कक्षा 8 » जब सिनेमा ने बोलना सीखा (आलेख)

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जब सिनेमा ने बोलना सीखा
(पाठ का सार)

शब्दार्थ : सवाक फिल्म – मूक फिल्म के बाद बनी बोलती फिल्म। पटकथा – फिल्म के लिए लिखी जाने वाली कहानी। संवाद – फिल्म में की जाने वाली बातचीत।पार्श्वगायक – पर्दे के पीछे से गाने वाला। डिस्क फॉर्म – रिकॉर्डिंग का एक रूप। किरदार – अभिनेता की। भूमिका, चरित्र। खिताब – उपाधि, सम्मान

लेखक ‘प्रदीप तिवारी जी’ द्वारा लिखित ‘जब सिनेमा ने बोलना सीखा’ अध्याय में लेखक ने सिनेमा जगत में आए परिवर्तन को उजागर करने की कोशिश की है। आरम्भ में मूक फिल्में यानी आवाज रहित फिल्में बनती थीं। उनमें किसी तरह की आवाज का प्रयोग नहीं होता था। इसके कुछ समय के बाद सिनेमा जगत में एक बहुत बड़ा परिवर्तन आया और सवाक्‌ फिल्मों का आरम्भ शुरू हुआ। प्रदीप तिवारी के निबंध ‘जब सिनेमा ने बोलना सीखा’ में भारतीय सिनेमा के इतिहास के एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव को उजागर किया गया है। यह निबंध ‘बिना आवाज़ के सिनेमा’ से  ‘आवाज़ के साथ सिनेमा’ में विकसित होने की कहानी बयान करता है। ऐसी फ़िल्में जिसमें आवाज भी थी, वे शिक्षा की दृष्टि की ओर से भी अर्थवान सबित हुईं क्योंकि अब लोग संवाद सुन सकते थे और फिल्म के मुख्य भाग में दी गई सीख को समझ कर अपने जीवन में उतार भी सकते थे।
लेखक बताते हैं कि  ‘आलम आरा’ पहली सवाक फिल्म है। ये फिल्म 14 मार्च 1931 को बनी। इसके निर्देशक अर्देशिर एम ईरानी थे। इसके नायक बिट्ठल तथा नायिका जुबैदा थी। अर्देशिर को इस फिल्म को बनाने के बाद ‘भारतीय सवाक्‌ फिल्म का पिता’ कहा गया। इस फिल्म का पहला गाना “दे दे खुदा के नाम” था। ये फिल्म 8 सप्ताह तक हाउस फुल चली थी। इस फिल्म में सिर्फ तीन वाद्य यंत्र प्रयोग किये गए थे। आलम आरा फिल्म फैंटेसी फिल्म थी। फिल्म ने हिंदी-उर्दू के तालमेल वाली हिंदुस्तानी भाषा को लोकप्रिय बनाया। इसी फिल्म के उपरान्त ही फिल्मों में कई ‘गायक, अभिनेता’ बड़े परदे पर नज़र आने लगे। आलम आरा भारत के अलावा श्रीलंका, बर्मा और पश्चिम एशिया में पसंद की गई। यहाँ से फिल्म जगत में एक नए युग की शुरुआत हुई।

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जब सिनेमा ने बोलना सीखा
(प्रश्न-उत्तर)

प्रश्न – जब पहली बोलती फिल्म प्रदर्शित हुई तो उसके पोस्टरों पर कौन-से वाक्य छापे गए? उस फिल्म में कितने चेहरे थे? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – जब देश की पहली बोलने वाली फिल्म ‘आलम आरा’ प्रदर्शित होने वाली थी तो शहर भर में उसके पोस्टरों में कुछ इस तरह की पंक्तियाँ लिखी हुई थी कि –

‘वे सभी जिन्दा हैं, साँस ले रहे हैं, शत-प्रतिशत बोल रहे हैं, अठहत्तर मुर्दा मानव ज़िंदा हो गए, उनको बोलते, बातें करते देखो।’

