राम का राज्याभिषेक
शब्दार्थ :- स्वार्थ – अपना काम निकालना। सान्निध्य – निकटता। कोषागार – जहाँ धन इकट्ठा करके रखा जाता है। आपत्ति – विरोध, ऐतराज। जयघोष – जय-जयकार। कुबेर – धन का देवता। विरत – भटकना। वाद्ययंत्र – बजाने का यंत्र। झंकृत – बजना। मंगलाचार – शुभ कार्य के लिए गाए जाने वाले गीत। पराक्रम – साहस। स्मृति – याद।
पाठ का सार
लंका का शासन संभालने के बाद विभीषण चाहते थे कि राम कुछ दिन लंका में रुक जाएँ। विभीषण चाहते थे कि राम कुछ दिन यहाँ विश्राम कर लें। युद्ध की थकान उतर जाएगी। वे राम का सान्निध्य और रीति-नीति सीखने का अवसर भी चाहते थे।
राम ने लंका नगरी में रुकने से मना कर दिया – “यह संभव नहीं है, मित्र!” राम ने कहा। वनवास के चौदह वर्ष पूरे हो गए हैं। मैं तत्काल अयोध्या लौटना चाहता हूँ भरत मेरी प्रतीक्षा कर रहे होंगे। जाने में विलंब हुआ तो वे प्राण दे देंगे। उन्होंने प्रतिज्ञा की है। मैं उनकी प्रतिज्ञा से बँधा हूँ।”
राम के द्वारा लंका में न रुकने पर विभीषण ने उनसे याचना की – “मेरी इच्छा है कि मैं आपके राज्याभिषेक में उपस्थित रहूँ। मुझे अपने साथ चलने की अनुमति दें।” राम ने उनका आग्रह स्वीकार कर लिया। बोले, “आप मेरे लिए यात्र की व्यवस्था कर दें।”
राम को अयोध्या भेजने के लिए पुष्पक विमान का प्रबंध किया गया। राम ने विभीषण के अतिरिक्त सुग्रीव और हनुमान को अयोध्या आमंत्रित किया। विभीषण ने वानरों को रत्न और आभूषण देकर लंका से विदा किया। लंका से चलकर पुष्पक विमान उत्तर दिशा को निकला।
सीता के आग्रह पर पुष्पक विमान किष्किंधा उतारा गया। सुग्रीव की रानियों तारा और रूपा को लेने के लिए। गोदावरी नदी पर बनी पर्णकुटी को पुष्पक विमान से दिखाए जाने पर सीता ने आँखें बंद कर लीं। जैसे पंचवटी को पुनः देखने से डर रही हों। उन्हें पूरा घटनाक्रम याद आ गया।
गंगा-यमुना के संगम पर ऋषि भरद्वाज के आश्रम में विमान उतारा गया था। सबने रात वहीं बिताई। ऋषि भरद्वाज ने हनुमान को अयोध्या भेजा। राम के आगमन की पूर्व सूचना देने के लिए। राम सीधे अयोध्या नहीं जाना चाहते थे। उनके मन में एक प्रश्न था। एक संशय। चौदह वर्ष की अवधि कम नहीं होती। कहीं इस अवधि में भरत को सत्ता का मोह तो नहीं हो गया। आश्रम से अयोध्या जाते समय हनुमान ने मार्ग में निषादराज गुह से भेंट की। उनसे अयोध्या का हाल जाना। निषादराज गुह से मिलने के बाद हनुमान भरत से मिलने नंदीग्राम पहुँचे।उन्होंने भरत से कहा, “श्रीराम के वनवास की अवधि पूर्ण हो गई है। वे लौट रहे हैं। प्रयाग पहुँच चुके हैं। मैं उन्हीं की आज्ञा से आपके पास आया हूँ।” हनुमान की बात सुनकर भरत की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। आँखों में खुशी के आँसू थे। वे बार-बार हनुमान को धन्यवाद दे रहे थे। यह शुभ सूचना उन तक पहुँचाने के लिए। उनके चेहरे पर केवल एक भाव था। प्रसन्नता। हनुमान उनसे विदा लेकर आश्रम लौट आए। राम के पास।
