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वन के मार्ग में
(तुलसीदास)
सवैया
पुर तें निकसी रघुबीर-बधू, धरि धीर दए मग में डग द्वै।
झलकीं भरि भाल कनी जल की, पुट सूखि गए मधुराधर वै।।
फिरि बूझति हैं, “चलनो अब केतिक, पर्न कुटी करिहौ कित ह्नै?”।
तिय की लखि आतुरता पिय की, अँखियाँ अति चारु चलीं जल च्वै।।
शब्दार्थ :- पुर – नगर, किला। निकसी – निकली। बधू – बहू। धरि – धारण करके। धीर – धैर्य, धीरज। दए – रखना, धरना । मग – रास्ता। डग – कदम। द्वै – दो। झलकीं – दिखाई दी। भाल – ललाट। कनी – बूँदें। पुट – होंठ। बूझति – पूछती है। केतिक – कितना। पर्न कुटी – पत्तों की बनी छाजन वाली कुटिया। कित – कहाँ। तिय – पत्नी। आतुरता – व्याकुलता। चारफ़ – सुंदर।
भावार्थ :- तुलसीदास द्वारा लिखित इस सवैये में श्रीराम के वनवास का वर्णन है। तुलसीदास कहते हैं कि श्री राम जी के साथ उनकी वधू अर्थात् सीता जी अभी नगर से बाहर दो कदम ही रखे हैं कि उनके माथे पर पसीना चमकने लगा है। उनके मधुर होंठ भी प्यास से सूखने लगे हैं। वे श्री राम जी से पूछती हैं कि हमें अब पर्णकुटी (घास-फूस की झोंपड़ी) कहांँ बनानी है। अपनी पत्नी की इस परेशानी को देखकर राम जी भी व्याकुल हो जाते हैं और उनकी आँखों से भी आँसू बहने लगते हैं।
‘‘जल को गए लक्खन हैं लरिका, परिखौ, पिय! छाँह घरीक ह्नै ठाढ़े।
पोंछि पसेउ बयारि करौं, अरु पायँ पखारिहाैं भूभुरि-डाढ़े।।”
तुलसी रघुबीर प्रिया स्रम जानि कै बैठि बिलंब लौ कंटक काढ़े।
जानकी नाह को नेह लख्यौ, पुलको तनु, बारि बिलोचन बाढे़।।
शब्दार्थ :- लरिका – लड़का। परिखौ – प्रतीक्षा करना। छाँह – छाँव, छाया। ठाढ़े – खड़ा होना। पसेउ – पसीना। भूभुरि – गरम रेत। विलंब – देर। कंटक – काँटा।काढ़ना – निकालना। बिलोचन – नेत्र।
भावार्थ :- तुलसीदास द्वारा लिखित इस सवैये में श्रीराम के वनवास का वर्णन है। इस सवैये में लक्ष्मण पानी लेने जाते हैं। उस समय सीता राम से कहती हैं कि हे स्वामी आप थक गए होंगे, अतः अपना पेड़ की छाया में विश्राम कर लीजिए। सीता जी उनका पसीना पोंछती हैं, हवा करती हैं और गर्म रेत से तपे हुए पाँव को सहलाती है। राम जी उनकी इस व्याकुलता को देखकर कुछ देर पेड़ के नीचे विश्राम करते हैं तथा पैरों से काँटे निकालने लगते हैं। अपने प्रियतम के प्रेम को देखकर सीता जी मन ही मन प्रसन्न होने लगती हैं।
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प्रश्न-अभ्यास
कविता से
प्रश्न :- नगर से बाहर निकलकर दो पग चलने के बाद सीता की क्या दशा हुई?
उत्तर :- नगर से बाहर निकलकर दो पग दूर चलने के बाद सीता जी के माथे पर पसीने की बूंदें झलकने लगीं। उनके कोमल ओठ सूख गए।
प्रश्न :- ‘अब और कितनी दूर चलना है, पर्नकुटी कहाँ बनाइएगा’-किसने, किससे पूछा और क्यों ?
उत्तर :- सीता जी ने श्रीराम से पूछा क्योंकि वे बहुत अधिक थक गई थीं और आराम करना चाहती थीं।
प्रश्न :- राम ने थकी हुई सीता की क्या सहायता की?
