवस्था में
दखल न पड़ जाए
मगध में व्यवस्था रहनी ही चाहिए
मगध में न रही
तो कहाँ रहेगी?
क्या कहेंगे लोग?
लोगों का क्या?
लोग तो यह भी कहते हैं
मगध अब कहने को मगध है,
रहने को नहीं
शब्दार्थ :- दखल – रुकावट।
संदर्भ :- व्याख्येय पद्यांश अंतरा भाग 1 में संकलित कवि ‘श्रीकांत वर्मा’ द्वारा रचित कविता ‘हस्तक्षेप’ से उद्धृत है।
प्रसंग :- इस पद्यांश में सत्ता की क्रूरता और उसके कारण पैदा होनेवाले प्रतिरोध को दिखाया गया है। इन पंक्तियों में कवि ने ‘चीख’ शब्द का प्रयोग व्यवस्था पर व्यंग्य के रूप में किया है।
व्याख्या :- ‘चीखना’ किसी भी व्यक्ति द्वारा किया जाने वाली नितांत वैयक्तिक क्रिया है। यदि किसी को असहनीय कष्ट हो तो चीख निकालना स्वाभाविक है लेकिन मगध के लोग अपने दर्द को चुपचाप सहन कर लेते है। अत्याचारी शासन का मानना है कि किसी को अपनी पीड़ा का दर्द बताना मगध में अपराध है, क्योंकि इससे मगध की व्यवस्था में रुकावट पैदा होगी। मगध साम्राज्य की बदनामी न हो, इसलिए सत्ता लोगों पर दबाव बनाती है कि वे इस साम्राज्य की मर्यादा को बनाए रखें अर्थात अन्याय के खिलाफ को बिल्कुल भी आवाज़ न उठाएं। अगर वे अपनी चुप्पी तोड़ेंगे और इस मगध साम्राज्य के विषय में लोगों के सामने आवाज उठाएंगे, तो यहां की शासन व्यवस्था नष्ट हो सकती है। इससे यहाँ रहने वाले मगधवासियों पर बुरा असर पड़ सकता है।
विशेष :-
- मगध में किसी भी प्रकार के विरोध के लिए गुंजाइश नहीं छोड़ी गई है।
कोई टोकता तक नहीं
इस डर से
कि मगध में
टोकने का रिवाज न बन जाए
एक बार शुरू होने पर
कहीं नहीं रुकता हस्तक्षेप-
वैसे तो मगधनिवासियो
कितना भी कतराओ
तुम बच नहीं सकते हस्तक्षेप से-
जब कोई नहीं करता
तब नगर के बीच से गुजरता हुआ
मुर्दा
यह प्रश्न कर हस्तक्षेप करता है-
मनुष्य क्यों मरता है?
शब्दार्थ :- हस्तक्षेप – रोकना, प्रश्न उठाना। रिवाज – चलन, प्रथा। कतराओ – बचो, सामने न आओ
संदर्भ :- व्याख्येय पद्यांश अंतरा भाग 1 में संकलित कवि ‘श्रीकांत वर्मा’ द्वारा रचित कविता ‘हस्तक्षेप’ से उद्धृत है।
प्रसंग :- इस पद्यांश में सत्ता की क्रूरता और उसके कारण पैदा होनेवाले प्रतिरोध को दिखाया गया है। इन पंक्तियों में कवि ने ‘टोकना’ शब्द का प्रयोग व्यवस्था पर व्यंग्य के रूप में किया है।
व्याख्या :- कवि के अनुसार मगध-शासन की अनुचित बातों पर कोई प्रश्न तक नहीं करता क्योंकि सत्ता मानती है कि ऐसा करने से सत्ता का विरोध करने की परंपरा आरंभ हो जाएगी। इसलिए मगध की जनता अन्याय स्वीकार करती है, लेकिन उसके खिलाफ कोई विरोध नहीं करती और चुपचाप अन्याय को सहन कर रही है। मगध में रहने वाले सब लोग यह जानते हैं कि अगर वे विरोध करेंगे, तो अन्याय से मुक्त हो सकते हैं। इससे, बाकी लोगों को भी मुक्ति मिल सकती है। मगर वे डर से ऐसा नहीं कर रहे हैं। अंत में कवि कहता है कि जब जीते जागते लोग विरोध की आवाज नहीं उठाते तो नगर से गुजरने वाला एक मुर्दा प्रश्न करता है कि मनुष्य क्यों मरता है? अर्थात कवि सवाल खड़ा करता है कि जहाँ मुर्दे का भी हस्तक्षेप करना संभव है उस समाज में जीता-जागता मनुष्य चुप क्यों है?
