राम का वन गमन
शब्दार्थ :- यद्यपि – फिर भी। क्षीण – कमजोर। कोलाहल – शोर। विस्मित – आश्चर्यचकित। संयत – शांत। दृढ़ता – मजबूती। अनिष्ट – जिसकी इच्छा न की गई हो। व्याकुल – बेचैन, परेशान। क्षुब्ध – विकल, परेशान। वल्कल – मुनियों या तपस्वियों के वस्त्र। वियोग – अलग होना। मौन – चुप।
कोपभवन के घटनाक्रम की जानकारी बाहर किसी को नहीं थी। महामंत्री सुमंत असहज थे क्योंकि उन्होने पिछली शाम से दशरथ को नहीं देखा था। समय तेजी से बीत रहा था। शुभ घड़ी निकट आ रही थी। सारी तैयारियाँ हो चुकी थीं। केवल महाराज का आना शेष था। इसलिए महर्षि वशिष्ठ ने सुमंत को महाराज दशरथ को बुलाने भेजा।
कैकेयी ने महामंत्री सुमंत को राम को कोपभवन बुलाने भेजा गया। ‘भरत को राज्य’ और ‘राम को वनवास’ की बात राम को कैकेयी से ज्ञात हुई? कैकेयी के मुख से वन-गमन जाने की बात सुनकर राम राम संयत रहे। उन्होंने दृढ़ता से कहा, “पिता का वचन अवश्य पूरा होगा। भरत को राजगद्दी दी जाए। मैं आज ही वन चला जाऊँगा।”
राम की शांत और सधी हुई वाणी सुनकर कैकेयी के चेहरे पर प्रसन्नता छा गई। उनकी मनोकामना पूर्ण हुई। राम के वन जाने को सुनकर कैकेयी द्वारा खुश होने पर दशरथ चुपचाप सब कुछ देख रहे थे। । कैकेयी की ओर देखते हुए उनके मुँह से बस एक शब्द निकला- “धिक्कार!”
कैकेयी के महल से निकलकर राम सीधे अपनी माँ के पास गए। उन्होंने माता कौशल्या को कैकेयी-भवन का विवरण दिया और अपना निर्णय सुनाया। राम वन जाएँगे। कौशल्या यह सुनकर सुध खो बैठीं। कौशल्या का मन था कि राम को रोक लें। वन न जाने दें। राजगद्दी छोड़ दें। पर वह अयोध्या में रहें। उन्होंने कहा, “पुत्र! यह राजाज्ञा अनुचित है। उसे मानने की आवश्यकता नहीं है।” राम ने उन्हें नम्रता से उत्तर दिया, “यह राजाज्ञा नहीं, पिता की आज्ञा है। उनकी आज्ञा का उल्लंघन मेरी शक्ति से परे है। आप मुझे आशीर्वाद दें।”
राम ने वन-गमन को भाग्यवश आया उलटफेर कहा। लक्ष्मण इससे सहमत नहीं थे। वे इसे कायरों का जीवन मानते थे।उन्होंने राम से कहा, “आप बाहुबल से अयोध्या का राजसिहासन छीन लें। देखता हूँ कौन विरोध करता है।” कौशल्या ने राम को विदा करते हुए कहा, “जाओ पुत्र! दसों दिशाएँ तुम्हारे लिए मंगलकारी हों। मैं तुम्हारे लौटने तक जीवित रहूँगी।”
कौशल्या-भवन से निकलकर राम सीता के पास गए। सारा हाल बताया। विदा माँगी। माता-पिता की आयु का उल्लेख किया। उनकी सेवा करने का आग्रह किया। कहा, “प्रिये! तुम निराश मत होना। चौदह वर्ष के बाद हम फिर मिलेंगे।”
राम चाहते थे कि सीता वन न जाएँ। अयोध्या में रहें। वे इसकी अनुमति दे चुके थे। फिर भी उन्होंने एक और प्रयास किया। “सीते! वन का जीवन बहुत कठिन है। न रहने का ठीक स्थान, न भोजन का ठिकाना। कठिनाइयाँ कदम-कदम पर। तुम महलों में पली हो। ऐसा जीवन कैसे जी सकोगी?”
