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"वसंत आया"
(कविता की व्याख्या)
जैसे बहन ‘दा’ कहती है
ऐसे किसी बँगले के किसी तरफ़(अशोक?) पर कोई चिड़िया कुऊकी
चलती सड़क के किनारे लाल बजरी पर चुरमुराए पाँव तले
ऊँचे तरुवर से गिरे
बड़े-बड़े पियराए पत्ते
कोई छह बजे सुबह जैसे गरम पानी से नहाई हो-
खिली हुई हवा आई, फिरकी-सी आई, चली गई।
ऐसे, फुटपाथ पर चलते चलते चलते।
कल मैंने जाना कि वसंत आया।
प्रसंग –
व्याख्येय पद्यांश पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग-2’ में संकलित कविता ‘वसंत आया’ से उद्धृत किया गया है। इसके रचयिता रघुवीर सहाय हैं।
संदर्भ –
प्रस्तुत पंद्यांश में कवि ने बताया है कि मनुष्य और प्रकृति के रिश्ते की ओर संकेत किया है। मनुष्य केवल अपने तक सीमित हो गया है। प्रकृति से उसका सरोकार नहीं रहा है।
व्याख्या –
कवि कहता है कि सुबह फुटपाथ पर चलते हुए उसे रास्ते में किसी बँगले के अशोक के पेड़ से किसी चिड़िया के कुहुकने की आवाज़ सुनाई दी। वह आवाज वैसे ही मधुर थी जैसे कवि की बहन उसे ‘दा’ अर्थात् भाई कहकर पुकारा करती थी। कवि एक व्यस्त सड़क के किनारे चल रहा था। उन किनारों पर लाल बजरी बिछी हुई थी। उसके पैरों के नीचे पत्ते चरमराने की आवाज़ आ रही थी। वे पत्ते किसी ऊँचे वृक्ष से गिरे थे और पीले व बड़े-बड़े थे। सुबह के छह बजे हवा में ऐसी ताजगी थी जैसे हवा अभी-अभी गर्म पानी से नहाकर आई हो अर्थात् हवा में हल्की गर्मी थी। ताजगी से भरी हुई हवा फिरकी की तरह घूमती-सी आई और चली गई। इस तरह कवि जब सुबह-सुबह फुटपाथ पर चल रहा था तो उसे अपने आसपास के उन परिवर्तनों से महसूस हुआ कि बसंत आ गया है।
विशेष –
- वसंत की सुबह का रोचक वर्णन है।
- ‘सुबह’ तथा ‘हवा’ का मानवीकरण किया गया है।
- ‘के किसी’ में अनुप्रास अलंकार है।
- ‘बड़े-बड़े’ ‘चलते चलते चलते’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
- तद्भव व तत्सम् शब्दों से युक्त सहज खड़ी बोली का प्रयोग है।
- ‘फिरकी-सी’ में उपमा अलंकार है।
- व्यंजना शब्द शक्ति है
- मुक्त छंद है।
और यह कैलेंडर से मालूम था
अमुक दिन अमुक बार मदनमहीने की होवेगी पंचमी
दफ्ऱ तर में छुट्टी थी-यह था प्रमाण
और कविताएँ पढ़ते रहने से यह पता था
कि दहर-दहर दहकेंगे कहीं ढाक के जंगल
आम बौर आवेंगे
रंग-रस-गंध से लदे-फँदे दूर के विदेश के
वे नंदन-वन होवेंगे यशस्वी
मधुमस्त पिक भौंर आदि अपना-अपना कृतित्व
अभ्यास करके दिखावेंगे
यही नहीं जाना था कि आज के नगण्य दिन जानूँगा
जैसे मैंने जाना, कि वसंत आया।
प्रसंग –
व्याख्येय पद्यांश पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग-2’ में संकलित कविता ‘वसंत आया’ से उद्धृत किया गया है। इसके रचयिता रघुवीर सहाय हैं।
संदर्भ –
इस अंश में कवि कैलेंडर से बसंत ऋतु के आगमन का अहसास करता है।
व्याख्या –
कवि कहता है कि उसे कल ही ज्ञात हुआ कि वसंत ऋतु आ गई है। कवि कहता है कि हालांकि उसने कैलेंडर से पहले ही पता चल गया था कि उस दिन को कामदेव महीने या बसंत माह की पचंमी होगी। और दफ्रतर की छुट्टी से यह प्रमाणित हो गया कि आज बसंत पंचमी है। कवि कविता पढ़ने में रुचि रखता है। उसे कविताएँ पढ़ने से ज्ञात था कि बसंत माह में ढाक के पेड़ों जंगल लाल-लाल फूलों से धधक-धधक दहकेंगे और कहीं आम की बौर आएँगे। इस महीने में आनन्द देने वाले वन रंग, रस और गंध से लदे होंगे। फूलों का रस पीकर मस्त होने वाले कोयल, भौंरे आदि अपने-अपने कार्यों को दिखाएंगे अर्थात् मस्ती में झूमते हुए गाएंगे। अंत में कवि कहता है – बस कवि ने कभी यह नहीं सोचा था कि उसे बसंत आने की जानकारी आज के तुच्छ दिन की तरह होगी।
विशेष –
- आधुनिक जीवन-शैली के एकाकीपन पर व्यंग्य है।
- ‘रंग-रस’ में अनुप्रास अलंकार है।
- ‘दहर-दहर’ ‘अपना-अपना’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
- तद्भव व तत्सम् शब्दों से युक्त सहज खड़ी बोली का प्रयोग है।
- व्यंजना शब्द शक्ति है
- मुक्त छंद है।
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"वसंत आया" (प्रश्न-उत्तर)
प्रश्न – वसंत आगमन की सूचना कवि को कैसे मिली?
