चित्रकूट में भरत
शब्दार्थ :- सर्वथा – बिलकुल। अनभिज्ञ – अनजान। अनिष्ट – बुरा। कलरव – शोर। प्रासाद – महल। विलाप – रोने। पछाड़ – बेहोश। ढाढ़स – तसल्ली। व्याकुल – परेशान। हित – भला। निष्कंटक – बिना रुकावट। अक्षम्य – क्षमा न करने योग्य। सौगंध – शपथ, कसम। उत्तेजित – आवेश में भरा। आहत – दुखी। अनुचित – जो उचित न हो। निर्मम – ममता के बिना। ग्लानि – पश्चाताप। रिक्त – खाली। आग्रह – निवेदन, अनुरोध, प्रार्थना। संगम – मिलन। पर्णकुटी – पत्तों से बनी कुटी। संदेह – शक। राजमद – राज्य का लोभ। अगवानी – स्वागत। संतोष – तसल्ली, खुशी। सुरम्य – आँखों को भाने वाला। आश्वस्त – निश्चिंत। नैसर्गिक – स्वाभाविक। उत्कंठा – बेचैनी। शीला – पत्थर, चट्टान। चरण-पादुका – चप्पल। प्रतिहारी – द्वारपाल। गरिमा – इज्जत।
पाठ का सार
जब दशरथ का देहांत हुआ, उस समय भरत केकय राज्य अपने ननिहाल में थे। वे चिंतित थे। उन्होंने एक सपना देखा था। पर उसका अर्थ पूरी तरह नहीं समझ पा रहे थे। संगी-साथियों के साथ बातचीत में उन्होंने कहा, “मैं नहीं जानता कि उसका अर्थ क्या है? पर सपने से मुझे डर लगने लगा है। मैंने देखा कि समुद्र सूख गया। चंद्रमा धरती पर गिर पड़े। वृक्ष सूख गए। एक राक्षसी पिता को खींचकर ले जा रही है। वे रथ पर बैठे हैं। रथ गधे खींच रहे हैं।”
ननिहाल से भरत को बुलाने के लिए घुड़सवारों को भेजा गया। घुड़सवारों ने छोटा रास्ता चुना था ताकि जल्दी पहुँचा जा सके। अयोध्या से जब घुड़सवार भरत के ननिहाल पहुँचे, उस समय भरत उस समय भरत अपने मित्रों को सपने के विषय में बता रहे थे।
घुड़सवारों के द्वारा बुलाए जाने की सूचना मिलने पर भरत तत्काल अयोध्या जाने के लिए तैयार हो गए। ननिहाल में भरत का मन नहीं लग रहा था। उचट गया था। वे अयोध्या पहुँचने को उतावले थे।
केकयराज ने भरत को केकयराज ने भरत को सौ रथों और सेना के साथ विदा किया। उन्हें घुड़सवारों से अधिक समय लगा। लंबा रास्ता पकड़ना पड़ा। सेना और रथ खेतों से होकर नहीं जा सकते थे। भरत को केकय से वापिस आने में आठ दिन दिन लगे।
भरत अयोध्या पहुँचकर सबसे पहले महाराज दशरथ के महल की ओर गए। पिता को राजमहल में न पाकर भरत अपनी माता कैकेयी के महल में गए। माँ ने आगे बढ़कर पुत्र को गले लगा लिया। परंतु भरत की आँखें पिता को ढूँढ़ रहीं थीं। उन्होंने माँ से पूछा। “पुत्र! तुम्हारे पिता चले गए हैं। वहाँ, जहाँ एक दिन हम सबको जाना है। उनका निधन हो गया।”
पिता की मृत्यु का समाचार सुनकर भरत शोक में डूब गए। पछाड़ खाकर गिर पड़े। विलाप करने लगे। भरत ने जब राम के वन जाने की बात सुनी तो उन्होने अपनी माँ को कहा कि तुमने अपराध किया है। मैं राम को वापिस लाने के लिए लिए वन जाऊँगा। ये राज उन्हीं का है। मैं उनका दास हूँ।
कौशल्या आहत थीं। उन्होंने कहा, “पुत्र, तुम्हारी मनोकामना पूरी हुई। तुम जो चाहते थे, हो गया। राम अब जंगल में हैं। अयोध्या का राज तुम्हारा है। मुझे बस एक दुख है। कैकेयी ने राज लेने का जो तरीका अपनाया वह अनुचित था।निर्मम था। तुम राज करो पुत्र, पर मुझ पर एक दया करो। मुझे मेरे राम के पास भिजवा दो।”
शत्रुघ्न को मंथरा के विषय में पता चल गया था कि कैकेई के कान उसी ने भरे हैं।भरत मुनि वशिष्ठ, माताओं, मंत्रियों, सभासदों, नगरवासियों और चतुरंगिणी सेना के साथ राम को वापिस लाने के लिए अयोध्या से चले थे।
राम, सीता और लक्ष्मण ने पर्णकुटी चित्रकूट में बनाई थी। चित्रकूट में महर्षि भरद्वाज का आश्रम था। राम महर्षि भरद्वाज के आश्रम में नहीं रहना चाहते थे ताकि महर्षि भरद्वाज को कोई असुविधा न हो।
निषादराज गुह को भरत के साथ सेना देखकर कुछ संदेह हुआ। कहीं राजमद में आकर भरत राम पर आक्रमण करने तो नहीं जा रहे हैं?
