कक्षा 12 » सूरदास की झोपड़ी (प्रेमचंद)

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"सूरदास की झोपड़ी"
(पाठ का सार)

उपचेतना – नींद में जागते रहने का अहसास। अग्निदाह – आग की लपटें, आग का दहन। चिताग्नि – चिता में लगी अग्नि। खुटाई – खोट। तस्कीन – तसल्ली, दिलासा भूबल – ऊपर राख नीचे आग। अदावत – दुश्मनी। जरीबाना – जुर्माना, दंड। नाहक – बेमतलब, अकारण। रुपयों की गरमी – धन का घमंड। बल्लमटेर – लुटेरे, गुंडे-बदमाश। मसक्कत – मशक्कत, मेहनत, परिश्रम। हसद – ईर्ष्या, डाह। छाती पर साँप लोटना – ईर्ष्या करना। टेनी मारना – कम तौलना। बाट खोटे रखना – तौल सही नहीं रखना। ईमान गँवाना – बेईमानी करना। गुनाह बेलज्जत नहीं रहना – बिना किसी लाभ के गुनाह नहीं करना। झिझकी – संकोच किया। झाँसा देना – भ्रमित करना। पेट की थाह लेना – अंदर की बात जानना। ईमान बेचना – विवशता के कारण झूठा या गलत आचरण करना। गोते खाना – इधर-उधर डूबना-उतराना। विजय-गर्व की तरंग – विजय की खुशी, खुशी की उमंग में। उद्दिष्ट – निश्चित, निर्धारित

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"सूरदास की झोपड़ी"
(प्रश्न-उत्तर)

प्रश्न :- ‘चूल्हा ठंडा किया होता, तो दुश्मनों का कलेजा कैसे ठंडा होता?’ नायकराम के इस कथन में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर :- लोगों ने यह सोचा कि सूरदास के चूल्हे में जो अंगारे बचे थे, उनकी हवा से शायद यह आग लगी थी। जगधर के पूछने पर की आज चूल्हा ठंडा नहीं किया था? इसके उत्तर में नायकराम ने  यह उत्तर दिया था कि चूल्हा ठंडा किया होता, तो दुश्मनों का कलेजा कैसे ठंडा होता। नायकराम के इस कथन में निहित है कि सूरदास के जल रहे घर से उसके शत्रुओं को प्रसन्नता हो रही होगी।  भैरों ने सूरदास के झोपड़े में जान बूझकर आग लगाई थी। नायकराम जानता था कि आग चूल्हे की वजह से नहीं लगी है। सूरदास के दुश्मन किसी ने लगाई है।

प्रश्न :- भैरों ने सूरदास की झोपड़ी क्यों जलाई?

उत्तर :- जब भैरों तथा उसकी पत्नी के बीच में लड़ाई हुई, तो नाराज़ सुभागी सूरदास के घर रहने चली गई। सूरदास हताश सुभागी को बेसहारा नहीं करना चाहता था। अतः वह उसे मना नहीं कर पाया और उसे अपने घर में रहने दिया। भैरों के लिए यह बात असहनीय थी। भैरों स्वयं को अपमानित महसूस करने लगा। उसी दिन  से उसने सूरदास से बदला लेने की ठान ली। वह सूरदास को सबक सिखाना चाहता था। इसलिए उसने सूरदास की झोपड़ी में आग लगा दी।

प्रश्न :- ‘यह फूस की राख न थी, उसकी अभिलाषाओं की राख थी।’ संदर्भ सहित विवेचन कीजिए।

उत्तर :- सूरदास की निम्न अभिलाषाएँ थी-

  • वह गाँववालों के लिए कुँआ बनवाना चाहता था।
  • अपने बेटे की शादी करवाना चाहता था।
  • अपने पितरों का पिंडदान करवाना चाहता था।

झोपड़ी के साथ ही पूँजी के जल जाने से अब उसकी कोई भी अभिलाषा पूरी नहीं हो सकती थी। उसे लगा कि यह फूस की राख नहीं है बल्कि उसकी अभिलाषाओं की राख है। उसकी सारी अभिलाषाएँ झोपड़ी के साथ ही जलकर राख हो गई। वह गर्म राख में अपनी अभिलाषाओं की राख को ढूँढ रहा था।

प्रश्न :- जगधर के मन में किस तरह का ईर्ष्या-भाव जगा और क्यों?