विशेष :-
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हस्तक्षेप
(प्रश्न-उत्तर)
प्रश्न :- मगध के माध्यम से ‘हस्तक्षेप’ कविता किस व्यवस्था की ओर इशारा कर रही है?
उत्तर :- मगध के माध्यम से ‘हस्तक्षेप’ कविता ऐसी व्यवस्था की ओर इशारा कर रही है जहाँ किसी भी प्रकार के विरोध के लिए गुंजाइश नहीं छोड़ी गई है।
प्रश्न :- व्यवस्था को ‘निरंकुश’ प्रवृत्ति से बचाए रखने के लिए उसमें ‘हस्तक्षेप’ जरूरी है – कविता को दृष्टि में रखते हुए अपना मत दीजिए।
उत्तर :- व्यवस्था को ‘निरंकुश’ प्रवृत्ति से बचाए रखने के लिए ‘हस्तक्षेप’ जरूरी है क्योंकि यदि एक बार व्यवस्था निरंकुश हो गई तो नागरिक अपने अधिकारों की रक्षा नहीं कर सकेंगें| जनता के सकारात्मक हस्तक्षेप से ही शासन पर अंकुश लगाया जा सकता है।
प्रश्न :- मगध निवासी किसी भी प्रकार से शासन व्यवस्था में हस्तक्षेप करने से क्यों कतराते हैं?
उत्तर :- मगध निवासियों को डर है कि कहीं इस व्यवस्था के खिलाफ आवाज़ उठाने से सत्ता उनको बेवजह परेशान न करने लगे। इसलिए मगध निवासी किसी भी प्रकार से शासन व्यवस्था में हस्तक्षेप करने से क्यों कतराते हैं।
प्रश्न :- ‘मगध अब कहने को मगध है, रहने को नहीं’ – के आधार पर मगध की स्थिति का अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर :- मगध में तंत्र की निरंकुशता लगातार बढ़ रही है जिससे जनता परेशान है। लोगो की आवाजों को दबा दिया जाता है। अत्याचारों को सहते-सहते उनकी सहनशीलता जवाब दे गई है। यही कारण है कि अब कहा जाने लगा है ‘मगध अब कहने को मगध है, रहने को नहीं।’
प्रश्न :- मुर्दे का हस्तक्षेप क्या प्रश्न खड़ा करता है? प्रश्न की सार्थकता को कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :- कविता के अंत में कवि कहता है कि जब जीते जागते लोग विरोध की आवाज नहीं उठाते तो नगर से गुजरने वाला एक मुर्दा प्रश्न करता है कि मनुष्य क्यों मरता है? अर्थात कवि सवाल खड़ा करता है कि जहाँ मुर्दे का भी हस्तक्षेप करना संभव है उस समाज में जीता-जागता मनुष्य चुप क्यों है?
