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अपूर्व अनुभव (पाठ का सार)
तेत्सुको कुरियानागी द्वारा लिखित ‘तोत्तो-चान’ पुस्तक विश्व साहित्य की एक अमूल्य निधि है, जो मूलतः जापानी भाषा में लिखी गई है। इसका अनुवाद विश्व की कई भाषाओं में हो चुका है। यह एक ऐसी अद्भुत पाठशाला और उसमें पढ़नेवाले बच्चों की कहानी है जिनके लिए रेल के डिब्बे कक्षाएँ थीं, गहरी जड़ोंवाले पेड़ पाठशाला का गेट, शाखा बच्चों के खेलने के कोने। इस अनोखे स्कूल के संस्थापक थे श्री कोबायाशी। लेखिका स्वयं इस स्कूल की छात्र थीं। उन्हीं के बचपन के अनुभवों पर आधारित है पुस्तक ‘तोत्तो-चान’ का यह अंश ‘अपूर्व अनुभव’। हिन्दी में इसका अनुवाद पूर्वा याज्ञिक कुशवाहा द्वारा किया गया है।
अपूर्व अनुभव पाठ में “तोत्तो-चान” और “यासुकी-चान” की अपूर्व मित्रता का वर्णन है। “तोत्तो-चान” के स्कूल में रेल के डिब्बे कक्षाएँ थीं, गहरी जड़ोंवाले पेड़ पाठशाला का गेट, शाखा बच्चों के खेलने के कोने। प्रत्येक बच्चे के लिए एक पेड़ था, जिस पर यह अपने अलावा किसी और को नहीं चढ़ा सकता था। लेकिन तोत्तो-चान अपने मित्र यासुकी-चान को अपने पेड़ पर चढ़ा कर उसे पेड़ पर चढ़ने के नए अनुभव देना चाहती है। यासुकी-चान पोलियो से ग्रस्त एक बच्चा है जिसके पैर और हाथ की पकड़ कमजोर है। इसके बावजूद भी तोत्तो-चान घर पर झूठ बोलकर उसे अपने साथ स्कूल ले जाती है। स्कूल में मौजूद सीढ़ियों की मदद से वह यासुकी-चान को पेड़ की डाल पर बैठने में कामयाब हो जाती है। पेड़ पर बैठकर यासुकी-चान उसे टेलीविज़न के बारे में बताता है, जिस पर उसे यकीन नहीं आता। दोनों बेहद खुश थे। यासुकी-चान के लिए पेड़ पर चढ़ने का यह पहला और अंतिम मौका था।
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अपूर्व अनुभव (प्रश्न-उत्तर)
पाठ से
प्रश्न :- यासुकी-चान को अपने पेड़ पर चढ़ाने के लिए तोत्तो-चान ने अथक प्रयास क्यों किया? लिखिए।
उत्तर :- यासुकी-चान पोलियोग्रस्त था, इसलिए वह पेड़ पर नहीं चढ़ सकता था, जबकि जापान के शहर तोमोए में प्रत्येक बच्चे का एक निजी पेड़ था। तोत्तो-चान की इच्छा थी कि वह यासुकी-चान को अपने पेड़ पर आमंत्रित कर दुनिया की सारी चीजें दिखाए। यही कारण था कि उसने यासुकी-चान को अपने पेड़ पर चढ़ाने के लिए अथक प्रयास किया।
प्रश्न :-दृढ़ निश्चय और अथक परिश्रम से सफलता पाने के बाद तोत्तो-चान और यासुकी-चान को अपूर्व अनुभव मिला, इन दोनों के अपूर्व अनुभव कुछ अलग-अलग थे। दोनों में क्या अंतर रहे? लिखिए।
उत्तर :- तोत्तो-चान को पोलियो से ग्रस्त अपने मित्र यासुकी-चान को पेड़ की द्विशाखा तक पहुँचाने पर अपूर्व खुशी प्राप्त हुई क्योंकि उसके इस जोखिम भरे कार्य से यासुकी-चान को अत्यधिक प्रसन्नता मिली। दोस्ती को खुश करने में ही वह प्रसन्न थी।
यासुकी-चान को पेड़ पर चढ़कर अपूर्व खुशी मिली। उसके मन की इच्छा पूरी हो गई। उसे खुशी पहले नहीं मिली थी।
प्रश्न :- पाठ में खोजकर देखिए-कब सूरज का ताप यासुकी-चान और तोत्तो-चान पर पड़ रहा था, वे दोनों पसीने से तरबतर हो रहे थे और कब बादल का एक टुकड़ा उन्हें छाया देकर कड़कती धूप से बचाने लगा था। आपके अनुसार इस प्रकार परिस्थिति के बदलने का कारण क्या हो सकता है?
उत्तर :- पहली सीढ़ी से यासुकी-चान का पेड़ पर चढ़ने का प्रयास जब असफल हो जाता है तो तोत्तो-चान तिपाई-सीढी खींचकर लाई। अपने अथक प्रयास से उसे ऊपर चढ़ाने का प्रयास करने लगी तो दोनों तेज़ धूप में पसीने से तरबतर हो रहे थे। दोनों के इस अथक संघर्ष के बीच बादल का एक टुकड़ा छायाकर उन्हें कड़कती धूप से बचाने लगा। संभवतः इसीलिए प्रकृति को उन दोनों पर दया आ गई थी और थोड़ी खुशी और राहत देन का कोशिश कर रहा था।
प्रश्न :- ‘यासुकी-चान के लिए पेड़ पर चढ़ने का यह———-अंतिम मौका था।’-इस अधूरे वाक्य को पूरा कीजिए और लिखकर बताइए कि लेखिका ने ऐसा क्यों लिखा होगा?