भरत से सूचना पाकर अयोध्या में उत्सव की तैयारियाँ होने लगीं। नगर को सजाया गया। शत्रुघ्न राज्याभिषेक की व्यवस्था में लग गए। महल से तीनों रानियाँ नंदीग्राम के लिए निकल पड़ीं। कौशल्या सबसे आगे थीं। उन्हें पता था कि राम पहले भरत से भेंट करेंगे। राम का विमान नंदीग्राम उतरा। उनका भव्य स्वागत हुआ। आकाश राम के जयघोष से गूँज उठा। राम ने विमान से उतरकर भरत को गले लगाया। माताओं को प्रणाम किया। भरत भागते हुए आश्रम के भीतर गए। राम की खड़ाऊँ उठा लाए। जिसे सिंहासन पर रखकर उन्होंने चौदह वर्ष राजकाज चलाया था। झुककर अपने हाथों से राम को पहनाई। मिलन का यह दृश्य अद्भुत था। सबके चेहरों पर प्रसन्नता थी। सबकी आँखें खुशी के आँसुओं से नम थीं।
राम-लक्ष्मण ने नंदीग्राम में अपने तपस्वी वस्त्र उतार दिए। नंदीग्राम से चलने से पहले राम ने पुष्पक विमान को कुबेर के पास भेज दिया। वह विमान कुबेर का ही था। रावण ने उसे बलात छीन लिया था। मुनि वशिष्ठ ने राम का राजतिलक किया। राम और सीता सोने के रत्नजटित सि्ांहासन पर बैठे। लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न उनके पास खड़े थे। हनुमान नीचे बैठ गए। माताओं ने आरती उतारी। मंगलाचार हुआ। शुभ गीत गाए गए। राम ने सीता को एक बहुमूल्य हार दिया। प्रजाजनों को उपहार दिए। अनेक वस्तुएँ प्रदान कीं। सीता ने अपने गले का हार उतारा। वे दुविधा में थीं। किसे दें? दुविधा राम ने दूर की, ‘जिस पर तुम सर्वाधिक प्रसन्न हो, उसे दे दो!” सीता ने वह हार हनुमान को भेंट कर दिया। भक्ति और पराक्रम के लिए।
राम ने लंबे समय तक अयोध्या पर राज किया। उनके राज में किसी को कष्ट नहीं था। सब सुखी थे। भेदभाव नहीं था। कोई बीमार नहीं पड़ता था। खेत हरे-भरे थे। पेड़ फलों से लदे रहते थे। राम न्यायप्रिय थे। गुणों के सागर थे। उनका राज्य राम राज्य था। आज तक स्मृतियों में है।
पाठ पर आधारित अभ्यास-प्रश्न
प्रश्न :- लंका का शासन संभालने के बाद विभीषण क्या चाहते थे?
उत्तर :- विभीषण चाहते थे कि राम कुछ दिन लंका में रुक जाएँ।
प्रश्न :- विभीषण राम को क्यों रोकना चाहते थे?
उत्तर :- विभीषण चाहते थे कि राम कुछ दिन यहाँ विश्राम कर लें। युद्ध की थकान उतर जाएगी। वे राम का सान्निध्य और रीति-नीति सीखने का अवसर भी चाहते थे।
प्रश्न :- राम ने क्या कहकर लंका नगरी में रुकने से मना कर दिया?