उत्तर – कवि कहता है कि सुबह फुटपाथ पर चलते हुए उसे रास्ते में किसी बँगले के अशोक के पेड़ से किसी चिड़िया के कुहुकने की आवाज़ सुनाई दी। वह आवाज वैसे ही मधुर थी जैसे कवि की बहन उसे ‘दा’ अर्थात् भाई कहकर पुकारा करती थी। कवि एक व्यस्त सड़क के किनारे चल रहा था। उन किनारों पर लाल बजरी बिछी हुई थी। उसके पैरों के नीचे पत्ते चरमराने की आवाज़ आ रही थी। वे पत्ते किसी ऊँचे वृक्ष से गिरे थे और पीले व बड़े-बड़े थे। सुबह के छह बजे हवा में ऐसी ताजगी थी जैसे हवा अभी-अभी गर्म पानी से नहाकर आई हो अर्थात् हवा में हल्की गर्मी थी। ताजगी से भरी हुई हवा फिरकी की तरह घूमती-सी आई और चली गई। इस तरह कवि जब सुबह-सुबह फुटपाथ पर चल रहा था तो उसे अपने आसपास के उन परिवर्तनों से महसूस हुआ कि बसंत आ गया है।
प्रश्न – ‘कोई छह बजे सुबह —- फिरकी सी आई, चली गई’ – पंक्ति में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – सुबह के छह बजे हवा में ऐसी ताजगी थी जैसे हवा अभी-अभी गर्म पानी से नहाकर आई हो अर्थात् हवा में हल्की गर्मी थी। ताजगी से भरी हुई हवा फिरकी की तरह घूमती-सी आई और चली गई। इस पंक्ति में कवि ने ऋतु परिवर्तन को बताया है। फाल्गुन माह में गर्म-सर्द मौसम होता है। कभी-कभी सुबह की हवा ऐसी होती है जिसमें हल्की गरमाहट होती है। वह तेज चलती है। जैसे फिरकी घूमती है, ऐसे ही हवा भी चक्करदार चलती है।
प्रश्न – वसंत पंचमी के अमुक दिन होने का प्रमाण कवि ने क्या बताया और क्यों?
उत्तर – कवि ने कैलेंडर के माध्यम से जाना कि इस दिन वसंत पंचमी होगी। इसके अलावा, उसके दफ्रतर में अवकाश था। अवकाश के कारण प्रमाणित हो गया कि आज बसंत पंचमी है। कवि ने यह प्रमाण इसलिए दिया है क्योंकि मानव और प्रकृति के बीच दूरी बढ़ती जा रही है। मानव प्रकृति की स्वाभ्ााविक क्रियाओं और परिवर्तनों को भूलता जा रहा है। मानव का जीवन एकाकी हो गया है। वह अपने में ही खोता जा रहा है।
प्रश्न – ‘और कविताएँ पढ़ते रहने से —– आम बौर आवेंगे’ – में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – इस अंश में कवि ने स्वयं के माध्यम से बौद्धिक वर्ग पर कटाक्ष किया है। कवि बताता है कि आज के शिक्षित व्यक्ति भी कविताओं के द्वारा वसंत की सुंदरता के बारे में जानते हैं। साहित्य में रुचि रखने वाले साहित्यकार भी प्रकृति से कोई लगाव नहीं रखते। वे प्रकृति के बारे में लिखकर केवल दिखावा करते हैं। ऐसे लेखक या कवि कविताओं से जान पाते हैं कि बसंत माह में ढाक के जंगल लाल फूलो भर जाते हैं और आम के पेड़ पर बौर आते हैं।
प्रश्न – अलंकार बताइए
(क) बड़े-बड़े पियराए पत्ते
अलंकार – पुनरुक्ति प्रकाश तथा अनुप्रास अलंकार।
(ख) कोई छह बजे सुबह जैसे गरम पानी से नहाई हो।
अलंकार – उत्प्रेक्षा अलंकार।
(ग) खिली हुई हवा आई, फिरकी-सी आई, चली गई।
अलंकार- उपमा अलंकार, मानवीकरण अलंकार।
(घ) कि दहर-दहर दहकेंगे कहीं ढाक के जंगल।
अलंकार- पुनरुक्ति प्रकाश व अनुप्रास अलंकार।
प्रश्न – किन पंक्तियों से ज्ञात होता है कि आज मनुष्य प्रकृति से नैसर्गिक सौंदर्य की अनुभूति से वंचित है?
