कक्षा 8 » कबीर के साखियाँ

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कबीर के साखियाँ
(कविता का अर्थ)

साखी 1.

जाति न पूछो साध की , पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तरवार का , पड़ा रहन दो म्यान।

शब्दार्थ : साधु – सज्जन, ज्ञानी। ज्ञान – जानकारी। मोल – कीमत का पता लगाना। म्यान – तलवार रखने का कोष।

भावार्थ : कबीरदास जी कहते हैं कि जिस तरह तलवार की असली कीमत उसकी तेज धार को देखकर लगाई जाती है और म्यान पर ध्यान नहीं दिया जाता, उसी प्रकार साधु की असली पहचान उसकी जाति से नहीं बल्कि उसके ज्ञान से होती है।

कहने का अर्थ है कि तलवार को सुंदर म्यान में रखने से ही उसकी धार तेज नहीं होगी। इसी तरह सिर्फ उच्च कुल में जन्म लेने व बाहर से साधु का चोला पहन लेने से कोई व्यक्ति ज्ञानी व साधु नहीं हो जाता है। गरीब या निम्न कुल में जन्मा व्यक्ति भी ज्ञानवान , विद्वान और सद्गुणों को धारण कर सकता हैं और साधु हो सकता है।  इसीलिए व्यक्ति की पहचान सदा उसके ज्ञान से ही की जानी चाहिए।

साखी 2.

आवत गारी एक है , उलटत होइ अनेक।
कह कबीर नहिं उलटिए , वही एक की एक।

शब्दार्थ : आवत – आती है। गारी – गाली। उलटत – लौटा देने।

भावार्थ : कबीर कहते हैं कि किसी से झगड़ा हो होने पर एक गाली दे देता है तो दूसरा उससे अधिक गाली देने का प्रयास करता है। इससे झगड़ा बढ़ता रहता है। कबीर के अनुसार उस गाली का जवाब न दिया जाए तो वह एक गाली एक ही रहेगी अर्थात जब सामने वाला आपको एक गाली दे और आप सामने वाले की एक गाली का जवाब नहीं देंगे तो आरोप-प्रत्यारोप या गालियों का सिलसिला वहीं पर थम जाता हैं और एक गाली अनेक गालियों में नहीं बदलती हैं।

अगर कोई व्यक्ति आप से लड़ाई करता है तो आप उस समय शांत रहिए और अपने धैर्य व संयम को बनाए रखें।

साखी 3.

माला तो कर में फिरै , जीभि फिरै मुख माँहि।
मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै , यह तौ सुमिरन नाहिं।

शब्दार्थ : कर – हाथ।  फिरै – घूमना। जीभि – जीभ। मुख – मुँह। माँहि – अंदर। मनुवाँ – मन। दहुँ – दस।  दिसि – दिशा। सुमिरन – भगवान का नाम लेना।

भावार्थ  : इस साखी में कबीरदास ने ढोंगी और पाखंडी लोगों पर कटाक्ष करते किया है। वे कहते हैं कि इस दुनिया में ऐसे कई लोग हैं जो माला हाथ में लेकर  मोती फेरते रहते हैं (माला जपते रहते हैं ) और मुख से हमेशा भगवान का नाम लेते रहते हैं। किन्तु वास्तव में उनका मन दसों दिशाओं में सांसारिक चीजों यानि सांसारिक माया मोह के बंधन के पीछे भटकता रहता है। इसे तो भगवान की सच्ची भक्ति नहीं कह सकते है।

कबीर के अनुसार भगवान की सच्ची भक्ति न तो माला फेरने में हैं और न साधु-संतों जैसा दिखने में। सच्ची भक्ति के लिए किसी आडंबर की जरूरत नहीं हैं।

साखी 4.

कबीर घास न नींदिए , जो पाऊँ तलि होइ ।
उड़ि पड़ै जब आँखि मैं , बरी दुहेली होइ ।

शब्दार्थ : नींदिए – निंदा करना। पाऊँ – पैर। तलि – नीचे। पड़ै – गिरना। बरी – बड़ी। दुहेली – दुख, कष्ट में पड़ना।

भावार्थ 

कबीरदास जी कहते हैं कि पैर के नीचे आने वाली घास तथा धूल की निंदा नहीं करनी चाहिए क्योंकि यही घास और धूल के कण हवा के साथ उड़ कर आँख में गिर जाए, तो बहुत ज्यादा कष्टकारी हो सकता है।

अर्थात संसार के प्रत्येक प्राणी का महत्व है, चाहे वह छोटा हो या बड़ा। इसीलिए हमें प्रत्येक व्यक्ति का सम्मान करना चाहिए।

साखी 5.

