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"दूसरा देवदास"
(पाठ का सार)
यकायक सहस्र दीप जल उठते हैं पंडित अपने आसन से उठ खड़े होते हैं। हाथ में अँगोछा पेट के पंचमं जिली नीलांजलि पकड़ते हैं और शुरू हो जाती है आरती। पहले पुजारियों के भर्राए गले से समवेत स्वर उठता है – जय गंगे माता, जो कोई तुझको ध्याता, सारे सुख पाता, जय गंगे माता। घंटे घड़ियाल बजते हैं। मनौतियों के दिये लिए हुए फूलों की छोटी-छोटी किश्तियाँ गंगा की लहरों पर इठलाती हुई आगे बढ़ती हैं। पुजारियों का स्वर थकने लगता है तो लता मंगेशकर की सुरीली आवाज़ लाउड स्पीकरों के साथ सहयोग करने लगती है और आरती में यकायक एक स्निग्ध सौंदर्य की रचना हो जाती है। ‘ओम जय जगदीश हरे’ से हर की पौड़ी गुंजायमान हो जाती है।
मनौतियों के दिये लिए हुए फूलों के छोटे-छोटे दोने किश्तियों की तरह गंगा की लहरों पर इठलाते हुए आगे बढ़ते हैं। गोताखोर दोने पकड़, उनमें रखा चढ़ावे का पैसा उठाकर मुँह में दबा लेते हैं। गंगा मैया ही उसकी जीविका और जीवन है। इसके रहते वह बीस चक्कर मुँह भर-भर रेज़गारी बटोरता है। उसकी बीवी और बहन कुशाघाट पर रेज़गारी बेचकर नोट कमाती हैं। एक रुपए के पच्चासी पैसे। कभी-कभी अस्सी भी देती हैं। जैसा दिन हो।
पुजारी ने लड़की के ‘हम’ को युगल अर्थ में लिया कि उसके मुँह से अनायास आशीष निकली, फ्सुखी रहो, फूलोफलो, जब भी आओ साथ ही आना, गंगा मैया मनोरथ पूरे करें।य् पुजारी के इस आशीर्वाद से दोनों चकित रह गए क्योंकि वे विवाहित नहीं थे। वे दोनों एक दूसरे से अनजान थे। पुजारी जी ने भूलवश दोनों को एक समझ लिया था।
उस छोटी-सी मुलाकात ने संभव के मन में हलचल पैदा कर दी। वह लड़की से दौबारा मिलने के लिए बैचेन हो गया। उसने लड़की का पीछा काफी दूर तक किया किंतु लड़की अचानक गायब हो गयी थी। वह नानी के पास आया तो उसके दिल की धड़कन बड़ी हुई थी। उसे लड़की से प्रेम हो गया था। उसकी भूख गायब हो चुकी थी। उसने रात को खाना भी नहीं खाया था। अगले दिन उठते ही वह गंगा-घाट की ओर निकल पड़ा।
जल्द ही संभव उस विशाल परिसर में पहुँच गया जहाँ लाल, पीली, नीली, गुलाबी केबिल कार बारी-बारी से आकर रुकतीं, चार यात्री बैठातीं और रवाना हो जातीं। केबिल कार का द्वार खोलने और बंद करने की चाभी ऑपरेटर के नियंत्रण में थी। संभव एक गुलाबी केबिल कार में बैठ गया। कल से उसे गुलाबी के सिवा और कोई रंग सुहा ही नहीं रहा था। उसके सामने की सीट पर एक नवविवाहित दंपति चढ़ावे की बड़ी थैली और एक वृद्ध चढ़ावे की छोटी थैली लिए बैठे थे। संभव को अप़्ाफ़सोस हुआ कि वह चढ़ावा खरीदकर नहीं लाया। संभव ने एक थैली खरीद ली और सीढ़ियाँ चढ़कर प्रांगण में पहुँच गया। नाम मंसा देवी का था पर वर्चस्व सभी देवी-देवताओं का मिला जुला था। संभव ने भी पूरी श्रद्धा के साथ मनोकामना की, गाँठ लगाई, सिर झुकाया, नैवेद्य चढ़ाया और वहाँ से बाहर आ गया।
