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प्रश्न – कहानी क्या है?
उत्तर – किसी घटना, पात्र या समस्या का क्रमबद्ध ब्योरा जिसमें परिवेश हो, द्वंद्वात्मकता हो, कथा का क्रमिक विकास हो, चरम उत्कर्ष का बिदु हो, उसे कहानी कहा जाता है।
प्रश्न – कहानी के विकास पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- जहाँ तक कहानी के इतिहास का सवाल है, वह उतना ही पुराना है जितना मानव इतिहास, क्योंकि कहानी, मानव स्वभाव और प्रकृति का हिस्सा है। धीरे-धीरे कहानी कहने की आदिम कला का विकास होने लगा। कथावाचक कहानियाँ सुनाते थे। किसी घटना-युद्ध, प्रेम, प्रतिशोध के किस्से सुनाए जाते थे। मानव स्वभाव का एक गुण कल्पना भी है। सच्ची घटनाओं पर आधारित कथा-कहानी सुनाते-सुनाते उसमें कल्पना का सम्मिश्रण भी होने लगा, क्योंकि प्रायः मनुष्य वह सुनना चाहता है जो उसे प्रिय है। मान लीजिए हमारा नायक कहीं युद्ध में हार ही क्यों न जाए लेकिन यदि वह नायक है तो हम यह सुनना चाहेंगे कि वह कितनी वीरता से लड़ा और कितनी बहादुरी से उसने एक अच्छेउद्देश्य के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। नायक की वीरता का अच्छा बखान करने वाले कथावाचक की सब प्रशंसा करेंगे और उसे इनाम देंगे। कथावाचक सुनने वालों की आवश्यकतानुसार अपनी कल्पना के माध्यम से नायक के गुणों का बखान करेगा। मौखिक कहानी की परंपरा हमारे देश में बहुत पुरानी है और देश के कई भागाें, विशेष रूप से राजस्थान में प्रचलित है। प्राचीन काल में मौखिक कहानियों की लोकप्रियता इसलिए भी थी कि इससे बड़ा संचार का कोई और माध्यम नहीं था। इस कारण धर्म प्रचारकों ने भी अपने सिद्धांत और विचार लोगों तक पहुँचाने के लिए कहानी का सहारा लिया था। यही नहीं बल्कि शिक्षा देने के लिए भी कहानी की विधा का प्रयोग किया गया, जैसे पंचतंत्र की कहानियाँ लिखी गईं जो बहुत शिक्षाप्रद हैं। इस तरह आदिकाल में ही कहानी के साथ ‘उद्देश्य’ का सम्मिश्रण हो गया था जो आगे चल कर और विकसित हुआ।
प्रश्न – कहानी के कौन-कौन-से तत्व होते हैं?
उत्तर – कहानी के निम्नलिखित तत्व होते हैं-
- कथानक
- द्वंद्व
- देशकाल और वातावरण
- पात्र
- चरित-चित्रण
- संवाद
- चरमोत्कर्ष (क्लाइमैक्स)
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प्रश्न – कहानी के तत्व के रूप में ‘कथानक’ पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – कथानक है – कहानी का वह संक्षिप्त रूप जिसमें प्रारंभ से अंत तक कहानी की सभी घटनाओं और पात्रें का उल्लेख किया गया हो।कथानक कहानी का एक प्रारंभिक नक्शा होता है। उसी तरह जैसे मकान बनाने से पहले एक बहुत प्रारंभिक नक्शा कागज पर बनाया जाता है। कहानी का कथानकआमतौर पर कहानीकार के मन में किसी घटना, जानकारी, अनुभव या कल्पना के कारण आता है। कभी कहानीकार की जानकारी में पूरा कथानक आता है और कभी कथानक का एक सूत्र आता है, केवल एक छोटा-सा प्रसंग या कोई एक पात्र कथाकार को आकर्षित करता है। इसके बाद कथाकार उसे विस्तार देने में जुट जाता है। विस्तार देने का काम कल्पना के आधार पर किया