राम और सीता के साथ लक्ष्मण वन जाने को तैयार हो गया। राम ने कक्ष में प्रवेश किया तो दशरथ में जीवन का संचार हुआ। वे उठकर बैठ गए। उन्होंने कहा, “पुत्र! मेरी मति मारी गई है। मैं वचनबद्ध हूँ । ऐसा निर्णय करने के लिए विवश हूँ। पर तुम्हारे ऊपर कोई बंधन नहीं है। मुझे बंदी बना लो और राज सँभालो। यह राजसिंहासन तुम्हारा है। केवल तुम्हारा।”
कैकेयी ने राम, लक्ष्मण और सीता को वल्कल दिए। राम, लक्ष्मण और सीता को वन तक छोड़ आने के लिए मंत्री सुमंत महल के बाहर रथ लिए तैयार खड़ा था। वन-गमन के दौरान राम, लक्ष्मण और सीता ने पहली रात तमसा नदी के किनारे बिताई। शृंगवेरपुर गाँव में निषादराज गुह ने राम, लक्ष्मण और सीता का स्वागत किया।
राम के वन-गमन के छठे दिन दशरथ ने प्राण त्याग दिए। महर्षि वशिष्ठ ने मंत्रिपरिषद् से चर्चा की। सबकी राय थी कि राजगद्दी खाली नहीं रहनी चाहिए। तय हुआ कि भरत को तत्काल अयोध्या बुलाया जाए। घुड़सवार दूत रवाना किए गए। इस निर्देश के साथ कि उन्हें अयोध्या की घटनाओं के संबंध में मौन रहना है।
पाठ पर आधारित प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न :- कोपभवन के घटनाक्रम की जानकारी बाहर किसको थी?
उत्तर :- किसी को नहीं।
प्रश्न :- महामंत्री सुमंत असहज क्यों थे?
उत्तर :- उन्होने पिछली शाम से दशरथ को नहीं देखा था, इसलिए महामंत्री सुमंत असहज थे।
प्रश्न – महर्षि वशिष्ठ ने सुमंत को राजभवन क्यों भेजा?
उत्तर :- समय तेजी से बीत रहा था। शुभ घड़ी निकट आ रही थी। सारी तैयारियाँ हो चुकी थीं। केवल महाराज का आना शेष था। इसलिए महर्षि वशिष्ठ ने सुमंत को महाराज दशरथ को बुलाने भेजा।
प्रश्न :- राम को कोपभवन बुलाने किसे भेजा गया?
उत्तर :- महामंत्री सुमंत को।
प्रश्न :- ‘भरत को राज्य’ और ‘राम को वनवास’ की बात राम को किससे ज्ञात हुई?
उत्तर :- कैकेयी से।
प्रश्न :- कैकेयी के मुख से वन-गमन जाने की बात सुनकर राम की क्या दशा हुई?
उत्तर :- राम संयत रहे। उन्होंने दृढ़ता से कहा, “पिता का वचन अवश्य पूरा होगा। भरत को राजगद्दी दी जाए। मैं आज ही वन चला जाऊँगा।”
प्रश्न :- राम के द्वारा वन-गमन स्वीकार किए जाने पर कैकेयी ने कैसा अनुभव किया?
उत्तर :- राम की शांत और सधी हुई वाणी सुनकर कैकेयी के चेहरे पर प्रसन्नता छा गई। उनकी मनोकामना पूर्ण हुई।
प्रश्न :- राम के वन जाने को सुनकर कैकेयी द्वारा खुश होने पर दशरथ ने क्या कहा?
उत्तर :- दशरथ चुपचाप सब कुछ देख रहे थे। । कैकेयी की ओर देखते हुए उनके मुँह से बस एक शब्द निकला- “धिक्कार!”
प्रश्न :- कैकेयी के महल से निकलकर राम कहाँ गए?
उत्तर :- कैकेयी के महल से निकलकर राम सीधे अपनी माँ के पास गए। उन्होंने माता कौशल्या को कैकेयी-भवन का विवरण दिया और अपना निर्णय सुनाया।
प्रश्न :- राम के वन-गमन की बात सुनकर कौशल्या की कैसी दशा हुई?
उत्तर :- राम वन जाएँगे। कौशल्या यह सुनकर सुध खो बैठीं। कौशल्या का मन था कि राम को रोक लें। वन न जाने दें। राजगद्दी छोड़ दें। पर वह अयोध्या में रहें। उन्होंने कहा, “पुत्र! यह राजाज्ञा अनुचित है। उसे मानने की आवश्यकता नहीं है।”
प्रश्न :- राम ने क्या कहकर कौशल्या माँ को अपने वन-गमन के निश्चय को सही कहा?
