कक्षा 6 » बाल रामकथा

दो वरदान

शब्दार्थ :- सर्वोपरि – सबसे ऊपर। मुँहलगी – बहुत प्यारी। आसन्न – निकट का। तिरस्कार – अपमान। अव्यक्त – जिसे कहा न जा सके। रनिवास – जहाँ किसी राजा की रानियाँ रहती हैं। कोपभवन – ऐसा महल जहाँ रानी राजा से रूठकर चली जाती है। सौगंध – कसम। संकल्प – निश्चय। भौचक – हैरान।

पाठ का सार

राजा दशरथ के मन में अब एक ही इच्छा बची थी। राम का राज्याभिषेक। उन्हें युवराज का पद देना। अयोध्या लौटने के बाद से ही उन्होंने राम को राज-काज में शामिल करना शुरू कर दिया था। राम यह जिम्मेदारी अच्छी तरह निभा रहे थे।उनकी विनम्रता, विद्वत्ता और पराक्रम का लोहा सभी मानते थे। प्रजा उनको चाहती थी। दशरथ के लिए तो वह प्राणों से प्यारे थे ही। दरबार में राम का सम्मान निरंतर बढ़ रहा था।

भरत और शत्रुघ्न उस समय अयोध्या में नहीं थे। वह अपने नाना केकयराज के यहाँ गए हुए थे। भरत जब भी अयोध्या लौटने की बात करते, नाना उन्हें रोक लेते। भरत को अयोध्या की घटनाओं की सूचना नहीं थी। उन्हें अपने पिता के निर्णय के संबंध में नहीं पता था। यह जानकारी भी नहीं थी कि अगले दिन राम का राज्याभिषेक होने वाला है। केकय से
एक दिन में भरत और शत्रुघ्न का आना संभव नहीं था।

मंथरा कैकेयी की दासी थी। बचपन से। कैकेयी का हित उसके लिए सर्वोपरि था। मंथरा उसे अपना हित मानती थी। वह कैकेयी की मुँहलगी थी। रानी कैकेयी भी उसे बहुत मानती थीं। मंथरा ने राम के राज्याभिषेक की बात सुनकर जलभुन गई। राम का राज्याभिषेक उसे षड्यंत्र लगा। कैकेयी के विरुद्ध। क्रोध से आगबबूला मंथरा रनिवास की ओर भागी। सीधे कैकेयी के कक्ष में। वह हाँफ रही थी। क्रोध से चेहरा लाल था। भागने के कारण साँस उखड़ रही थी। उसने रानी कैकेयी को सोते हुए देखा। उसे उठाकर राम के राज्याभिषेक के बारे में भड़का दिया।

मंथरा के भड़काने पर कैकेयी ने राजा दशरथ से मिलने के लिए रानी कैकेयी कोपभवन चली गईं। दशरथ कोपभवन का दृश्य देखकर हैरान हो गए। उन्हें कुछ समझ में नहीं आया। कैकेयी जमीन पर लेटी हुई थीं। बाल बिखरे हुए। गहने कक्ष में बिखरे हुए। कपड़े मैले।

राजा दशरथ ने कैकेयी को मनाने के लिए कहा –  तुम मेरी सबसे प्रिय रानी हो। मैं तुम्हें प्रसन्न देखना चाहता हूँ। तुम्हारी खुशी के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ। कुछ भी। धरती-आसमान एक कर सकता हूँ।

कैकेयी ने राजा दशरथ से दो वरदान माँगे। कैकेयी ने कहा –

  1. कल सुबह राज्याभिषेक भरत का हो, राम का नहीं ।
  2. राम को चौदह वर्ष का वनवास हो।

कैकेयी के वरदान की बात सुनकर दशरथ का चेहरा सफ़ेद पड़ गया। अवाक रह गए। सिर चकराने लगा। वे मूर्च्छित होकर गिर पड़े। दशरथ कैकेयी की  माँग को अस्वीकार करते रहे। अनर्थ बताते रहे। तब कैकेयी ने अंतिम हथियार चलाया। “अपने वचन से पीछे हटना रघुकुल का अनादर है। आप चाहें तो ऐसा कर सकते हैं। पर तब आप दुनिया को मुँह दिखाने योग्य नहीं रहेंगे। रही मेरी बात। आप वरदान नहीं देंगे तो मैं विष पीकर आत्महत्या कर लूँगी। यह कलंक आपके माथे होगा।”

पाठ पर आधारित प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न :- राजा दशरथ के मन में अब कौन-सी इच्छा शेष थी?