जाता है पर यह समझना बहुत जरूरी है कि कहानीकार की कल्पना ‘कोरी कल्पना’ नहीं होती। ऐसी कल्पना नहीं होती जो असंभव हो। बल्कि ऐसी कल्पना होती है जो संभव हो। कल्पना के विस्तार के लिए लेखक के पास जो सूत्र होता है उसी के माध्यम से कल्पना आगे बढ़ती है। यह सूत्र लेखक को एक परिवेश देता है, पात्र देता है, समस्या देता है। इनके आधार पर लेखक संभावनाओं पर विचार करता है और एक ऐसा काल्पनिक ढाँचा तैयार करता है जो संभावित हो और लेखक के उद्देश्यों से भी मेल खाता हो। उदाहरण के लिए लेखक ने अस्पताल के बाहर एक मरीज को देखा। जानकारी मिली कि यह मरीज पिछले एक सप्ताह से लगातार आ रहा है पर अभी तक उसे यह मौका नहीं मिल सका है कि डॉक्टर को दिखा सके। इस जानकारी के बाद लेखक की कल्पना अस्पताल, वहाँ की व्यवस्था, पात्रें आदि की गतिविधियों पर केंद्रित हो जाएगी। इसके साथ ही वह अपना उद्देश्य भी तय करेगा। क्या वह अस्पताल केंद्रित कहानी लिखना चाहता है या वह केवल आप की पीड़ा तक अपने को सीमित रखेगा या क्या वह इस मानवीय त्रसदी को वर्तमान सामाजिक और राजनैतिक परिस्थितियों से जोड़कर कथानक तैयार करेगा। आमतौर पर कथानक में प्रारंभ, मध्य और अंत-अर्थात कथानक का पूरा स्वरूप होता है।
प्रश्न – कहानी के तत्व के रूप में ‘द्वंद्व’ पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – कथानक न केवल आगे बढ़ता है बल्कि उसमें द्वंद्व के तत्त्व भी होते हैं जो कहानी को रोचक बनाए रखते हैं। द्वंद्व के तत्त्वों से अभिप्राय यह है कि परिस्थितियों में इस काम के रास्ते में यह बाधा है। यह बाधा समाप्त हो गई तो आगे कौन-सी बाधा आ सकती है? या हो सकता है एक बाधा के समाप्त हो जाने या किसी निष्कर्ष पर पहुँच जाने के कारण कथानक पूरा हो जाए। कथानक की पूर्णता की शर्त यही होती है कि कहानी नाटकीय ढंग से अपने उद्देश्य को पूरा करने के बाद समाप्त हो। अंत तक कहानी में रोचकता बनी रहनी चाहिए। यह रोचकता द्वंद्व के कारण ही बनी रह पाएगी।
प्रश्न – कहानी के तत्व के रूप में ‘देशकाल और वातावरण’ पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – कथानक का स्वरूप बन जाने के बाद कहानीकार कथानक के देशकाल तथा स्थान को पूरी तरह समझ लेता है, क्योंकि यह कहानी को प्रामाणिक और रोचक बनाने के लिए बहुत आवश्यक है। उदाहरण के लिए यदि अस्पताल का कथानक है तो अस्पताल का पूरा परिवेश, ध्वनियाँ, लोग, कार्य-व्यापार और लोगों के पारस्परिक संबंध, नित्य घटने वाली घटनाएँ आदि का जानना आवश्यक है। लेखक जब अपने कथानक के आधार पर कहानी को विस्तार देता है तो उसमें इन सब जानकारियों की बहुत आवश्यकता होती है।
प्रश्न – कहानी के तत्व के रूप में ‘पात्र’ पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – कथानक का स्वरूप बन जाने के बाद कहानीकार कथानक के देशकाल तथा स्थान को पूरी तरह समझ लेता है, क्योंकि यह कहानी को प्रामाणिक और रोचक बनाने के लिए बहुत आवश्यक है। उदाहरण के लिए यदि अस्पताल का कथानक है तो अस्पताल का पूरा परिवेश, ध्वनियाँ, लोग, कार्य-व्यापार और लोगों के पारस्परिक संबंध, नित्य घटने वाली घटनाएँ आदि का जानना आवश्यक है। लेखक जब अपने कथानक के आधार पर कहानी को विस्तार देता है तो उसमें इन सब जानकारियों की बहुत आवश्यकता होती है।