पाठ के आधार पर आलम आरा में कुल मिलाकर 78 चेहरे थे। इसमें कुछ मुख्य कलाकार नायिका जुबैदा, नायक विट्ठल, सोहरा मोदी, पृथ्वीराज कपूर, याकूब और जगदीश सेठी जैसे लोग भी मौजूद थे।

प्रश्न – पहला बोलता सिनेमा बनाने के लिए फिल्मकार अर्देशिर एम- ईरानी को प्रेरणा कहाँ से मिली? उन्होंने आलम आरा फिल्म के लिए आधार कहाँ से लिया? विचार व्यक्त कीजिए।

उत्तर –  पहली बोलती फिल्म आलम आरा बनानेवाले फिल्मकार थे- अर्देशिर एम-ईरानी। अर्देशिर ने 1929 में हॉलीवुड की एक बोलती फिल्म ‘शो बोट’ देखी और उनके मन में बोलती फिल्म बनाने की इच्छा जगी। पारसी रंगमंच के एक लोकप्रिय नाटक को आधार बनाकर उन्होंने अपनी फिल्म की पटकथा बनाई। इस नाटक के कई गाने ज्यों के त्यों फिल्म में ले लिए गए।

प्रश्न – विट्ठल का चयन आलम आरा फिल्म के नायक के रूप हुआ लेकिन उन्हें हटाया क्यों गया? विट्ठल ने पुनः नायक होने के लिए क्या किया? विचार प्रकट कीजिए।

उत्तर – विट्ठल का चयन आलम आरा फिल्म के नायक के रूप हुआ लेकिन उन्हें हटाया गया क्योंकि विट्ठल  को उर्दू बोलने में मुश्किलें आती थीं। उन्हें हटाकर उनकी जगह मेहबूब को नायक बना दिया गया। विट्ठल नाराज हो गए और अपना हक पाने के लिए उन्होंने मुकदमा कर दिया। उस दौर में उनका मुकदमा मोहम्मद अली जिन्ना ने लड़ा जो तब के मशहूर वकील हुआ करते थे। विट्ठल मुकदमा जीते और भारत की पहली बोलती फिल्म के नायक बने।

प्रश्न – पहली सवाक् फिल्म के निर्माता-निदेशक अर्देशिर को जब सम्मानित किया गया तब सम्मानकर्ताओं ने उनके लिए क्या कहा था? अर्देशिर ने क्या कहा? और इस प्रसंग में लेखक ने क्या टिप्पणी की है? लिखिए।

उत्तर – सवाक् सिनेमा के नए दौर की शुरुआत करानेवाले निर्माता-निर्देशक अर्देशिर इतने विनम्र थे कि जब 1956 में ‘आलम आरा’ के प्रदर्शन के पच्चीस वर्ष पूरे होने पर उन्हें सम्मानित किया गया और उन्हें ‘भारतीय सवाक् फिल्मों का पिता’ कहा गया तो उन्होंने उस मौके पर कहा था, मुझे इतना बड़ा खिताब देने की जरूरत नहीं है। मैंने तो देश के लिए अपने हिस्से का जरूरी योगदान दिया है।’

पाठ से आगे

प्रश्न – मूक सिनेमा में संवाद नहीं होते, उसमें दैहिक अभिनय की प्रधानता होती है। पर, जब सिनेमा बोलने लगा, उसमें अनेक परिवर्तन हुए। उन परिवर्तनों को अभिनेता, दर्शक और कुछ तकनीकी दृष्टि से पाठ का आधार लेकर खोजें, साथ ही अपनी कल्पना का भी सहयोग लें।

