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गीत गाने दो मुझे
प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न – कंठ रुक रहा है, काल आ रहा है – यह भावना कवि के मन में क्यों आई?
उत्तर – कवि के चारों ओर जीवन का संघर्ष अत्यंत कठिन है। लोग चारों ओर से विपत्तियों से घिरे हुए हैं। इसी संघर्ष के रास्ते पर चलते हुए कवि का हौसला अब डगमगाने लगा है। इस कारण उसके मन में निराशा का भाव आ जाता है। अपने ऊपर बढ़ते विपत्तियों के दबाव के कारण कवि को लग रहा है जैसे उसका अंतिम समय अब नजदीक आ रहा है।
प्रश्न – ‘ठग-ठाकुरों’ से कवि का संकेत किसकी ओर है?
उत्तर – ‘ठग-ठाकुरों’ से कवि का संकेत है कि कवि के पास जीवन यापन करने के लिए जो भी साधन या संबल थे, उनको भी ठग-ठाकुरों (शासक और पूँजीपतियों) ने छल के द्वारा लूट लिया है और अपने कब्जे में ले लिया है।
प्रश्न – ‘जल उठो फिर सींचने को’- इस पंक्ति का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – पृथ्वी पर मनुष्यों की परस्पर सहिष्णुता की लौ अब बुझ चुकी है। धरती पर प्रेम, प्यार तथा मानवता की भावना समाप्त हो चुकी है। मनुष्य निराशा में डूबता जा रहा है। निराशा के बोझ से मानव की संघर्ष करने की शक्ति अब समाप्त होती जा रही है। इस शक्ति को पुनः जगाने के लिए और मनुष्य समाज को बचाने के लिए किसी क्रांति की आवश्यकता है। इस बुझी हुई ज्योति को फिर से जलाने के लिए कवि स्वयं को जलाना और गीत गाना चाहता है।
प्रश्न – प्रस्तुत कविता दुख और निराशा से लड़ने की शक्ति देती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – यह कविता मानव को दुख और निराशा से लड़ने की शक्ति देती है। पृथ्वी पर मनुष्यों की परस्पर सहिष्णुता की लौ अब बुझ चुकी है। हर जगह छल-कपट देखकर मनुष्य निराशा में डूबता जा रहा है। निराशा के बोझ से मानव की संघर्ष करने की शक्ति अब समाप्त होती जा रही है। प्रत्येक व्यक्ति अनुभव कर रहा है कि जीवन यापन कठिन हो चला है। कवि विषम परिस्थितियों में गीत गाकर और स्वयं को जलाकर लोगों में उत्साह भरने की प्रेरणा देता है जिससे लोग निराशा के अंधकार से बाहर आ सकें।
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सरोज स्मृति
प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न – सरोज के नव-वधू रूप का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर – निराला ने सरोज के नववधू रूप का वर्णन निम्न रूप में किया है।
- उसके हृद्य में पति की सुंदर छवि भरकर भूल रही थी।
- उसके अंदर दांपत्य भाव मुखर हो रहा था।
- वह गहरी साँस लेकर अपनी प्रसन्नता को व्यक्त कर रही थी।
- उसके नेत्र नीचे की ओर झुके हुए थे।
- उसके होंठ थर-थर काँप रहे थे।
- उसके नेत्रें से प्रकाश उसके होंठों पर गिरकर बिजली की तरह कंपित हो रहा था।
- उसके अंदर शृंगार का स्फुरण था।
- उसका सौंदर्य रति को मात दे रहा था।
प्रश्न – कवि को अपनी स्वर्गीया पत्नी की याद क्यों आई?
उत्तर – कवि की पत्नी यशोधरा भी अल्पायु में ही स्वर्ग सिधार गई थी। सरोज के विवाह के समय निराला ने वही गीत गाए जो अपनी पत्नी के साथ गाया करते थे। उसने अपनी पुत्री को वह शिक्षा भी दी जो बिवाह के पवित्र अवसर पर एक माँ ही अपनी पुत्री को देती है। चूँकि निराला पत्नी नहीं थी, इसलिए उनको ही सारे काम करने पड़े। इसलिए कवि को अपनी स्वर्गीया पत्नी की याद आई।
प्रश्न – ‘आकाश बदल कर बना मही’ में ‘आकाश’ और ‘मही’ शब्द किसकी ओर संकेत करते हैं?
उत्तर – ‘आकाश’ कवि की स्वर्गवासी पत्नी तथा ‘मही’ नववधू के रूप में सज्जित निराला की पुत्री सरोज की ओर संकेत करते हैं। कवि की पुत्री विवाह के मांगलिक अवसर पर अत्यधिक सुंदर लग रही थी। कवि को प्रतीत होता है कि जैसे उसकी पत्नी का आलौकिक सौंदर्य आकाश के उतर कर पृथ्वी पर सरोज के रूप में उतर आया हो। पुत्री सरोज का कामदेव की पत्नी रति जैसा रूप-सौंदर्य निराला को उसकी पत्नी की याद दिला रहा है।
प्रश्न – सरोज का विवाह अन्य विवाहों से किस प्रकार अलग था?