जग में बैरी कोइ नहीं , जो मन सीतल होय।
या आपा को डारि दे , दया करै सब कोय।

शब्दार्थ :- जग – संसार। बैरी – दुश्मन। सीतल – शांत। आपा – अहंकार। डारि – छोड़ दे।

भावार्थ 

इस साखी में संत कबीर कहते हैं कि यदि आपका मन शांत है तो संसार में कोई भी आपका  दुश्मन नहीं हो सकता। इस मन को शांत करने के लिए अहंकार को त्याग दीजिए। जब प्राणी अपने अहंकार को देगा तो सब उससे दया व प्रेम का भाव रखेंगे।

अर्थात अहंकार को त्यागने और मन को शांत रखने मात्र से सांसरिक कलह, लड़ाई  से छुटकारा मिल सकता है और सबकी प्रेम-भावना प्राप्त की जा सकती है।

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कबीर के साखियाँ
(प्रश्न-उत्तर)

पाठ से

प्रश्न :-  ‘तलवार का महत्त्व होता है म्यान का नहीं’-उक्त उदाहरण से कबीर क्या कहना चाहते हैं? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर :- उक्त उदाहरण के माध्यम से कबीर समझाना चाहते हैं कि व्यक्ति के गुणों आ महत्व होता है न कि उच्च कुल और रंग-रूप का।  सिर्फ उच्च कुल में जन्म लेने व बाहर से साधु का चोला पहन लेने से कोई व्यक्ति ज्ञानी व साधु नहीं हो जाता है। गरीब या निम्न कुल में जन्मा व्यक्ति भी ज्ञानवान, विद्वान और सद्गुणों को धारण कर सकता हैं और साधु हो सकता है।  इसीलिए व्यक्ति की पहचान सदा उसके ज्ञान से ही की जानी चाहिए।

प्रश्न – पाठ की तीसरी साखी-जिसकी एक पंक्ति है ‘मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नाहिं’ के द्वारा कबीर क्या कहना चाहते हैं?

उत्तर :- कबीर के अनुसार भगवान की सच्ची भक्ति न तो माला फेरने में हैं और न साधु-संतों जैसा दिखने में। सच्ची भक्ति के लिए किसी आडंबर की जरूरत नहीं हैं बल्कि मन पर नियंत्रण रखकर नाम जपना चाहिए।

प्रश्न –  कबीर घास की निंदा करने से क्यों मना करते हैं। पढ़े हुए दोहे के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर :-  कबीरदास जी कहते हैं कि पैर के नीचे आने वाली घास तथा धूल की निंदा नहीं करनी चाहिए क्योंकि यही घास और धूल के कण हवा के साथ उड़ कर आँख में गिर जाए, तो बहुत ज्यादा कष्टकारी हो सकता है।

प्रश्न – मनुष्य के व्यवहार में ही दूसरों को विरोधी बना लेनेवाले दोष होते हैं। यह भावार्थ किस दोहे से व्यक्त होता है?

उत्तर :- जग में बैरी कोइ नहीं , जो मन सीतल होय।
या आपा को डारि दे , दया करै सब कोय।

पाठ से आगे

प्रश्न – ‘या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय।’

‘ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय।’

इन दोनों पंक्तियों में ‘आपा’ को छोड़ देने या खो देने की बात की गई है। ‘आपा’ किस अर्थ में प्रयुक्त हुआ है? क्या ‘आपा’ स्वार्थ के निकट का अर्थ देता है या घमंड का?

उत्तर :- ‘आपा’ अहंकार के अर्थ के रूप में प्रयुक्त हुआ है।  ‘आपा’ घमंड के निकट का अर्थ देता है।

प्रश्न –  आपके विचार में आपा और आत्मविश्वास में तथा आपा और उत्साह में
क्या कोई अंतर हो सकता है? स्पष्ट करें।

उत्तर :-

आपा और आत्मविश्वास

आपा का अर्थ है अहंकार जबकि आत्मविश्वास का अर्थ है अपने ऊपर विश्वास, जिसके सहारे प्राणी बड़ी-से-बड़ी मुश्किल का सामना कर सकता है।

आपा और उत्साह

आपा का अर्थ है अहंकार जबकि उत्साह का अर्थ है – किसी कार्य को करने के लिए अपनी इच्छा से, जोश और साहस से आगे बढ़ना।

प्रश्न –  सभी मनुष्य एक ही प्रकार से देखते-सुनते हैं पर एकसमान विचार नहीं
रखते। सभी अपनी-अपनी मनोवृत्तियों के अनुसार कार्य करते हैं। पाठ में आई कबीर की किस साखी से उपर्युक्त पंक्तियों के भाव मिलते हैं, एक समान होने के लिए आवश्यक क्या है? लिखिए।

उत्तर :- कबीर घास न नींदिए , जो पाऊँ तलि होइ ।
उड़ि पड़ै जब आँखि मैं , बरी दुहेली होइ ।

प्रश्न – कबीर के दोहों को साखी क्यों कहा जाता है? ज्ञात कीजिए।

उत्तर :-  ‘साखी’ शब्द साक्षी का तद्भव रूप है। साक्षी का अर्थ है – प्रत्यक्ष या आँखों के सामने। कबीर समाज में जिन कुरीतियों को देखते थे, उनके ऊपर ध्यान आकृष्ट करने के लिए अपने दोहों के रूप में कह देते थे। इसलिए कबीर के दोहों को साखी कहा जाता है।

भाषा की बात

प्रश्न – बोलचाल की क्षेत्रीय विशेषताओं के कारण शब्दों के उच्चारण में परिवर्तन होता है जैसे वाणी शब्द बानी बन जाता है। मन से मनवा, मनुवा आदि हो जाता है। उच्चारण के परिवर्तन से वर्तनी भी बदल जाती है। नीचे कुछ शब्द दिए जा रहे हैं उनका वह रूप लिखिए जिससे आपका परिचय हो।
ग्यान, जीभि, पाऊँ, तलि, आँखि, बरी।

उत्तर :-

  • ग्यान -ज्ञान।
  • जीभि – जीभ।
  • पाऊँ – पैर।
  • तलि – नीचे।
  • आँखि – आँख।
  • बरी – बड़ी।

 

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