कक्षा 11 » हुसैन की कहानी (मक़बूल फिदा हुसैन)

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हुसैन की कहानी अपनी जबानी
(पाठ का सार)

शब्दार्थ :-

मजहबी – धर्म विशेष से संबंध रखने वाली / वाला। पाकीजगी – शुद्धता, पवित्रता। अरके तिहाल – यूनानी दवा का एक नाम। सालन – शोरबादार तरकारी / रसेदार सब्जी। हीले – बहाने, टालमटोल। अत्तर (अतर) – सुगंध, इत्र। दिलकश – मन को लुभाने वाला, चित्ताकर्षक। पोर्ट्रेट – हाथ की बनी तसवीर। मेहतरानी – सप़्ाफ़ाई का काम करने वाली स्त्री। स्केच – चित्र। सिजदा – माथा टेकना, खुदा के आगे सिर झुकाना। टिटेड पेपर – चित्रकला में प्रयुक्त होने वाला कागज। रोशन खयाली  – आजाद खयाली, खुले दिमाग का, अच्छे खयाल रखने वाले। रिवायती – पारंपरिक।

मकबूल फ़िदा हुसैन की आत्मकथा ‘हुसैन की कहानी अपनी जबानी’ का एक अंश ‘बड़ौदा का बोर्डिंग स्कूल’ उनके विद्यालय जीवन से जुड़ा हुआ है। यहाँ उनकी रचनात्मक प्रतिभा के अंकुर फूटे, उनके कस्बे कमाल हुनर की पहचान हुई। बड़ौदा का वह स्कूल जहाँ हुसैन की चित्रकारी का अंकुर फूटा, आज पूरी दुनिया का गर्व बना हुआ है। दूसरा अंश है, ‘रानीपुर बाजार’ जहाँ हुसैन को व्यापार की ओर मोड़ा जा रहा था, कितु उनकी चित्रकारी का जादू अपनी ही राह तलाशता रहा और अंततः पिताजी की रोशनखयाली ने उन्हें एक महान चित्रकार बना दिया जिससे वे जिदगी के रंगों से भर गए। निश्चित रूप से उनके जीवन के ये दोनों महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम विद्यार्थी जीवन से जुड़े हैं। यदि प्रतिभा विकास का सही अवसर और सही दिशा मिल जाए तो जीवन धन्य हो सकता है। विद्यार्थी, अध्यापक और अभिभावक इससे अवश्य प्रेरणा ग्रहण करेंगे, ऐसा विश्वास है।

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हुसैन की कहानी अपनी जबानी
(प्रश्न-उत्तर)

प्रश्न – लेखक ने अपने पाँच मित्रें के जो शब्द-चित्र प्रस्तुत किए हैं, उनसे उनके अलग-अलग व्यक्तित्व की झलक मिलती है। फिर भी वे घनिष्ठ मित्र हैं, कैसे?

उत्तर – लेखक के पाँचों मित्रों की सोच में कलाकार की सोच विद्यमान थी। उनकी मित्रता स्वार्थ पर आधारित नहीं थी। इसलिए उनके व्यक्तित्व अलग-अलग होने पर भी वे घनिष्ठ मित्र थे।

प्रश्न – आप इस बात को कैसे कह सकते हैं कि लेखक का अपने दादा से विशेष लगाव रहा?

उत्तर – लेखक को अपने दादा से विशेष लगाव था, ऐसा निम्न आधार पर कहा जा सकता है-

  1. वह अपने दादा के पास पूरा दिन बैठकर उनसे बातें करके गुजारा करते थे।
  2. दादा की मृत्यु के बाद उसे अपना जीवन सूना लगने लगा था वह अब दादाजी के कमरे में दिन भर रहता ना किसी से बोलचाल करता और ना खाने के विषय में सोचता वह भूखा प्यासा दादा की स्मृतियों में खोया रहता।
  3. घर परिवार के लोग उसके इस व्यवहार से काफी चिंतित थे क्योंकि उसका दिनभर कमरे में बैठा रहना और उनकी यादों में खोया रहना उसके शरीर पर विपरीत प्रभाव डाल रहा था।

प्रश्न – ‘लेखक जन्मजात कलाकार है।’-इस आत्मकथा में सबसे पहले यह कहाँ उद्घाटित होता है?