उत्तर :- राम ने जब देखा कि सीता थक चुकी हैं, तो वह देर तक बैठकर पैरों से काँटे निकालने का अभिनय करते रहे, जिससे सीता को कुछ देर आराम करने का मौका मिल जाए और उनकी थकान कम हो जाए।
प्रश्न :- दोनों सवैयों के प्रसंगों में अंतर स्पष्ट करो।
उत्तर :- प्रथम सवैये में तुलसीदास कहते हैं कि श्री राम जी के साथ उनकी वधू अर्थात् सीता जी अभी नगर से बाहर दो कदम ही रखे हैं कि उनके माथे पर पसीना चमकने लगा है। उनके मधुर होंठ भी प्यास से सूखने लगे हैं। वे श्री राम जी से पूछती हैं कि हमें अब पर्णकुटी (घास-फूस की झोंपड़ी) कहांँ बनानी है। अपनी पत्नी की इस परेशानी को देखकर राम जी भी व्याकुल हो जाते हैं और उनकी आँखों से भी आँसू बहने लगते हैं।
तुलसीदास प्रथम सवैये में कहते हैं कि लक्ष्मण पानी लेने जाते हैं। उस समय सीता राम से कहती हैं कि हे स्वामी आप थक गए होंगे, अतः अपना पेड़ की छाया में विश्राम कर लीजिए। सीता जी उनका पसीना पोंछती हैं, हवा करती हैं और गर्म रेत से तपे हुए पाँव को सहलाती है। राम जी उनकी इस व्याकुलता को देखकर कुछ देर पेड़ के नीचे विश्राम करते हैं तथा पैरों से काँटे निकालने लगते हैं। अपने प्रियतम के प्रेम को देखकर सीता जी मन ही मन प्रसन्न होने लगती हैं।
प्रश्न :- पाठ के आधार पर वन के मार्ग का वर्णन अपने शब्दों में करो।
उत्तर :- वन का मार्ग अत्यंत कठिन था और काँटों से भरा था। उस पर बहुत सँभलकर चलना पड़ रहा था। ठहरने के लिए कोई सुरक्षित स्थान नहीं था। रास्ते में पानी मिलना भी कठिन था। चारों तरफ सुनसान वातावरण था।
अनुमान और कल्पना
प्रश्न :- गरमी के दिनों में कच्ची सड़क की तपती धूल में नंगे पाँव चलने पर पाँव जलते हैं। ऐसी स्थिति में पेड़ की छाया में खड़ा होने और पाँव धो लेने पर बड़ी राहत मिलती है। ठीक वैसे ही जैसे प्यास लगने पर पानी मिल जाए और भूख लगने पर भोजन। तुम्हें भी किसी वस्तु की आवश्यकता हुई होगी और कुछ समय बाद पूरी हो गई होगी। तुम सोचकर लिखो कि आवश्यकता पूरी होने के पहले तक तुम्हारे मन की दशा कैसी थी?
उत्तर- किसी वस्तु की आवश्यकता पूरी होने से पहले हम लिए बेचैन तथा व्याकुल रहते हैं। किसी दूसरे काम में मन नहीं लगता। उस वस्तु के विषय में सोचते रहते हैं तथा उसे पाने के अनेक प्रयास करते हैं।
भाषा की बात
प्रश्न 1. लखि-देखकर।
धरि-रखकर।
पोंछि-पोछकर।
जानि-जानकर।
ऊपर लिखे शब्दों और उनके अर्थ को ध्यान से देखो। हिंदी में जिस उद्देश्य के लिए हम क्रिया में ‘कर’ जोड़ते हैं, उसी के लिए अवधी में क्रिया में (इ) को जोड़ा जाता है, जैसे-अवधी में बैठ + इ = बैठि हिंदी में बैठ + कर = बैठकर। तुम्हारी भाषा या बोली में क्या होता है? अपनी भाषा के ऐसे छह शब्द लिखो। उन्हें ध्यान से देखो और कक्षा में बताओ।
उत्तर- छात्र स्वयं करें।
प्रश्न :- “मिट्टी का गहरा अंधकार, डूबा है उसमें एक बीज।’
उसमें एक बीज डूबा है। जब हम किसी बात को कविता में कहते हैं तो वाक्य के शब्दों के क्रम में बदलाव आता है; जैसे-“छाँह घरीक वै ठाढ़े” को गद्य में ऐसे लिखा जा सकता है। “छाया में एक घड़ी खड़ा होकर।” उदाहरण के आधार पर नीचे दी गई कविता की पंक्तियों को गद्य के शब्दक्रम में लिखो।
उत्तर-
- पुर तें निकसी रघुबीर-बधू,
सीता जी नगर से बाहर वन जाने के लिए निकलीं।
- पुट सूख गए मधुराधर वै॥
मधुर होठ सूख गए।
- बैठि बिलंब लौं कंटक काढ़े।
कुछ समय तक श्रीराम ने आराम किए और अपने पैरों से देर तक काँटे निकालते रहे।
- पर्नकुटी करिहौं कित है?
पत्तों की कुटिया अर्थात पर्णकुटी कहाँ बनाएँगे ?
क्विज/टेस्ट
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