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प्रश्न – कहानी के तत्व के रूप में ‘चरित-चित्रण’ पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – पात्रों का चरित्र-चित्रण करने अर्थात उन्हें कहानी में कथानक की आवश्यकतानुसार अधिक से अधिक प्रभावशाली ढंग से लाने के कई तरीके हैं। चरित्र-चित्रण का सबसे सरल तरीका पात्रों के गुणों का कहानीकार द्वारा बखान है। पात्रों का चरित्र-चित्रण करने अर्थात उन्हें कहानी में कथानक की आवश्यकतानुसार अधिक से अधिक प्रभावशाली ढंग से लाने के कई तरीके हैं। चरित्र-चित्रण का सबसे सरल तरीका पात्रोंके गुणों का कहानीकार द्वारा बखान है। पात्रों का चरित्र-चित्रण, पात्रों की अभिरुचियों के माध्यम से भी होता है। समाज में अलग-अलग प्रकार के लोगों की अपने स्वभाव के अनुसार अलग-अलग अभिरुचियाँ होती हैं।
प्रश्न – कहानी के तत्व के रूप में ‘संवाद योजना’ पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – कहानी में पात्रों के संवाद बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। संवाद के बिना पात्र की कल्पना मुश्किल है। संवाद ही कहानी को, पात्र को स्थापित, विकसित करते हैं और
कहानी को गति देते हैं, आगे बढ़ाते हैं। जो घटना या प्रतिक्रिया कहानीकार होती हुई नहीं दिखा सकता, उसे संवादों के माध्यम से सामने लाता है। इसलिए संवादों का महत्त्व बराबर बना रहता है। पात्रोंके संवाद लिखते समय यह अवश्य ध्यान में रहना चाहिए कि संवाद पात्रें के स्वभाव और पूरी पृष्ठभूमि के अनुकूल हों। वह उसके विश्वासों, आदर्शों तथा स्थितियों के भी अनुकूल होने चाहिए। संवाद लिखते समय लेखक गायब हो जाता है और पात्र स्वयं संवाद बोलने लगते हैं। उदाहरण के लिए किसी मजदूर के संवाद ऐसे होने चाहिए कि केवल संवाद सुनकर ही श्रोता को पता चल जाए कि कौन बोल रहा है, यह आदमी क्या करता है, इसकी पृष्ठभूमि क्या है आदि-आदि। संवाद छोटे, स्वाभाविक और उद्देश्य के प्रति सीधे लक्षित होने चाहिए। संवादों का अनावश्यक विस्तार बहुत-सी जटिलताएँ पैदा कर देता है और कहानी में झोल आ जाता है।
प्रश्न – कहानी के तत्व के रूप में ‘चरमोत्कर्ष (क्लाइमैक्स)’ पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – कथानक के अनुसार कहानी चरम उत्कर्ष अर्थात क्लाइमेक्स की ओर बढ़ती है। चरम उत्कर्ष का चित्रण बहुत ध्यानपूर्वक करना चाहिए क्योंकि भावों या पात्रों के अतिरिक्त अभिव्यक्ति चरम उत्कर्ष के प्रभाव को कम कर सकती है। कहानीकार की प्रतिबद्धता या उद्देश्य की पूर्ति के प्रति अतिरिक्त आग्रह कहानी को भाषण में बदल सकते हैं। सर्वोत्तम यह होता है कि चरम उत्कर्ष पाठक को स्वयं सोचने और लेखकीय पक्षधर की ओर आने के लिए प्रेरित करें लेकिन पाठक को यह भी लगे कि उसे स्वतंत्रता दी गई है और उसने जो निर्णय निकाले हैं, वे उसके अपने हैं।
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