कक्षा 7 » संघर्ष के कारण मैं तुनुकमिजाज हो गया: धनराज (साक्षात्कार)

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संघर्ष के कारण मैं तुनुकमिजाज हो गया: धनराज
(पाठ का सार)

विनीता पाण्डेय द्वारा लिए गए इस साक्षात्कार हॉकी के महान खिलाड़ी धनराज पिल्लै के सफर का आभास होता है। धनराज पिल्लै के व्यक्तित्व को रेखांकित करते हुए विनीता पाण्डेय ने लिखा है-‘वह आपको कभी हँसाता है, कभी रुलाता है, कभी विस्मय से भर देता है, तो कभी खीझ से भी। उसके व्यक्तित्व में कई रंग हैं और कई भाव। उसने ठेठ जमीन से उठकर आसमान का सितारा बनने की यात्रा तय की है।’

धनराज पिल्लै का साक्षात्कार पढ़कर यही छवि उभरती है कि मध्यमवर्गीय परिवार से नाता रखने वाले हैं। वे सीधा-सरल जीवन व्यतीत करने वाले वाले हैं। उन्हें हॉकी खेल से बहुत लगाव है। हॉकी में प्रसिद्धि प्राप्त करने का लेश मात्र भी अभिमान नहीं है। वे आम लोगों की भाँति लोकल ट्रेनों में सफर करने में भी कतराते नहीं। उन्हें माँ से बहुत लगाव है। इतनी प्रसिद्धि पाने पर भी आर्थिक समस्याओं से जूझते रहें। लोग भले ही उनको तुनुकमिज़ाज समझे लेकिन वे बहुत सरल हृदय मनुष्य हैं। 

धनराज पिल्लै बचपन मुश्किलों से भरा रहा। वे बहुत गरीब थे। उनके दोनों बड़े भाई हॉकी खेलते थे। उन्हीं के चलते धनराज को भी उसका शौक हुआ। पर, हॉकी-स्टिक खरीदने तक की हैसियत नहीं थी उनकी। इसलिए अपने साथियों की स्टिक उधार माँगकर काम चलाता था। वह उन्हें तभी मिलती, जब उनके साथी खेल चुके होते थे। इसके लिए बहुत धीरज के साथ अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता
था। उनको अपनी पहली स्टिक तब मिली, जब उनके बड़े भाई को भारतीय कैंप के लिए चुन लिया गया। भाई द्वारा दी गई स्टिक पुरानी होते हुए भी धनराज लिए बहुत कीमती थी, क्योंकि वह उनकी अपनी थी। उन्होने अपनी जूनियर राष्ट्रीय हॉकी सन् 1985 में मणिपुर में खेली। तब वे  केवल 16 साल दुबले-पतले छोटे बच्चे जैसे थे। अपनी दुबली कद-काठी के बावजूद उनका ऐसा दबदबा था कि कोई उनसे भिड़ने की कोशिश नहीं करता था। वे बहुत जुझारू थे-मैदान में भी और मैदान से बाहर भी। 1986 में उनको सीनियर टीम में डाल दिया गया और वे मुंबई चले आए। उस साल उन्होंने बड़े भाई रमेश के साथ मिलकर मुंबई लीग में बेहतरीन खेल खेला।उनको उम्मीद थी कि ओलंपिक (1988) के लिए नेशनल कैंप से बुलावा जरूर आएगा, पर नहीं आया। उनका नाम 57 खिलाड़ियों की लिस्ट में भी नहीं था। बड़ी मायूसी हुई। मगर एक साल बाद ही ऑलविन एशिया कप के कैंप के लिए उनको चुन लिया गया। तब से लेकर आज तक उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

मनुष्य चाहे कितनी भी सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ जाए उसे कभी अहंकार नहीं करना चाहिए। किसी को अपने से छोटा नहीं समझना चाहिए। माँ की इसी सीख को धनराज ने अपने जीवन में अपनाया है।

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 संघर्ष के कारण मैं तुनुकमिजाज हो गया: धनराज
प्रश्न-उत्तर

साक्षात्कार से

प्रश्न :- साक्षात्कार पढ़कर आपके मन में धनराज पिल्लै की कैसी छवि उभरती है? वर्णन कीजिए।

