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संवदिया
(पाठ का सार)
संवदिया का अर्थ है – संदेशवाहक अर्थात् संदेश पहुँचाने वाला। संवाद पहुँचाने का काम सभी नहीं कर सकते। आदमी भगवान के घर से संवदिया बनकर आता है। संवाद के प्रत्येक शब्द को याद रखना, जिस सुर और स्वर में संवाद सुनाया गया है, ठीक उसी ढंग से जाकर सुनाना सहज काम नहीं। गाँव के लोगों की गलत धारणा है कि निठल्ला, कामचोर और पेटू आदमी ही संवदिया का काम करता है। गाँववाले उसे औरतों का गुलाम और नामर्द मानते हैं।
बड़ी हवेली से बुलावा आने पर हरगोबिन को अचरज हुआ। उसने सोचा आज भी किसी को संवदिया की क्या जरूरत पड़ सकती है। इस जमाने में जबकि गाँव-गाँव में डाकघर खुल गए हैं, संवदिया के मारप़्ाफ़त संवाद क्यों भेजेगा कोई? आज तो आदमी घर बैठे ही लंका तक खबर भेज सकता है और वहाँ का कुशल संवाद मँगा सकता है। फिर उसकी बुलाहट क्यों हुई? हरगोबिन ने संवाद का अंदाज़ा लगाया – निश्चय ही कोई गुप्त समाचार ले जाना है। चाँद-सूरज को भी नहीं मालूम हो।
बड़ी बहुरिया जब ब्याह कर आई थी तो उनकी स्थिति बहुत अच्छी थी। लेकिन बड़े भैया की मृत्यु के पश्चात् सारी संपति का बँटवारा हो गया था। तीनों भाइयों में आपसी झगड़ा शुरु हो गया। जब रैयतों ने जमीन पर दावे कर दिए तो तीनों भाई शहर जाकर रहने लगे। बड़ी बहुरिया कहाँ जाती? वह अकेली गाँव में ही रह गई। उसकी हालत दिन-प्रतिदिन बिगड़ती जा रही थी। भाइयों का भी व्यवहार सही नहीं था। ¬कोई बड़ी बहुरिया की देखभाल नहीं करता था। वह अपने मायके जाना चाहती थी। इसी का संदेशा बड़ी बहुरिया अपने मायके भेजना चाहती थी।
हरगोबिन बड़ी हवेली में पहुँचकर सोचने लगता है कि जब बड़ी बहुरिया इस हवेली मे आई थी तब इस हवेली की शान हुआ करती थी। यहाँ नौकरों और मजदूरों की भीड़ लगी रहती थी। बड़ी बहुरिया के हाथों में मेहंदी लगाकर गाँव की नाइन अपना परिवार पालती थी। अब बड़ी हवेली नाममात्र की हवेली रह गई है।
बड़ी बहुरिया जो संदेशा मायके भेजना चाहती थी उसके बारे में हरगोविन को बताते हुए उसकी आँखे छलछला आई, क्योंकि वह बहुत परेशान थी। उसकी आर्थिक हालत अच्छी नहीं थी। उसे दाने-दाने के दूसरों पर आश्रित होना पड़ता था। मोदिआइन भी उससे कर्ज लेने पहुँच गई थी। वह बथुआ-साग खाकर गुजारा कर रही थी। इसलिए संवाद कहते हुए बड़ी बहुरिया की आँखे छलछला आई।
गाड़ी पर सवार होने के बाद संवदिया के मन में बड़ी बहुरिया के संवाद का प्रत्येक शब्द उसके मन में काँटे की तरह चुभ रहा है। बड़ी बहुरिया ने कहा था – वह किसके भरोसे यहाँ रहेगी? एक नौकर था, वह भी कल भाग गया। गाय खूँटे से बँधी भूखी-प्यासी हिकर रही है। वह किसके लिए इतना दुख झेले?
