कक्षा 7 » विप्लव-गायन (कविता)

इस पाठ के टेस्ट के लिए यहाँ क्लिक करें।

JOIN WHATSAPP CHANNEL JOIN TELEGRAM CHANNEL
विप्लव-गायन
(कविता का अर्थ)

कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ-
जिससे उथल पुथल मच जाए,
एक हिलोर इधर से आए,
एक हिलोर उधर से आए।
सावधान! मेरी वीणा में
चिनगारियाँ आन बैठी हैं,
टूटी हैं मिजराबें, अंगुलियाँ
दोनों मेरी ऐंठी हैं।

शब्दार्थ :- हिलोर – लहर। मिजराबें – वीणा या सितार को बजाने के लिए अंगुली पर लगाया जाने वाला तार।

भावार्थ :- नवयुवक कवि से आह्वान करता है कि कुछ ऐसा गाए जिससे बदलाव की लहरें इधर-उधर से आकार पुराने रीति-रिवाजों व गलत रूढ़ियों को तोड़कर नवनिर्माण की नींव रखें। कवि कहता है कि उसकी वीणा में मधुर संगीत की बजाय क्रांति और संघर्ष के गीत गूँज रहा है। भले ही उँगलियाँ ऐंठ कर घायल हो जाएँ, मिजराबें टूट जाएँ लेकिन नवनिर्माण की ओर अग्रसर अवश्य होना है।

कंठ रुका है महानाश का
मारक गीत रुद्ध होता है,
आग लगेगी क्षण में, हृत्तल में
अब क्षुब्ध-युद्ध होता है।
झाड़ और झंखाड़ दग्ध है
इस ज्वलंत गायन के स्वर से,
रुद्ध-गीत की क्रुद्ध तान है
निकली मेरे अंतरतर से।

शब्दार्थ :- कंठ – गला। रुद्ध – रुका होना। हृत्तल – हृदय के अंदर। ज्वलंत – जलाने वाला। महानाश – पूर्ण विनाश । मारक गीत – विनाश का गीत। क्षण – पल। दग्ध – जल उठना।

भावार्थ :- कवि कहता है कि मेरे गीत से महाविनाश का गला रुंध गया है और उसने मृत्यु का गीत गाना रोक दिया है। अर्थात जब भी समाज में बदलाव के लिए आवाज़ उठाई जाती है, तो उसे दबाने की लाखों कोशिशें की जाती हैं। मगर, क्रांति की आवाज़ ज्यादा समय तक दबाई नहीं जा सकती। कवि के दिल में सामाजिक बुराइयों और वर्तमान व्यवस्था के प्रति को रोष है, उसकी ज्वाला से हर अवरोध जल कर राख हो जाएगा। फिर बदलाव के गीतों की तान दोबारा दोगुने ज़ोर से शुरू हो जाती है और उसके वेग से सभी सामाजिक कुरीतियां और ढोंग-पाखंड पल भर में समाप्त हो जाते हैं।

कण-कण में है व्याप्त वही स्वर
रोम-रोम गाता है वह ध्वनि,
वही तान गाती रहती है,
कालकूट फणि की चिंतामणि।
आज देख आया हूँ-जीवन के
सब राज समझ आया हूँ,
भ्रू-विलास में महानाश के
पोषक सूत्र परख आया हूँ।

शब्दार्थ :- क्रुद्ध – क्रोध से भरी। अंतरतर – हृदय के भीतर से। व्याप्त – विद्यमान। कालकूट – भयंकरतम जहर। फणि – नाग। राज़ – रहस्य। भ्रू – भृकुटियाँ। पोषक सूत्र – पालन करने वाले आधार। परख – जाँच।

भावार्थ :- इन पंक्तियों में कवि कहते हैं कि संसार के हर एक कण में क्रांति का गीत समा गया है, हर दिशा से उसी की प्रतिध्वनि आ रही है। जिस तरह शेषनाग अपनी मणि की चिंता में डूबे रहते हैं, उसी प्रकार यह सारा संसार भी नवनिर्माण के चिंतन में लीन हो गया है। मैं तो यह जानता हूँ कि बदलाव के बाद समाज में कैसी परिस्थितियां पैदा होंगी। इसीलिए वो कहते हैं कि समाज के विचारों और नज़रिए में बदलाव आने के साथ ही बुराइयों से भरे दूषित समाज का विनाश होने लगेगा और इसके बाद ही एक नए राष्ट्र और समाज का निर्माण प्रारम्भ होगा।

नोट :- तबालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ द्वारा लिखित कविता ‘विप्लव गायन’ जड़ता के विरुद्ध विकास एवं गतिशीलता की कविता है। विकास और गतिशीलता को अवरुद्ध करनेवाली प्रवृत्ति से संघर्ष करके कवि नया सृजन करना चाहता है। इसलिए कवि विप्लव के माध्यम से परिवर्तन की हिलोर लाना चाहता है।

इस पाठ के टेस्ट के लिए यहाँ क्लिक करें।

JOIN WHATSAPP CHANNEL JOIN TELEGRAM CHANNEL
विप्लव-गायन
(प्रश्न-उत्तर)

कविता से

प्रश्न :- ‘कण-कण में है व्याप्त वही स्वर——कालकूट फणि की चितामणि’

(क) ‘वही स्वर’, ‘वह ध्वनि’ एवं ‘वही तान’ आदि वाक्यांश किसके लिए / किस भाव के लिए प्रयुक्त हुए हैं?