उत्तर :-  धनराज पिल्लै का साक्षात्कार पढ़कर यही छवि उभरती है कि मध्यमवर्गीय परिवार से नाता रखने वाले हैं। वे सीधा-सरल जीवन व्यतीत करने वाले वाले हैं। उन्हें हॉकी खेल से बहुत लगाव है। हॉकी में प्रसिद्धि प्राप्त करने का लेश मात्र भी अभिमान नहीं है। वे आम लोगों की भाँति लोकल ट्रेनों में सफर करने में भी कतराते नहीं। उन्हें माँ से बहुत लगाव है। इतनी प्रसिद्धि पाने पर भी आर्थिक समस्याओं से जूझते रहें। लोग भले ही उनको तुनुकमिज़ाज समझे लेकिन वे बहुत सरल हृदय मनुष्य हैं।

प्रश्न :- धनराज पिल्लै ने जमीन से उठकर आसमान का सितारा बनने तक की यात्रा तय की है। लगभग सौ शब्दों में इस सफ़र का वर्णन कीजिए।

उत्तर :- धनराज पिल्लै बचपन मुश्किलों से भरा रहा। वे बहुत गरीब थे। उनके दोनों बड़े भाई हॉकी खेलते थे। उन्हीं के चलते धनराज को भी उसका शौक हुआ। पर, हॉकी-स्टिक खरीदने तक की हैसियत नहीं थी उनकी। इसलिए अपने साथियों की स्टिक उधार माँगकर काम चलाता था। वह उन्हें तभी मिलती, जब उनके साथी खेल चुके होते थे। इसके लिए बहुत धीरज के साथ अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता
था। उनको अपनी पहली स्टिक तब मिली, जब उनके बड़े भाई को भारतीय कैंप के लिए चुन लिया गया। भाई द्वारा दी गई स्टिक पुरानी होते हुए भी धनराज लिए बहुत कीमती थी, क्योंकि वह उनकी अपनी थी। उन्होने अपनी जूनियर राष्ट्रीय हॉकी सन् 1985 में मणिपुर में खेली। तब वे  केवल 16 साल दुबले-पतले छोटे बच्चे जैसे थे। अपनी दुबली कद-काठी के बावजूद उनका ऐसा दबदबा था कि कोई उनसे भिड़ने की कोशिश नहीं करता था। वे बहुत जुझारू थे-मैदान में भी और मैदान से बाहर भी। 1986 में उनको सीनियर टीम में डाल दिया गया और वे मुंबई चले आए। उस साल उन्होंने बड़े भाई रमेश के साथ मिलकर मुंबई लीग में बेहतरीन खेल खेला।उनको उम्मीद थी कि ओलंपिक (1988) के लिए नेशनल कैंप से बुलावा जरूर आएगा, पर नहीं आया। उनका नाम 57 खिलाड़ियों की लिस्ट में भी नहीं था। बड़ी मायूसी हुई। मगर एक साल बाद ही ऑलविन एशिया कप के कैंप के लिए उनको चुन लिया गया। तब से लेकर आज तक उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

प्रश्न :- ‘मेरी माँ ने मुझे अपनी प्रसिद्धि को विनम्रता से सँभालने की सीख दी है’- धनराज पिल्लै की इस बात का क्या अर्थ है?

उत्तर :- इसका तात्पर्य है कि मनुष्य चाहे कितनी भी सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ जाए उसे कभी अहंकार नहीं करना चाहिए। किसी को अपने से छोटा नहीं समझना चाहिए। माँ की इसी सीख को धनराज ने अपने जीवन में अपनाया है।

साक्षात्कार से आगे

प्रश्न :- ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर कहा जाता है। क्यों? पता लगाइए।

उत्तर :- जिस प्रकार जादूगर अपने करतबों से हमें आश्चर्य में डाल लेता है वैसे ही ध्यानचंद भी हॉकी खेलने में माहिर थे। उन्हें हॉकी में  कोई भी मात नहीं दे सकता। इसलिए ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर कहा जाता है।

प्रश्न :- किन विशेषताओं के कारण हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल माना जाता है?