भरत के विषय में सही स्थिति पता चलने पर निषादराज ने भरत की अगवानी की। गंगा पार करने के लिए देखते-देखते पाँच सौ नावें जुटा दीं। लक्ष्मण ने भरत के साथ सेना देखकर राम से कहा – “भैया, भरत सेना के साथ इधर आ रहे हैं। लगता है वे हमें मार डालना चाहते हैं। ताकि एकछत्र राज कर सकें।”
भरत ने सेना पहाड़ी के नीचे रोक दी थी। चित्रकूट में भरत ने राम को देखते ही भरत दौड़ पड़े। राम के चरणों में गिर पड़े। उनके मुँह से एक शब्द भी नहीं निकला। शत्रुघ्न ने भी राम की चरण वंदना की। बोले वे भी नहीं। राम ने दोनों को गले से लगा लिया।
राम को पता चला कि भरत के साथ केवल सेना नहीं आई है। नगरवासी आए हैं। गुरुजन हैं। माता हैं। कैकेयी भी। राम-लक्ष्मण पहाड़ी से उतरकर उनसे भेंट करने आए। सबसे स्नेह से मिले। सीता को तपस्विनी के वेश में देखकर माताएँ दुखी हुई।
राम ने कैकेयी कोसहज भाव से प्रणाम किया। कैकेयी मन ही मन पछता रही थी भरत के द्वारा राजग्रहण करने के आग्रह पर राम इसके लिए तैयार नहीं हुए। “पिता की आज्ञा का पालन अनिवार्य है। पिता की मृत्यु के बाद मैं उनका वचन नहीं तोड़ सकता।” भरत को राजकाज समझाया। कहा कि अब तुम ही गद्दी सँभालो। यह पिता की आज्ञा है।
राम के अयोध्या न लौटने के विचार से भरत ने राम से कहा – “आप नहीं लौटेंगे तो मैं भी खाली हाथ नहीं जाऊँ गा। आप मुझे अपनी खड़ाऊँ दे दें। मैं चौदह वर्ष उसी की आज्ञा से राजकाज चलाऊँगा।”
भरत के द्वारा खड़ाऊँ माँगने पर राम ने भरत का यह आग्रह राम ने स्वीकार कर लिया। अपनी खड़ाऊँ दे दी। भरत ने खड़ाऊँ को माथे से लगाया और कहा, “चौदह वर्ष तक अयोध्या पर इन चरण-पादुकाओं का शासन रहेगा।” राम की चरण-पादुकाओं को एक सुसज्जित हाथी पर रखा गया। प्रतिहारी उस पर चँवर डुलाते रहे। अयोध्या पहुँचकर भरत ने पादुका-पूजन किया। कहा, “ये पादुकाएँ राम की धरोहर हैं। मैं इनकी रक्षा करूँगा। इनकी गरिमा को आँच नहीं आने दूँगा।”
राम के चरण-पादुकाओं के साथ अयोध्या पहुँचे भरत अयोध्या में कभी नहीं रुके। तपस्वी के वस्त्र पहने और नंदीग्राम चले गए। जाते समय उन्होंने कहा, “मेरी अब केवल एक इच्छा है। इन पादुकाओं को उन चरणों में देखूँ, जहाँ इन्हें होना चाहिए। मैं चौदह वर्ष तक राम के लौटने की प्रतीक्षा करूँगा।”
पाठ पर आधारित अभ्यास-प्रश्न
प्रश्न :- जब दशरथ का देहांत हुआ, उस समय भरत कहाँ पर थे?
उत्तर :- केकय राज्य अपने ननिहाल में।
प्रश्न :- भरत अपने ननिहाल में चिंतित कैसे थे?
उत्तर :- वे चिंतित थे। उन्होंने एक सपना देखा था। पर उसका अर्थ पूरी तरह नहीं समझ पा रहे थे। संगी-साथियों के साथ बातचीत में उन्होंने कहा, “मैं नहीं जानता कि उसका अर्थ क्या है? पर सपने से मुझे डर लगने लगा है। मैंने देखा कि समुद्र सूख गया। चंद्रमा धरती पर गिर पड़े। वृक्ष सूख गए। एक राक्षसी पिता को खींचकर ले जा रही है। वे रथ पर बैठे हैं। रथ गधे खींच रहे हैं।”
प्रश्न :- ननिहाल से भरत को बुलाने के लिए किसे भेजा गया?