इस चुभन से छुटकारा पाने के लिए संवदिया ने सोचा कि वह सबकुछ सच-सच बता देगा।
हरगोबिन चाहकर भी बड़ी बहुरिया का संदेश नहीं सुना सका, क्योंकि उसे लगा – अगर बहुरिया गाँव छोड़कर चली गई तो गाँव में क्या रह जाएगा? गाँव की लक्ष्मी ही गाँव छोड़कर जावेगी! किस मुँह से वह ऐसा संवाद सुना सकता है? कैसे कहता कि बड़ी बहुरिया बथुआ-साग खाकर गुज़ारा कर रही है? सुननेवाले हरगोबिन के गाँव का नाम लेकर थूकेंगे – कैसा गाँव है, जहाँ लक्ष्मी जैसी बहुरिया दुख भोग रही है!
’संवदिया डटकर खाता है और अफर कर सोता है’ से लेखक का आशय है कि जो संवदिया बनकर जाता है। उसे किसी की भावनाओं से कोई मतलब नहीं होता। वह भरपेट खाना खाता है और फिर निश्चिंत होकर सोता है। उसका काम केवल संदेश को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाना होता है। लेकिन हरगोविन के मामले में संवदिया की स्थिति विपरीत थी। वह चिंतित भी था और दुःखी भी। इसलिए वह भरपेट खाना भी नहीं खा सका था।
जलालगढ़ पहुँचने के बाद हरगोविन ने बड़ी बहुरिया के पेर पकड़ लिए। उसे बड़ी बहुरिया से माफी माँगी कि वह उसका संवाद नहीं कह सका। उसने बहुरिया से गाँव न छोड़ने का आग्र्रह किया। उसने कहा – बहुरिया उसकी माँ है और वह उसका बेटा है। अब वह निठल्ला बैठा नहीं रहेगा। वह काम करेगा और माँ के समान बड़ी बहुरिया की सेवा करेगा।
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संवदिया (प्रश्न-उत्तर)
प्रश्न – संवदिया की क्या विशेषताएँ हैं और गाँववालों के मन में संवदिया की क्या अवधारणा है?
उत्तर – संवदिया का अर्थ है – संदेशवाहक अर्थात् संदेश पहुँचाने वाला। संवाद पहुँचाने का काम सभी नहीं कर सकते। आदमी भगवान के घर से संवदिया बनकर आता है। संवाद के प्रत्येक शब्द को याद रखना, जिस सुर और स्वर में संवाद सुनाया गया है, ठीक उसी ढंग से जाकर सुनाना सहज काम नहीं। गाँव के लोगों की गलत धारणा है कि निठल्ला, कामचोर और पेटू आदमी ही संवदिया का काम करता है। गाँववाले उसे औरतों का गुलाम और नामर्द मानते हैं।
प्रश्न – बड़ी हवेली से बुलावा आने पर हरगोबिन के मन में किस प्रकार की आशंका हुई?
उत्तर – बड़ी हवेली से बुलावा आने पर हरगोबिन को अचरज हुआ। उसने सोचा आज भी किसी को संवदिया की क्या जरूरत पड़ सकती है। इस जमाने में जबकि गाँव-गाँव में डाकघर खुल गए हैं, संवदिया के मारप़्ाफ़त संवाद क्यों भेजेगा कोई? आज तो आदमी घर बैठे ही लंका तक खबर भेज सकता है और वहाँ का कुशल संवाद मँगा सकता है। फिर उसकी बुलाहट क्यों हुई? हरगोबिन ने संवाद का अंदाज़ा लगाया – निश्चय ही कोई गुप्त समाचार ले जाना है। चाँद-सूरज को भी नहीं मालूम हो।
प्रश्न – बड़ी बहुरिया अपने मायके संदेश क्यों भेजना चाहती थी?