उत्तर :- हॉकी को भारत का राष्ट्रीय खेल इसलिए माना जाता है क्योंकि हॉकी का खेल प्राचीन समय से ही भारत में खेला जाता रहा है। राजा-महाराजाओं से लेकर ग्रामीण लोग भी बड़े चाव से खेला करते थे। आज भी इस खेल के प्रति रुचि देश एवं विदेशों में बनी हुई है।

प्रश्न :- आप समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं में छपे हुए साक्षात्कार पढ़ें और अपनी रुचि से किसी व्यक्ति को चुनें, उसके बारे में जानकारी प्राप्त कर कुछ प्रश्न तैयार करें और साक्षात्कार लें।

उत्तर :- छात्र स्वयं करें।

अनुमान और कल्पना

प्रश्न :- ‘यह कोई जरूरी नहीं कि शोहरत पैसा भी साथ लेकर आए’-क्या आप धनराज पिल्लै की इस बात से सहमत हैं? अपने अनुभव और बड़ों से बातचीत के आधार पर लिखिए।

उत्तर :- हम धनराज पिल्लै के इस कथन से सहमत हैं कि कोई ज़रूरी नहीं कि शोहरत पैसा भी साथ लेकर आए।  धनराज के अलावा हमारे देश में कई ऐसे प्रसिद्ध व्यक्तित्व हुए हैं जिनको आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा है। जैसे कथा सम्राट प्रेमचंद, शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ।

प्रश्न :- (क) अपनी गलतियों के लिए माफ़ी माँगना आसान होता है या मुश्किल?

उत्तर :- अपनी गलतियों के लिए माफ़ी माँगना मुश्किल होता है, क्योंकि हमें दूसरे के सामने अपने को झुकाना पड़ता है।

(ख) क्या आप और आपके आसपास के लोग अपनी गलतियों के लिए माफ़ी माँग लेते हैं?

उत्तर :- हाँ, मैं और मेरे आसपास के लोग अपनी गलतियों के लिए माफ़ी माँग लेते हैं

(ग) माफ़ी माँगना मुश्किल होता है या माफ़ करना? अपने अनुभव के आधार पर लिखिए।

उत्तर :- माफ़ करना आसान है, जबकि माफ़ी माँगना उससे ज्यादा कठिन है। माफ़ी माँगना इसलिए मुश्किल होता है क्योंकि माफ़ी माँगने के लिए अपने स्वाभिमान को झुकाना पड़ता है।

भाषा की बात

प्रश्न :- नीचे कुछ शब्द लिखे हैं जिनमें अलग-अलग प्रत्ययों के कारण बारीक अंतर है। इस अंतर को समझाने के लिए इन शब्दों का वाक्य में प्रयोग कीजिए-

प्रेरणा, प्रेरक, प्रेरित, संभव, संभावित, संभवतः, उत्साह, उत्साहित, उत्साहवर्धक।

उत्तर :-

प्रेरणा – हमें महापुरुषों से प्रेरणा लेनी चाहिए।
प्रेरक – मेरी माँ मेरे जीवन की प्रेरक है।।
प्रेरित – भगवान बुद्ध के विचार अहिंसा के लिए प्रेरित करते हैं।

संभव – मेरा चल पाना संभव नहीं है।
संभावित – मैच के लिए संभावित खिलाड़ी चुन लिए गए।
संभवतः – संभवतः आज वर्षा होगी।

उत्साह – सफलता के लिए हमारे मन में उत्साह होना जरूरी है।
उत्साहित  – मैं अगली कक्षा के लिए उत्साहित हूँ।
उत्साहवर्धक – कोच ने खिलाड़ियों को उत्साहवर्धक संदेश दिया।

प्रश्न :- तुनुकमिजाज शब्द तुनुक और मिजाज दो शब्दों के मिलने से बना है। क्षणिक, तनिक और तुनुक एक ही शब्द के भिन्न रूप हैं। इस प्रकार का रूपांतर दूसरे शब्दों में भी होता है, जैसे-बादल, बादर, बदरा, बदरिया_ मयूर, मयूरा, मोर_ दर्पण, दर्पन, दरपन। शब्दकोश की सहायता लेकर एक ही शब्द के दो या दो से अधिक रूपों को खोजिए। कम-से-कम चार शब्द और उनके अन्य रूप लिखिए।

उत्तर :-

  • चाँद, चंद्र, चंदा
  • समुद्र, समंदर, सागर
  • मातृ, माता, माँ
  • भ्रातृ, भाई, भ्राता

प्रश्न :- हर खेल के अपने नियम, खेलने के तौर-तरीके और अपनी शब्दावली होती है। जिस खेल में आपकी रुचि हो उससे संबंधित कुछ शब्दों को लिखिए, जैसे-फुटबॉल के खेल से संबंधित शब्द हैं – गोल, बैकिग, पासिग, बूट इत्यादि।

उत्तर :- क्रिकेट – बोल्ड,  आउट,  रन आउट,  विकेट, क्षेत्ररक्षण,   चौका,   छक्का।

 

टेस्ट/क्विज

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