कक्षा 12 » रामचन्द्रचंद्रिका (केशवदास)

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सरस्वती वंदना

बानी जगरानी की उदारता बखानी जाइ ऐसी मति उदित उदार कौन की भई।
देवता प्रसिद्ध सिद्ध रिषिराज तपबृंद कहि कहि हारे सब कहि न काहू लई।
भावी भूत बर्तमान जगत बखानत है ‘केसोदास’ क्यों हू ना बखानी काहू पै गई।
पति बर्नै चारमुख पूत बर्नै पाँचमुख नाती बर्नै षटमुख तदपि नई नई।।

संदर्भ –

प्रस्तुत छंद केशवदास द्वारा रचित रामचंद्रचंद्रिका महाकाव्य से उद्धृत है।

प्रसंग –

इस काव्य का आधार रामकथा है। सरस्वती की स्तुति में केशवदास अपना समर्पण भाव निम्न प्रकार व्यक्त करते हैं।

व्याख्या –

विद्या की देवी सरस्वती संसार की रानी है। इसकी उदारता का वर्णन कोई नहीं कर सकता। सरस्वती की उदारता के समान किसी में यह भाव उत्पन्न न हो सका। देवता, सिद्ध पुरुष, श्रेष्ठ ऋषि और तपबुद्धि वाले लोग, माँ सरस्वती का वर्णन करते-करते हार गए, कोई भी इसमें सफल न हो सका। कवि केशवदास कहते हैं कि देवी सरस्वती का पूर्ण वर्णन भूतकाल में न कोई कर सका, वर्तमान काल में न कोई कर सकता है और भविष्य काल में न कोई कर पाएगा। चतुर्मुखी ब्रह्मा इनका पति, पंचमुखी शिव इनका पुत्र और छहमुखी कार्तिकेय इनका नाती है, वो भी इनकी महिमा का वर्णन नहीं कर पाए, क्याेंकि यह सरस्वती नित्य नए रूपों में प्रकट होती रहती है।

विशेष –

  1. सरस्वती (वाणी) की महिमा कही गई है।
  2. ब्रजभाषा का प्रयोग है।
  3. ‘उदित उदार’, ‘भावी भूत’ में अनुप्रास अलंकार है।
  4. ‘देवता प्रसिद्ध सिद्ध रिषिराज तपबृंद कहि कहि हारे सब कहि न काहू लई।’ पंक्ति में विशेषोक्ति अलंकार है।
  5. ‘कहि कहि’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  6. शांत रस है।
  7. दंडक छंद है।
पंचवटी-वन-वर्णन

सब जाति फटी दुख की दुपटी कपटी न रहै जहँ एक घटी।
निघटी रुचि मीचु घटी हूँ घटी जगजीव जतीन की छूटी तटी।
अघओघ की बेरी कटी बिकटी निकटी प्रकटी गुरुज्ञान-गटी।
चहुँ ओरनि नाचति मुक्तिनटी गुन धूरजटी वन पंचबटी।।

संदर्भ –

प्रस्तुत छंद केशवदास द्वारा रचित रामचंद्रचंद्रिका महाकाव्य से उद्धृत है।

प्रसंग –

प्रस्तुत पद्यांश में राम के वनगमन की घटना है। यहाँ पंचवटी की महिमा का वर्णन करते हुए कवि केशवदास कहते हैं।

