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टोपी (पाठ का सार)
शब्दार्थ :- भिनसार – प्रातःकाल, सवेरा। खोंते – घोंसले। झुटपुटा – सबेरे या शाम का समय, जब प्रकाश इतना कम हो कि कोई चीज साफ़ दिखाई न दे, वह समय जब कुछ-कुछ अँधेरा और कुछ-कुछ उजाला हो। लटजीरा – चिचड़ा, एक पौधा। सरापा – सिर से पाँव तक पहना जानेवाला वस्त्र। सकत – शक्ति, सामर्थ्य। लफड़ा – उलझन, झंझट। फकत – केवल। अपन – अपना। फिकर – चिता, फिक्र। मत – नहीं। मामूल – वह बात जो रोज की जाए, हमेशा की तरह। घूरा – कूड़े-करकट का ढेर। चिहाकर – चौंककर, चकित होकर। जुगाड़ – उपाय। मनुहार – मनाना। चाम – त्वचा, चमड़ा। फोकट – मूल्यरहित, मुफ्रत। उजरत – मजदूरी, मेहनत का बदला, पारिश्रमिक। मल्लार – मल्हार, संगीत का एक राग। मुलुक – मुल्क, देश। लगुए-भगुए – पीछे चलने वाले, मेल-जोल के व्यक्ति। मशगूल – व्यस्त। सेंत-मेंत – वह काम जिसके का काम लिए कुछ देना न पड़ा हो, बिना लाभ।
सृंजय द्वारा लिखित “टोपी” कहानी एक लोक कथा है। कहानी में टोपी को शक्ति और इज्जत का प्रतीक बताया गया हैं। इस कहानी के माध्यम से लेखक दो संदेश देना चाहता है।
पहला यह कि किस प्रकार राजा जैसे शक्तिशाली लोग अपनी शक्ति का अनुचित प्रयोग कर अपना काम करवाते हैं और उनको पूरा पारिश्रमिक भी नहीं देते हैं। लोग भी उनका काम पूरे मन से नहीं करते हैं। अगर उनके काम के बदले उन्हें पूरा मेहनताना दिया जाए तो वे उस काम को पूरी ईमानदारी और सच्चाई के साथ करेंगे।
लेखक दूसरा संदेश गवरइया के माध्यम से देते हैं की अगर किसी काम को करने के लिए मन में दृढ़ इच्छा शक्ति हो तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं हो सकता। लेखक ने इसमें मुहावरों का बहुत शानदार प्रयोग किया हैं। हर बात को मुहावरों के द्वारा कहने की कोशिश की हैं।
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टोपी (प्रश्न-उत्तर)
कहानी से
प्रश्न :- गवरइया और गवरा के बीच किस बात पर बहस हुई और गवरइया को अपनी इच्छा पूरी करने का अवसर कैसे मिला?
उत्तर – गवरइया और गवरा के बीच मनुष्यों द्वारा पहने जाने वाले रंग बिरंगे सुंदर कपड़ों को लेकर बहस हुई।
अगले दिन सुबह गवरइया को दाना चुगते हुए कूड़े के ढेर में एक रुई का फाहा मिला। जिससे गवरइया ने अपने लिए एक सुंदर-सी टोपी बनवाई और अपनी इच्छा पूरी की।
प्रश्न :- गवरइया और गवरे की बहस के तर्कों को एकत्र करें और उन्हें संवाद के रूप में लिखें।
उत्तर –
गवरइया – मनुष्य रंग-बिरंगे वस्त्र पहनकर कितने सुन्दर लगते हैं।
गवरा- कहाँ सुन्दर लगते हैं। पूरा बदन तो कपड़ों से ही ढक जाता हैं। उसकी कुदरती सुंदरता तक तो दिखाई नहीं देती है।
गवरइया – लगता है आज लटजीरा चुग कर आये हो ? इसीलिए ऐसी बातें कर रहे हो। कपड़े मनुष्यों को मौसम की मार से भी तो बचाते हैं।
गवरा- तभी तो मनुष्यों में मौसम की मार को सहन करने की शक्ति कम होती जा रही है।
गवरइया – मनुष्य हर रोज नए कपड़े सिलवाता है। इसमें कुछ तो खास होगा। और मुझे तो मनुष्य की टोपी बहुत पसंद है।
गवरा- टोपी के चक्कर में पड़कर इन्सान अपनी इंसानियत खो देता है। कंगाल हो जाता हैं। दूसरों की टोपी उतारने में भी देर नहीं करता है। इसलिए तू तो इन चक्करों से दूर ही रह।
गवरइया- मुझे तो हर कीमत पर टोपी पहननी ही है।
प्रश्न :- टोपी बनवाने के लिए गवरइया किस-किस के पास गई? टोपी बनने तक के एक-एक कार्य को लिखें।
उत्तर – टोपी बनवाने के लिये गवरइया सबसे पहले रुई धुनवाने के लिए धुनिया के पास गई। फिर उसके बाद धागा बनाने के लिये कोरी के पास गई। धागे से कपड़ा बनाने के लिये बुनकर के पास गई और आखिर में वह टोपी सिलवाने के लिये दर्जी के पास गई। तब जाकर कही उसकी टोपी बनकर तैयार हुई।
प्रश्न :- गवरइया की टोपी पर दर्जी ने पाँच फुँदने क्यों जड़ दिए?