संभव ने जब छोटे बच्चे के मुँह लड़की का नाम ‘पारो’ सुना तो उसने स्वयं को ‘संभव देवदास’ कहा। वह अपनी और लड़की की तुलना बंगला उपन्यासकार शदरचंद्र के प्रसिद्ध उपन्यास ‘देवदास’ के नायक तथा नायिका से करने लगा। इसके साथ ही उसे मनोकामना पूर्ण करने के लिए बाँधे एक धागे का स्मरण हो आया। उसने मन ही मन देवी के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त की।
पारो का मन अति प्रसन्न था। वह भी संभव से प्रेम करने लगी थी। उसने भी संभव से मिलने के लिए मनसादेवी से मुराद माँगी थी। उसे बिल्कुल उम्मीद नहीं थी कि उसकी माँगी गई मुराद इतनी शीघ्र पूर्ण हो जाएगी। वह अपनी इच्छा के पूरी होने पर हैरान थी।
संभव ने पारो से मिलने के लिए मनसादेवी पर धागा बाँधकर मनोकामना माँगी थी। उसकी यह इच्छा पूर्ण हो जाती है। उसने यह नहीं सोचा था कि उसकी मनोकामना इतनी जल्दी पूर्ण होकर शुभ फल देगी।
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"दूसरा देवदास" (प्रश्न-उत्तर)
प्रश्न – पाठ के आधार पर हर की पौड़ी पर होने वाली गंगा जी की आरती का भावपूर्ण वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर – यकायक सहस्र दीप जल उठते हैं पंडित अपने आसन से उठ खड़े होते हैं। हाथ में अँगोछा लपेट के पंचमंजिली नीलांजलि पकड़ते हैं और शुरू हो जाती है आरती। पहले पुजारियों के भर्राए गले से समवेत स्वर उठता है – जय गंगे माता, जो कोई तुझको ध्याता, सारे सुख पाता, जय गंगे माता। घंटे घड़ियाल बजते हैं। मनौतियों के दिये लिए हुए फूलों की छोटी-छोटी किश्तियाँ गंगा की लहरों पर इठलाती हुई आगे बढ़ती हैं। पुजारियों का स्वर थकने लगता है तो लता मंगेशकर की सुरीली आवाज़ लाउड स्पीकरों के साथ सहयोग करने लगती है और आरती में यकायक एक स्निग्ध सौंदर्य की रचना हो जाती है। ‘ओम जय जगदीश हरे’ से हर की पौड़ी गुंजायमान हो जाती है।
प्रश्न – ‘गंगापुत्र के लिए गंगा मैया ही जीविका और जीवन है’ – इस कथन के आधार पर गंगा पुत्रें के जीवन-परिवेश की चर्चा कीजिए।
उत्तर – मनौतियों के दिये लिए हुए फूलों के छोटे-छोटे दोने किश्तियों की तरह गंगा की लहरों पर इठलाते हुए आगे बढ़ते हैं। गोताखोर दोने पकड़, उनमें रखा चढ़ावे का पैसा उठाकर मुँह में दबा लेते हैं। गंगा मैया ही उसकी जीविका और जीवन है। इसके रहते वह बीस चक्कर मुँह भर-भर रेज़गारी बटोरता है। उसकी बीवी और बहन कुशाघाट पर रेज़गारी बेचकर नोट कमाती हैं। एक रुपए के पच्चासी पैसे। कभी-कभी अस्सी भी देती हैं। जैसा दिन हो।
प्रश्न – पुजारी ने लड़की के ‘हम’ को युगल अर्थ में लेकर क्या आशीर्वाद दिया और पुजारी द्वारा आशीर्वाद देने के बाद लड़के और लड़की के व्यवहार में अटपटापन क्यों आया?