प्रश्न :- ‘मगध को बनाए रखना है, तो, मगध में शांति रहनी ही चाहिए’ – भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :- भाव है कि मगध की शासन व्यवस्था लोगों पर अन्याय करती है। लोगों में इतनी व्याकुलता है, जिसे देखकर लगता है कि मगध की शांति के लिए अब आवाज उठानी ही चाहिए। लोगों पर दबाव बनाया जा रहा है कि इसका विद्रोह किया गया तो मगध का अस्तित्व नष्ट हो जाएगा।
प्रश्न :- ‘हस्तक्षेप’ कविता सत्ता की क्रूरता और उसके कारण पैदा होनेवाले प्रतिरोध की कविता है – स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :- पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘हस्तक्षेप’ कविता में सत्ता की क्रूरता और उसके कारण पैदा होनेवाले प्रतिरोध को दिखाया गया है। व्यवस्था को जनतांत्रिक बनाने के लिए समय-समय पर उसमें हस्तक्षेप की जरूरत होती है वरना व्यवस्था निरंकुश हो जाती है। इस कविता में ऐसे ही तंत्र का वर्णन है जहाँ किसी भी प्रकार के विरोध के लिए गुंजाइश नहीं छोड़ी गई है। कवि सवाल खड़ा करता है कि जहाँ मुर्दे का भी हस्तक्षेप करना संभव है उस समाज में जीता-जागता मनुष्य चुप क्यों?
प्रश्न :- निम्नलिखित लाक्षणिक प्रयोगों को स्पष्ट कीजिए –
(क) कोई छींकता तक नहीं
उत्तर :- ‘छींकना’ किसी भी व्यक्ति द्वारा किया जाने वाली नितांत वैयक्तिक क्रिया है। लेकिन मगध के लोग वो भी नहीं कर सकते। उन्हें डर है कहीं उनके छींकने की आवाज से कहीं मगध की शांति भंग न हो जाए। तात्पर्य है कि मगध की शासन व्यवस्था लोगों पर अन्याय करती है। लोगों में इतनी व्याकुलता है, जिसे देखकर लगता है कि मगध की शांति के लिए अब आवाज उठानी ही चाहिए। लोगों पर दबाव बनाया जा रहा है कि इसका विद्रोह किया गया तो मगध का अस्तित्व नष्ट हो जाएगा।
(ख) कोई चीखता तक नहीं
उत्तर :- ‘चीखना’ किसी भी व्यक्ति द्वारा किया जाने वाली नितांत वैयक्तिक क्रिया है। यदि किसी को असहनीय कष्ट हो तो चीख निकालना स्वाभाविक है लेकिन मगध के लोग अपने दर्द को चुपचाप सहन कर लेते है। अत्याचारी शासन का मानना है कि किसी को अपनी पीड़ा का दर्द बताना मगध में अपराध है, क्योंकि इससे मगध की व्यवस्था में रुकावट पैदा होगी।
(ग) कोई टोकता तक नहीं
उत्तर :- निरंकुश शासन में लोगों पर अत्याचार होते हैं परन्तु कोई सत्ता से सवाल नहीं पूछता है, जबकि लोकतंत्र के लिए हस्तक्षेप आवश्यक है।
प्रश्न :- निम्नलिखित पद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए –
(क) मगध को बनाए रखना है, तो,———-मगध है, तो शांति है
उत्तर :- इसके लिए कविता का व्याख्या भाग देखें।
(ख) मगध में व्यवस्था रहनी ही चाहिए———-क्या कहेंगे लोग?
उत्तर :- इसके लिए कविता का व्याख्या भाग देखें।
(ग) जब कोई नहीं करता———-मनुष्य क्यों मरता है?
उत्तर :- इसके लिए कविता का व्याख्या भाग देखें।
योग्यता-विस्तार
प्रश्न :- ‘एक बार शुरू होने पर
कहीं नहीं रुकता हस्तक्षेप’
इस पंक्ति को केंद्र में रखकर परिचर्चा आयोजित करें।
उत्तर :- छात्र स्वयं करें।
प्रश्न :- ‘व्यक्तित्व के विकास में प्रश्न की भूमिका’ विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर :- छात्र स्वयं करें।
क्विज/टेस्ट
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