उत्तर – गवरइया ने दर्जी को मजदूरी के रूप में आधा कपड़ा दे दिया था। इससे दर्जी ने खुश होकर उसकी टोपी को सुन्दर बना दिया और उसकी टोपी पर दर्जी ने पाँच ऊन के फुँदने (फूल) लगा दिए।
कहानी से आगे
प्रश्न :- किसी कारीगर से बातचीत कीजिए और परिश्रम का उचित मूल्य नहीं मिलने पर उसकी प्रतिक्रिया क्या होगी? ज्ञात कीजिए और लिखिए।
उत्तर – छात्र स्वयं करें।
प्रश्न :- गवरइया की इच्छा पूर्ति का क्रम घूरे पर रुई के मिल जाने से प्रारंभ होता है। उसके बाद वह क्रमशः एक-एक कर कई कारीगरों के पास जाती है और उसकी टोपी तैयार होती है। आप भी अपनी कोई इच्छा चुन लीजिए। उसकी पूर्ति के लिए योजना और कार्य-विवरण तैयार कीजिए।
उत्तर – छात्र स्वयं करें।
प्रश्न :- गवरइया के स्वभाव से यह प्रमाणित होता है कि कार्य की सफलता के लिए उत्साह आवश्यक है। सफलता के लिए उत्साह की आवश्यकता क्यों पड़ती है, तर्क सहित लिखिए।
उत्तर – किसी कार्य को उत्साहपूर्वक न किए जाने से उसमें आनंद नहीं महसूस होगा और वह बोझ प्रतीत होगा। ऐसे कार्य में सफलता मिलने की संभावना कम होती है। अतः सफलता के लिए उत्साह की आवश्यकता पड़ती है।
अनुमान और कल्पना
प्रश्न :- टोपी पहनकर गवरइया राजा को दिखाने क्यों पहुँची जबकि उसकी बहस गवरा से हुई और वह गवरा के मुँह से अपनी बड़ाई सुन चुकी थी। लेकिन राजा से उसकी कोई बहस हुई ही नहीं थी। फिर भी वह राजा को चुनौती देने पहुँची। कारण का अनुमान लगाइए।
उत्तर – छात्र स्वयं करें।
प्रश्न :- यदि राजा के राज्य के सभी कारीगर अपने-अपने श्रम का उचित मूल्य प्राप्त कर रहे होते तब गवरइया के साथ उन कारीगरों का व्यवहार कैसा होता?
उत्तर – यदि राजा के राज्य के सभी कारीगर अपने-अपने श्रम का उचित मूल्य प्राप्त कर रहे होते, तब वे गवरइया के साथ बड़े प्यार से बात करते। वे बिना विनती करवाए उसका काम करते।
प्रश्न :- चारों कारीगर राजा के लिए काम कर रहे थे। एक रजाई बना रहा था। दूसरा अचकन के लिए सूत कात रहा था। तीसरा बागा बुन रहा था। चौथा राजा की सातवीं रानी की दसवीं संतान के लिए झब्बे सिल रहा था। उन चारों ने राजा का काम रोककर गवरइया का काम क्यों किया?
उत्तर – गवरइया ने अपना काम करवाने के लिए चारों को उनके प्रतिदिन मिलने वाले मेहनताने से अधिक देने का वादा किया इसलिए न चारों ने राजा का काम रोककर गवरइया का काम किया।
भाषा की बात
प्रश्न :- गाँव की बोली में कई शब्दों का उच्चारण अलग होता है। उनकी वर्तनी भी बदल जाती है। जैसे गवरइया गौरैया का ग्रामीण उच्चारण है। उच्चारण के अनुसार इस शब्द की वर्तनी लिखी गई है। फुँदना, फुलगेंदा का बदला हुआ रूप है। कहानी में अनेक शब्द हैं जो ग्रामीण उच्चारण में लिखे गए हैं, जैसे-मुलुक-मुल्क, खमा-क्षमा, मजूरी-मजदूरी, मल्लार-मल्हार इत्यादि। आप क्षेत्रीय या गाँव की बोली में उपयोग होनेवाले कुछ ऐसे शब्दों को खोजिए और उनका मूल रूप लिखिए, जैसे-टेम-टाइम, टेसन/टिसन-स्टेशन।
उत्तर – खोंते – घोंसले। सकत – शक्ति। फकत – केवल। अपन – अपना। फिकर – चिता, फिक्र। चिहाकर – चौंककर जुगाड़ – उपाय। मनुहार – मनाना। चाम – चमड़ा। फोकट – मुफ्त। मल्लार – मल्हार, संगीत का एक राग। मुलुक – मुल्क।
प्रश्न :- मुहावरों के प्रयोग से भाषा आकर्षक बनती है। मुहावरे वाक्य के अंग होकर प्रयुक्त होते हैं। इनका अक्षरशः अर्थ नहीं बल्कि लाक्षणिक अर्थ लिया जाता है। पाठ में अनेक मुहावरे आए हैं। टोपी को लेकर तीन मुहावरे हैं जैसे-कितनों को टोपी पहनानी पड़ती है। शेष मुहावरों को खोजिए और उनका अर्थ ज्ञात करने का प्रयास कीजिए।
उत्तर –
टेस्ट/क्विज
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