अभिव्यक्ति और माध्यम » नाटक लिखने का व्याकरण

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नाटक लिखने का व्याकरण

प्रश्न – नाटक क्या है?

उत्तर – नाटक ही एक ऐसी विधा है, जो हमेशा वर्तमान काल में घटित होती है। यहाँ तक कि नाटक की कहानी बेशक भूतकाल या भविष्यकाल से संबद्ध हो, तब भी उसे वर्तमान काल में ही घटित होना पड़ता है। नाटककार को पहले घटनाओं का चुनाव करना पड़ता है, फिर उन्हें एक निश्चित क्रम में रखना होता है।  एक अच्छा नाटक वही है जो कथा को आपसी बहस-मुबाहिसों से आगे बढ़ाए। नाटक और रंगमंच जैसी विधा का सृजन मूलतः अस्वीकार के भीतर से ही होता है।

प्रश्न – नाटक के प्रमुख तत्व/अंग बताइए।

उत्तर – नाटक के तत्व/अंग निम्न प्रकार हैं-

  1. समय का बंधन
  2. शब्द
  3. कथ्य
  4. संवाद
  5. द्वंद्व (प्रतिरोध)
  6. चरित्र योजना
  7. भाषा शिल्प
  8. ध्वनि योजना
  9. प्रकाश योजना
  10. वेषभूषा
  11. रंगमंचीयता

प्रश्न – नाटक के प्रमुख तत्व के रूप में ‘समय के बंधन’ पर प्रकाश डालिए।

उत्तर – ‘समय का बंधन’ नाटक की रचना पर पूरा असर डालता है, इसीलिए एक नाटक को शुरू से लेकर अंत तक एक निश्चित समय-सीमा के भीतर पूरा होना होता है। नाटककार अगर अपनी रचना को भूतकाल से अथवा किसी और लेखक की रचना को भविष्यकाल से उठाए, इन दोनों ही स्थितियों में उसे नाटक को वर्तमान काल में ही संयोजित करना होता है। एक नाटककार को यह भी सोचना जरूरी है कि दर्शक कितनी देर तक किसी कहानी को अपने सामने घटित होते देख सकता है। नाटक में किसी भी चरित्र का पूरा विकास होना भी जरूरी है। इसलिए समय का ध्यान रखना भी जरूरी हो जाता है।

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प्रश्न – नाटक के प्रमुख तत्व के रूप में ‘शब्द’ पर प्रकाश डालिए।

उत्तर – नाटक का दूसरा महत्त्वपूर्ण अंग है – शब्द। नाटक की दुनिया में शब्द अपनी एक नयी, निजी और अलग अस्मिता ग्रहण करता है। हमारे नाट्यशास्त्र में भी वाचिक अर्थात बोले जाने वाले शब्द को नाटक का शरीर कहा गया है।

प्रश्न – नाटक के प्रमुख तत्व के रूप में ‘कथ्य’ पर प्रकाश डालिए।

उत्तर – नाटक के लिए जरूरी होता है-उसका कथ्य। पहले कहानी के रूप को किसी शिल्प,  संरचना के भीतर उसे पिरोना होता है। इसके लिए नाटककार को शिल्प या संरचना की पूरी समझ, जानकारी या अनुभव होना चाहिए। यह बात हमेशा ध्यान में होनी चाहिए कि नाटक को मंच पर मंचित होना है। यही कारण है कि एक नाटककार को रचनाकार के साथ-साथ एक कुशल संपादक भी होना चाहिए। पहले तो घटनाओं, स्थितियों अथवा दृश्यों का चुनाव, फिर उन्हें किस क्रम में रखा जाए कि वे शून्य से शिखर की तरफ़ विकास की दिशा में आगे बढ़ें, यह कला उसे अवश्य आनी चाहिए।

प्रश्न – नाटक के प्रमुख तत्व के रूप में ‘संवाद’ पर प्रकाश डालिए।

उत्तर – नाटक का सबसे जरूरी और सशक्त माध्यम है-संवाद। दूसरी किसी विधा के लिए यह कतई जरूरी नहीं कि वह संवादों का सहारा ले, लेकिन नाटक का तो उसके बिना काम ही नहीं चल सकता। नाटक के लिए तनाव, उत्सुकता, रहस्य, रोमांच और अंत में उपसंहार जैसे तत्त्व अनिवार्य हैं। इसके लिए आपस में विरोधी विचारधाराओं का संवाद जरूरी होता है। यही कारण है कि नायक-प्रतिनायक, सूत्रधार की परिकल्पना भारतीय या पश्चात्य नाट्यशास्त्र में आरंभ से ही की गई थी।

प्रश्न – नाटक के प्रमुख तत्व के रूप में ‘द्वंद्व (प्रतिरोध)’ पर प्रकाश डालिए।

उत्तर – नाटक स्वयं में एक जीवंत माध्यम है। कोई भी दो चरित्र जब भी आपस में मिलते हैं तो विचारों के आदान-प्रदान में टकराहट पैदा होना स्वाभाविक है। यही कारण है कि रंगमंच प्रतिरोध का सबसे सशक्त माध्यम है। वह कभी भी यथास्थिति को स्वीकार कर ही नहीं सकता। इस कारण उसमें अस्वीकार की स्थिति भी बराबर बनी रहती है। क्योंकि कोई भी जीता-जागता संवेदनशील प्राणी वर्तमान परिस्थितियों को लेकर असंतुष्ट हुए बिना नहीं रह सकता। मजे की बात यह है कि जिस नाटक में इस तरह की असंतुष्टि, छटपटाहट, प्रतिरोध और अस्वीकार जैसे नकारात्मक तत्त्वों की जितनी ज्यादा उपस्थिति होगी वह उतना ही गहरा और सशक्त नाटक साबित होगा।