व्याख्या –

यह पंचवटी ऐसा स्थान है यहाँ पहुँचकर दुख की चादर पूरी तरह फट जाती है, अर्थात् यहाँ किसी प्रकार का दुख नहीं है। पंचवटी में कपटी व्यक्ति के मन से सारे कपट निकल जाते हैं। एक घड़ी भी कपटी इस स्थान पन नहीं रह सकता। यहाँ निर्लज्ज मृत्यु की रुचि पूर्णतया घट जाती है अर्थात् यहाँ मृत्यु पहुँच नहीं पाती। पंचवटी में पहुँचकर संसार के सभी जीवों और सन्यासियों की जीवन यात्र पूरी हो जाती है, अर्थात् वे जीवन-मरण के बंधन से मुक्त हो जाते हैं। यहाँ पापों की विकट बेड़ी कट जाती है। पंचवटी के निकट आने से मन में गुरु ज्ञान की गठरी प्रकट होने लगती है। इस स्थान के चारों ओर मुक्ति रूपी नटी नाचती है। इस पंचवटी में शिव की जटा का गुण विद्यमान है अर्थात् यह मोक्ष का स्थान है।

विशेष-

  1. पंचवटी माहात्म्य का वर्णन है।
  2. ब्रजभाषा का प्रयोग है।
  3. ‘जगजीव जतीन’ में अनुप्रास अलंकार है।
  4. ‘मुक्तिनटी’, ‘मोक्ष-नदी’ में रूपक अलंकार है।
  5. ‘पंचवटी’ में द्विगु समास है।
  6. ‘चहुँ ओरनि नाचति मुक्तिनटी गुन धूरजटी वन पंचबटी।।’ में मानवीकरण अलंकार है।
  7. शांत रस का प्रयोग है।
  8. प्रसाद गुण है।
अंगद

सिंधु तर्यो उनको बनरा तुम पै धनुरेख गई न तरी।
बाँधोई बाँधत सो न बन्यो उन बारिधि बाँधिकै बाट करी।
श्रीरघुनाथ-प्रताप की बात तुम्हैं दसकंठ न जानि परी।
तेलनि तूलनि पूँछि जरी न जरी, जरी लंक जराइ-जरी।।

संदर्भ –

प्रस्तुत छंद केशवदास द्वारा रचित रामचंद्रचंद्रिका महाकाव्य से उद्धृत है।

प्रसंग –

इस छंद में अंगद श्रीराम का दूत बनकर रावण के पास जाता हैं। रावण अंगद के साथ सही व्यवहार नहीं करता। इससे अंगद क्रोध में आकर रावण को कहता है।

व्याख्या –

हे रावण! राम के वानर (हनुमान) ने समुद्र पार कर लिया, लेकिन तुम सीता की रक्षा के लिए लक्ष्मण द्वारा खींची गई रेखा भी नहीं लाँघ पाए। तुमने हनुमान को बाँधने की कोशिश की लेकिन तुम उसे बाँध न सके और राम ने सागर को बाँधकर उस पर पुल बना लिया। हे दसकंठ रावण! तुझे अब भी राम का प्रताप दिखाई नहीं दे रहा। तुमने हनुमान की पूँछ को तेल से भीगी रुई बाँधकर जलाना चाहा, परंतु वह थोड़ी-सी भी नहीं जली और फिर वही हनुमान तुम्हारी इस लंका को जलाकर चला गया।

विशेष –

  1. राम की महिमा व प्रताप का वर्णन है
  2. ब्रजभाषा का प्रयोग है।
  3. ‘तेलनि तूूलनि’, ‘जरी न जरी’, ‘जराइ जरी’ ‘बारिधि बाँधि कै’ में अनुप्रास अलंकार है।
  4. ‘जरी न जरी’ में यमक अलंकार है – जरी– ड़ी सी, जरी–जली
  5. वीर रस है।
  6. ओज गुण है।
  7. सवैया छंद की पंक्ति है।
  8. व्यंजना शब्द शक्ति है।

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इस पाठ के प्रश्न-उत्तर


प्रश्न- देवी सरस्वती की उदारता का गुणगान क्यों नहीं किया जा सकता?