उत्तर :- “यह संभव नहीं है, मित्र!” राम ने कहा। वनवास के चौदह वर्ष पूरे हो गए हैं। मैं तत्काल अयोध्या लौटना चाहता हूँ भरत मेरी प्रतीक्षा कर रहे होंगे। जाने में विलंब हुआ तो वे प्राण दे देंगे। उन्होंने प्रतिज्ञा की है। मैं उनकी प्रतिज्ञा से बँधा हूँ।”
प्रश्न :- राम के द्वारा लंका में न रुकने पर विभीषण ने उनसे क्या याचना की?
उत्तर :- “मेरी इच्छा है कि मैं आपके राज्याभिषेक में उपस्थित रहूँ। मुझे अपने साथ चलने की अनुमति दें।”
प्रश्न :- विभीषण द्वारा राम के राज्याभिषेक के लिए चलने की इच्छा जताने पर राम ने क्या किया?
उत्तर :- राम ने उनका आग्रह स्वीकार कर लिया। बोले, “आप मेरे लिए यात्र की व्यवस्था कर दें।”
प्रश्न :- राम को अयोध्या भेजने के लिए किसका प्रबंध किया गया?
उत्तर :- पुष्पक विमान।
प्रश्न :- राम ने विभीषण के अतिरिक्त और किसे अयोध्या आमंत्रित किया?
उत्तर :- सुग्रीव और हनुमान को।
प्रश्न :- विभीषण ने वानरों को क्या देकर लंका से विदा किया?
उत्तर :- रत्न और आभूषण
प्रश्न :- लंका से चलकर पुष्पक विमान किस दिशा को निकला?
उत्तर :- उत्तर दिशा को।
प्रश्न :- किसके आग्रह पर पुष्पक विमान किष्किंधा उतारा गया?
उत्तर :- सीता के आग्रह पर।
प्रश्न :- पुष्पक विमान किष्किंधा क्यों उतारा गया?
उत्तर :- सुग्रीव की रानियों तारा और रूपा को लेने के लिए।
प्रश्न :- गोदावरी नदी पर बनी पर्णकुटी को पुष्पक विमान से दिखाए जाने पर सीता ने क्या किया?
उत्तर :- सीता ने आँखें बंद कर लीं। जैसे पंचवटी को पुनः देखने से डर रही हों। उन्हें पूरा घटनाक्रम याद आ गया।
प्रश्न :- गंगा-यमुना के संगम पर किस ऋषि के आश्रम में पुष्पक विमान उतारा गया था।
उत्तर :- ऋषि भरद्वाज के आश्रम में। सबने रात वहीं बिताई।
प्रश्न :- ऋषि भरद्वाज ने राम के आगमन का संदेश देने के लिए किसे अयोध्या भेजा?
उत्तर :- हनुमान को।
प्रश्न :- ऋषि भरद्वाज ने हनुमान को अयोध्या क्यों भेजा?
उत्तर :- भरत को राम के आगमन की पूर्व सूचना देने के लिए।
प्रश्न :- राम अयोध्या जाने से पहले क्या देखना चाहते थे?
उत्तर :- राम सीधे अयोध्या नहीं जाना चाहते थे। उनके मन में एक प्रश्न था। एक संशय। चौदह वर्ष की अवधि कम नहीं होती। कहीं इस अवधि में भरत को सत्ता का मोह तो नहीं हो गया?
प्रश्न :- ऋषि भरद्वाज के आश्रम से अयोध्या जाते समय हनुमान की भेंट किससे हुई?
उत्तर :- मार्ग में निषादराज गुह से भेंट की। उनसे अयोध्या का हाल जाना।
प्रश्न :- निषादराज गुह से मिलने के बाद हनुमान भरत से मिलने कहाँ पहुँचे?
उत्तर :- नंदीग्राम।
प्रश्न :- हनुमान ने भरत को क्या सूचना दी?
उत्तर :- उन्होंने भरत से कहा, “श्रीराम के वनवास की अवधि पूर्ण हो गई है। वे लौट रहे हैं। प्रयाग पहुँच चुके हैं। मैं उन्हीं की आज्ञा से आपके पास आया हूँ।”
प्रश्न :- हनुमान की बात सुनकर भरत के मुख पर कैसे भाव थे?