उत्तर – जब पहली बार सिनेमा ने बोलना सीख लिया, सिनेमा में काम करने के लिए पढ़े-लिखे अभिनेता-अभिनेत्रियों की जरूरत भी शुरू हुई क्योंकि अब संवाद भी बोलने थे, सिर्फ अभिनय से काम नहीं चलनेवाला था। मूक फिल्मों के दौर में तो पहलवान जैसे शरीरवाले, स्टंट करनेवाले और उछल-कूद करनेवाले अभिनेताओं से काम चल जाया करता था। अब उन्हें संवाद बोलना था और गायन की प्रतिभा की कद्र भी होने लगी थी। इसलिए ‘आलम आरा’ के बाद आरंभिक ‘सवाव्फ़’ दौर की फिल्मों में कई ‘गायक-अभिनेता’ बडे़ पर्दे पर नजर आने लगे। हिंदी-उर्दू भाषाओं का महत्त्व बढ़ा। सिनेमा में देह और तकनीक की भाषा की जगह जन प्रचलित बोलचाल की भाषाओं का दाखिला हुआ। सिनेमा ज्यादा देसी हुआ। एक तरह की नयी आजादी थी जिससे आगे चलकर हमारे दैनिक और सार्वजनिक जीवन का प्रतिबिंब फिल्मों में बेहतर होकर उभरने लगा।

प्रश्न – डब फिल्में किसे कहते हैं? कभी-कभी डब फिल्मों में अभिनेता के मुँह खोलने और आवाज में अंतर आ जाता है। इसका कारण क्या हो सकता है?

उत्तर – फिल्मों में जब अभिनेताओं की भूमिका को दूसरे व्यक्ति द्वारा आवाज़ दी जाती है तो उसे डब कहते हैं। कभी-कभी डब फिल्मों में आवाज़ तथा अभिनेता के मुँह खोलने में अंतर आ जाता है क्योंकि डब करने वाले व्यक्ति और अभिनेता की बोलने की गति समान नहीं होती। किसी तकनीकी खराबी के कारण भी ऐसा हो जाता है।

अनुमान और कल्पना

प्रश्न – किसी मूक सिनेमा में बिना आवाज के ठहाकेदार हँसी कैसी दिखेगी? अभिनय करके अनुभव कीजिए।

उत्तर – छात्र स्वयं करें।

प्रश्न – मूक फिल्म देखने का एक उपाय यह है कि आप टेलीविजन की आवाज बंद करके फिल्म देखें। उसकी कहानी को समझने का प्रयास करें और अनुमान लगाएँ कि फिल्म में संवाद और दृश्य की हिस्सेदारी कितनी है?

उत्तर – छात्र स्वयं करें।

भाषा की बात

प्रश्न – सवाक् शब्द वाक् के पहले ‘स’ लगाने से बना है। स उपसर्ग से कई शब्द बनते हैं। निम्नलिखित शब्दों के साथ ‘स’ का उपसर्ग की भाँति प्रयोग करके शब्द बनाएँ और शब्दार्थ में होनेवाले परिवर्तन को बताएँ। हित, परिवार, विनय, चित्र, बल, सम्मान।

उत्तर –

  • हित – सहित,
  • परिवार – सपरिवार,
  • विनय – सविनय,
  • चित्र – सचित्र,
  • बल – सबल,
  • सम्मान – ससम्मान

प्रश्न – उपसर्ग और प्रत्यय दोनों ही शब्दांश होते हैं। वाक्य में इनका अकेला प्रयोग नहीं होता। इन दोनों में अंतर केवल इतना होता है कि उपसर्ग किसी भी शब्द में पहले लगता है और प्रत्यय बाद में। हिदी के सामान्य उपसर्ग इस प्रकार हैं-अ/अन, नि, दु, क/कु, स/सु, अध, बिन, औ आदि। पाठ में आए उपसर्ग और प्रत्यय युक्त शब्दों के कुछ उदाहरण नीचे दिए जा रहे हैं-

मूल शब्द  उपसर्ग प्रत्यय शब्द
वाक् सवाक्
लोचन सु आ सुलोचना
फिल्म कार फिल्मकार
कामयाब कामयाबी

इस प्रकार के 15-15 उदाहरण खोजकर लिखिए और अपने सहपाठियों को दिखाइए।

उत्तर – इस प्रश्न के उत्तर के लिए क्लिक करें।

 

क्विज/टेस्ट

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