उत्तर – बड़ी बहुरिया जब ब्याह कर आई थी तो उनकी स्थिति बहुत अच्छी थी। लेकिन बड़े भैया की मृत्यु के पश्चात् सारी संपति का बँटवारा हो गया था। तीनों भाइयों में आपसी झगड़ा शुरु हो गया। जब रैयतों ने जमीन पर दावे कर दिए तो तीनों भाई शहर जाकर रहने लगे। बड़ी बहुरिया कहाँ जाती? वह अकेली गाँव में ही रह गई। उसकी हालत दिन-प्रतिदिन बिगड़ती जा रही थी। भाइयों का भी व्यवहार सही नहीं था। ¬कोई बड़ी बहुरिया की देखभाल नहीं करता था। वह अपने मायके जाना चाहती थी। इसी का संदेशा बड़ी बहुरिया अपने मायके भेजना चाहती थी।
प्रश्न – हरगोबिन बड़ी हवेली में पहुँचकर अतीत की किन स्मृतियों में खो जाता है?
उत्तर – हरगोबिन बड़ी हवेली में पहुँचकर सोचने लगता है कि जब बड़ी बहुरिया इस हवेली मे आई थी तब इस हवेली की शान हुआ करती थी। यहाँ नौकरों और मजदूरों की भीड़ लगी रहती थी। बड़ी बहुरिया के हाथों में मेहंदी लगाकर गाँव की नाइन अपना परिवार पालती थी। अब बड़ी हवेली नाममात्र की हवेली रह गई है।
प्रश्न – संवाद कहते वक्त बड़ी बहुरिया की आँखें क्यों छलछला आईं?
उत्तर – बड़ी बहुरिया जो संदेशा मायके भेजना चाहती थी उसके बारे में हरगोविन को बताते हुए उसकी आँखे छलछला आई, क्योंकि वह बहुत परेशान थी। उसकी आर्थिक हालत अच्छी नहीं थी। उसे दाने-दाने के दूसरों पर आश्रित होना पड़ता था। मोदिआइन भी उससे कर्ज लेने पहुँच गई थी। वह बथुआ-साग खाकर गुजारा कर रही थी। इसलिए संवाद कहते हुए बड़ी बहुरिया की आँखे छलछला आई।
प्रश्न – गाड़ी पर सवार होने के बाद संवदिया के मन में काँटे की चुभन का अनुभव क्यों हो रहा था। उससे छुटकारा पाने के लिए उसने क्या उपाय सोचा?
उत्तर – गाड़ी पर सवार होने के बाद संवदिया के मन में बड़ी बहुरिया के संवाद का प्रत्येक शब्द उसके मन में काँटे की तरह चुभ रहा है। बड़ी बहुरिया ने कहा था – वह किसके भरोसे यहाँ रहेगी? एक नौकर था, वह भी कल भाग गया। गाय खूँटे से बँधी भूखी-प्यासी हिकर रही है। वह किसके लिए इतना दुख झेले?
इस चुभन से छुटकारा पाने के लिए संवदिया ने सोचा कि वह सबकुछ सच-सच बता देगा।
प्रश्न – बड़ी बहुरिया का संवाद हरगोबिन क्यों नहीं सुना सका?
उत्तर – हरगोबिन चाहकर भी बड़ी बहुरिया का संदेश नहीं सुना सका, क्योंकि उसे लगा – अगर बहुरिया गाँव छोड़कर चली गई तो गाँव में क्या रह जाएगा? गाँव की लक्ष्मी ही गाँव छोड़कर जावेगी! किस मुँह से वह ऐसा संवाद सुना सकता है? कैसे कहता कि बड़ी बहुरिया बथुआ-साग खाकर गुज़ारा कर रही है? सुननेवाले हरगोबिन के गाँव का नाम लेकर थूकेंगे – कैसा गाँव है, जहाँ लक्ष्मी जैसी बहुरिया दुख भोग रही है!
प्रश्न – ‘संवदिया डटकर खाता है और अफर कर सोता है’ से क्या आशय है?