उत्तर – पुजारी ने लड़की के ‘हम’ को युगल अर्थ में लिया कि उसके मुँह से अनायास आशीष निकली, फ्सुखी रहो, फूलोफलो, जब भी आओ साथ ही आना, गंगा मैया मनोरथ पूरे करें।य् पुजारी के इस आशीर्वाद से दोनों चकित रह गए क्योंकि वे विवाहित नहीं थे। वे दोनों एक दूसरे से अनजान थे। पुजारी जी ने भूलवश दोनों को एक समझ लिया था।
प्रश्न – उस छोटी सी मुलाकात ने संभव के मन में क्या हलचल उत्पन्न कर दी, इसका सूक्ष्म विवेचन कीजिए।
उत्तर – उस छोटी-सी मुलाकात ने संभव के मन में हलचल पैदा कर दी। वह लड़की से दौबारा मिलने के लिए बैचेन हो गया। उसने लड़की का पीछा काफी दूर तक किया किंतु लड़की अचानक गायब हो गयी थी। वह नानी के पास आया तो उसके दिल की धड़कन बड़ी हुई थी। उसे लड़की से प्रेम हो गया था। उसकी भूख गायब हो चुकी थी। उसने रात को खाना भी नहीं खाया था। अगले दिन उठते ही वह गंगा-घाट की ओर निकल पड़ा।
प्रश्न – मंसा देवी जाने के लिए केबिलकार में बैठे हुए संभव के मन में जो कल्पनाएँ उठ रही थीं, उनका वर्णन कीजिए।
उत्तर – जल्द ही संभव उस विशाल परिसर में पहुँच गया जहाँ लाल, पीली, नीली, गुलाबी केबिल कार बारी-बारी से आकर रुकतीं, चार यात्री बैठातीं और रवाना हो जातीं। केबिल कार का द्वार खोलने और बंद करने की चाभी ऑपरेटर के नियंत्रण में थी। संभव एक गुलाबी केबिल कार में बैठ गया। कल से उसे गुलाबी के सिवा और कोई रंग सुहा ही नहीं रहा था। उसके सामने की सीट पर एक नवविवाहित दंपति चढ़ावे की बड़ी थैली और एक वृद्ध चढ़ावे की छोटी थैली लिए बैठे थे। संभव को अप़्ाफ़सोस हुआ कि वह चढ़ावा खरीदकर नहीं लाया। संभव ने एक थैली खरीद ली और सीढ़ियाँ चढ़कर प्रांगण में पहुँच गया। नाम मंसा देवी का था पर वर्चस्व सभी देवी-देवताओं का मिला जुला था। संभव ने भी पूरी श्रद्धा के साथ मनोकामना की, गाँठ लगाई, सिर झुकाया, नैवेद्य चढ़ाया और वहाँ से बाहर आ गया।
प्रश्न – फ्पारो बुआ, पारो बुआ इनका नाम है— उसे भी मनोकामना का पीला-लाल धागा और उसमें पड़ी गिठान का मधुर स्मरण हो आया।य् कथन के आधार पर कहानी के संकेतपूर्ण आशय पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर – संभव ने जब छोटे बच्चे के मुँह लड़की का नाम ‘पारो’ सुना तो उसने स्वयं को ‘संभव देवदास’ कहा। वह अपनी और लड़की की तुलना बंगला उपन्यासकार शदरचंद्र के प्रसिद्ध उपन्यास ‘देवदास’ के नायक तथा नायिका से करने लगा। इसके साथ ही उसे मनोकामना पूर्ण करने के लिए बाँधे एक धागे का स्मरण हो आया। उसने मन ही मन देवी के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त की।
प्रश्न – ‘मनोकामना की गाँठ भी अद्भुत, अनूठी है, इधर बाँधो उधर लग जाती है।’ कथन के आधार पर पारो की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर – पारो का मन अति प्रसन्न था। वह भी संभव से प्रेम करने लगी थी। उसने भी संभव से मिलने के लिए मनसादेवी से मुराद माँगी थी। उसे बिल्कुल उम्मीद नहीं थी कि उसकी माँगी गई मुराद इतनी शीघ्र पूर्ण हो जाएगी। वह अपनी इच्छा के पूरी होने पर हैरान थी।
प्रश्न – निम्नलिखित वाक्यों का आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) ‘तुझे तो तैरना भी न आवे। कहीं पैर फिसल जाता तो मैं तेरी माँ को कौन मुँह दिखाती।’
आशय – इस कथन के द्वारा लेखक ने नानी की संभव के प्रति चिंता व्यक्त की है। संभव हर की पौड़ी से बहुत देर बाद आया। नानी का चिंता थी कि संभव को तैरना तक नहीं आता। कहीं अगर संभव का पैर फिसल गया और वह नदी में बह गया तो संभव की नानी उसकी माँ को क्या जवाब देगी?