उत्तर :- घुड़सवारों को।
प्रश्न :- घुड़सवारों ने कैसा रास्ता चुना था?
उत्तर :- छोटा, ताकि जल्दी पहुँचा जा सके।
प्रश्न :- अयोध्या से जब घुड़सवार भरत के ननिहाल पहुँचे, उस समय भरत क्या कर रहे थे?
उत्तर :- उस समय भरत अपने मित्रों को सपने के विषय में बता रहे थे।
प्रश्न :- घुड़सवारों के द्वारा बुलाए जाने की सूचना मिलने पर भरत ने क्या किया?
उत्तर :- वे तत्काल अयोध्या जाने के लिए तैयार हो गए। ननिहाल में भरत का मन नहीं लग रहा था। उचट गया था। वे अयोध्या पहुँचने को उतावले थे।
प्रश्न :- केकयराज ने भरत को कैसे विदा किया?
उत्तर :- केकयराज ने भरत को सौ रथों और सेना के साथ विदा किया।
प्रश्न :- भरत को केकय से वापिस आने में अधिक समय किस कारण से लगा?
उत्तर :- उन्हें घुड़सवारों से अधिक समय लगा। लंबा रास्ता पकड़ना पड़ा। सेना और रथ खेतों से होकर नहीं जा सकते थे।
प्रश्न :- भरत को केकय से वापिस आने में कितने दिन लगे?
उत्तर :- आठ दिन।
प्रश्न :- भरत अयोध्या पहुँचकर सबसे पहले कहाँ गए?
उत्तर :- महाराज दशरथ के महल की ओर।
प्रश्न :- पिता को राजमहल में न पाकर भरत कहाँ गए?
उत्तर :- अपनी माता कैकेयी के महल में।
प्रश्न :- कैकेयी ने दशरथ के विषय में भरत को क्या बताया?
उत्तर :- माँ ने आगे बढ़कर पुत्र को गले लगा लिया। परंतु भरत की आँखें पिता को ढूँढ़ रहीं थीं। उन्होंने माँ से पूछा। “पुत्र! तुम्हारे पिता चले गए हैं। वहाँ, जहाँ एक दिन हम सबको जाना है। उनका निधन हो गया।”
प्रश्न :- पिता की मृत्यु का समाचार सुनकर भरत की दशा कैसी हो जाती है?
उत्तर :- भरत यह सुनते ही शोक में डूब गए। पछाड़ खाकर गिर पड़े। विलाप करने लगे।
प्रश्न :- भरत ने जब राम के वन जाने की बात सुनी तो क्या किया?
उत्तर :- उन्होने अपनी माँ को कहा कि तुमने अपराध किया है। मैं राम को वापिस लाने के लिए लिए वन जाऊँगा। ये राज उन्हीं का है। मैं उनका दास हूँ।
प्रश्न :- कौशल्या ने भरत से क्या कहा?
उत्तर :- कौशल्या आहत थीं। उन्होंने कहा, “पुत्र, तुम्हारी मनोकामना पूरी हुई। तुम जो चाहते थे, हो गया। राम अब जंगल में हैं। अयोध्या का राज तुम्हारा है। मुझे बस एक दुख है। कैकेयी ने राज लेने का जो तरीका अपनाया वह अनुचित था। निर्मम था। तुम राज करो पुत्र, पर मुझ पर एक दया करो। मुझे मेरे राम के पास भिजवा दो।”
प्रश्न :- शत्रुघ्न को मंथरा के विषय में क्या पता चल गया था?
उत्तर :- शत्रुघ्न को मंथरा के विषय में पता चल गया था कि कैकेई के कान उसी ने भरे हैं।
प्रश्न :- भरत किस-किस के साथ राम को वापिस लाने के लिए अयोध्या से चले थे?
उत्तर :- मुनि वशिष्ठ, माताओं, मंत्रियों, सभासदों, नगरवासियों और चतुरंगिणी सेना के साथ।
प्रश्न :- राम, सीता और लक्ष्मण ने पर्णकुटी कहाँ बनाई थी?
उत्तर :- चित्रकूट में।
प्रश्न :- चित्रकूट में किसका आश्रम था।
उत्तर :- महर्षि भरद्वाज का।
प्रश्न :- राम महर्षि भरद्वाज के आश्रम में क्यों नहीं रहना चाहते थे?
उत्तर :- ताकि महर्षि भरद्वाज को कोई असुविधा न हो।
प्रश्न :- निषादराज गुह को भरत के साथ सेना देखकर क्या संदेह हुआ?