उत्तर – मधुमस्त पिक भौंर आदि अपना-अपना कृतित्व
अभ्यास करके दिखावेंगे
यही नहीं जाना था कि आज के नगण्य दिन जानूँगा
जैसे मैंने जाना, कि वसंत आया।
प्रश्न – ‘प्रकृति मनुष्य की सहचरी है’ इस विषय पर विचार व्यक्त करते हुए आज के संदर्भ में इस कथन की वास्तविकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – ‘प्रकृति मनुष्य की सहचरी है।’ प्रकृति के सभी कार्य नियमानुसार होते हैं। ऋतुओं में परिवर्तन, दिन रात का बनना, विभिन्न पेड़ों पर फूलों और फलों का आना, पत्तों का झड़ना सब निश्चित नियम के अनुसार घटता है। प्रकृति मनुष्य को जीवन जीने के लिए धन-धान्य प्रदान करती है किंतु मानव अपने स्वार्थ के कारण प्रकृति का दोहन करता रहता है। वह प्रकृति से दूर हो गया है।
प्रश्न – ‘बसंत आया’ कविता में कवि की चिंता क्या है? उसका प्रतिपाद्य लिखिए।
उत्तर – ‘बसंत आया’ कविता में कवि ने आधुनिक भोगवादी जीवन-शैली पर व्यंग्य किया है। कवि की चिंता है कि आज मनुष्य का प्रकृति से दूर हो गया है। ऋतुएँ पहले की तरह अपनी व्यवस्था से चलती है, दिन-रात पहले की तरह होते है, पौधों पर फूल-फल पहले की तरह आते हैं। परंतु मनुष्य को इन सब परिवर्तनों का पता ही नहीं चलता। मानव की प्राकृतिक संवेदनाएँ समाप्त हो गई हैं। अब लोग कैलेंडर या दफ्रतर में अवकाश के माध्यम से ही जान पाते हैं कि कौन-सी ऋतु आई है या कौन-सा त्योहार आया है?
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"तोड़ो" (कविता की व्याख्या)
तोड़ो तोड़ो तोड़ो
ये पत्थर ये चट्टानें
ये झूठे बंधन टूटें
तो धरती को हम जानें
सुनते हैं मिट्टी में रस है जिससे उगती दूब है
अपने मन के मैदानों पर व्यापी कैसी ऊब है
आधे आधे गाने
तोड़ो तोड़ो तोड़ो
ये ऊसर बंजर तोड़ो
ये चरती परती तोड़ो
सब खेत बनाकर छोड़ो
मिट्टी में रस होगा ही जब वह पोसेगी बीज को
हम इसको क्या कर डालें इस अपने मन की खीज को?
गोड़ो गोड़ो गोड़ो
प्रसंग –
व्याख्येय पद्यांश पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग-2’ में संकलित कविता ‘तोड़ो’ से उद्धृत किया गया है। इसके रचयिता रघुवीर सहाय हैं।
संदर्भ –
इस कविता में कवि ने विकास करने और आगे बढ़ने के लिए संघर्ष करने का आह्वान किया है।
व्याख्या –
कवि कहता है कि जिस प्रकार भूमि के बंजरपन को दूर करने के लिए उसके ऊपर फैले पत्थरों और चट्टानों को तोड़कर समतल करना पड़ता है उसी तरह मनुष्य को आगे बढ़ने के लिए अपने अविश्वास को दूर करना होगा। कवि प्रेरणा देता है कि मानव पत्थर तथा चट्टानों को तोड़कर सृजन प्रक्रिया का हिस्सा बने। वह समाज के झूठे बंधन और मर्यादाओं को तोड़कर मेहनत करें। मनुष्य को धरती के बारे में जानकारी हासिल करनी चाहिए। कहते हैं- मिट्टी में रस होता है जिसमें दूब अर्थात् घास उगती है। दूब में रस होता है। रस से अभिप्राय धरती की उर्वरा शक्ति से है। कवि मनुष्य को कहता है कि तुम्हारे मन रूपी मैदानों पर यह कैसी उदासी छाई है। तुम्हारी सृजन तथा निर्माण करने की इच्छा केे गीत अधूरे क्यों हैं?