उत्तर – ’संवदिया डटकर खाता है और अफर कर सोता है’ से लेखक का आशय है कि जो संवदिया बनकर जाता है। उसे किसी की भावनाओं से कोई मतलब नहीं होता। वह भरपेट खाना खाता है और फिर निश्चिंत होकर सोता है। उसका काम केवल संदेश को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाना होता है। लेकिन हरगोविन के मामले में संवदिया की स्थिति विपरीत थी। वह चिंतित भी था और दुःखी भी। इसलिए वह भरपेट खाना भी नहीं खा सका था।
प्रश्न – जलालगढ़ पहँुचने के बाद बड़ी बहुरिया के सामने हरगोबिन ने क्या संकल्प लिया?
उत्तर – जलालगढ़ पहुँचने के बाद हरगोविन ने बड़ी बहुरिया के पेर पकड़ लिए। उसने बड़ी बहुरिया से माफी माँगी कि वह उसका संवाद नहीं कह सका। उसने बहुरिया से गाँव न छोड़ने का आग्र्रह किया। उसने कहा – बहुरिया उसकी माँ है और वह उसका बेटा है। अब वह निठल्ला बैठा नहीं रहेगा। वह काम करेगा और माँ के समान बड़ी बहुरिया की सेवा करेगा।
प्रश्न – ‘डिजिटल इंडिया’ के दौर में संवदिया की क्या कोई भूमिका हो सकती है?
उत्तर – ‘डिजिटल इंडिया’ के दौर में संवदिया की भूमिका गौण दिखाई देती है क्योंकि आज डिजिटल माध्यमों से संदेश मिनटों में एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के पास पहुँच जाता है। संवदिया के सुनाने मेें शब्दों का हेरफेर हो सकता है किंतु डिजिटल माध्यम से भेजा गया संदेश वैसा ही पहुँचता है जैसा उसे भेजा गया था।
भाषा-शिल्प
प्रश्न – इन शब्दों का अर्थ समझिए
उत्तर –
- काबुली-कायदा – मतलब निकालने के लिए पहले मीठा बोलना और बाद में दिल दुखना।
- रोम-रोम कलपने लगा – मन का बहुत दुःखी होना।
- अगहनी धान – तैयार खड़ी फसल।
प्रश्न – पाठ से प्रश्नवाचक वाक्यों को छाँटिए और संदर्भ के साथ उन पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर –
वाक्य – फिर उसकी बुलावट क्याें हुई?
टिप्पणी – संदेश्ा भेजने के लिए गाँव में डाकघर खुल चुका था। लेकिन बड़ी बहुरिया ने हरगोविन को बुलाया था। इस बुलावट पर वह आश्चर्य में पड़ गया था।
वाक्य – कहाँ गए वे दिन?
टिप्पणी – बड़ी बहुरिया जब इस गाँव में बहु बनकर आई थी तो हवेली की अलग ही शान थी। नौकरों की भीड़ लगी रहती थी। अब सब कुछ समाप्त हो चुका है। इसलिए हरगोविन पुराने दिनों की स्मृतियों में खो जाता है।
वाक्य – भगवान भले आदमी को ही कष्ट देते हैं। नहीं तो एक घंटे की बीमारे में बड़े भैया क्यों मरत?–
टिप्पणी – बहुरिया के पति भले आदमी थे। वे एक बीमारी के कारण मारे गए। बड़ी बहुरिया का कष्ट देखकर हरगोविन को अफसोस होता है।
वाक्य – कहिए क्या संवाद है?
टिप्पणी – हरगोविन बड़ी बहुरिया से पूछता है कि क्या संदेश पहुँचाना है?
वाक्य – और किताना बड़ा करूँ दिल।
टिप्पणी – बड़ी बहुरिया को ढाँढस बँधाते हुए हरगोविन उसे धैर्य रखने की सलाह देता है। लेकिन अब बहुरिया का साहस टूट चुका है।
वाक्य – बथुआ-साग खाकर कब तक जीऊँ? किसलिए —– किसके लिए?