उत्तर – लेखक बचपन में अपने घर तथा चाचा की दुकान पर बैठकर चित्रकारी किया करता था, लेकिन जन्मजात कलाकार की पहचान बोर्डिंग स्कूल में होती है। मास्टर जी द्वारा ब्लैक बोर्ड पर बनाए गए चिड़िया को लेखक ने अपने स्लेट पर हू-बहू उतार दिया था। इससे पता चलता है कि लेखक जन्मजात कलाकार है।

प्रश्न – दुकान पर बैठे-बैठे भी मकबूल के भीतर का कलाकार उसके किन कार्यकलापों से अभिव्यक्त होता है?

उत्तर – दुकान पर बैठे-बैठे मकबूल बिजनेस में अधिक ध्यान नहीं लगाता था। वह हमेशा चित्रकारी किया करता था। यह उसके मनोरंजन का एक साधन भी था। दुकान तथा बाजार में आए हुए लोगों की चित्र बनाया करता था। इस प्रकार उसने ‘घुंघट वाली मेहतरानी’, ‘पेच वाली पगड़ी’, ‘पठान की दाढ़ी’ और ‘बकरी के बच्चे’ आदि का स्केच बनाया जो पाठ में मुख्य रूप से बताया गया है। उसने स्केच को और अधिक खूबसूरत बनाने के लिए अपने पढ़ाई की पुस्तकों को भी बेच दिया था।

प्रश्न – प्रचार-प्रसार के पुराने तरीकों और वर्तमान तरीकों में क्या फ़र्क आया है? पाठ के आधार पर बताएँ। 

उत्तर –  पूर्व समय में प्रचार-प्रसार के लिए घोड़े-तांगे, रिक्शा आदि का प्रयोग किया जाता था। तांगों पर बैठकर सिनेमा तथा मनोरंजन आदि का विज्ञापन किया जाता था। इसमे बहुत अधिक समय लगता था। पूर्व समय में जहां कम लोगों तक अधिक परिश्रम करके पहुंचा जाता था।

वर्तमान समय में किसी भी प्रकार के विज्ञापन के लिए रेडियो, टेलिविजन, होर्डिंग आदि का प्रयोग किया जाता है।  आज कम परिश्रम में अधिक लोगों तक पहुंचा जा सकता है। आज के विज्ञापन पूर्व समय के विज्ञापनों से ज्यादा आकर्षक और रुचिकर होते हैं। सारा काम लगभग कंप्यूटर से हो जाता है ऑयल पेंटिंग तथा कलर पेंटिंग आदि का विशेष प्रयोग नहीं किया जाता।

प्रश्न – कला के प्रति लोगों का नजरिया पहले कैसा था? उसमें अब क्या बदलाव आया है?

उत्तर – पहले समय के लोग सीमित संसाधनों से परिचित थे। जिसके कारण वह सीमित सोच तक सिमटे हुए थे। उन्हें कला के प्रति ज्यादा जानकारी नहीं थी। आज कला का विकास चारों ओर हो चुका है, किसी भी क्षेत्र में कला की पूजा की जाती है। यह एक रोजगार का साधन भी है। संगीत, चित्रकारी, खेल आदि जितने भी प्रकार के क्षेत्र है उसमे उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले को पूरी दुनिया जानती और सम्मान करती है। लोग उससे मिलने के लिए लालायित रहते हैं। पूर्व समय में ऐसा नहीं था ए क्योंकि गांव कस्बों तक इसके विषय में कोई नहीं जानता था।

प्रश्न – इस पाठ में मकबूल के पिता के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी बातें उभरकर आई हैं?

उत्तर – मकबूल के पिता का चरित्र इस पाठ में पुत्र का साथ देने वाले पिता के रूप में आया है। वे मकबूल के साथ वात्सल्य पूर्ण व्यवहार करते हैं। अपने पुत्र की प्रतिभा को पहचान कर उसकी सराहना करते हैं। वे पुत्र के सपनो को साकार करने में साथ देने वाले पिता के रूप में नजर आते हैं।


टेस्ट/क्विज

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