कवि अनुपजाऊ तथा चरागाह हेतु छोड़ी गई परती भूमि को खेती योग्य बनाने की प्रेरणा देता है। वह कहता है कि तुम्हारे संघर्ष से यह रस से युक्त मिट्टी अवश्य ही बीज को उगाएगी। इससे फसल उत्पन्न होगी। इसलिए मनुष्य को अपने मन की खीज को दूर करके मेहनत करनी चाहिए और उन्नति के मार्ग पर बढ़ना चाहिए।
विशेष –
- मानव को परिश्रम करने के लिए प्रेरित किया गया है
- ‘तोड़ो तोड़ो तोड़ो’ ‘गोड़ो गोड़ो गोड़ो’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
- झूठे बंधन, चट्टान, पत्थर आदि प्रतीक हैं
- मिश्रित शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।
- मुक्त छंद है।
- भाषा में प्रवाह है।
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"तोड़ो" (प्रश्न-उत्तर)
प्रश्न – ‘पत्थर’ और ‘चट्टान’ शब्द किसके प्रतीक हैं?
उत्तर – ‘पत्थर’ और ‘चट्टान’ साधनों के अविकसित रूप तथा समाज के झूठे बंधनों के परिचायक हैं।
प्रश्न – कवि को धरती और मन की भूमि में क्या समानताएँ दिखाई पड़ती हैं?
उत्तर – कवि के अनुसार जैसे जमीन के विकास से पहले वह ऊबड़खाबड़ तथा निर्जीव लगती है, लेकिन उसमें सृजनशक्ति होती है। ऐसी ही स्थिति मानव मन की है। मन में भी ऊर्जा होती है। आवश्यकता होती है मन को सही दिशा में प्रेरित करने की। जब मन क्रियाशील होता है तो वह आगे बढ़ने के नए-नए मार्ग खोजता है। धरती और मन की भूमि का विकास करने के लिएं प्रेरणा शक्ति की भूमिका अहम है।
प्रश्न – भाव सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
”मिट्टी में रस होगा ही जब वह पोसेगी बीज को हम इसको क्या कर डालें इस अपने मन की खीज को? गोड़ो गोड़ो गोड़ो”
उत्तर – कवि अनुपजाऊ तथा चरागाह हेतु छोड़ी गई परती भूमि को खेती योग्य बनाने की प्रेरणा देता है। वह कहता है कि तुम्हारे संघर्ष से यह रस से युक्त मिट्टी अवश्य ही बीज को उगाएगी। इससे फसल उत्पन्न होगी। इसलिए मनुष्य को अपने मन की खीज को दूर करके मेहनत करनी चाहिए और उन्नति के मार्ग पर बढ़ना चाहिए।
प्रश्न – कविता का आरंभ ‘तोड़ो तोड़ो तोड़ो’ से हुआ है और अंत ‘गोड़ो गोड़ो गोड़ो’ से। विचार कीजिए कि कवि ने ऐसा क्यों किया?
उत्तर – कविता के शुरु में कवि विकास के मार्ग की बाधाआें को दूर करने के लिए अनावश्यक बंधनों को तोड़ने की बात करता है। कविता के अंत में कवि मनुष्य की सृजनात्मक शक्ति को जगाकर उसे नए निर्माण की ओर प्रेरित करता है।
प्रश्न – ‘ये झूठे बंधन टूटे
तो धरती को हम जानें’
– यहाँ पर झूठे बंधनों और धरती को जानने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर – यहाँ ‘झूठे बंधनों’ से तात्पर्य सामाजिक अंधविश्वासों तथा बंधनों से है। मानव इन्हीं सामाजिक अंधविश्वासों में स्वयं को उलझा कर रखता है और अपने विकास के रास्ते को रोक लेता है। इन अंधविश्वासों को दूर होने पर ही वह जीवन के बारे में जान जाता है। धरती को जानने का अर्थ है – मानव जीवन के वास्तविक रूप तथा धरती की सृजनात्मक क्षमता के विषय में जानना।
प्रश्न – ‘आधे-आधे गाने’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर – ‘आधे-आधे गाने’ के माध्यम से कवि मनुष्य का ध्यान अधूरी क्रियात्मक शक्ति की ओर दिलाना चाहता है। कवि कहना चाहता है यदि मानव अनमने ढंग से कार्य करेगा तो वह कार्य कभी पूरा नहीं होगा। हमें प्रत्येक कार्य को पूर्ण ऊर्जा के साथ करना चाहिए।
टेस्ट/क्विज
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