प्रश्न – नाटक के प्रमुख तत्व के रूप में ‘चरित्र योजना’ पर प्रकाश डालिए।

उत्तर – नाटक लिखते समय यह भी अत्यंत जरूरी है कि नाटक में जो चरित्र प्रस्तुत किए जाएँ वे सपाट, सतही और टाइप्ड न हो। जिस प्रकार हम अपनीरोजमर्रा की जिदगी में किसी भी व्यक्ति को सिप़्ाफ़र् अच्छा या बुरा नहीं कह सकते उसी तरह नाटक की कहानी में भी चरित्रें के विकास में इस बात का ध्यान रखा जाए कि वे स्थितियों के अनुसार अपनी क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं को व्यक्त करते चलें। नाटककार नाटक के कथानक के माध्यम से जो कुछ भी कहना चाहता है उसे अपने चरित्रें और उनके बीच होने वाले परस्पर संवादों से ही अभिव्यक्त करता है।

प्रश्न – नाटक के प्रमुख तत्व के रूप में ‘भाषा शिल्प’ पर प्रकाश डालिए।

उत्तर – संवाद जितने ज्यादा सहज और स्वाभाविक होंगे उतना ही दर्शक के मर्म को छुएँगे। यहाँ सहज स्वाभाविक होने से आशय भाषा की सरलता से कदापि नहीं है। संवाद चाहे कितने भी तत्सम और क्लिष्ट भाषा में क्यों न लिखे गए हों, स्थिति तथा परिवेश की माँग के अनुसार यदि वे स्वाभाविक जान पड़ते हैं तब उनके दर्शकों तक
संप्रेषित होने में कोई मुश्किल नहीं होगी।

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प्रश्न – नाटक के प्रमुख तत्व के रूप में ‘ध्वनि योजना’ पर प्रकाश डालिए।

उत्तर – रंगमंच पर ध्वनि का विशेष महत्व है। बिना ठीक प्रकार से ध्वनि के दर्शकों में अरुचि उत्पन्न करती है। नाटककारो के अनुसार ध्वनि प्रत्येक दर्शक तक स्पष्ट रूप से पहुंचने चाहिए। ध्वनि के ठीक प्रबंधन ना होने के कारण दर्शकों में ऊब पैदा होती है। जिसके कारण दर्शक नाटक में रुचि नहीं ले पाते हैं। ऐसा माना जाता है नाटक में प्रयोग किए गए प्रत्येक शब्द जिस प्रकार अगली पंक्ति में बैठा हुआ व्यक्ति सुन पाता है। ठीक उसी प्रकार वह प्रत्येक शब्द पिछली से पिछली पंक्ति में बैठा हुआ व्यक्ति भी सुन पाए ऐसी योजना की जानी चाहिए।

प्रश्न – नाटक के प्रमुख तत्व के रूप में ‘प्रकाश योजना’ पर प्रकाश डालिए।

उत्तर – नाट्य रंगमंच पर प्रकाश योजना का विशेष महत्व है। बिना प्रकाश योजना के नाटक का सफल आयोजन करना असंभव है। प्रकाश योजना दर्शकों में उत्साह और रोमांच उत्पन्न करती है। इसके माध्यम से दृश्य का सटीक विवरण दर्शकों तक पहुंच पाता है। प्रकाश की उचित व्यवस्था ना होने के कारण नाटक नीरस प्रतीत होता है। प्रकाश योजना के माध्यम से वातावरण और स्थिति भी ठीक प्रकार से बताई जा सकती है।

प्रश्न – नाटक के प्रमुख तत्व के रूप में ‘रंगमंचीयता’ पर प्रकाश डालिए।

उत्तर – नाटक को दृश्य काव्य माना गया है। अर्थात नाटक वह है जिसको भाव भंगिमा के द्वारा रंगशाला में अभिनय किया जा सके। नाटक का उद्देश्य ही रंगमंच पर अभिनय करना है। नाटकों की रचना रंगमंच को ध्यान में रखकर की जाती है। वह सभी नाटक सफल है जो रंगमंच पर अभिनय किया जा सके।

प्रश्न – नाटक के प्रमुख तत्व के रूप में ‘उद्देश्य’ पर प्रकाश डालिए।

उत्तर- किसी भी साहित्य का उद्देश्य उसके कथावस्तु में निहित होता है। किसी भी प्रकार की रचना का कुछ ना कुछ उद्देश्य होता है अर्थात जब किसी रचना के लिए कोई व्यक्ति प्रेरित होता है तो उसकी प्रेरणा का स्रोत कहीं ना कहीं अवश्य होता है। कुछ साहित्य  सामाजिक, आर्थिक, ऐतिहासिक, धार्मिक या मनोरंजन अनेक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए लिखे जाते हैं।

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