उत्तर :- यासुकी-चान पोलियो ग्रस्त था। उसके लिए पेड़ पर चढ़ जाना असंभव था। तोत्तो-चान जैसा मित्र उसे फिर मिल पाना मुश्किल था। तोत्तो-चान के अथक परिश्रम और साहस के बदौलत वह पहली बार पेड़ पर चढ़ पाया था। इसलिए लेखिका ने ऐसा लिखा।
पाठ से आगे
प्रश्न :-तोत्तो-चान ने अपनी योजना को बड़ों से इसलिए छिपा लिया कि उसमें जोखिम था, यासुकी-चान के गिर जाने की संभावना थी। फिर भी उसके मन में यासुकी-चान को पेड़ पर चढ़ाने की दृढ़ इच्छा थी। ऐसी दृढ़ इच्छाएँ बुद्धि और कठोर परिश्रम से अवश्य पूरी हो जाती हैं। आप किस तरह की सफलता के लिए तीव्र इच्छा और बुद्धि का उपयोग कर कठोर परिश्रम करना चाहते हैं?
उत्तर :- छात्र स्वयं करें।
प्रश्न :- हम अकसर बहादुरी के बड़े-बड़े कारनामों के बारे में सुनते रहते हैं, लेकिन ‘अपूर्व अनुभव’, कहानी एक मामूली बहादुरी और जोखिम की ओर हमारा ध्यान खींचती है। यदि आपको अपने आसपास के संसार में कोई रोमांचकारी अनुभव प्राप्त करना हो तो कैसे प्राप्त करेंगे?
उत्तर :- छात्र स्वयं करें।
अनुमान और कल्पना
प्रश्न :- अपनी माँ से झूठ बोलते समय तोत्तो-चान की नजरें नीचे क्यों थीं?
उत्तर :- उसे मालूम था कि यासुकी-चान को अपने पेड़ पर आमंत्रित करने का काम नहीं करने देगी। झूठ बोलते समय उसकी नज़रें नीची थीं क्योंकि वह माँ से झूठ बोल रही थी। उसे भय था कि शायद वह माँ से नजरें मिलाकर जब बात कहेगी तो उसका झूठ पकड़ा जाएगा।
प्रश्न :- यासुकी-चान जैसे शारीरिक चुनौतियों से गुजरनेवाले व्यक्तियों के लिए चढ़ने-उतरने की सुविधाएँ हर जगह नहीं होतीं। लेकिन कुछ जगहों पर ऐसी सुविधाएँ दिखाई देती हैं। उन सुविधावाली जगहों की सूची बनाइए।
उत्तर :- शारीरिक चुनौतियों से गुजरनेवाले व्यक्तियों के लिए चढ़ने-उतरने की सुविधाएँ निम्न स्थानों पर देखने को मिलती हैं –
- विद्यालयों में द्वियांग बच्चों के लिए रेप बना रखे हैं।
- मैट्रो रेल में भी द्वियांग को चढ़ने-उतरने के लिए विशेष प्रकार की लिफ्ट लगा रखी है।
- अस्पतालों में व्हील चेयर होती है।
- हवाई अड्डों पर भी यह सुविधा उपलब्ध है।
भाषा की बात
प्रश्न :- द्विशाखा शब्द द्वि और शाखा के योग से बना है। द्वि का अर्थ है-दो और शाखा का अर्थ है-डाल। द्विशाखा पेड़ के तने का वह भाग है जहाँ से दो मोटी-मोटी डालियाँ एक साथ निकलती हैं। द्वि की भाँति आप त्रि से बननेवाला शब्द त्रिकोण जानते होंगे। त्रि का अर्थ है तीन। इस प्रकार, चार, पाँच, छह, सात, आठ, नौ और दस संख्यावाची संस्कृत शब्द उपयोग में अकसर आते हैं। इन संख्यावाची शब्दों की जानकारी प्राप्त कीजिए और देखिए कि क्या इन शब्दों की ध्वनियाँ अंग्रेजी संख्या के नामों से कुछ-कुछ मिलती-जुलती हैं, जैसे-हिदी-आठ, संस्कृत-अष्ट, अंग्रेजी-एट।
उत्तर :-
हिंदी | संस्कृत | अंग्रेजी |
दो | दू्वि | दू |
तीन | त्रि | थ्री |
पाँच | पंच | फाइव |
छह | षष्ट | सिक्स |
सात | सप्त | सेवन |
नौ | नवम् | नाइन |
प्रश्न :- पाठ में ‘ठिठियाकर हँसने लगी’, ‘पीछे से धकियाने लगी’ जैसे वाक्य आए हैं।ठिठियाकर हँसने के मतलब का आप अवश्य अनुमान लगा सकते हैं। ठी-ठी-ठी हँसना या ठठा मारकर हँसना बोलचाल में प्रयोग होता है। इनमें हँसने की ध्वनि के एक खास अंदाज को हँसी का विशेषण बना दिया गया है। साथ ही ठिठियाना और धकियाना शब्द मे ‘आना’ प्रत्यय का प्रयोग हुआ है। इस प्रत्यय से फ़िल्माना शब्द भी बन जाता है। ‘आना’ प्रत्यय से बननेवाले चार सार्थक शब्द लिखिए।
उत्तर :- चलाना, जुर्माना, घबराना, रोजाना, शर्माना।
टेस्ट/क्विज
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