उत्तर – विद्या की देवी सरस्वती संसार की रानी है। इसकी उदारता का वर्णन कोई नहीं कर सकता। सरस्वती की उदारता के समान किसी में यह भाव उत्पन्न न हो सका। देवता, सिद्ध पुरुष, श्रेष्ठ ऋषि और तपबुद्धि वाले लोग, माँ सरस्वती का वर्णन करते-करते हार गए, कोई भी इसमें सफल न हो सका। कवि केशवदास कहते हैं कि देवी सरस्वती का पूर्ण वर्णन भूतकाल में न कोई कर सका, वर्तमान काल में न कोई कर सकता है और भविष्य काल में न कोई कर पाएगा। चतुर्मुखी ब्रह्मा इनका पति, पंचमुखी शिव इनका पुत्र और छहमुखी कार्तिकेय इनका नाती है, वो भी इनकी महिमा का वर्णन नहीं कर पाए, क्याेंकि यह सरस्वती नित्य नए रूपों में प्रकट होती रहती है।

प्रश्न- चारमुख, पाँचमुख और षटमुख किन्हें कहा गया हैै और उनका देवी सरस्वती से क्या संबंध है?

उत्तर – चारमुख वाला ब्रह्मा है, पाँच मुख वाला शिव है तथा षटमुख वाला कार्तिकेय है। चतुर्मुखी ब्रह्मा इनका पति, पंचमुखी शिव इनका पुत्र और छहमुखी कार्तिकेय इनका नाती है।

प्रश्न – कविता में पंचवटी के किन गुणों का उल्लेख किया गया है।

उत्तर – यह पंचवटी ऐसा स्थान है यहाँ पहुँचकर दुख की चादर पूरी तरह फट जाती है, अर्थात् यहाँ किसी प्रकार का दुख नहीं है। पंचवटी में कपटी व्यक्ति के मन से सारे कपट निकल जाते हैं। एक घड़ी भी कपटी इस स्थान पन नहीं रह सकता। यहाँ निर्लज्ज मृत्यु की रुचि पूर्णतया घट जाती है अर्थात् यहाँ मृत्यु पहुँच नहीं पाती। पंचवटी में पहुँचकर संसार के सभी जीवों और सन्यासियों की जीवन यात्र पूरी हो जाती है, अर्थात् वे जीवन-मरण के बंधन से मुक्त हो जाते हैं। यहाँ पापों की विकट बेड़ी कट जाती है। पंचवटी के निकट आने से मन में गुरु ज्ञान की गठरी प्रकट होने लगती है। इस स्थान के चारों ओर मुक्ति रूपी नटी नाचती है। इस पंचवटी में शिव की जटा का गुण विद्यमान है अर्थात् यह मोक्ष का स्थान है।

प्रश्न – तीसरे छंद में संकेतित कथाएँ अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – इस पद में कवि ने राम से संबंधित कई कथाएँ बताई हैं।

सीताहरण की कथा – रावण साधु के छद्म वेश में सीता से भिक्षा माँगता है। वह लक्ष्मण द्वारा खीची गई रेखा को लाँघ नहीं पाता। अंत में साधु की अवज्ञा का भय दिखाकर वह सीता को लक्ष्मण रेखा पार करने पर विवश करता हैै और सीता का अपहरण करके ले जाता है।

हनुमान द्वारा समुद्र लांघने की कथा – हनुमान ने एक ही छलाँग में सागर लाँघ लिया था और लंका पहुँचकर अशोक वाटिका में सीताजी से मिले। रावण के पुत्र मेघनाथ ने ब्रह्मास्त्र की मदद से हनुमान को पकड़ा था।

समुद्र पर पुल बनाने की कथा – राम ने वानर सेना की सहायता से सागर पर पुल बाँधा और लंका तक पहुँचे।

लंका दहन की कथा – रावण ने हनुमान की पूँछ में आग लगाने का आदेश दिया। लेकिन हनुमान ने उसी आग से सारी लंका को ही जला दिया।