उत्तर :- निषादराज गुह को सेना देखकर कुछ संदेह हुआ। कहीं राजमद में आकर भरत राम पर आक्रमण करने तो नहीं जा रहे हैं?
प्रश्न :- भरत के विषय में सही स्थिति पता चलने पर निषादराज ने क्या किया?
उत्तर :- सही स्थिति पता चली तो उन्होंने भरत की अगवानी की। गंगा पार करने के लिए देखते-देखते पाँच सौ नावें जुटा दीं।
प्रश्न :- लक्ष्मण ने भरत के साथ सेना देखकर राम से क्या कहा?
उत्तर :- “भैया, भरत सेना के साथ इधर आ रहे हैं। लगता है वे हमें मार डालना चाहते हैं। ताकि एकछत्र राज कर सकें।”
प्रश्न :- भरत ने सेना कहाँ रोक दी थी?
उत्तर :- पहाड़ी के नीचे।
प्रश्न :- चित्रकूट में भरत ने राम को देखते ही क्या किया?
उत्तर :- भरत दौड़ पड़े। राम के चरणों में गिर पड़े। उनके मुँह से एक शब्द भी नहीं निकला। शत्रुघ्न ने भी राम की चरण वंदना की। बोले वे भी नहीं।
प्रश्न :- भरत और शत्रुघ्न से मिलकर राम ने क्या किया?
उत्तर :- राम ने दोनों को गले से लगा लिया।
प्रश्न :- राम, सीता और लक्ष्मण ने भरत के साथ आए अन्य लोगों से मिलने के लिए क्या किया?
उत्तर :- राम को पता चला कि भरत के साथ केवल सेना नहीं आई है। नगरवासी आए हैं। गुरुजन हैं। माता हैं। कैकेयी भी। राम-लक्ष्मण पहाड़ी से उतरकर उनसे भेंट करने आए। सबसे स्नेह से मिले।
प्रश्न :- सीता को तपस्विनी के वेश में देखकर माताओं की कैसी दशा हुई?
उत्तर :- सीता को तपस्विनी के वेश में देखकर माताएँ दुखी हुई।
प्रश्न :- राम कैकेई से कैसे मिले?
उत्तर :- राम ने कैकेयी को सहज भाव से प्रणाम किया।
प्रश्न :- चित्रकूट में कैकेयी की मनःस्थिति कैसी थी?
उत्तर :- कैकेयी मन ही मन पछता रही थी।
प्रश्न :- भरत के द्वारा राजग्रहण करने के आग्रह पर राम ने क्या किया?
उत्तर :- राम इसके लिए तैयार नहीं हुए। “पिता की आज्ञा का पालन अनिवार्य है। पिता की मृत्यु के बाद मैं उनका वचन नहीं तोड़ सकता।” भरत को राजकाज समझाया। कहा कि अब तुम ही गद्दी सँभालो। यह पिता की आज्ञा है।
प्रश्न :- राम के अयोध्या न लौटने के विचार से भरत ने क्या किया?
उत्तर :- भरत ने राम से कहा – “आप नहीं लौटेंगे तो मैं भी खाली हाथ नहीं जाऊँ गा। आप मुझे अपनी खड़ाऊँ दे दें। मैं चौदह वर्ष उसी की आज्ञा से राजकाज चलाऊँगा।”
प्रश्न :- भरत के द्वारा खड़ाऊँ माँगने पर राम ने क्या किया?
उत्तर :- भरत का यह आग्रह राम ने स्वीकार कर लिया। अपनी खड़ाऊँ दे दी।
प्रश्न :- भरत ने राम की खड़ाऊँ के साथ क्या किया?
उत्तर :- भरत ने खड़ाऊँ को माथे से लगाया और कहा, “चौदह वर्ष तक अयोध्या पर इन चरण-पादुकाओं का शासन रहेगा।” राम की चरण-पादुकाओं को एक सुसज्जित हाथी पर रखा गया। प्रतिहारी उस पर चँवर डुलाते रहे। अयोध्या पहुँचकर भरत ने पादुका-पूजन किया। कहा, “ये पादुकाएँ राम की धरोहर हैं। मैं इनकी रक्षा करूँगा। इनकी गरिमा को आँच नहीं आने दूँगा।”
प्रश्न :- राम के चरण-पादुकाओं के साथ अयोध्या पहुँचे भरत ने कहाँ रहने का निश्चय किया?
उत्तर :- भरत अयोध्या में कभी नहीं रुके। तपस्वी के वस्त्र पहने और नंदीग्राम चले गए। जाते समय उन्होंने कहा, “मेरी अब केवल एक इच्छा है। इन पादुकाओं को उन चरणों में देखूँ, जहाँ इन्हें होना चाहिए। मैं चौदह वर्ष तक राम के लौटने की प्रतीक्षा करूँगा।”
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