उत्तर :- राम ने उन्हें नम्रता से उत्तर दिया, “यह राजाज्ञा नहीं, पिता की आज्ञा है। उनकी आज्ञा का उल्लंघन मेरी शक्ति से परे है। आप मुझे आशीर्वाद दें।”
प्रश्न :- राम के वन-गमन की बात पर लक्ष्मण ने क्या कहा?
उत्तर :- राम ने वन-गमन को भाग्यवश आया उलटफेर कहा। लक्ष्मण इससे सहमत नहीं थे। वे इसे कायरों का जीवन मानते थे। उन्होंने राम से कहा, “आप बाहुबल से अयोध्या का राजसिहासन छीन लें। देखता हूँ कौन विरोध करता है।”
प्रश्न :- कौशल्या ने राम को विदा करते हुए क्या कहा?
उत्तर :- कौशल्या ने राम को विदा करते हुए कहा, “जाओ पुत्र! दसों दिशाएँ तुम्हारे लिए मंगलकारी हों। मैं तुम्हारे लौटने तक जीवित रहूँगी।”
प्रश्न :- कौशल्या के भवन से निकलकर राम कहाँ गए?
उत्तर :- सीता के पास।
प्रश्न :- राम ने सीता को वन जाने की बात किस प्रकार बताई?
उत्तर :- कौशल्या-भवन से निकलकर राम सीता के पास गए। सारा हाल बताया। विदा माँगी। माता-पिता की आयु का उल्लेख किया। उनकी सेवा करने का आग्रह किया। कहा, “प्रिये! तुम निराश मत होना। चौदह वर्ष के बाद हम फिर मिलेंगे।”
प्रश्न :- सीता के वन जाने की बात पर राम ने क्या कहा?
उत्तर :- राम चाहते थे कि सीता वन न जाएँ। अयोध्या में रहें। वे इसकी अनुमति दे चुके थे। फिर भी उन्होंने एक और प्रयास किया। “सीते! वन का जीवन बहुत कठिन है। न रहने का ठीक स्थान, न भोजन का ठिकाना। कठिनाइयाँ कदम-कदम पर। तुम महलों में पली हो। ऐसा जीवन कैसे जी सकोगी?”
प्रश्न :- राम और सीता के साथ और कौन वन जाने को तैयार हो गया?
उत्तर :- लक्ष्मण।
प्रश्न :- राम को वन जाने से रोकने के लिए दशरथ ने क्या कहा?
उत्तर :- राम ने कक्ष में प्रवेश किया तो दशरथ में जीवन का संचार हुआ। वे उठकर बैठ गए। उन्होंने कहा, “पुत्र! मेरी मति मारी गई है। मैं वचनबद्ध हूँ। ऐसा निर्णय करने के लिए विवश हूँ। पर तुम्हारे ऊपर कोई बंधन नहीं है। मुझे बंदी बना लो और राज सँभालो। यह राजसिंहासन तुम्हारा है। केवल तुम्हारा।”
प्रश्न :- राम, लक्ष्मण और सीता को वल्कल किसने दिए?
उत्तर :- कैकेयी ने।
प्रश्न :- राम, लक्ष्मण और सीता को वन तक छोड़ आने के लिए कौन महल के बाहर रथ लिए तैयार खड़ा था?
उत्तर :- मंत्री सुमंत।
प्रश्न :- वन-गमन के दौरान राम, लक्ष्मण और सीता ने पहली रात किस नदी के किनारे बिताई?
उत्तर :- तमसा नदी।
प्रश्न :- शृंगवेरपुर गाँव में किसने राम, लक्ष्मण और सीता का स्वागत किया।
उत्तर :- निषादराज गुह ने।
प्रश्न :- राम के वन-गमन के कितने दिन बाद दशरथ ने प्राण त्याग दिए?
उत्तर :- छठे दिन।
प्रश्न :- दशरथ ने किसके वियोग में प्राण त्याग दिए?
उत्तर :- राम के वियोग में।
प्रश्न :- दशरथ के देहांत के बाद महर्षि वशिष्ठ ने क्या कहा?
उत्तर :- महर्षि वशिष्ठ ने मंत्रिपरिषद् से चर्चा की। सबकी राय थी कि राजगद्दी खाली नहीं रहनी चाहिए। तय हुआ कि भरत को तत्काल अयोध्या बुलाया जाए। घुड़सवार दूत रवाना किए गए। इस निर्देश के साथ कि उन्हें अयोध्या की घटनाओं के संबंध में मौन रहना है।
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