उत्तर – सरोज का विवाह अन्य विवाहों से निम्नलिखित रूप से भिन्न था।
- इस विवाह में आम विवाह की तरह सगे-संबंधी नहीं थे क्योंकि उन्हें बुलाया नहीं गया था
- विवाह में मांगलिक गीत नहीं गाए गये थे।
- शादी से पहले जो भी संस्कार किए जाते थे, वे भी नहीं किए गए क्योंकि कवि उन्हें नहीं मानता था।
- कवि ने स्वयं ही विवाह की रस्में अदा की थी। उसने प्वित्र जल के छींटे दिड़ककर मांगलिक कार्य संपन्न किए।
- विवाह में कोई दान-दहेज नहीं दिया गया था।
- विदाई के समय कन्या को दी जाने वाली विवाहेत्तर शिक्षा स्वयं निराला ने अपनी बेटी को दी थी।
प्रश्न – शकुंतला के प्रसंग के माध्यम से कवि क्या संकेत करना चाहता है?
उत्तर – कण्व ऋषि के पुत्री शकुंतला का विवाह भी राजा दुष्यंत के साथ बिना किसी सामाजिक रीति के संपन्न किया गया था। जिस प्रकार शकुंतला को भी उसके पिता कण्व ऋषि ने विदा किया था उसी तरह कवि निराला भी अपनी पुत्री सरोज को विदा करते है। वे भी अकेले ही सारे कार्य करते हैं। विवाह के पश्चात् ‘शकुंतला’ की तरह ही सरोज को भी अकेलापन सहना पड़ा।
प्रश्न – ‘वह लता वहीं की, जहाँ कली तू खिली’ पंक्ति के द्वारा किस प्रसंग को उद्घाटित किया गया है?
उत्तर – ‘वह लता वहीं की, जहाँ कली तू खिली’ पंक्ति के द्वारा कवि कहना चाहता है कि सरोज की माँ जिनकी पुत्री थी, वहीं पर सरोज का लालन-पालन हुआ था। सरोज अपने ननिहाल में ही बड़ी हुई। वहीं पर उसकी शिक्षा-दीक्षा हुई। शादी के बाद भी वह वहीं रही तथा उसकी मृत्यु भी नाना-नानी के घर में ही हुई।
प्रश्न – कवि ने अपनी पुत्री का तर्पण किस प्रकार किया?
उत्तर – कवि ने अपनी बेटी सरोज का तर्पण अलौलिक रूप से किया। कवि ने कहा कि यदि मेरा धर्म बना रहे तो मेरे कर्मों पर चाहे कितनी ही बिजलियाँ गिरती रहें, मैं सिर झुकाकर सब सहन कर लूँगा। उसे अपने कार्यों की प्रशंसा चाहे न मिले। वह अपने पिछले सभी पुण्य कर्माें के फल उसे सौंपकर उसका तर्पण कर रहा है।
प्रश्न – निम्नलिखित पंक्तियों का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
(क) नत नयनों से आलोक उतर
उस अवसर पर सरोज अपने पिता को देखकर मुस्काई थी और उसके होठों पर उसके नेत्रें के प्रकाश की एक कंपित लहर दौड़ गई थी। सरोज अपने हृद्य में अपने प्रिय की सुंदर छवि लेकर खुश हो रही थी जिससे उसका दांपत्य और संयोग का भाव मुखरित हो रहा था।
(ख) शृंगार रहा जो निराकार
कवि बताता है कि उसने अपनी बेटी में उस शंृगार को देखा जो निराकार रहकर भी उसकी कविता में रस की धारा के समान फूट रहा था।
(ग) पर पाठ अन्य यह, अन्य कला
कवि सोच रहा था कि वह अपनी पुत्री को शकुंतला भी भाँति उसी प्रकार विदा कर रहा है जैसे शंकुलता को महर्षि कण्व ने विवाह के समय विदा किया था, किंतु सरोज शंकुतला से अलग थी। क्योंकि सरोज की शिक्षा शकुंतला की शिक्षा से भिन्न थी।
(घ) यदि धर्म, रहे नत सदा माथ।
यदि कवि का धर्म बना रहे तो निराला अपने सारे कर्मों को वज्र के प्रहार के समान नष्ट करके भी कवि अपने झुके हुए मस्तक से उसको सहन करता रहेगा। इस जीवन-मार्ग पर कवि के संपूर्ण कार्य शरद ऋतु में मुरझा जाने वाले कमल की पंखुड़ियों की तरह भले ही नष्ट हो जाएँ अर्थात् चाहे कवि को उसकेे कार्यों के लिए प्रशंसा न मिले, तो भी कवि को चिंता नहीं है।
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