प्रश्न – 5 निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

(क) पति बर्नै चारमुख पूत बर्नै पंच मुख नाती बर्नै षटमुख तदपि नई-नई।

भाव सौंदर्य –

इस पंक्ति में सरस्वती देवी की महानता का वर्णन किया गया है। चतुर्मुखी ब्रह्मा इनका पति, पंचमुखी शिव इनका पुत्र और छहमुखी कार्तिकेय इनका नाती है, वो भी इनकी महिमा का वर्णन नहीं कर पाए, क्याेंकि यह सरस्वती नित्य नए रूपों में प्रकट होती रहती है।

शिल्प सौंदर्य –

  • पंचमुख, षटमुख में बहुब्रीहि समास है।
  • ‘नई-नई’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  • ब्रजभाषा का प्रयोग है।

(ख) चहुँ ओरनि नाचति मुक्तिनटी गुन धूरजटी वन पंचवटी।

भाव सौंदर्य – इस पंक्ति में, कवि ने पंचवटी के रूप का वर्णन किया है। इस स्थान के चारों ओर मुक्ति रूपी नटी नाचती है। इस पंचवटी में शिव की जटा का गुण विद्यमान है अर्थात् यह मोक्ष का स्थान है।

शिल्प सौंदर्य –

  • ब्रजभाषा का प्रयोग है।
  • पंचवटी में द्विगु समास है।
  • ‘मुक्ति नटी’ में रूपक अलंकार है।

(ग) सिधु तर्यो उनको बनरा तुम पै धनुरेख गई न तरी।

भाव सौंदर्य –

यहाँ राम की महानता और रावण की हीनता को दर्शाया गया है। राम का दूत अंगद रावण से कहता है – हे रावण! राम के वानर (हनुमान) ने समुद्र पार कर लिया, लेकिन तुम सीता की रक्षा के लिए लक्ष्मण द्वारा खींची गई रेखा भी नहीं लाँघ पाए।

शिल्प सौंदर्य –

  • ब्रजभाषा का प्रयोग है।
  • वीर रस है।
  • ओज गुण है।
  • सवैया छंद की पंक्ति है।
  • व्यंजना शब्द शक्ति है।

(घ) तेलन तूलनि पूँछि जरी न जरी, जरी लंक जराई-जरी।
 
भाव सौंदर्य –

राम का दूत अंगद रावण से कहता है – हे रावण! तुमने हनुमान की पूँछ को तेल से भीगी रुई बाँधकर जलाना चाहा, परंतु वह थोड़ी-सी भी नहीं जली और फिर वही हनुमान तुम्हारी इस लंका को जलाकर चला गया।

शिल्प सौंदर्य –

  • ब्रजभाषा का प्रयोग है।
  • ‘तेलन तूलनि’, ‘जराई-जरी’ में अनुप्रास अलंकार है।
  • ‘जरी न जरी’ में यमक अलंकार है।
  • वीर रस है।
  • ओज गुण है।
  • सवैया छंद की पंक्ति है।
  • व्यंजना शब्द शक्ति है।

उत्तर – 6 निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) भावी भूत वर्तमान जगत बखानत है केसोदास, क्यों हू ना बखानी काहू पै गई।

उत्तर – कवि केशवदास कहते हैं कि देवी सरस्वती का पूर्ण वर्णन भूतकाल में न कोई कर सका, वर्तमान काल में न कोई कर सकता है और भविष्य काल में न कोई कर पाएगा।

(ख) अघओघ की बेरी कटी बिकटी निकटी प्रकटी गुरुज्ञान-गटी।

उत्तर – इस पंक्ति में, कवि ने पंचवटी का वर्णन किया है। पंचवटी में पहुँचकर संसार के सभी जीवों और सन्यासियों की जीवन यात्र पूरी हो जाती है, अर्थात् वे जीवन-मरण के बंधन से मुक्त हो जाते हैं। यहाँ पापों की विकट बेड़ी कट जाती है। पंचवटी के निकट आने से मन में गुरु ज्ञान की गठरी प्रकट होने लगती है।


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