उत्तर :- भरत की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। आँखों में खुशी के आँसू थे। वे बार-बार हनुमान को धन्यवाद दे रहे थे। यह शुभ सूचना उन तक पहुँचाने के लिए। उनके चेहरे पर केवल एक भाव था। प्रसन्नता। हनुमान उनसे विदा लेकर आश्रम लौट आए। राम के पास।
प्रश्न :- राम के आने की सूचना पाकर अयोध्या का कैसा दृश्य हो गया?
उत्तर :- भरत से सूचना पाकर अयोध्या में उत्सव की तैयारियाँ होने लगीं। नगर को सजाया गया। शत्रुघ्न राज्याभिषेक की व्यवस्था में लग गए। महल से तीनों रानियाँ नंदीग्राम के लिए निकल पड़ीं। कौशल्या सबसे आगे थीं। उन्हें पता था कि राम पहले भरत से भेंट करेंगे।
प्रश्न :- राम का भरत से मिलन किस प्रकार हुआ?
उत्तर :- राम का विमान नंदीग्राम उतरा। उनका भव्य स्वागत हुआ। आकाश राम के जयघोष से गूँज उठा। राम ने विमान से उतरकर भरत को गले लगाया। माताओं को प्रणाम किया। भरत भागते हुए आश्रम के भीतर गए। राम की खड़ाऊँ उठा लाए। जिसे सिंहासन पर रखकर उन्होंने चौदह वर्ष राजकाज चलाया था। झुककर अपने हाथों से राम को पहनाई। मिलन का यह दृश्य अद्भुत था। सबके चेहरों पर प्रसन्नता
थी। सबकी आँखें खुशी के आँसुओं से नम थीं।
प्रश्न :- राम-लक्ष्मण ने कहाँ पर अपने तपस्वी वस्त्र उतार दिए?
उत्तर :- नंदीग्राम में।
प्रश्न :- नंदीग्राम से चलने से पहले राम ने पुष्पक विमान को कहाँ भेज दिया?
उत्तर :- कुबेर के पास।
प्रश्न :- राम ने पुष्पक विमान को कुबेर के पास क्यों भेजा?
उत्तर :- वह विमान कुबेर का ही था। रावण ने उसे बलात छीन लिया था।
प्रश्न :- राम का राज्याभिषेक किस प्रकार हुआ?
उत्तर :- मुनि वशिष्ठ ने राम का राजतिलक किया। राम और सीता सोने के रत्नजटित सिंहासन पर बैठे। लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न उनके पास खड़े थे। हनुमान नीचे बैठ गए। माताओं ने आरती उतारी। मंगलाचार हुआ। शुभ गीत गाए गए। राम ने सीता को एक बहुमूल्य हार दिया। प्रजाजनों को उपहार दिए। अनेक वस्तुएँ प्रदान कीं।
प्रश्न :- सीता किस दुविधा में थी?
उत्तर :- सीता ने अपने गले का हार उतारा। वे दुविधा में थीं। किसे दें? दुविधा राम ने दूर की, ‘जिस पर तुम सर्वाधिक प्रसन्न हो, उसे दे दो!” सीता ने वह हार हनुमान को भेंट कर दिया। भक्ति और पराक्रम के लिए।
प्रश्न :- राम राज्य कैसा था?
उत्तर :- राम ने लंबे समय तक अयोध्या पर राज किया। उनके राज में किसी को कष्ट नहीं था। सब सुखी थे। भेदभाव नहीं था। कोई बीमार नहीं पड़ता था। खेत हरे-भरे थे। पेड़ फलों से लदे रहते थे। राम न्यायप्रिय थे। गुणों के सागर थे। उनका राज्य राम राज्य था। आज तक स्मृतियों में है।
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