उत्तर :- ‘वही स्वर’ ‘वह ध्वनि’ एवं ‘वही तान’ नवनिर्माण का रास्ते खोलने के लिए तथा जनजागृति का आहवान करने के लिए प्रयोग किया गया है।

(ख) वही स्वर, वह ध्वनि एवं वही तान से संबंधित भाव का ‘रुद्ध-गीत की क्रुद्ध तान है / निकली मेरी अंतरतर से’-पंक्तियों से क्या कोई संबंध बनता है?

उत्तर :- हाँ, वही स्वर, वही ध्वनि एवं वही तान से संबंधित भाव रुद्ध-गीत की क्रुद्ध तान है। निकली मेरे अंतरतर से पंक्तियों में सही संबंध बनता है क्योंकि कवि इनकी पंक्तियों में वर्तमान व्यवस्था के प्रति आक्रोश है, वही क्रांति गीत के रूप में निकल रहा है।

प्रश्न :- नीचे दी गई पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए- ‘सावधान! मेरी वीणा में——दोनों मेरी ऐंठी हैं।’

उत्तर :- इन पंक्तियों का भाव यह है कि कवि लोगों को परिवर्तन के प्रति सावधान करता है और वीणा से कठोर स्वर निकालने के कारण उसकी उँगलियों की मिज़राबें टूटकर गिर गईं, जिससे उसकी उँगलियाँ ऐंठकर घायल हो जाती हैं।

इस पाठ के टेस्ट के लिए यहाँ क्लिक करें।

कविता से आगे

प्रश्न :- स्वाधीनता संग्राम के दिनों में अनेक कवियों ने स्वाधीनता को मुखर करनेवाली ओजपूर्ण कविताएँ लिखीं। माखनलाल चतुर्वेदी, मैथिलीशरण गुप्त औरसूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की ऐसी कविताओं की चार-चार पंक्तियाँ इकट्ठा कीजिए जिनमें स्वाधीनता के भाव ओज से मुखर हुए हैं।

उत्तर :- छात्र स्वयं करें।

अनुमान और कल्पना

प्रश्न :- कविता के मूलभाव को ध्यान में रखते हुए बताइए कि इसका शीर्षक ‘विप्लव-गायन’ क्यों रखा गया होगा?

उत्तर :- कविता का मूल भाव गलत रीति-रिवाजों, रूढ़िवादी विचारों व परस्पर भेदभाव त्यागकर नवनिर्माण के लिए जनता को प्रेरित करना है। इसीलिए इस कविता का शीर्षक ‘विप्लव-गायन’ रखा गया है जिसका अर्थ है क्रांति के लिए आह्वान करना।

भाषा की बात

प्रश्न :- कविता में दो शब्दों के मध्य (-) का प्रयोग किया गया है, जैसे-‘जिससे उथल-पुथल मच जाए’ एवं ‘कण-कण में है व्याप्त वही स्वर’। इन पंक्तियों को पढ़िए और अनुमान लगाइए कि कवि ऐसा प्रयोग क्यों करते हैं?

उत्तर :-  काव्य को प्रभावशाली बनाने व शब्दों में प्रवाह लाने के लिए (-) योजक चिह्न का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न :-कविता में (,-। आदि) विराम चिह्नों का उपयोग रुकने, आगे-बढ़ने अथवा किसी खास भाव को अभिव्यक्त करने के लिए किया जाता है। कविता पढ़ने में इन विराम चिह्नों का प्रभावी प्रयोग करते हुए काव्य पाठ कीजिए। गद्य में आमतौर पर है शब्द का प्रयोग वाक्य के अंत में किया जाता है, जैसे-देशराज जाता है। अब कविता की निम्न पंक्तियों को देखिए-

‘कण-कण में है व्याप्त——वही तान गाती रहती है,’

इन पंक्तियों में है शब्द का प्रयोग अलग-अलग जगहों पर किया गया है। कविता में अगर आपको ऐसे अन्य प्रयोग मिलें तो उन्हें छाँटकर लिखिए।

उत्तर :- कंठ रुका है महानाश का मारक गीत रुद्ध होता है।

प्रश्न :- निम्न पंक्तियों को ध्यान से देखिए-
‘कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ——एक हिलोर उधर से आए,’

इन पंक्तियों के अंत में आए, जाए जैसे तुक मिलानेवाले शब्दों का प्रयोग किया गया है। इसे तुकबंदी या अंत्यानुप्रास कहते हैं। कविता से तुकबंदी के अन्य शब्दों को छाँटकर लिखिए। छाँटे गए शब्दों से अपनी कविता बनाने की कोशिश कीजिए।

उत्तर :-

  • बैठी हैं- ऐंठी हैं
  • गाती-रहती
  • कुद्ध-युद्ध

छात्र इन शब्दों के आधार पर कविता लिखने का प्रयास करें।

 

टेस्ट/क्विज

इस पाठ के टेस्ट के लिए यहाँ क्लिक करें।

JOIN WHATSAPP CHANNEL JOIN TELEGRAM CHANNEL