उत्तर :- राजा दशरथ के मन में अब एक ही इच्छा बची थी। राम का राज्याभिषेक। उन्हें युवराज का पद देना। अयोध्या लौटने के बाद से ही उन्होंने राम को राज-काज में शामिल करना शुरू कर दिया था। राम यह जिम्मेदारी अच्छी तरह निभा रहे थे।उनकी विनम्रता, विद्वत्ता और पराक्रम का लोहा सभी मानते थे। प्रजा उनको चाहती थी। दशरथ के लिए तो वह प्राणों से प्यारे थे ही। दरबार में राम का सम्मान निरंतर बढ़ रहा था।

प्रश्न :- राम के राज्याभिषेक के समय भरत और शत्रुघ्न कहाँ थे?

उत्तर :- भरत और शत्रुघ्न उस समय अयोध्या में नहीं थे। वह अपने नाना केकयराज के यहाँ गए हुए थे। भरत जब भी अयोध्या लौटने की बात करते, नाना उन्हें रोक लेते। भरत को अयोध्या की घटनाओं की सूचना नहीं थी। उन्हें अपने पिता के निर्णय के संबंध में नहीं पता था। यह जानकारी भी नहीं थी कि अगले दिन राम का राज्याभिषेक होने वाला है। केकय से एक दिन में भरत और शत्रुघ्न का आना संभव नहीं था।

प्रश्न :- मंथरा कौन थी?

उत्तर :- मंथरा कैकेयी की दासी थी। बचपन से। कैकेयी का हित उसके लिए सर्वोपरि था। मंथरा उसे अपना हित मानती थी। वह कैकेयी की मुँहलगी थी। रानी कैकेयी भी उसे बहुत मानती थीं।

प्रश्न :- मंथरा ने राम के राज्याभिषेक की बात सुनकर क्या किया?

उत्तर :- मंथरा जलभुन गई। राम का राज्याभिषेक उसे षड्यंत्र लगा। कैकेयी के विरुद्ध। क्रोध से आगबबूला मंथरा रनिवास की ओर भागी। सीधे कैकेयी के कक्ष में। वह हाँफ रही थी। क्रोध से चेहरा लाल था। भागने के कारण साँस उखड़ रही थी। उसने रानी कैकेयी को सोते हुए देखा। उसे उठाकर राम के राज्याभिषेक के बारे में भड़का दिया।

प्रश्न :- मंथरा के भड़काने पर कैकेयी ने राजा दशरथ से मिलने के लिए क्या किया?

उत्तर :- रानी कैकेयी कोपभवन चली गईं।

प्रश्न :- दशरथ कोपभवन का दृश्य देखकर हैरान क्यों हो गए?

उत्तर:- दशरथ कोपभवन का दृश्य देखकर हैरान हो गए। उन्हें कुछ समझ में नहीं आया। कैकेयी जमीन पर लेटी हुई थीं। बाल बिखरे हुए। गहने कक्ष में बिखरे हुए। कपड़े मैले।

प्रश्न :- राजा दशरथ ने कैकेयी को मनाने के लिए क्या कहा?

उत्तर :- तुम मेरी सबसे प्रिय रानी हो। मैं तुम्हें प्रसन्न देखना चाहता हूँ। तुम्हारी खुशी के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ। कुछ भी। धरती-आसमान एक कर सकता हूँ।

प्रश्न :- मंथरा के भड़काने पर कैकेयी ने राजा दशरथ से कौन-से दो वरदान माँगे?

उत्तर :- कैकेयी ने कहा –

  1. कल सुबह राज्याभिषेक भरत का हो, राम का नहीं ।
  2. राम को चौदह वर्ष का वनवास हो।

प्रश्न :- कैकेयी के वरदान की बात सुनकर दशरथ की कैसी दशा हो गई?

उत्तर :- दशरथ का चेहरा सफ़ेद पड़ गया। अवाक रह गए। सिर चकराने लगा। वे मूर्च्छित होकर गिर पड़े।

प्रश्न :- कैकेयी ने अपने वचन मनाने के लिए अंत में क्या कहा?

उत्तर :- दशरथ कैकेयी की  माँग को अस्वीकार करते रहे। अनर्थ बताते रहे। तब कैकेयी ने अंतिम हथियार चलाया। “अपने वचन से पीछे हटना रघुकुल का अनादर है। आप चाहें तो ऐसा कर सकते हैं। पर तब आप दुनिया को मुँह दिखाने योग्य नहीं रहेंगे। रही मेरी बात। आप वरदान नहीं देंगे तो मैं विष पीकर आत्महत्या कर लूँगी। यह कलंक आपके माथे होगा।”

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