(ख) ‘उसके चेहरे पर इतना विभोर विनीत भाव था मानो उसने अपना सारा अहम त्याग दिया है, उसके अंदर स्व से जनित कोई कुंठा शेष नहीं है, वह शुद्ध रूप से चेतनस्वरूप, आत्माराम और निर्मलानंद है।’
आशय – संभव ने गंगा के जल से एक व्यक्ति को सूर्यनमस्कार करते हुए देखा था। उसको देखकर संभव को लगा जैसे उस व्यक्ति ने अपना सारा अहंकार त्याग दिया है। उसके अंदर अब कोई राग, द्वेष और कुंठा नहीं बची है। ईश्वर की भक्ति में डूबा हुआ वह व्यक्ति संभव को शुद्ध चेतनस्वरूप और निर्मलानंद दिखाई देता है।
(ग) ‘एकदम अंदर के प्रकोष्ठ में चामुंडा रूप धारिणी मंसादेवी स्थापित थी। व्यापार यहाँ भी था।’
आशय – संभव जब मनसादेवी के दर्शन करने पहुँचा तो उसने वहाँ भी मनसादेवी पर चढ़ने वाली चीजें देखीं। एकदम अंदर के प्रकोष्ठ में चामुंडा रूप धारिणी मंसादेवी स्थापित थीं। मनोकामना को पूरा करने के लिए लाल-पीले धागे सवा रुपए में बिक रहे थे। लोग पहले धागा बाँधते, फिर देवी के आगे शीश नवाते।
प्रश्न – ‘दूसरा देवदास’ कहानी के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – कहानी के अंतिम चरण में संभव को दूसरा देवदास कहा गया है। एक देवदास बंगला उपन्यासकार शरदचंद्र के उपन्यास में था जो अपनी प्रेमिका पारो को पाने के लिए स्वयं को नष्ट कर देता है। उसके मन में निश्छल व पवित्र प्रेम था। इसी प्रकार संभव भी पारो से निश्छल प्रेम करता है। संभव और पारो एक दूसरे से अजनबी थे। लेकिन दोनों परस्पर प्रेम करते थे। इससे कहानी का शीर्षक ‘दूसरा देवदास’ सार्थक लगता है।
प्रश्न – ‘हे ईश्वर! उसने कब सोचा था कि मनोकामना का मौन उद्गार इतनी शीघ्र शुभ परिणाम दिखाएगा-आशय स्पष्ट कीजिए।’
उत्तर – संभव ने पारो से मिलने के लिए मनसादेवी पर धागा बाँधकर मनोकामना माँगी थी। उसकी यह इच्छा पूर्ण हो जाती है। उसने यह नहीं सोचा था कि उसकी मनोकामना इतनी जल्दी पूर्ण होकर शुभ फल देगी।
भाषा-शिल्प
प्रश्न – इस पाठ का शिल्प आख्याता (नैरेटर-लेखक) की ओर से लिखते हुए बना है-पाठ से कुछ उदाहरण देकर सिद्ध कीजिए।
उत्तर –
- भक्तों को इससे कोई शिकायत नहीं। इतनी बड़ी-बड़ी मनोकामना लेकर आए हुए हैं। एक-दो रुपए का मुँह थोड़े ही देखना है।
- मनौतियों के दिये लिए हुए फूलों की छोटी-छोटी किश्तियाँ गंगा की लहरों पर इठलाती हुई आगे बढ़ती हैं।
- पुजारियों का स्वर थकने लगता है तो लता मंगेशकर की सुरीली आवाज लाउडस्पीकरों के साथ सहयोग करने लगती है और आरती में यकायक एक स्निग्ध सौंदर्य की रचना हो जाती है।
- खर्च हुआ पर भक्तों के चेहरे पर कोई मलाल नहीं। कई खर्च सुखदायी होते हैं।
- दीपकों के नीम उजाले में, आकाश और जल की साँवली संधि-बेला में, लड़की बेहद सौम्य, लगभग काँस्य प्रतिमा लग रही थी।
प्रश्न -पाठ में आए पूजा-अर्चना के शब्दों तथा इनसे संबंधित वाक्यों को छाँटकर लिखिए।
- दीया-बाती का समय या कह लो आरती की बेला।
- कुछ भक्तों ने स्पेशल आरती बोल रखी है। स्पेशल आरती यानी एक सौ एक या एक सौ इक्यावन रुपए वाली।
- पंडितगण आरती के इंतज़ाम में व्यस्त हैं।
- पीतल की नीलांजलि में सहस्र बत्तियाँ घी में भिगोकर रखी हुई हैं।
- जो भी आपका आराध्य हो, चुन लें।
- आरती से पहले स्नान! हर-हर बहता गंगाजल, निर्मल, नीला, निष्पाप।
- हर एक के पास चंदन और सिदूर की कटोरी है।
- हाथ में अँगोछा लपेट के पंचमं जिली नीलांजलि पकड़ते हैं और शुरू हो जाती है आरती।
- जय गंगे माता, जो कोई तुझको ध्याता, सारे सुख पाता, जय गंगे माता।
- ‘ओम जय जगदीश हरे’ से हर की पौड़ी गुंजायमान हो जाती है।
- आरती के बाद बारी है संकल्प और मंत्रेच्चार की।
टेस्ट/क्विज
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