उत्तर :- जब जगधर को पता लगा कि भैरों ने ही सूरदास के घर आग लगवाई थी और उसने सूरदास की पूरे जीवन की पाँच सौ रुपए से अधिक की जमापूँजी भी हथिया ली है तो जगधर को भैरों के पास इतना रुपया देखकर अच्छा न लगा। वह मन-ही-मन भैरों से ईर्ष्या करने लगा। भैरों के इतने रुपए लेकर आराम से जिंदगी जीने के ख्याल से ही वह तड़प उठता। भैरों की खुशी उसके लिए दुख का कारण बन गई थी।

प्रश्न :- सूरदास जगधर से अपनी आर्थिक हानि को गुप्त क्यों रखना चाहता था?

उत्तर :- निम्नलिखित कारणों से सूरदास जगधर से अपनी आर्थिक हानि को गुप्त रखना चाहता था –

  1. सूरदास एक अँधा भिखारी था। वह लोगों के दान पर ही जीता था। एक अँधे भिखारी के पास इतना धन होना लोगों के लिए हैरानी की बात हो सकती थी। इस धन के पता चलने पर लोग उस पर संदेह कर सकते थे कि उसके पास इतना धन कहाँ से आया।
  2. वह जानता था कि एक भिखारी को धन जोड़कर रखना सुहाता नहीं है। लोग उसके प्रति तरह-तरह की बात कर सकते हैं। वह स्वयं को समाज के आगे लज्जित नहीं करना चाहता था।

प्रश्न :- ‘सूरदास उठ खड़ा हुआ और विजय-गर्व की तरंग में राख के ढेर को दोनों हाथों से उड़ाने लगा।’ इस कथन के संदर्भ में सूरदास की मनोदशा का वर्णन कीजिए।

उत्तर :- सूरदास अपने रुपए की चोरी की बात से दुखी हो चुका था। उसके मन में परेशानी, दुख ग्लानि तथा नैराश्य के भाव थे। उसने घीसू द्वारा मिठुआ को यह कहते हुए सुना कि खेल में रोते हो। इस कथन से उसे अहसास हुआ कि जीवन संघर्षों का नाम है। इसमें हार-जीत लगी रहती है। जो मनुष्य जीवन रूपी खेल में हार मान लेता है, उसे दुख और निराशा के अलावा कुछ नहीं मिलता है। घीसू के वचनों ने उसे समझाया कि खेल में बच्चे भी रोना अच्छा नहीं मानते, तो वह किसलिए रो रहा है।  अपने दुख पर प्राप्त विजय-गर्व की तरंग ने जैसे उसमें प्राण डाल दिए और वह राख के ढेर को प्रसन्नता से दोनों हाथों से उड़ाने लगा। 

प्रश्न :-‘तो हम सौ लाख बार बनाएँगे’ इस कथन के संदर्भ में सूरदास के चरित्र का विवेचन कीजिए।

उत्तर :- ‘तो हम सौ लाख बार बनाएँगे’ इस कथन के संदर्भ में सूरदास के चरित्र की निम्नलिखित बातें सामने आती हैं।-

(क) दृढ़ निश्चयी- वह एक दृढ़ निश्चयी व्यक्ति है। रुपए के जल जाने की बात ने उसे कुछ समय के लिए दुखी तो किया परन्तु बच्चों की बातों ने जैसे उसे दोबारा खड़ा कर दिया। 

(ख) परिश्रमी- वह भाग्य के भरोसे रहने वाला नहीं था। अतः वह उठ खड़ा हुआ और परिश्रम करने के लिए तत्पर हो गया। उसने यही संदेश मिठुआ को भी दिया कि जितनी बार उसकी झोपड़ी जलेगी, वह उतनी बार उसे दोबारा खड़ा कर देगा।

(ग) बहादुर- सूरदास बेशक शारीरिक रूप से अपंग था परन्तु वह डरपोक नहीं था। मुसीबतों से सामना करना जानता था। इतने कठिन समय में भी वह स्वयं को बिना किसी सहारे के तुरंत संभाल सकता है।


टेस्ट/क्विज

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