टिप्पणी – भैया के गुजरने के बाद हवेली की आर्थिक हालत खराब हो चुकी थी। घर में खाने के लाले पड़े हुए थे। बहुरिया को अब इस हालत में जीना व्यर्थ लगता था।
वाक्य – तुम कहाँ से इंतजाम करोगे?
टिप्पणी – हरगोविन बहुरिया से गाड़ी का किराया लेने से मना कर देता है। तो वह उससे किराये के इंतजाम के बारे में पूछती है।
वाक्य – बिना मजदूरी लिए ही जो गाँव-गाँव संवाद पहुँचावे, उसको और क्या कहेंगे? — औरतों का गुलाम।
टिप्पणी – गाँव वाले संवदिया को औरतों का गुलाम मानते थे क्योंकि वह बिना किसी पारिश्रमिक के संवाद पहुँचाने का काम करता था।
3- इन पंक्तियों की व्याख्या कीजिए-
(क) बड़ी हवेली अब नाममात्र को ही बड़ी हवेली है।
व्याख्या – हरगोबिन बड़ी हवेली में पहुँचकर सोचने लगता है कि जब बड़ी बहुरिया इस हवेली मे आई थी तब इस हवेली की शान हुआ करती थी। यहाँ नौकरों और मजदूरों की भीड़ लगी रहती थी। बड़ी बहुरिया के हाथों में मेहंदी लगाकर गाँव की नाइन अपना परिवार पालती थी। अब बड़ी हवेली नाममात्र की हवेली रह गई है।
(ख) हरगोबिन ने देखी अपनी आँखों से द्रौपदी की चीरहरण लीला।
व्याख्या – बड़ी बहुरिया जब ब्याह कर आई थी तो उनकी स्थिति बहुत अच्छी थी। लेकिन बड़े भैया की मृत्यु के पश्चात् सारी संपति का बँटवारा हो गया था। तीनों भाइयों में आपसी झगड़ा शुरु हो गया। जब रैयतों ने जमीन पर दावे कर दिए तो तीनों भाई शहर जाकर रहने लगे। बड़ी बहुरिया कहाँ जाती? वह अकेली गाँव में ही रह गई। उसकी हालत दिन-प्रतिदिन बिगड़ती जा रही थी। भाइयों का भी व्यवहार सही नहीं था।
(ग) बथुआ साग खाकर कब तक जीऊँ?
व्याख्या – बड़ी बहुरिया जो संदेशा मायके भेजना चाहती थी उसके बारे में हरगोविन को बताते हुए उसकी आँखे छलछला आई, क्योंकि वह बहुत परेशान थी। उसकी आर्थिक हालत अच्छी नहीं थी। उसे दाने-दाने के दूसरों पर आश्रित होना पड़ता था। मोदिआइन भी उससे कर्ज लेने पहुँच गई थी। वह बथुआ-साग खाकर गुजारा कर रही थी।
(घ) किस मुँह से वह ऐसा संवाद सुनाएगा।
व्याख्या – हरगोबिन चाहकर भी बड़ी बहुरिया का संदेश नहीं सुना सका, क्योंकि उसे लगा – अगर बहुरिया गाँव छोड़कर चली गई तो गाँव में क्या रह जाएगा? गाँव की लक्ष्मी ही गाँव छोड़कर जावेगी! किस मुँह से वह ऐसा संवाद सुना सकता है? कैसे कहता कि बड़ी बहुरिया बथुआ-साग खाकर गुज़ारा कर रही है? सुननेवाले हरगोबिन के गाँव का नाम लेकर थूकेंगे – कैसा गाँव है, जहाँ लक्ष्मी जैसी बहुरिया दुख भोग रही है!
टेस्ट/क्विज
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